An Essay on Earthquake : भूकंप पर हिन्दी निबन्ध
निबंध हिंदी में हो या अंग्रेजी में , निबंध लिखने का एक खास तरीका होता है। हर निबंध को कुछ बिंदुओं (Points ) पर आधारित कर लिखा जाता है। जिससे परीक्षा में और अच्छे मार्क्स आने की संभावना बढ़ जाती है।
हम भी यहां पर “भूकंप / An Essay on Earthquake” पर निबंध को कुछ बिंदुओं पर आधारित कर लिख रहे हैं। आप भी अपनी परीक्षाओं में निबंध कुछ इस तरह से लिख सकते हैं। जिससे आपके परीक्षा में अच्छे मार्क्स आयें।
An Essay on Earthquake
भूकंप पर हिन्दी निबन्ध
Content
- प्रस्तावना (Introduction)
- भूकंप क्या हैं (What is Earthquake)
- भूकंप आने के कारण (Causes of Earthquake)
- भूकंप की तीब्रता
- भूकंप की तीव्रता नापने की इकाई
- भूकंप आने में सुरक्षा के उपाय
- भूकंप से तबाही
- उपसंहार
प्रस्तावना (Introduction)
भूकंप , बाढ़ प्रकृति के सबसे रौद्र रूप है। भूकंप का एक जोरदार झटका पलक झपकते ही महा विनाश का कारण बन जाता है।भूकंप की अवधि होती तो कुछ सेकेंड या मिनट की ही है। लेकिन इतने समय में ही पूरी पृथ्वी में हाहाकार मच जाता है।
भूकंप क्या हैं (What is Earthquake)
पृथ्वी जब अचानक ही डोलने या हिलने लगती है। उसे आम भाषा में भूकंप कहा जाता है।भूकंप की अवधि तो कुछ सेकेंड की ही होती है। पर इतने कम समय में ही मानो प्रलय आ जाता हैं। ये भूकंप भी अलग अलग तीव्रता वाले होते हैं।
हालाँकि कम तीव्रता वाले भूकंप ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। लेकिन ज्यादा तीव्रता वाले भूकंप पल भर में वर्षों की अथाह मेहनत से बनायी हर चीज को पलभर में ही नेस्तनाबूद कर देती हैं।
क्यों आते हैं भूकंप (An Essay on Earthquake)
भूकंप आने के दो कारण प्रमुख हैं।प्राकृतिक कारण और मानव निर्मित कारण।
1 . प्राकृतिक कारण
वैज्ञानिकों के अनुसार हमारी धरती चार परतों से बनी है। इनर कोर , आउटर कोर , मैन्टल और क्रस्ट। क्रस्ट और ऊपरी मैन्टल को लिथोस्फेयर कहा जाता है। लिथोस्फेयर करीब करीब 50 किलोमीटर की एक मोटी परत होती है।
लेकिन यह परत कई वर्गों में विभाजित रहती है।इन वर्गों को टेक्टोनिक प्लेट्स कहा जाता है। वैसे ये प्लेटें धरती से करीबन 45 से 50 किलोमीटर नीचे स्थित होती हैं।
लेकिन ये प्लेट्स अपनी जगह पर स्थिर नहीं होती हैं। ये अक्सर क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर दोनों दिशाओं में खिसकती रहती हैं। इस वजह से इनमें से कुछ प्लेटों कभी एक दूसरे के करीब आ जाती है , तो कुछ एक दूसरे से दूर भी चली जाती हैं।
जब ये प्लेटों एक दूसरे के करीब आती हैं , तो कभी-कभी ये प्लेट्स आपस में टकरा भी जाती हैं। जिससे भूकंप की स्थिति पैदा हो जाती हैं। भूकंप का केंद्र जितनी गहराई में होगा उसका प्रभाव पृथ्वी के ऊपर उतना कम होगा।
जब भी भूकंप आता है। पृथ्वी के नीचे उसका एक निश्चित केंद्र होता है। लेकिन केंद्र से कई किलोमीटर दूर तक भूकंप के उस कंपन को महसूस किया जा सकता है।
एक अन्य मत के अनुसार जब पृथ्वी के अन्दर तरल पदार्थ अधिक मात्रा में गर्म हो जाते हैं। उस वक्त तरल पदार्थों के गर्म होने से अत्यधिक भाप बन जाती हैं। जब पृथ्वी के अन्दर इस भाप का दबाव बहुत अधिक बढ़ जाता है। तो यही भाप अपनी पूरी शक्ति के साथ पृथ्वी की ऊपरी सतह को धक्का देती है। तब भूकंप आता है।और पृथ्वी हिलने लगती है।
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2 . मानव निर्मित कारण
भूकंप आने के मानव निर्मित कारण भी होते हैं। जैसे ज्वालामुखी के फटना या बड़ी मात्रा में भूस्खलन का होना , माइनिंग टेस्टिंग , विशाल बांधों का निर्माण , नाभिकीय खदानों में विस्फोट का होना और नाभिकीय परीक्षण करने से भी भूकंप आने की संभावनाएं रहती हैं।
पौराणिक धर्मग्रंथों की मान्यता के अनुसार हमारी यह पृथ्वी सहस्त्र फन वाले भगवान शेषनाग के सिर पर टिकी हुई है। जब जब पृथ्वी में पाप में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है।तब शेषनाग सिहिर उठते हैं। और उसका परिणाम भूकंप के रूप में आता है।
भूकंप की तीब्रता
वैसे तो पूरी दुनिया में हर साल हजारों भूकंप आते हैं। उनमें से कुछ ही ऐसे होते हैं जो ज्यादा नुकसान हो जाते हैं। क्योंकि भूकंप भी अलग-अलग तीव्रता वाले होते हैं।
कम तीव्रता वाले भूकंप (जैसे 2 से 3 मेग्नीट्यूड ) को भूकंप के केंद्र के आसपास के क्षेत्र विशेष में ही महसूस किया जाता है। इससे अधिक नुकसान भी नहीं होता लेकिन अगर यही भूकंप ज्यादा तीव्रता वाला जैसे 5 मेग्नीट्यूड या उससे ज्यादा हो तो , भूकंप के केंद्र से कई हजार किलोमीटर दूर तक इसे महसूस किया जा सकता है।
भूकंप की तीव्रता नापने की इकाई
भूकंप की तीव्रता नापने के लिए सीसमोमीटर/ सीसमोग्राफ का प्रयोग किया जाता है।भूकंप की गणना रिएक्टर स्केल में होती है। रिएक्टर स्केल में 2 से 3 मेग्नीट्यूड तक की तीव्रता वाले भूकंप को सामान्य माना जाता है। 5 या उससे ज्यादा वाले को विनाशकारी माना जाता है। और इसी में सबसे ज्यादा नुकसान होता है।
भूकंप की तीव्रता मापने वाले रिएक्टर स्केल को अमेरिकी वैज्ञानिक चार्ल्स रिएक्टर ने 1935 में बनाया था।
भूकंप से होने वाली तबाही (An Essay on Earthquake)
- भूकंप इतना शक्तिशाली होता है कि हमारी धरती का सीना ही फाड़ देता है।प्रकृति का यह तांडव बसे बसाये नगरों को खंडहर में बदल देता है।
- नदियों के प्रवाह को उलट देता है। कहीं पर्वत की ऊंचाई को सागर की गहराई में छुपा देता है।तो कहीं सबसे गहरे समुद्र को समतल भूमि में बदल देता है।
- भूकंप के कारण ही बेजान मरुस्थल भी सुन्दर रमणीय स्थल में बदल जाते हैं।तो कही स्वर्ग से सुन्दर जगह सुनसान वीरानों में बदल जाती हैं।
- कहीं-कहीं पर भूकंप से धरती में दरारें पड़ जाती हैं। सीमेंट , ईट , लोहे की मजबूत बुनियादों से बनी हुई इमारतों भी पल भर में चकनाचूर हो जाती हैं। छोटे और कच्चे मकान ताश के पत्तों की तरह ढह जाते हैं।
- भूकंप के रूप में पृथ्वी में होने वाली जरा सी हलचल भी हजारों मनुष्यों , जीजन्तुओं की जान की दुश्मन बन जाती है। कहीं हजारों परिवार एक क्षण में खत्म हो जाते हैं। तो कहीं हजारों लोग पलक झपकते ही बेघर हो जाते हैं। भूकंप की चपेट में आकर पूरे गांव के गांव या शहर के शहर देखते खंडहर में बदल जाते हैं।
- भूकंप आने से मजबूत सड़कों टूट जाती हैं। उद्योग धंधे , कल कारखाने , जनजीवन सब अस्त व्यस्त व नष्ट हो जाता है। देखते ही देखते लाखों की संपत्ति मिट्टी में मिल जाती हैं।
- भूकंप के आने से बड़े बड़े पुल , बांध आदि क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।
- भूकंप के कारण कई पहाड़ों में भूस्खलन और हिमस्खलन भी होता है।
- भूकंप मैदानी क्षेत्रों की अपेक्षा पर्वतीय क्षेत्रों में यह ज्यादा नुकसान पहुंचाता है
- भूकंप समुद्र के अंदर हो तो सुनामी भी आ सकती है।
कई प्राचीन संस्कृतियों खत्म , नई संस्कृतियों का जन्म
भूकंप के कारण कई समृद्ध व शक्तिशाली प्राचीन संस्कृतियों मिट्टी में मिल गई। इतिहास इस बात का साक्षी हैं। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसे उन्नत व समृद्ध प्राचीन संस्कृति किसी भारी भूकंप का शिकार होने के कारण ही भूगर्भ में समा गई थी।लेकिन इन्हीं विनाशकारी भूकंपों ने इस धरती पर कई नई संस्कृति और सभ्यता व नये खूबसूरत स्थानों को भी जन्म दिया है।
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विज्ञान के पास नहीं कोई विकल्प (An Essay on Earthquake)
हालांकि आज विज्ञान ने काफी तरक्की कर ली है। कुछ क्षेत्रों में जैसे मौसम , तूफान या वर्षा या बर्फवारी से संबंधित सटीक भविष्यवाणियां के लिए यंत्रों का आविष्कार कर लिया गया है। जिसके द्वारा आने वाले संकट का पहले ही पता चल जाता है।
लेकिन विज्ञान की इतनी तरक्की के बाबजूद आज भी भूकंप के आने से संबंधित जानकारी के लिए कोई पुख्ता उपकरण तैयार नहीं हो पाया है।यानि भूकंप से संबंधित ऐसा कोई भी उपकरण या यंत्र अभी तक विकसित नहीं हुआ है जिससे भूकंप आने से पहले ही पता चल सके कि किन-किन क्षेत्रों में भूकंप आ सकता है।
वैज्ञानिकों के पास इसका कोई जवाब नहीं है। अगर ऐसा कोई उपकरण बना लिया जाता , जिससे भूकंप आने से पहले ही उसका पता चल पाता , तो हजारों जानों को समय रहते बचाया जा सकता हैं।लेकिन इस क्षेत्र में अभी विज्ञान के हाथ खाली के खाली ही हैं।
लेकिन भूकंप आने के बाद तो रिक्टर स्केल पर सिर्फ भूकंप की तीव्रता को नापा जाता है।लेकिन तब तक वह तबाही मचा चुका होता है।
भूकंप आने में सुरक्षा के उपाय (An Essay on Earthquake)
भूकंप कब आ जाए , किसी को इसका पता नहीं होता है।ऐसे में जब भूकंप आ जाए। तो अपनी सुरक्षा के लिए कुछ बातों में ध्यान देना आवश्यक हैं।
- हालांकि भूकंप को रोकना इंसानों की बस की बात नहीं है। लेकिन समय के साथ-साथ अब ऐसी आधुनिक तकनीकी का इस्तेमाल कर भवन या इमारतों का निर्माण किया जा रहा है। जो भूकंप रोधी हो या अधिक तीव्रता वाले भूकंप के झटकों को सहन कर सके। सबसे पहले भूकंप रोधी मकानों का निर्माण होना चाहिए किया जाना अति आवश्यक है। और यह समय की मांग भी है।
- भूकंप का पता चलते ही घरों से बाहर निकलकर तुरंत खुले मैदानों या सड़कों में आ जाना चाहिए।
- भूकंप आने पर किसी ऊंची इमारत या बिजली के खम्भों के आसपास न खड़े हों।
- काँच से बनी वस्तुओं , खिड़कियों , कमजोर दीवारों से दूर रहें।
- किसी मजबूत फर्नीचर से नीचे बैठ जाएँ।
- भूकंप के समय लिफ्ट के बजाय सीढ़ियों का इस्तेमाल करना चाहिए।
- बिजली आदि से संबंधित किसी भी उपकरण का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।बिजली का मैन स्विच बन्द कर देना चाहिए।
- घर के गैस सिलेंडर को बंद कर देना चाहिए।
- भूकंप आने वक्त वाहन ना चलाएं। अगर वाहन चला भी रहे हो तो , तुरंत वाहन बंद कर वाहन से बाहर निकल आए।
- किसी भी कच्चे मकान , पहाड़ी , नदी , तालाब , समुद्र के आसपास खड़े ना होए।
भारत में भूकंप की स्थिति
भूकंप एक भयंकर प्राकृतिक आपदा है।जो दुनिया के किसी भी हिस्से में कभी भी आ सकती हैं। भारत भी इससे अछूता नहीं है। भारत को भूकंप की संवेदनशीलता के लिहाज से चार जोन में बांटा गया है। जोन-2 में दक्षिण भारतीय क्षेत्र को रखा गया है , जो भूकंप के लिहाज से सबसे कम संवेदनशील है।
उसके बाद जोन – 3 में मध्य भारत को रखा गया है। जोन – 4 में दिल्ली व एनसीआर के इलाकोे और उत्तर भारत के कुछ मैदानी क्षेत्रों को रखा गया है। और जोन- 5 में हिमालई क्षेत्र व पूर्वोत्तर राज्यों के कुछ क्षेत्रों को शामिल किया गया है।यही इलाका भूकंप के लिहाज से सबसे ज्यादा खतरनाक व संवेदनशील माना गया है।
भारत की यह भूमि भी कई दिल दहला देने वाले भूकंपों को झेल चुकी है।कोलकाता , असम , बिहार अंजार , अंडमान निकोबार , हिमाचल प्रदेश में आये भूकंप तो भुलाए नहीं भूलते।
26 जनवरी 2001 में भूकंप ने पूरे गुजरात में कहर ढाया था , जिसमें भारी जानमाल का नुकसान हुआ था। कुछ वर्ष पूर्व उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल के पहाड़ी इलाके उत्तरकाशी को भूकंप ने दहला कर रख दिया था। जिसमें हजारों लोग असमय ही मृत्यु के मुंह में समा गए।
सैकड़ों लोग घायल हुए और कुछ लोग मलबे के नीचे कई दिनों तक दबे रहे।चल अचल संपत्ति का नुकसान हुआ सो अलग।
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Some More Information About Earthquake
- दुनिया के कुछ हिस्सों में भूकंप अक्सर आते रहते हैं।अलास्का उन्हीं में से एक है।अलास्का एक ऐसा राज्य है जहां पर सबसे ज्यादा भूकंप आते हैं। इसको भूकंप के लिहाज से “सिस्मीकली एक्टिव क्षेत्र” भी माना जाता है।इस क्षेत्र में 5 से 7 मेग्नीट्यूड के भूकंप आना आम बात है। और हर 12 से 14 साल में करीब एक बार 8 मेग्नीट्यूड या उससे ज्यादा का भूकंप भी आता है।
- इसके अलावा जापान में भी बहुत अधिक भूकंप आते हैं। लेकिन यहाँ ज्यादातर भूकंप ज्वालामुखी के फटने से आते हैं। इसीलिए वहां पर अधिकतर भूकंप रोधी या लकड़ियों के घरों का निर्माण किया जाता है।
- वैसे हमेशा भूकंप कुछ सेकंड के लिए आता है। लेकिन 2004 में हिंद महासागर में भूकंप की अवधि लगभग 10 मिनट रही।
- भूकंप के आने से पहले पानी के स्रोतों जैसे नहरों , नालों , तालाबों और नदियों आदि में से एक विचित्र किस्म की खुशबू आने लगती है। इसका कारण पृथ्वी के अन्दर की गैस का बाहर आना बताया जाता है। और जमीन के नीचे स्थित पानी के स्रोतों का तापमान भी अचानक से बढ़ जाता है।
- वैज्ञानिकों के अनुसार हर साल लाखों भूकंप आते हैं।लेकिन इन सब की तीव्रता बहुत कम होती है। जिस वजह से लोगों को इसका पता ही नहीं चलता।
- एक सर्वे के अनुसार नेशनल अर्थक्वेक इनफॉरमेशन सेंटर हर साल करीब 20,000 से ज्यादा भूकंप की रिकॉर्डिंग करता है। लेकिन इनमें से लगभग 100 के करीब ही ऐसे भूकंप होते हैं जिनसे कम या ज्यादा नुकसान होता है।
- ऐसा माना जाता है कि ज्यादा तीव्रता वाला भूकंप आने से जो ऊर्जा निकलती है , वह 1945 में हिरोशिमा और नागासाकी में डाले गए परमाणु बम से निकली उर्जा से करीब 100 गुना ज्यादा होती है।
भूकंप पीड़ितों की सहायता पुण्य कार्य
भूकंप के विनाश के बाद राहत कार्य शुरू हो जाते हैं। कुछ सामाजिक स्वयंसेवी संस्थाएं और कुछ परोपकारी लोग अपनी जान की बाजी लगाकर दूसरों की सहायता करने को दौड़ पड़ते हैं। अनेक तरीकों से भूकंप पीड़ितों को मदद पहुंचाई जाती है।
सरकार भी इस भीषण दुर्घटना के बाद हर संभव सहायता में जुटी रहती हैं। लेकिन यही वह समय होता हैं जब इंसान को हाथ खोलकर अन्न , वस्त्र , औषधि आदि से पीड़ितों की सहायता करनी चाहिए।
उपसंहार (An Essay on Earthquake)
भूकंप जैसी महा विपत्ति के समय मनुष्य की मानवता की परीक्षा भी होती है।ज्यादा तीब्रता वाले भूकंप सब कुछ पल भर में विनाश कर देते हैं। लेकिन यह मानव स्वभाव है कि वह अंत के बाद भी आरंभ की तरफ चल पड़ता है। और जीवन की नई शुरुवात करने लगता हैं।
लोग उसी विनाश में बचे हुए चीजों को फिर से समेट कर अपना नया जीवन आरंभ करना शुरू कर देते हैं। यह जीवन सदा चलायमान है।यह कथन उस वक्त सत्य होता हुआ दिखता है। हम भूकंप पीड़ितों की सहायता करें और मानवता का परिचय दें। बस हम इतना ही कर सकते हैं।
An Essay on Earthquake : भूकंप पर हिन्दी निबन्ध
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