हिमालय का पर्यावरण : चुनौतियों और समाधान

Essay On Himalayan Environment ,

Essay On Himalayan Environment : Challenges and Solution , हिमालय का पर्यावरण : चुनौतियों और समाधान पर हिंदी निबंध। 

हिमालय का पर्यावरण :  चुनौतियों और समाधान

Essay On Himalayan Environment 

Challenges and Solution

Essay On Himalayan Environment : Challenges and Solution

Content /संकेत बिन्दु /विषय सूची 

  1. प्रस्तावना
  2. हिमालय का महत्व
  3. हिमालय के पर्यावरण को खतरा 
  4. हिमालयी पर्यावरण को खतरे के कारण
  5. हिमालयी पर्यावरण को खतरे से चुनौतियों
  6. हिमालयी पर्यावरण की चुनौतियों का समाधान 
  7. उपसंहार 

प्रस्तावना

भारत को प्रकृति ने एक से एक अनमोल उपहारों से नवाजा और भारत माँ की रक्षा करने को सीना ताने , सफेद बर्फ की चादर ओढ़े शान से खड़े साक्षात् पर्वतराज हिमालय को प्रहरी बना कर खड़ा कर दिया।

हिमालय हमारे देश की संस्कृति , राष्ट्रगान , प्रार्थनाओं में भी शामिल हैं। हिमालय को सबसे ऊंचा व सम्मानित स्थान सिर्फ उसकी ऊंचाई के लिए नहीं , वरन उसकी निस्वार्थ राष्ट्र सेवा के लिए दिया गया है।

दरअसल भारतीय उपमहाद्वीप के स्वस्थ पर्यावरण की जादूई चाबी हिमालय के पास ही है। हिमालय को एशिया का “वॉटर टावर/टैंक ” माना जाता है। और यह बड़े भू-भाग में जलवायु का निर्माण भी करता है। यह देश की संस्कृति व संसाधनों का जनक भी हैं।

हिमालय का महत्व

(Essay On Himalayan Environment )

हिमालय सिर्फ एक सुन्दर निर्जीव पर्वतमाला नहीं हैं। बल्कि हमारे पर्यावरण को बचाने में हिमालय पर्वत की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसीलिए हिमालय को “भारत का मुकुट” कहा जाता है। हिमालय पर्वतमाला को दुनिया की सबसे नई पर्वतमाला माना जाता हैं। इसका अभी भी लगातार विस्तार हो रहा है। कई पुरानी व महान सभ्यताओं ( सिंधु घाटी की सभ्यता , मोहनजोदाड़ो की सभ्यता)  का जन्म और विकास हिमालय की गोद में ही हुआ है।

इन्हीं हिमालयी क्षेत्रों में जैन धर्म व बौद्ध जैसे महान धर्मों का भी जन्म हुआ। हिमालय से निकली जीवनदायिनी नदियों के किनारे बैठकर ही तुलसी , कबीर , नानक , रैदास ने न जाने कितनी ही रचनाओं की ।
गंगा, यमुना जैसी कई छोटी बड़ी नदियों के उद्‌गम स्थल हिमालय में हैं। ये नदियों हमारे देश के लिए आर्थिक , सांस्कृतिक व आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण हैं। हिमालय को देश का “जल बैंक” भी कहा जाता हैं। यह देश की 65% आबादी को पानी की आपूर्ति करता है।
हिमालय देश के नौ राज्यों में फैला हैं और यह देश की लगभग 17 प्रतिशत भूमि पर स्थित है। इसके 67% भू-भाग पर वन क्षेत्र है जबकि 13% भूमि पर खेती की जाती है।
देश के 1.3 प्रतिशत वन हिमालय में हैं। यहां की 30 बर्फीली चोटियां 7000 मीटर की ऊंचाई तक फैली हैं। जो हिमालय की 22.4 प्रतिशत भूमि पर हैं।
कई बड़ी क्रांतियां जैसे हरित व श्वेत क्रांतियां हिमालय से निकलने वाली नदियों के कारण ही सफल रही हैं। भारत की लगभग 65% आबादी और 18 अन्य देशों को हिमालय से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष लाभ पहुँचता हैं।
हिमालय घना व असीमित जैव विविधता वाला क्षेत्र है।यह स्थान हज़ारों प्रकार के दुर्लभ प्रजातियां के जीव-जंतुओं और वनस्पतियों का बसेरा हैं जो इसके लगभग 5.7 लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हैं।
हिमालय क्षेत्र में हजारों छोटे बड़े ग्लेशियर विद्ध्यमान हैं। इसी के साथ यहाँ जैव विविधता वाले जंगल , गंगा व यमुना जैसी पावन अनेक नदियां के उद्‌गम स्थल मौजूद हैं। 
हिमालय की ऊंची-ऊंची पर्वत श्रृंखलायें साइबेरिया की बर्फीली हवाओं से पूरे दक्षिण एशिया के लोगों की रक्षा करती हैं। और इस हिमालयीय क्षेत्र के आसपास रहने वाले किसानों , वनवासियों का भरण पोषण भी करती हैं।
हिमालय के पर्यावरण को खतरा 
हिमालय पर्वत , वहाँ का पारिस्थित तंत्र , वन्य जीवन , अनमोल वनस्पतियों हमारे देश की अमूल्य प्राकृतिक संपदा है। और हिमालय की वजह से ही हमारे देश का पर्यावरण संतुलित हैं ।नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी (NIH) रुड़की की एक शोध से यह पता चला हैं कि हिमालय का पर्यावरण तेजी से बदल रहा है।आज हिमालय की पर्यावरणीय स्थिति अत्यंत संवेदनशील है।
एनआईएच वैज्ञानिकों के मुताबिक “पिछले 20 वर्षों में हिमालय में बारिश और बर्फबारी का समय बदल गया है। और हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने से झीलें के बनने का सिलसिला भी शुरू हो गया है”। जबकि उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के बाद सबसे अधिक ग्लेशियर व बर्फीला इलाका होने के कारण हिमालय को “तीसरा ध्रुव” भी कहा जाता है।
हिमालय को दुनिया का सबसे दुर्लभ जैव विविधता वाला क्षेत्र माना जाता है। लेकिन पर्यावरणीय असंतुलन के कारण यह जैव विविधता धीरे-धीरे खत्म होती जा रही हैं।जो हिमालय व हम सब के लिए एक बड़ा खतरा हैं।  
धरती का तापमान बढ़ने से ग्लेशियरों का पिघलना शुरू हो गया है जो भविष्य के लिए खतरनाक संकेत देता है। 

मानव ने अपनी गतिविधियों व प्रदूषण से हिमालय के पर्यावरणीय सेहत पर खासा असर डाला है।विकास के नाम पर अंधाधुंध पेड़ों व भूमि की कटाई-छंटाई , लगातार वनों से अमूल्य प्राकृतिक संपत्ति का दोहन हिमालयी पर्यावरण के लिए खतरा बन गए हैं। 

हिमालयी पर्यावरण को खतरे के कारण 

आज हिमालयी क्षेत्र की समूची जैव विविधता भी खतरे में हैं। इसके कई कारण हैं। हिमालय के वनों से लगातार होता दोहन , वहां बार-बार लगने वाली अनियंत्रित आग , तापमान बढ़ने से ग्लेशियरों का पिघलना  , जैव विविधता का बड़े पैमाने पर कम या लुप्त होना , कई बड़ी नदियों का सूखना आदि प्रमुख कारण हैं।
इसके अलावा खत्म होते भूजल स्रोत , विकास नाम पर पहाड़ों का खोखला किया जाना , ऊपर से मानव द्वारा फैलाया गया कचरा व प्रदूषण हिमालय के पर्यावरणीय सेहत के लिए खतरनाक हैं। खराब वन प्रबंधन और लोगों में जागरूकता की कमी भी हिमालयी पर्यावरण के खतरे का कारण हैं।  

मानवीय गतिविधियों से उपजा प्रदूषण हिमालयी पर्यावरण को काफी नुकसान पहुँचा रहा है।
विकास के नाम पर बड़ी-बड़ी इमारतें का निर्माण और सड़कें का चौड़ीकरण हेतु विस्फोटकों के जरिए पहाड़ों की अंधाधुंध कटाई-छंटाई से पहाड़ इतने कमजोर हो गए हैं कि थोड़ी सी बारिश होने पर वे धंसने या गिरने लगते हैं।

केदारनाथ आपदा मानवजनित आपदाओं में से ही एक हैं। जो हिमालयी पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने का परिणाम है। 

ऐसा माना जा रहा हैं कि संचार सुविधाओं के लिए लगे टावरों से निकलने वाली तरंगों की वजह से बादलों का संतुलन बिगड़ता है और वे अचानक फट कर जाते हैं।

हिमालयी पर्यावरण को खतरे से खड़ी हुई चुनौतियों (Challenges for Himalayan Environment )

भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है जहाँ व्यापक जैव विविधतायें हैं। उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन के प्रभाव अब दिखने लगे हैं। जिसके परिणाम भविष्य में घातक हो सकते हैं। हिमालय के 50 से भी अधिक ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं।

ग्लेशियरों के सिकुड़ने का सीधा प्रभाव हिमालयी वनस्पतियों व वहाँ रहने वाले जीव जंतुओं , वनों के साथ-साथ निचले हिमालयी क्षेत्रों में फसली पौधों तथा हिमालय क्षेत्र में रहने वाले लोगों पर पड़ेगा। इसके अलावा पूरा देश भी इसके प्रभाव से अछूता नहीं रहेगा।इसीलिए ग्लेशियरों को सिकुड़ने से बचाने के उपाय समय रहते ढूढ़ने होंगे। 

इसके अलावा भी कई और चुनौतियों हमारे सामने हैं। 

ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण हिमालयी क्षेत्र की जैव विविधता खतरे में हैं। हिमालय का बदलता पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए वायु , जल एवं अन्न की कमी का कारण हो सकता है।

जलवायु परिवर्तन , ग्लेशियरों का पिघलना , वर्षा एवं बर्फबारी के समय चक्र में हो रहे परिवर्तन, समुद्र के तल की ऊंचाई बढ़ने से पूरी दुनिया के सामने एक नया संकट पैदा होने वाला हैं ।और अगले 50 वर्षों में पहाड़ों का तापमान दो से चार डिग्री बढ़ने का अनुमान हैं। ऐसी परिस्थिति से निपटना इंसान के लिए वाकई चुनौती भरा होगा।

जीवन की मुख्य आवश्यकताओं में स्वच्छ हवा , पानी ही है। अगर गंगा-यमुना जैसी नदियों में जलस्तर कम होने से देश की आर्थिक तरक्की में बाधा खड़ी हो जाएगी। प्राकृतिक जल स्रोत लगातार सूख रहे हैं। खनन के नाम पर नदियों को नुक्सान पहुंचाया जा रहा हैं। लगातार वनो का कटान व प्राकृतिक संसाधनों का दोहन अंततः मानव जाति को ही ले डूबेगा।

हिमालयी पर्यावरण की चुनौतियों का समाधान

हिमालय की रक्षा के लिए अब एक राष्ट्रीय संकल्प की आवश्यकता है। हिमालय के अनगिनत ऋणों को हम सिर्फ इसका संरक्षण कर ही चुका सकते हैं। हमने अपने थोड़े से फायदे के लिए हिमालय और उसकी संपत्ति को लगातार नुकसान पहुंचाया है।
हम यह भूल गए हैं कि अगर हिमालय सुरक्षित नहीं रहेगा तो , हम और हमारी आने वाली पीढ़ियां भी सुरक्षित नहीं रह सकती हैं। 

इसीलिए हिमालय को सुरक्षित व संभाल कर रखना हम सबकी जिम्मेदारी है। हिमालय की नैसर्गिक खूबसूरती और जैव विविधता जितना हिमालयीे पर्यावरण के लिए अच्छा है। उससे कहीं ज्यादा हमारे लिए जरूरी है।

हिमालय का संरक्षण तभी हो पायेगा , जब हम सभी लोग हिमालय के महत्व और हिमालय के उपकारों को समझें । स्थानीय लोगों के साथ-साथ हमारी भावी पीढ़ी खास कर नवयुवाओं को भी हिमालय के संरक्षण के लिए जागरुक होना पड़ेगा । और आगे बढ़कर इसके हित के लिए कार्य करना पड़ेगा। 

हिमालय की अत्यंत संवेदनशील पर्यावरणीय स्थिति को देखते हुए इस विशाल पर्वतश्रृंखला को सिर्फ एक उपभोग की वस्तु समझ कर इसका शोषण न किया जाय। बल्कि समय रहते इसकी सुरक्षा व संरक्षण के लिए एक बड़ा जन अभियान या आन्दोलन खड़ा किया , ताकि इसकी रक्षा के लिए सब लोग सोचना शुरू कर दें ।

हिमालय की रक्षा के लिए सरकार , पर्यावरणविद् , स्वयंसेवी संस्थाओं और आम जन मानस की मजबूत भागीदारी होनी चाहिये।

पहाड़ी इलाकों में पर्यटन को बढ़ावा देना आवश्यक है क्योंकि इससे सरकार को राजस्व की प्राप्ति होती है और स्थानीय लोगों को भी अपने इलाकों में ही रोजगार उपलब्ध होता है। लेकिन पर्यावरणीय नियम कानून के क्रियान्वयन में ढिलाई और उदासीनता पर कठोर दंड दिया जाना चाहिए।
हिमालय पर आने वाले हर संभावित खतरे को भांप कर उसे दूर करना होगा। क्योंकि अगर हिमालय पर कोई खतरा आता हैं तो वह न सिर्फ भारत के लिए बल्कि चीन , नेपाल, भूटान, अफगानिस्तान , पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार आदि देशों के लिए भी भयंकर हो सकता है।
हिमालय की विराटता , उसके प्राकृतिक सौंदर्य और उसकी आध्यात्मिकता को बरकरार रखना अति आवश्यक हैं।
हम सब को हिमालय की सामाजिकता , उसका पारिस्थितिकी तंत्र , भू-गर्भ , भूगोल , जैव-विविधता को अच्छे से समझ कर उसके संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाने होंगें ।
हालांकि कुछ स्थानीय लोग , पर्यावरणविद और कुछ जागरूक स्वयंसेवी संगठन समय समय पर पहाड़ों और वनों की कटाई व दोहन के खिलाफ आवाज उठा कर इन्हें बचाने का प्रयत्न अवश्य करते हैं।
हिमालय के पर्यावरण को बचाने के लिए जरूरत हैं एक मजबूत राजनीतिक नेतृत्व  व इच्छा शक्ति की। साथ में स्वयंसेवी संगठनों व लोगों का मिलकर हिमालय की हिफाजत के लिए एक ईमानदार पहल करनी होगी।
उपसंहार (Essay On Himalayan Environment)
आज हिमालय जैसी विशाल पर्वतमालाएं भी मनुष्य के स्वार्थ और अंधाधुंध विकास के कारण पर्यावरण के गंभीर खतरे से जूझ रही हैं।एशिया के मौसम चक्र में बदलाव आ चुका हैं।  जिसके कारण कभी भीषण गर्मी , तो कभी जानलेवा सर्दी पड़ती है। और कही कही तो अचानक बादल फट पड़ते है। धरती का दरकना या डोलना , अब आए दिन हम महसूस करने लगे हैं
दरअसल  हिमालय और हिमालयी पर्यावरण को बचाने के लिए डॉ. राममनोहर लोहिया के  ‘हिमालय बचाओ’ जैसे एक व्यापक जन अभियान की जरूरत हैं या सुंदरलाल बहुगुणा के ‘चिपको आंदोलन’ के जैसे जन आंदोलन की ।
“हिमालय है तो हम हैं”। यही सोच कर हमें हिमालय को बचाना हैं। वरना यह तो निश्चित हैं कि यदि हिमालय नहीं बचा तो , फिर धरती पर मानव जीवन का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जायेगा। इसलिए हम सबका कर्तव्य है कि हम हिमालय को बचाने में अपना-अपना अमूल्य सहयोग अवश्य दें।

हिमालय का पर्यावरण :  चुनौतियों और समाधान :

Essay On Himalayan Environment : Challenges and Solution

YouTube channel  से जुड़ने के लिए इस Link में Click करें। YouTube channel link –(Padhai Ki Batein / पढाई की बातें )

You are most welcome to share your comments . If you like this post . Then please share it . Thanks for visiting.

यह भी पढ़ें……

मानवीय करुणा की दिव्य चमक के प्रश्न व उनके उत्तर 

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला “उत्साह” सार व प्रश्न व उनके उत्तर 

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला “अट नहीं रही हैं ” कविता का सार , कविता का अर्थ ,कविता के प्रश्न व उनके उत्तर  पढ़ें

Surdas Ke Pad question answer class 10 , hindi , kshitij : प्रश्न और उनके उत्तर सूरदास के पद ,कक्षा -10  ,हिन्दी ,क्षितिज 

सूरदास के पद , कक्षा 10 , हिन्दी विषय , क्षितिज  : Surdas Ke Pad Class 10 CBSE Hindi Kshitij

गरीबी सिर्फ पैसे की कमी नहीं होती है  पर हिंदी निबंध

विचारों में प्रदूषण पर हिंदी निबंध 

Slogan Writing  (नारा लेखन)

सूचना लेखन (Suchana Lekhan) , Notice Writing In Hindi