Essay On Propkar In Hindi :
Essay On Propkar In Hindi
परोपकार पर हिंदी निबंध
प्रस्तावना –
“परहित सरिस धरम नहीं भाई , पर पीड़ा सम नहि अधमाई”
यानि परोपकार से बड़ा कोई धर्म नही है और दूसरों को पीड़ा पहुँचाने से बड़ा कोई अधर्म नही है। इस संसार में मनुष्य कहलाने का अधिकारी सिर्फ वही है जो मानवता के लिए मर मिटने को हर वक्त तैयार रहे । जो संसार के समस्त प्राणिमात्र की सेवा को ही अपना सर्वोपरि धर्म मानता हो और उसकी भलाई के लिए हर वक्त अपना तन , मन और धन यानि सभी कुछ अर्पित करने के लिए तैयार हो । हमारे धर्म शास्त्रों में भी परोपकार को सभी पुण्यों में सबसे बड़ा पुण्य और परोपकार की भावना को इन्सान से सभी गुणों में सर्वश्रेष्ठ गुण माना है। परोपकार ही एक ऐसा गुण है जो इंसानों को जानवरों से अलग कर देवत्व की ओर ले जाता है।
परोपकार का अर्थ –
परोपकार को दूसरे शब्दों में परहित भी कहा जाता है। परहित का अर्थ ही होता है दूसरे का हित या भलाई। यानि स्वार्थ की भावना से ऊपर उठकर अपने हितों की चिंता छोड़कर दूसरों की भलाई के लिए निरन्तर कार्य करते रहना या दूसरों की पीड़ा को दूर करने का प्रयास करना। चाहे दिन हो या रात , परोपकारी व्यक्ति सदैव दीन -दुखी , गरीब , असहाय , निर्बल व वृद्धजनों की सहायता के लिए तत्पर रहते है और यही परोपकार है जिसकी महिमा अपार है । परोपकारी मनुष्य का हृदय एकदम निर्मल – कोमल होता है उसके अंदर सच्चाई , ईमानदारी , क्षमा , दया , करुणा , दानशीलता जैसे उच्च मानवीय गुण सहज ही होते हैं। निस्वार्थ भावना से किसी की मदद करने से व्यक्ति का हृदय असीम आनंद से भर जाता है।
परोपकार का महत्व –
परोपकार तन और धन , दोनों तरीकों से किया जा सकता है। लेकिन परहित में त्याग की भावना को सर्वश्रेष्ठ माना गया है क्योंकि तब व्यक्ति अपनी आत्मा की प्ररेणा से स्वयं ही दूसरों की भलाई का कार्य करने लगता है और अपने शरीर को कष्ट देकर भी किसी की सहायता को तैयार रहता है। उसे इस काम में असीम आत्मसंतुष्टि , संतोष व ख़ुशी महसूस होती है। अमीर व्यक्ति जिसके पास आवश्यकता से अधिक धन हो , वह कभी -कभी सिर्फ अपनी आत्मसंतुष्टि के लिए भी कुछ धन दान कर देता है। लेकिन अपने शरीर को कष्ट पहुंचा कर दूसरे की मदद करने वाला व्यक्ति निस्वार्थ भाव से यह कार्य करता है जो सही मायने में परोपकार है।
परोपकार के कई रूप –
मानव के अंदर परोपकार की भावना को सबसे सर्वोत्तम माना गया है। इससे न सिर्फ व्यक्ति अपने जीवन में ऊपर उठता है बल्कि अपने समाज व देश को भी ऊपर उठाता है । उसके इस कार्य से समाज में सदभावना , भाईचारे की भावना बढ़ती है और कुछ समस्याओं का स्वत: ही निदान होने लगता है। परोपकारी व्यक्ति की यश -कीर्ति समाज में अपने आप फैलने लगती है।
जिस व्यक्ति का हदय किसी दीन – दुखी या असहाय व्यक्ति को देखकर द्रवित ना हो , वह मानव कहलाने के लायक नहीं है। वह इंसान के रूप में पशु समान ही है। परोपकार कई तरीके से किया जा सकता है। अगर आप धनवान है तो निर्धनों की सहायता कर सकते है , अगर आप शक्तिशाली हैं तो निर्बल व असहायों की रक्षा कीजिए और अगर आप विद्वान हैं तो लोगों को अज्ञानता के अंधकर से निकालकर उन्हें शिक्षा देकर ज्ञानवान बनाने का प्रयास करें ताकि उनका भविष्य सँवर सके। वृद्धजनों व रोगियों की सेवा व देखभाल भी कर सकते हैं । प्राकृतिक आपदाओं के वक्त पीड़ितों की सहायता भी परोपकार ही है। परोपकार की भावना सिर्फ इंसानों तक ही सीमति नही रखनी चाहिए बल्कि पृथ्वी से प्रत्येक प्राणिमात्र के लिए भी हमारे दिलों में करुणा व दया होनी चाहिए।
प्रकृति भी सिखाती है परोपकार करना –
हमारी प्रकृति भी अपने हर कार्य से हमें परोपकार करना सीखाती है। नदी , वृक्ष , फूल , सूर्य , चंद्रमा , वायु आदि से भी हम परोपकार की भावना को सीख सकते हैं। जैसे वृक्ष अपने फल सदैव दूसरों को समर्पित कर देते हैं , उसी तरह नदी के जल से समस्त धरती व मानव जाति का कल्याण होता है। सूर्य और चन्द्रमा भी अपने प्रकाश से हमारी प्रकृति व इन्सानों को हर दिन नया जीवन प्रदान करते हैं।
परोपकारियों का नाम अमर –
हमारा इतिहास यहाँ तक कि हमारे धर्मग्रंथ भी परोपकर करना सिखाते हैं। महाराजा हरिश्चंद्र ने अपना संपूर्ण राज्य परोपकार के लिए दान में दे दिया। भगवान राम ने ऋषि – मुनियों की रक्षा के लिए भयंकर राक्षसों का संहार किया। कुंतीपुत्र महादानवीर कर्ण का नाम आज भी बड़े आदर से लिया जाता है । महर्षि दधीचि ने मानवहित के लिए अपनी हड्डियों दान कर दी। भारत की धरती में ऐसे अनेकों -अनेक महापुरुष पैदा हुए हैं जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन परोपकार के लिए अर्पित कर दिया। इसीलिए आज भी उनकी यश – कीर्ति गाई जाती है। हमारा इतिहास भी महान परोपकारी व्यक्तियों से भरा पड़ा हैं। स्वामी दयानन्द , मदर टेरेसा , महात्मा गांधी आदि इसके कुछ उदाहरण हैं।
उपसंहार –
प्रत्येक व्यक्ति के अंदर मानव जाति व मानवता की रक्षा के लिए परोपकार की भावना होनी चाहिए और यही उसके जीवन का आदर्श भी होना चाहिए। शक्तिशाली व्यक्ति को दुर्बल व असहाय व्यक्ति की , अमीर व्यक्ति को गरीब व्यक्ति की , संपन्न व शक्तिशाली राष्ट्रों को गरीब देशों की सहायता करनी चाहिए। हमें अपने महान पूर्वजों से परोपकार की प्रेरणा लेकर समाज में एकता , सद्भावना , भाईचारे व विश्वबंधुत्व की भावना जागृत करनी चाहिए। हमें अपने छोटे बच्चों के अंदर बचपन से ही परोपकार की भावना के बीज बोने चाहिए। इससे न सिर्फ व्यक्ति बल्कि समाज और राष्ट्र का भी विकास होगा। इस दुनिया में परोपकार ही सच्ची मानवता व सच्चा धर्म है।
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