Stinging Nettle,मल्टी विटामिन से भरपूर बिच्छू धास।

Stinging Nettle in Hindi , benefits of Stinging Nettle in Hindi ,प्राकृतिक मल्टी विटामिन से भरपूर होती है बिच्छू धास ,बिच्छू धास से बनती है अमीरों की पसंदीदा चाय।

उत्तराखंड के पहाड़ी (गढवाल व कुमाऊ) भू-भाग एक से एक अनोखी व अनमोल जड़ी बूटियों का भंडार है। कुछ जड़ी बूटियों तो यहां पर ऐसी भी पायी जाती है जो दुनिया में शायद ह़ी किसी अन्य जगह में पाई जाती हों।और अगर कहीं पर पाई भी जाती है तो बहुत कम मात्रा में या दूसरे रंग रूप में।

Stinging Nettle,मल्टी विटामिन से भरपूर बिच्छू धास

लेकिन इन मध्य हिमालयी क्षेत्रों में जड़ी बूटी बड़ी मात्रा में खुद-ब-खुद उग जाती है।और वहां के स्थानीय निवासी उनका प्रयोग रोगों को दूर भगाने में घरेलू उपाय के रूप में पीढ़ी दर पीढ़ी करते आ रहे हैं।इन जड़ी बूटीयों के बेमिसाल गुणों तथा उनके औषधीय प्रयोगों के कारण देश दुनिया का ध्यान इन पौधों के ऊपर एकाएक आकर्षित हुआ।

इन्हीं में से एक है उत्तराखंड के पहाड़ों में अत्यधिक मात्रा में खुद-ब-खुद उगने वाला पौधा बिच्छू घास (Stinging Nettle ) यानी कि बिच्छू के डंक जैसी पीड़ा देने वाला पौधा। 

Stinging Nettle in Hindi

बिच्छू घास को अंग्रेजी में “Stinging Nettle” कहते हैं। तथा इसका बॉटनिकल नाम “Urtica Dioica” है। बिच्छू धास को कुमाऊनी भाषा में “सिसूण या सिन्न या सिसौण” कहा जाता है वही गढ़वाली भाषा में इसे “कंडाली” कहा जाता है। यह सिर्फ पहाड़ी इलाकों में ही उगता है

मैदानी क्षेत्रों में Stinging Nettle नहीं पाया जाता हैं।अगर यह पौधा किसी को गलती से लग जाए या गलती से इस पौधे को कोई छू भी लेता है।तो इसकी पीड़ा  बिच्छू के डंक के काटने जैसी ही होती है तथा इससे असहनीय जलन होने लगती है।शरीर में छोटे-छोटे लाल रंग के दाने होने लगते हैं।

तथा शरीर के उस हिस्से में सूजन भी हो जाती है जो कम्बल से रगड़ने तथा तेल की हल्की मालिश के बाद ह़ी खत्म होती हैं।गहरे हरे रंग के इस पौधे में छोटे-छोटे कांटे लगे रहते हैं।इसको छूने से जितनी अधिक पीड़ा होती है।उससे अधिक उससे बनने वाली चाय उतनी ही अमृततुल्य है।

जलन का कारण

Stinging Nettle में Acetylcholine , Histamine ,5 -HT ,Formic Acid अत्यधिक मात्र में पाया जाता हैं।जो छूने पर जलन का कारण बनते हैं।  

प्राकृतिक मल्टी विटामिन व मिनरल से भरपूर (Stinging Nettle Supplement)

बिच्छू घास (Stinging Nettle ) एक प्राकृतिक मल्टीविटामिन हैइसमें कई सारे विटामिन जैसे  A, C, आयरन ,कैलशियम, मैग्निज व पोटेशियम अत्यधिक मात्रा मात्रा में पाया जाता है।विटामिन, मिनरल के अलावा कार्बोहाइड्रेट व एनर्जी तत्व भी पाये जाते हैं।कोलेस्ट्रॉल सबसे कम होता है। तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।इसमें आयरन सबसे अधिक मात्रा में पाया जाता है 

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Stinging Nettle

Stinging Nettle Benefits 

  • कुमाऊं या गढ़वाल के स्थानीय लोग पहले इसका प्रयोग बच्चों को दंड देने, शराबियों की धुनाई के लिए इसको पानी में भिगोकर ज्यादा असरदार बनाकर इसका प्रयोग किया जाता हैं
  • Stinging Nettle को जानवरों को चारे के रूप में दिया जाता है। जिससे दुधारू जानवर अत्यधिक मात्रा में दूध देना शुरू कर देते हैं।
  • कभी कभी गांव के ही बड़े बुजुर्ग गठिया, बात, जोड़ों का दर्द, पित्त से संबंधित बीमारियों को दूर करने के लिए इसका प्रयोग करते हैं
  • Stinging Nettle को साग सब्जी बनाने के लिए भी प्रयोग किया जाता हैस्थानीय लोग इसकी सब्जी बनाकर खाते हैंइसका स्वाद लगभग पालक के स्वाद जैसा ही होता है।और तासीर गर्म होती है इसीलिये इसको चावल के साथ खाया जाता है।इसी लिए इसे “हर्बल डिश” भी कहा जाता हैं। 
  • वर्तमान समय में इससे बनी चाय का अत्यधिक प्रयोग किया जाने लगा हैयह अमीरों की पसंदीदा चाय बनती जा रही है।इसे “हर्बल टी” का नाम भी दिया गया है
  • Stinging Nettle से चप्पल, शाॅल, जैकेट, स्टाल, कंबल, बैग, चाय पत्ती आदि बनाए जाते हैं

Stinging Nettle Medicine 

  • इसका उपयोग घुटनों के दर्द, जोड़ों का दर्द, शरीर में कहीं भी मोज आ जाइए, पित्त से संबंधित बीमारी को दूर करने में किया जाता है
  • Stinging Nettle मलेरिया के बुखार में पेरासिटामोल से कई गुना अधिक कारगर हैं
  • बिच्छू घास के बीजों के सेवन से पेट साफ होता है
  • इसका प्रयोग आजकल कई सारी हर्बल दवाइयां बनाने के लिए किया जा रहा है
  •  बिच्छू घास की खूबियाँ लोगों को पता लगनी शुरू हुई तो इसका प्रयोग औषधि रूप के अलावा अन्य कामों के लिए भी किया जाने लगा हैंअचानक ह़ी बिच्छू घास का महत्व बहुत अत्यधिक बढ़ गया है
  • मलेरिया के बुखार में पेरासिटामोल की जगह बिच्छू धास से बनी हुई दवाई का प्रयोग करने हेतु शोध जारी हैंहो सकता है कि भविष्य में पेरासिटामोल की जगह मलेरिया के बुखार को दूर भगाने के लिए हम बिच्छू घास से बनी भी दवा का प्रयोग करें

Stinging Nettle भारत के अलावा यूरोप,एशिया के कुछ और हिस्सों में , उत्तरी अमेरिका,उत्तरी अफ्रीका में पाया जाता है।अमेरिका में इसकी खेती की जाती है और वहां की सरकार किसानों को बिच्छू घास उगाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए धन उपलब्ध कराती है यहां पर बिच्छू घास हल्के लाल रंग का होता है जिसकी पत्तियां थोड़ी गोलाई ली हुई होती है

यह उत्तराखंड में उगने वाले कंडारी से बिल्कुल अलग होता है। इसे यहां पर “अल्द” कहते हैं। बिच्छू घास से बनी चाय को यूरोप में विटामिन व खनिजों का एनर्जी ड्रिंक माना जाता हैक्योंकि इसमें कई सारे मिनरल्स, कार्बोहाएड्रेट, आयरन और विटामिन पाये जाते है इसलिए स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक लाभप्रद होता है

Stinging Nettle's cloth

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वस्तुओं का निर्माण (Making goods from Stinging Nettle in Hindi)

सिर्फ 2 वर्ष की उम्र वाली इस बिच्छू घास ने सरकार का भी ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया हैं।  इसीलिए सरकार भी किसानों को बिच्छू घास की खेती करने के लिए प्रोत्साहित करने की योजना बना रही हैबिच्छू घास के तने के रेशे (फाइबर) निकाल कर उसका प्रयोग कई वस्तुओं को बनाने के लिए किया जा रहा हैयानी कि इस पूरे पौधे के हर हिस्से का प्रयोग किसी न किसी रूप में किया जा रहा है कुछ दवाई बनाने में ,कुछ चाय पत्ती बनाने में तथा कुछ कपड़े व बैग बनाने में

वर्तमान समय में इससे कई वस्तुओं का निर्माण किया जा रहा हैजैसे चप्पल, शाॅल, जैकेट, स्टाल, कंबल, बैग व  चायपत्ती इससे पत्तीयों से बनने वाली चायपतियों की तो बाजार में बहुत मांग हैऔर करीबन  2,500 से 3,000 रु. प्रति किलो तक इसकी चायपत्ती आराम से बाजार में बिकती है

इसे अमीरों की चाय माना जा रहा हैं।ये ठण्ड के मौसम में शरीर को गर्म रखने में मदद करता हैं।भारत के कई शहरों जैसे दिल्ली,जयपुर,अहमदाबाद,कोलकाता ,मुंबई तथा गुजरात के अन्य हिस्सों व विदेशों में भी इसकी मांग बहुत अत्यधिक है।

बिच्छू घास से बने उत्पादों की विदेशों भारी मांग

इससे बनने वाले चप्पल, शाॅल, जैकेट, स्टाल, कंबल, बैग बहुत ही ऊंचे दामों में बिकती हैं उत्तराखंड में बिच्छू घास से बनने वाली चप्पलों की भारत के कई शहरों के अलावा विदेशों में भी बहुत अधिक मांग है।फ़्रांस,अमेरिका ,नीदरलैंड ,न्यूजीलैंड में इनकी जबरदस्त मांग है

भीमल स्लीपर्स को फ्रांस से तकरीबन 10,000 जोड़ी स्लीपर्स के आर्डर मिले हैं लेकिन लोगों को जानकारी के अभाव के कारण व उत्पादन कम होने से आपूर्ति पूरी नहीं हो पा रही हैइसीलिए फिलहाल 4,000 जोड़ी चप्पल की मांग को ही पूरा किया गया है

हालाँकि उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में ऐसी कई संस्थाएं मौजूद हैं जो बिच्छू घास से बनने वाले उत्पादों को तैयार कर रही हैं और देश दुनिया का परिचय बिच्छू घास से बनने वाले उत्पादों से करा रही हैंजैसे चमोली जिले में मंगरौली गांव में “रूलर इंडिया क्राफ्ट संस्था”, उत्तरकाशी में भीममल्ला में “नंन्दा उत्थान समिति” , अल्मोड़ा शहर के आसपास की कई संस्थाएं इसी क्षेत्र में कार्य कर रही हैं। 

पंचचूली शाॅल (जो बिच्छू घास से ही बनती है) बनाने वाली एक एनजीओ इस क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य कर रही हैंजो उत्तराखंड की विरासत को समेटे हुए हैंअब बिच्छू घास से बनी हुई चीजों को ऑनलाइन बेचने की भी तैयारी चल रही है फिलहाल इसकी बाताचीज अमेजॉन से चल रही है

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ज्योतिषीय उपयोग (Use of Stinging Nettle in Hindi)

पर्वतीय इलाकों में इसका प्रयोग ज्योतिषीय उपयोग के लिए भी किया जाता हैं।इसकी जड़ (Stinging Nettle root) का प्रयोग शनि देव की टेड़ी नजर के प्रकोप से बचने के लिए किया जाता हैं। इसकी जड़ का प्रयोग अन्य प्रकार के टोने टोटके के रूप में भी होता हैं।

एक ओर जहाँ बिच्छू घास से बनी औषधि लोगों को रोगों से बिना कोई नुकसान पहुचाये ठीक होने में मदद कर रही है .वही दूसरी ओर यह कई सारे युवाओं के रोजगार का साधन भी बन रहा हैं अगर राज्य की सरकार इस तरफ थोडा भी ध्यान दे।

और बेरोजगार युवाओं को उचित प्रशिक्षण देने की व्यवस्था करे तो कई हाथों को रोजगार तो मिलेगा ह़ी साथ ह़ी साथ राज्य सरकार के राजस्व में भी बढोतरी होगी और राज्य से पलायन भी कुछ हद तक रुक जायेगा पर सरकार को थोड़ी सी कोशिश तो जरुर करनी पडेगी 

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