Uttarakhand State Movement
Information About Uttarakhand State movement ,उत्तराखंड राज्य बनाने के लिए किये गये आन्दोलन के महत्वपूर्ण घटनायें व तिथियों in hindi ।
Uttarakhand State Movement
उत्तराखंड जो दुनिया भर में “देवभूमि” के नाम से प्रसिद्द हैं। हो भी क्यों न, क्योंकि इस भूमि के कण कण में विराजते हैं साक्षात महादेव व माता पार्वती।अपनी गोद में महादेव को बिठाये शानदार सदा बहार बर्फ से ढका हिमालय उत्तराखंड की शान में चार चाँद लगाता हैं।
हिमालय पर्वत श्रृंखलाएं से निकल कल-कल कर बहती नदियें ,अमूल्य बन संपदा और वहां मिलने वाली जडीबुटीयों जो लाइलाज बीमारियों को ठीक करने के काम आती हैं। दुर्लभ बन्यजीव जो सिर्फ उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाये जाते हैं और यहाँ की अनोखी सासंस्कृतिक विरासत..यहीं सब तो हैं उत्तराखंड की अनमोल धरोहर जिसे देखने दुनियाभर से लोग यहाँ आते हैं।
उत्तराखंड की इतनी सारी खूबियों के बाबजूद यहाँ के लोगों को हमेशा ह़ी उपेक्षा का सामना करना पड़ा।आजादी के इतने साल बीत जाने के बाद भी यहाँ विकास की गति इतनी धीमी हैं कि लोग बुनियादी सुबिधाओं के लिए भी तरस गये हैं।
यहाँ के कई इलाके बहुत दुर्गम में स्थित हैं।जहाँ तक पहुँचना ह़ी कई बार नामुनकिन हो जाता हैं।सरकार भी इस क्षेत्र में कोई विशेष ध्यान नही देती हैं।यह स्थिति तब और भी ख़राब थी जब उत्तराखंड , उत्तरप्रदेश में शामिल था।
इसीलिए यहाँ की भौगोलिक स्थिति व जनजीवन के रहन सहन के हिसाब व अलग संस्कृतिक धरोहर की वजह से एक अलग राज्य की आवश्यकता महसूस हुई।
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उत्तराखंड राज्य की भौगोलिक स्थिति
उत्तराखंड राज्य पूरी तरह से न तो पहाड़ी राज्य हैं और न ह़ी मैदानी।यहाँ का लगभग आधा भू भाग पहाडी हैं तो आधा मैदानी।और यह राज्य हिमालय पर्वत क्षेत्र के अंतर्गत आता है।
इसीलिए इस क्षेत्र में सदा बर्फ की सफेद चादर ओढे ऊंची-ऊंची हिमालयी पर्वत श्रृंखलाएं ( जैसे त्रिशूल, केदारनाथ, नंदा देवी ,नीलकंठ, चौखंभा) सीना ताने खडी हैं।
इस राज्य की सीमायें तीन (चीन, तिब्बत ,नेपाल) अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से मिलती हैं।इस राज्य की जैव विविधता लोगों ,प्रकृति प्रेमियों ,जीव व बनस्पति वैझानिकों को विस्मित कर देती हैं।यहाँ तरह तरह की बनस्पतियों तथा जीव जंतु पाये जाते हैं।
अलग उत्तराखंड राज्य की मांग का प्रमुख कारण (Uttarakhand State Movement)
उत्तरप्रदेश राज्य के जिस हिस्से के लोग उत्तरप्रदेश से अलग होकर उसे उत्तराखंड राज्य बनाना चाहते थे वहां की भौगोलिक परिस्थितियों उत्तरप्रदेश से बिलकुल अलग थी।इस राज्य के कई गाँव दुर्गम में तो कई अति दुर्गम इलाकों में बसे हैं जहाँ पर अभी तक भी मूलभूत सुबिधायें (सडक ,बिजली, पानी,स्कूल आदि) नही पहुंच पाई हैं।
क्षेत्र का संपूर्ण विकास न हो पाने के कारण यहाँ के लोगों का जीवन काफी कठिन था।एक ओर बच्चों के लिए स्कूल नही,तो दूसरी ओर नवयुवकों को रोजगार नही और बुजुर्गो के लिए अदद अस्पताल नही है।
उत्तराखंड के लोगों का तर्क यह था कि “देश में ऐसे कई राज्य हैं जो क्षेत्रफल व जनसंख्या के हिसाब से प्रस्तावित उत्तराखंड राज्य से काफी कम है।इसीलिए इसे संपूर्ण राज्य का दर्जा मिलना चाहिए”।
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भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से भी जुड़ा हैं उत्तराखंड राज्य आंदोलन
(Uttarakhand State Movement History )
उत्तराखंड के लोगों को एक अलग राज्य की आवश्यकता तो महसूस हुई। लेकिन तत्कालीन सरकारों ने इसे यूँ ह़ी हमें उपहार स्वरूप नही दे दिया।इसके लिए उत्तराखंड के लोगों ने कई वर्षो तक संधर्ष किया।
कई छोटे बड़े अनशन व आंदोलन किये जिनमें कई बार पुलिस प्रशाशन से संधर्ष भी हुआ।और कई आंदोलनकारियों को अपनी जानें भी गवांनी पडी।तब जाकर उत्तराखंड का जन्म हुआ।अलग उत्तराखंड राज्य के आंदोलन की शुरुवात धीरे धीरे ह़ी सही। लेकिन भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के समय ह़ी हो गयी थी।
जब स्वाधीनता संग्राम के दौरान 1913 के कांग्रेस अधिवेशन में उत्तराखंड के अधिकांश प्रतिनिधि उत्तराखंड की एक इकाई के रूप में सम्मिलित हुए।इसी वर्ष उत्तराखंड की अनुसूचित जातियों के उत्थान के लिए “टम्टा सुधारिणी सभा” का “शिल्पकार महासभा” में पुनर्गठन हुआ।
कुमाऊं परिषद की स्थापना
सितंबर 1916 में गोविंद बल्लभ पंत, हरगोविंद पंत, बद्रीदत्त पांडे, इंद्र लाल साह ,प्रेम बल्लभ पांडे, भोलादत्त पांडे, मोहन सिंह दमड़वाल, चंद्र लाल साह, लक्ष्मी दास शास्त्री आदि लोगों ने “कुमाऊं परिषद” की स्थापना की गई। जिसका मुख्य उद्देश्य तत्कालीन उत्तराखंड की सामाजिक व आर्थिक समस्याओं का समाधान ढूंढना था।
1923 तथा 1926 के प्रांतीय परिषद के चुनाव में गोविंद बल्लभ पंत, हरि गोविंद पंत,मुकुंद लाल तथा बद्रीदत्त पांडे ने शानदार जीत हासिल की।लेकिन 1926 कुमाऊं परिषद का काग्रेंस में विलय कर दिया गया।
उत्तरांचल राज्य के आंदोलन की शुरुवात (Uttarakhand State Movement)
उत्तराखंड राज्य के आंदोलन की असली शुरुवात शायद 6 मई 1938 में कांग्रेस के श्रीनगर अधिवेशन (गढवाल) से मानी जा सकती हैं।जब पंडित जवाहरलाल नेहरू जी ने कहा कि “इस पर्वतीय आंचल को अपने विशेष परिस्थितियों के अनुरूप स्वयं निर्णय लेने तथा अपनी संस्कृति को समृद्ध करने के अवसर व अधिकार मिलने चाहिए” और उन्होंने उत्तराखंड राज्य आंदोलन का समर्थन किया।
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- 1938 में श्री देव सुमन ने पृथक राज्य हेतु “गढ़ सेवा संघ” की स्थापना की जिसका नाम बाद में “हिमालय सेवा संघ” कर दिया गया।
- सन 1940में हल्द्वानी सम्मेलन मे बद्री दत्त पांडे ने पर्वतीय क्षेत्र को विशेष दर्जा दिये जाने की मांग की। इसी के साथ अनुसूया प्रसाद बहुगुणा ने कुमाऊं गढ़वाल को पृथक इकाई के रूप में गठन करने की मांग रखी।
- 1950 में हिमालय राज्य के लिए “पर्वतीय जन विकास समिति” का गठन किया गया।
- 1954 में विधान परिषद के सदस्य इंद्र सिंह नयाल ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत से पर्वतीय क्षेत्र के लिए “पृथक विकास योजना” बनाने का आग्रह किया।
- 1955 में “फैजल अली आयोग” ने पर्वतीय क्षेत्र को अलग राज्य के रूप में गठित करने की संस्तति दे दी और “उत्तर प्रदेश राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना की।
- 1957 में पूर्व नरेश मानवेंद्र शाह ने उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने का आंदोलन शुरू कर दिया।
- 1957 में योजना आयोग के उपाध्यक्ष टीटी कृष्णमाचारी ने पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं के निदान के लिए विशेष ध्यान देने का सुझाव दिया।
- 12 मई 1970 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं का निदान, राज्य तथा केंद्र सरकार का दायित्व होने की घोषणा की।
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- 24 जुलाई 1971 में राज्य के गठन के लिए मसूरी में “उत्तराखंड क्रांति दल की स्थापना” की गई जिसके पहले अध्यक्ष देवी दत्त पन्त थे।
- 23 अप्रैल 1987 में अलग राज्य की मांग को लेकर त्रिवेंद्र पंवार ने संसद में पत्र बम फेंका।
- जून 1987 में कर्णप्रयाग सम्मेलन में अलग उत्तराखंड राज्य के गठन के लिए संघर्ष का आह्वान किया।
- नंबर 1987 उत्तराखंड राज्य के गठन के लिए नई दिल्ली में प्रदर्शन के साथ साथ राष्ट्रपति को भी ज्ञापन दिया गया।
- 1990 में जसवंत सिंह बिष्ट ने उत्तराखंड क्रांति दल के विधायक के रूप में उत्तर प्रदेश विधानसभा में उत्तरांंचल को अलग राज्य बनाने पहला प्रस्ताव रखा।
- 20 अगस्त 1991 को तत्कालीन सरकार ने पहली बार उत्तरांंचल राज्य के गठन के लिए केंद्र को प्रस्ताव भेजा।
- जुलाई 1992 में उत्तराखंड क्रांति दल ने अलग राज्य के सम्बन्ध में एक दस्तावेज जारी किया जिसमें उन्होंने गैरसैैण को उत्तरांचल की राजधानी धोषित किया।इस दस्तावेज को उत्तराखंड क्रांति दल का पहला ब्लू प्रिंट माना जाता हैं।
- 1993 में मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने अलग राज्य के गठन के लिए “कौशिक समिति” का गठन किया।
- कौशिक समिति ने मई 1994 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौपी जिसमें उत्तरांंचल को अलग राज्य व गैरसैैण को उत्तरांचल की राजधानी बनाने की सिफारिश की गई।
जानिए चिपको आन्दोलन के बारे में ?
- 1994 में उत्तराखंड राज्य व आरक्षण को लेकर छात्रों ने सामूहिक आंदोलन किया।
- उत्तराखंड क्रांति दल के नेताओं ने अनशन किया।उत्तराखंड में सरकारी कर्मचारी राज्य की मांग के समर्थन में लगातार 3 महीने तक हड़ताल पर रहे।
- 1 सितंबर 1994 को उत्तराखंड राज्य आंदोलन का काला दिवस माना जाता है क्योंकि इस दिन खटीमा में पुलिस ने बिना चेतावनी दिए ही आंदोलनकारियों के ऊपर अंधाधुंध फायरिंग की जिसके परिणाम स्वरूप सात आंदोलनकारियों(भगवान सिंह सिरौला,प्रताप सिंह,सलीम अहमद, गोपीचंद,धर्मानंद भट्ट व परमजीत सिंह) की मौत हो गई।इस धटना को खटीमा गोलीकांड नाम से जाना जाता हैं।
- 2 सितंबर 1994 को खटीमा गोलीकांड के विरोध में मसूरी में मौन जुलूस निकाल रहे लोगों पर पुलिस ने फिर से गोली चलाई जिसमें 21 लोगों को गोली लगी। जिसमें से 6 आंदोलनकारियों (धनपति सिंह ,मदन मोहन ममगई, बेलमती चौहान, हंसा धनई, बलबीर सिंह नेगी और राय सिंह बंगारी) की मौत हो गई।इस धटना को मसूरी गोलीकांड के नाम से जाना जाता हैं।
- 2 अक्टूबर 1994 की रात्रि को दिल्ली रैली में जा रहे आंदोलनकारियों को रामपुर तिराहा, मुजफ्फरनगर में पुलिस प्रशासन ने रात के अंधेरे में चारों ओर से घेर कर गोलियां बरसाई गई।महिलाओं के साथ दुष्कर्म भी किया गया।इस गोली कांड में 7 आंदोलनकारी (सूर्य प्रकाश थपलियाल, राजेश लखेड़ा, रविंद्र सिंह रावत, राजेश नेगी, सत्येंद्र चौहान, गिरीश भद्री, अशोक कुमार कैशिव) की मौत हो गई। इस धटना को रामपुर तिराहा, मुजफ्फरनगर गोलीकांड के नाम से जाना जाता हैं।
- 3 अक्टूबर 1994 को रामपुर तिराहा गोली कांड की सूचना देहरादून में पहुंचते ही लोगों ने इसका विरोध किया और इसी जन आक्रोश को दबाने के लिए पुलिस ने फायरिंग की जिसमें तीन और लोग शहीद हो गए जिनमें बलवंत सिंह सजवान, दीपक वालिया,राजेश रावत थे।इसे देहरादून गोली कांड के नाम से जाना जाता हैं।
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- 3 अक्टूबर 1994 को पूरे उत्तराखंड में रामपुर तिराहा कांड का विरोध हो रहा था।पुलिस प्रशासन किसी भी प्रकार से इसका दमन करने को तैयार थे।इसी कड़ी में कोटद्वार में भी आंदोलन किया जा रहा था। जिसमें दो आंदोलनकारी (राकेश देवरानी, पृथ्वी सिंह बिष्ट) को पुलिस कर्मियों द्वारा राइफल के बटों व डंडों से पीट-पीटकर मार डाला।इसे कोटद्वार गोलीकांड के नाम से जाना जाता हैं।
- नैनीताल में भी इसका विरोध चल रहा थ लेकिन इसका नेतृत्व बुद्धिजीवियों के हाथ में होने के कारण पुलिस कुछ नहीं कर पाई।लेकिन पुलिस की गोली से प्रताप सिंह मौत हो गई। पुलिस ने इनकी गर्दन में गोली मारी।इसे नैनीताल गोलीकांड के नाम से जाना जाता हैं।
- 7 अक्टूबर 1994 को देहरादून में एक महिला आंदोलनकारी के निधन हो गया इसके विरोध में आंदोलनकारियों ने पुलिस चौकी पर हमला किया।
- 15 अक्टूबर 1994 को देहरादून में कर्फ्यू लगा दिया गया और उसी दिन एक और आंदोलनकारी शहीद हो गया।
- 27 अक्टूबर 1994 को देश के तत्कालीन गृहमंत्री राजेश पायलट ने आंदोलनकारियों से बात की।
- 7 नंबर 19 94 को श्रीयंत्र टापू (जो श्रीनगर शहर से 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है) पर आंदोलनकारियों ने सभी दमनकारी घटनाओं के विरोध और उत्तराखंड राज्य हेतु आमरण अनशन आरंभ कर दिया।7 नवंबर 1994 को पुलिस ने इस टापू में पहुंचकर अपना कहर बरपाया जिसमें लोगों को गंभीर चोटे आई।पुलिस वालों ने दो लोगों को अलकनंदा नदी फेंक दिया।इसमें दोनों आंदोलनकारियों (राजेश रावत, यशोधर बेंजवाल) की मृत्यु हो गई।इसे श्रीयंत्र टापू यानी श्रीनगर गोलीकांड के नाम से जाना जाता हैं।
- 15 अगस्त 1996 में तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने लाल किले से अलग उत्तराखंड राज्य बनाने की घोषणा की।
किसे मिलेगा 10% सवर्ण आरक्षण का लाभ ?
- 1998 में केंद्र की भाजपा गठबंधन सरकार ने पहली बार राष्ट्रपति के माध्यम से उत्तर प्रदेश विधान सभा को “उत्तरांचल विधेयक” भेजा।
- उत्तर प्रदेश सरकार ने 26 संशोधनों के साथ “उत्तरांचल राज्य विधेयक” विधानसभा में पारित करवाकर केंद्र सरकार को भेजा।
- केंद्र सरकार ने 27 जुलाई 2000 को “उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक 2000” को लोकसभा में प्रस्तुत किया।
- यह विधेयक 1 अगस्त 2000 को लोकसभा में और 10 अगस्त 2000 को राज्यसभा में पारित हो गया।
- भारत के राष्ट्रपति ने उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक को 28 अगस्त 2000 को अपनी स्वीकृति दे दी और इसी के बाद यह विधेयक एक अधिनियम में बदल गया।
- इसके साथ ही 9 नवंबर 2000 को उत्तरांचल देश का 27 वां राज्य बनकर भारत के नक्शे में उभरा।
- 1 जनवरी 2007 को उत्तरांचल नाम बदल कर इसे नया नाम “उत्तराखंड” दे दिया गया।
क्या अलग राज्य बनने के बाद उत्तराखंड बन पाया आंदोलनकारियों के सपने का उत्तराखंड
जिन मुद्दों को लेकर लोगों ने अलग उत्तराखंड राज्य की मांग (Uttarakhand State Movement) की वो मुद्दे आज भी वैसे के वैसे ह़ी हैं। न तो यहाँ पूर्ण रूप से विकास का पहिया धूमा हैं न लोगों को बुनियादी सुबिधायें मिली हैं। युवा रोजगार की तलाश में गाँव छोड रहे हैं।
पहाड़ के गावों से लगातार पलायन हो रहा हैं जिससे गावं के गावं खाली हो गये हैं।लोग सडक ,बिजली और पानी जैसे बुनियादी समस्याओं में ह़ी उलझे रह गये हैं।और आने जानी वाली सरकारों के लिए ये सब एक बेहतरीन चुनावी मुद्दे भर हैं।ऐसा नही हैं कि यहाँ बिलकुल संभावनाओं नही हैं।
यहा पर अनेक क्षेत्रों जैसे पर्यटन (धार्मिक व प्राकृतिक),फल फूलों से शुरू होने वाले छोटे एवं लधु उद्योग धंधो,यहाँ के जंगलों में मिलने वाली अनमोल जडी बूटी का भंडार,यहाँ की अनोखी सांस्कृतिक धरोहर में संभावनाओं अपार हैं
लेकिन यहाँ के लोगों की परेशानियों को देखते हुए सरकार की तरफ से एक ईमानदार मगर ठोस कदम व भी एक बेहतरीन योजना के साथ उठाने की सख्त जरूरत हैं और कुछ कदम लोगों को भी खुद उठाने होगें इस तरफ।
(Information About Uttarakhand State movement)
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