Essay on Gandhi was a great supporter of Truth And Non Violence ,
सत्य और अहिंसा के पुजारी – महात्मा गाँधी पर हिंदी निबंध । महात्मा गाँधी सत्य और अहिंसा के घोर पक्षधर थे पर हिंदी निबंध।
Essay on Gandhi was a great supporter of Truth And Non Violence
Content /संकेत बिन्दु /विषय सूची प्रस्तावना
- प्रस्तावना
- 02 अक्टूबर को मनाया जाता हैं अन्तरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस
- गांधी जी का जीवन परिचय
- सत्य और अहिंसा के पुजारी गांधीजी
- आज के परिपेक्ष में महात्मा गांधी के विचारों की प्रासंगिक
- उपसंहार
प्रस्तावना
“महात्मा गांधी” ये सिर्फ दो शब्द नहीं है। यह एक पूरा सफर है एक साधारण मानव से महामानव बनने तक का , एक साधारण बैरिस्टर से भारत के राष्ट्रपिता व बाबू जैसे सम्मानित पद पर आसीन होने तक का , और यह सफर है मोहनदास करमचंद गांधी से “सत्य और अहिंसा के पुजारी” बनने तक का।
महात्मा गाँधी स्पष्ट कहते थे कि “मेरा धर्म सत्य और अहिंसा पर आधारित है। सत्य मेरा भगवान है और अहिंसा उसे पाने का साधन। सत्य बिना किसी जन समर्थन के भी मजबूती से खड़ा रहता है। क्योंकि वह आत्मनिर्भर है। और अहिंसा आदमी द्वारा तैयार किये गये सभी विनाश के ताकतवर हथियारों से अधिक शक्तिशाली हैं”।
02 अक्टूबर को मनाया जाता हैं अन्तरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस
महात्मा गाँधी के जन्मदिवस के अवसर पर विश्व भर में 02 अक्टूबर को अन्तरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस मनाया जाता है।
दुनिया को शांति का संदेश देने व गाँधीजी के मार्ग को अपनाने के लिए लोगों को प्रेरित करने के उद्देश्य से 02 अक्टूबर को “अन्तरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस” मनाने का भारत द्वारा एक प्रस्ताव “संयुक्त राष्ट्र महासभा” में रखा गया। इस प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र के 140 सदस्यों का समर्थन मिला।
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 05 जून 2007 को एक अहम फैसला लिया और प्रतिवर्ष 02 अक्टूबर को “अन्तरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस / International Non Violence Day ” मनाये जाने की घोषणा की। जिसका उद्देश्य गाँधीजी के सिद्धांतों के जरिये विश्व में शांति , सौहार्द , सहिष्णुता , आपसी समझ और अहिंसा की नीति को अपनाने को बढ़ावा देना हैं ।
महात्मा गांधी का जीवन परिचय
गांधीजी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर (गुजरात ) में हुआ था। उनके पिता का नाम करमचंद गांधी और माता का नाम पुतलीबाई था।उनकी पत्नी का नाम कस्तूरबा गाँधी था। भारत में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वो बैरिस्टर की पढाई करने इंग्लैंड चले गए।
इंग्लैंड से लौटने के बाद गांधीजी वकालत करने दक्षिण अफ्रीका चले गए। दक्षिण अफ्रीका में भी उस समय अंग्रेजी हुकूमत थी। और अंग्रेज वहां रहने वाले भारतीयों के साथ बुरा बर्ताव करते थे।दक्षिण अफ्रीका में अपनी वकालत के दौरान कई बार गांधी जी को रंगभेद का शिकार होना पड़ा।
एक बार गांधीजी को गोरा ना होने की वजह से ट्रेन के प्रथम श्रेणी के डिब्बे धक्का मार कर बाहर फेंक दिया था। भारतीय होने की वजह से उनका जगह-जगह अपमान किया जाता था। यहां तक कि होटलों में भी उन्हें प्रवेश करने नहीं दिया जाता था।
उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए ही भारतीयों के अधिकारों की रक्षा के लिए रंगभेद के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन शुरू कर दिया। इसके कुछ समय बाद गांधीजी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे आये।
उन दिनों भारतीय जनमानस भी अंग्रेजों के जुल्मों से परेशान था। उन्होंने भारत की आजादी के लिए असहयोग आंदोलन , नमक सत्याग्रह , चंपारण सत्याग्रह , सविनय अवज्ञा आंदोलन , भारत छोड़ो जैसे बड़े जन आंदोलनों का नेतृत्व भी किया ।
इन सभी आंदोलनों में भारतीय जनमानस ने बहुत बड़ी संख्या में भाग लिया और अंततः 15 अगस्त 1947 को भारत के लोगों ने आजादी का स्वर्णिम सूरज देखा।
30 जनवरी 1948 को एक प्रार्थना सभा में जाते वक्त नाथूराम गोडसे ने उन पर अंधाधुंध गोलियां चलाई । जिसके कारण इस महान विभूति ने सदा सदा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
व्यक्तिगत जीवन में गांधीजी बहुत ही साधारण तरीके से जीवन जीते और स्वच्छता का बहुत अधिक ध्यान रखते थे। वो समाज को छुआछूत , जाति-पाँति के भेदभाव की संकीर्ण मानसिकता से ऊपर उठाना चाहते थे।
उनका हमेशा ही स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने पर जोर रहा। वो महिला शिक्षा व सामाजिक एकता के पक्षधर थे। महात्मा गांधी ने कहा था कि “भारत की आत्मा गांवों में बसती है। इसीलिए ग्रामीण भारत का विकास करे बिना संपूर्ण भारत का विकास नहीं हो सकता”।
सत्य और अहिंसा के पुजारी गांधीजी
(Essay on Gandhi was a great supporter of Truth And Non Violence)
गांधीजी सत्य और अहिंसा के पुजारी थे । सत्य और अहिंसा इन्हीं दो शब्दों से गांधीजी के व्यक्तित्व , उनकी विचारधारा व जीवन दर्शन के बारे में पता चलता हैं। यानि हम यह कह सकते हैं कि गांधी का पूरा जीवन दर्शन ही इन्हीं दो स्तम्भों पर मजबूती से टिका है। गांधी जी की इसी विचार धारा से प्रभावित होकर रबिंद्रनाथ टैगोर ने उन्हें “महात्मा” कह कर पुकारा था ।
गांधीजी के अनुसार सत्य एक विशाल वृक्ष है। उसकी ज्यों-ज्यों सेवा की जाती है त्यों-त्यों उसमें अनेक फल आते हुए नजर आते है और उनका कभी अंत ही नहीं होता। इसीलिए हमेशा सत्य के प्रति समर्पण रहो और हमेशा सत्य पर अडिग रहो। क्योंकि असत्य को कितना भी बढ़ा चढ़ा कर बोलें , वो कभी भी सत्य नहीं बन सकता।
इसी तरह सत्य कभी भी असत्य नहीं बन सकता। इसीलिए कितनी भी विपरीत परिस्थितियों क्यों न हो , हमेशा सत्य पर अपनी पूरी निष्ठा से डटे रहो। कभी भी असत्य , अन्याय , हिंसा का साथ मत दो।
गांधीजी के अनुसार हिंसा किसी को मार देना या शाररिक नुकसान पहुंचाने तक ही सीमित नहीं हैं। अपने कार्य , वचन और शब्दों से दूसरों को दुख पहुँचाना भी हिंसा का ही एक रूप है। अहिंसा की शक्ति से आप पूरी दुनिया को हिला सकते हैं या बदल सकते हैं ।
सावरमती के इस संत के पास सिर्फ एक ही हथियार था। वह था सत्य और एक ही मार्ग था अहिंसा। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गांधी ने अपने इन्हीं दो हथियारों का इस्तेमाल बड़ी खूबी से किया और 200 साल से जमी अंग्रेजों की जड़ों को भारत से उखाड़ कर फेंक दिया।
अपने इन्हीं दो हथियारों के बल पर उन्होंने कई सफल अहिंसक आंदोलनों का संचालन किया। बड़ी संख्या में भारतीय जनमानस ने उनके इन आंदोलनों में भाग लिया और उन्हें सफल बनाया। इन्हीं आंदोलनों ने भारत की आजादी का मार्ग प्रशस्त किया।
महात्मा गांधी के नेतृत्व में “चंपारण आंदोलन” भारत का पहला अहिंसक आंदोलन था जो 1917 में बिहार के चंपारण जिले शुरू हुआ था। यह पूरी तरह से ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आम जनता का एक अहिंसक आंदोलन था।
इसके अलावा बारदोली सत्याग्रह और खेड़ा सत्याग्रह भी अहिंसक आंदोलन थे। गांधी जी ने इन आंदोलनों के बारे में कहा था कि “ये ऐसे आंदोलन है जो पूरी तरह से सच्चाई पर कायम है और हिंसा का इसमें कोई स्थान नहीं है”।
महात्मा गांधी ने 12 मार्च 1930 को “दांडी मार्च” यात्रा प्रारम्भ की थी। जिसका मुख्य उद्देश्य अंग्रेजों द्वारा बनाये गए “नमक कानून” को तोड़ना था। 9 अगस्त 1942 को “भारत छोड़ो आंदोलन” महात्मा गांधी के आह्वान पर पूरे भारत में शुरू किया गया था ।ये सब आंदोलन पूरी तरह से अहिंसक थे।
गांधी जी ने अपना पूरा जीवन सत्य की खोज में समर्पित कर दिया था।उन्होंने अपने जीवन के सकारात्मक व नकारात्मक अनुभवों को अपनी आत्मकथा “सत्य के प्रयोग / My Experiment With Truth ” में विस्तार से लिखा हैं।
महात्मा गाँधी दुनिया के एकमात्र ऐसे महापुरुष हैं जिन्होंने बिना कोई अस्त्र-शस्त्र उठाए , अंग्रेजी हुकूमत को ललकारा और उनको अपने घुटनों के बल बैठने को मजबूर कर दिया।
आज के परिपेक्ष में महात्मा गांधी के विचारों की प्रासंगिक
सत्य , अहिंसा के पुजारी , आजादी के महानायक , असाधारण व्यक्तित्व के धनी , सादा जीवन उच्च विचार रखने वाले महात्मा गांधी के विचार व आदर्श आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने आजादी के वक्त थे। बल्कि उनके आदर्शों व उपदेशों की आज के दौर में प्रसंगिगता बढ़ गई हैं। क्योंकि आज पूरे विश्व में लगातार अराजकता , हिंसा , आतंकवाद , आपसी वैमनस्य बढ़ता जा रहा हैं।
महात्मा गांधी ने अपने कर्मों से सम्पूर्ण विश्व को यह सीख दी है कि बिना कोई हथियार उठाये और बिना कोई हिंसा किये या बिना खून की एक बूँद बहाये भी दुनिया की बड़ी से बड़ी लड़ाई शांति व अहिंसक तरीके से लड़ी जा सकती है। महात्मा गांधी को दुनिया सिर्फ एक राजनेता के रूप में ही नहीं वरन एक आध्यात्मिक नेता के रूप में भी देखती हैं।
दक्षिण अफ्रीका के लोकप्रिय नेता नेल्शन मंडेला ने गांधीजी के मार्ग पर चलकर रंगभेद भेदभाव की लड़ाई को जीता था।और फिर दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने। इसके अलावा दुनिया के अनेक नेताओं , बुद्धिजीवियों ने भी गांधीजी का मार्ग अपनाया । हमारी आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए तो गांधीजी के ये आदर्श एक धरोहर के रूप में हैं। इसीलिए गांधीजी को युगपुरुष कहा जाता है।
महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था कि “आने वाली पीढ़ियों को इस बात पर यकीन नहीं होगा कि हाड मांस का एक ऐसा जीवित पुतला इस धरती पर कभी था , जिसने अहिंसा को ही अपना हथियार बनाया”।
उपसंहार
दुर्बल शरीर , तन में सिर्फ एक खादी की सफेद धोती , हाथ में एक लाठी पकड़े एक साधारण सा दिखने वाला यह व्यक्ति असाधारण था। गांधीजी सत्य , अहिंसा और प्रेम के पुजारी थे। “राम” उनका प्रिय वाक्य था। परोपकार , दया और क्षमा की यह जीवंत मूर्ति सही अर्थों में दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति के लिए मार्गदर्शक स्वरूप हैं ।
भले ही गांधी जी आज सशरीर इस दुनिया में ना हो , लेकिन अपने आदर्शों पर चलने वाले करोड़ों अनुयायियों के दिलों में गांधीजी हमेशा जीवित रहेंगे और उनके विचार , उनका जीवन दर्शन , सत्य और अहिंसा का उनका मार्ग हमेशा ही लोगों को एक नई राह दिखाता रहेगा। यही नहीं उनके राह में चलकर ही पूरे विश्व में शांति का मार्ग प्रशस्त होगा। जब जब मानवता खतरे में होगी , तब तब गाँधी जी के यही सिद्धांत हमें राह दिखायेंगे। यही शाश्वत सत्य हैं।
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