Organic Farming
जैविक खेती के फायदे
Organic Farming : भारत एक कृषि प्रधान देश माना जाता है।और इस देश की लगभग 60% से ज्यादा जनसंख्या अपनी जरूरतों के लिए आज भी कृषि पर निर्भर है।वैसे भी भारत में पुरानी पीढ़ी कहती थी। “उत्तम खेती मध्यम वान। अधम चाकरी भीख निदान” यानी दूसरे शब्दों में कहें तो “सबसे अच्छा काम है खेती कर अपनी आजीविका चलाना । फिर व्यापार करना। फिर नौकरी करना और अंत में कुछ ना मिले तो भीख मांग कर अपना पेट पालना “।
लेकिन धीरे धीरे यह कहावत उल्टी हो गई है।अब नई पीढ़ी के बच्चे मल्टीनेशनल कम्पनी में नौकरी करना ज्यादा पसंद करते हैं बजाय खेती करने के। खेती करना बहुत कम पसंद करते हैं।
लेकिन कुछ लोग जो अभी भी खेती से जुड़े हैं।वो भी खेती छोड़ने को मजबूर हो रहे है।कारण अनाज उत्पादन में लागत ज्यादा और अनाज उत्पादन कम।जिस कारण किसान लगातार कर्ज में डूब रहा है। और कुछ किसान तो कर्ज से परेशान होकर आत्महत्या जैसे रास्ता भी अपना रहे है।
लेकिन हर रोज बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या का पेट भरना अब किसानों के बस में नहीं रहा। ऊपर से गड़बड़ाया हुआ मौसम चक्र। बेमौसम बारिश बरसात , बाढ़ , ओले ,अत्यधिक गर्मी की वजह से फसलों को नुकसान पहुंचता है। जो किसान के लिए हर तरफ से नुकसान देय है।
लेकिन विगत कुछ वर्षों में भारत सहित पूरे विश्व में खेती की एक नई तकनीक अपनाई जा रही है।जिसे “जैविक खेती / Organic Farming” कहा जाता है। इस नई तकनीक में अनाज के उत्पादन की लागत बहुत कम है।और अनाज उत्पादन ज्यादा व उत्तम गुणवत्ता का होता है ।
क्या है जैविक खेती ( What is Organic Farming)
जैविक खेती फसल उगाने की वह नई व आधुनिक तकनीक है जिसमें विषैले व धातक रासायनिक खादों व कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया जाता हैं। इसके बदले जैविक खाद , हरी खाद , गोबर खाद , गोबर गैस खाद , केंचुआ खाद ,बायोफर्टिलाइजर्स का प्रयोग किया जाता है।खेती करने के इस नए तरीके को “जैविक खेती /Organic Farming ” कहते है।
जैविक खेती भूमि की उपजाऊ क्षमता व उर्वकता में लगातार वृद्धि करती है। रसायनों व कीटनाशकों से होने वाले दुष्प्रभावों से पर्यावरण की रक्षा करती है।फसलों की पैदावार में बढ़ोतरी करती है।जैविक खेती से उगाया गया अनाज उच्च गुणवत्ता लिए हुए होता है जो स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम होता है।यह स्वरोजगार अपनाने का सबसे बेहतरीन तरीका है।
हरित क्रांति के परिणाम
भारतीय कृषि इतिहास में साठ के दशक में हरित क्रांति नाम का एक नया अध्याय शुरू हुआ ।जब कृषि क्षेत्र में एक पश्चिमी तकनीक अपनाई गई। जिसे “हरित क्रांति” के नाम से जाना जाता हैं।तब इसका उद्देश्य देश को भुखमरी से मुक्ति दिलाना था।
इसमें रासायनिक खादों व कीटनाशकों का जम कर प्रयोग किया जाता था। जिसके कारण खेत फसलों से लहलहा उठे।और किसानों के घर अनाज से भर गये। इस अप्रत्याशित अन्न वृद्धि से हरित क्रांति के जनक खूब खुश थे।
दरअसल ज्यादा फसल उगाने के लिये खेतों में अत्यधिक रासायनिक खादों तथा कीटनाशकों का प्रयोग किया जाने लगा।जिससे फसल की पैदावार में अप्रत्याशित वृद्धि हुई जिसे “हरित क्रांति” का नाम दिया गया।
लेकिन धीरे-धीरे इसके दुष्परिणाम सामने आने लगे।मिट्टी की सारी उर्वरा शक्ति खत्म हो गयी। अनाज की पैदावार तो अच्छी हुई , लेकिन इसके साथ कई घातक बीमारियां ने जन्म लिया।
अधिक से अधिक उत्पादन पाने के लिए रासायनिक खादों और जहरीले कीटनाशकों का उपयोग किया गया। जिससे प्रकृति के जैविक और अजैविक पदार्थों के बीच आदान-प्रदान का चक्र प्रभावित होता गया। और धीरे धीरे भूमि की उर्वरा शक्ति नष्ट हो गयी।और खेत बंजर हो गए।
रासायनों के अंधाधुंध प्रयोग से वातावरण तो प्रदूषित हुआ ही। इससे लोगों के स्वास्थ्य में भी बुरा प्रभाव पड़ा।प्रकृति प्रदत स्रोत स्वाहा हो गये।
जैविक खेती के प्रति लोगों का झुकाव
इसीलिए भारत व दुनिया के कई अन्य देशों का अब जैविक खेती ( Organic Farming) के प्रति झुकाव बढ़ रहा हैं। जैविक खेती अपनाने का मुख्य कारण भूमि व पर्यावरण की सुरक्षा करना और हमारी आने वाली पीढ़ी को उपजाऊ भूमि , अच्छा अनाज व साफ़ और स्वस्थ पर्यावरण प्रदान करना हैं । जैविक खेती से ही प्रकृति पर्यावरण को संतुलित किया जा सकता हैं।
भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए जैविक खेती अपनाना बहुत जरूरी हो गया है। क्योंकि धीरे-धीरे रासायनिक खादों और कीटनाशकों का उपयोग करने से हमारी मिट्टी की उर्वरा शक्ति खत्म हो गई है। मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी होने से उत्पादन भी धीरे-धीरे कम होने लगा है।
कई परिंदों की तो प्रजातियां ही खत्म होने के कगार में हैं। मानव व पशु दोनों में स्वास्थ्य संबंधी कई परेशानियां शुरू हो गयी हैं।
जैविक खेती (Organic Farming) अपनाने से यह समस्या हल हो सकती हैं ।जैविक खेती दरअसल खेती करने के पारंपरिक तरीकों और आधुनिक प्रौद्योगिकी का मिला जुला रूप हैं।जिसमें पशुओं का गोबर , मलमूत्र ,फसलों के अवशेषों व जैविक कचरे से खाद बनाई जाती हैं। जो फसलों के लिए उत्तम होती हैं।
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जैविक खेती का उद्देश्य (Aim of Organic Farming)
जैविक खेती अपनाने के कई उद्देश्य हैं। जैसे
- मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए ऐसे जैविक खादों का प्रयोग करना जो प्राकृतिक रूप से बनाई गयी हो। और जो मिट्टी व फसलों को नुकसान ना पहुंचाएं।
- फसलों में होने वाले अनेक रोगों , विषैले कीड़ों व खरपतवार का नाश करने के लिए जैविक साधनों को बढ़ावा देना।
- मिट्टी की उर्वरक शक्ति बनाए रखने के साथ साथ फसलों का उत्पादन भी बढ़ाना है।
- पर्यावरण और प्राकृतिक जीवन की रक्षा करना।
- पर्यावरण व वातावरण को प्रदूषण मुक्त बनाना।
- रासायनिक खादो तथा कीटनाशकों का इस्तेमाल कम से कम करना।
- मिट्टी की गुणवत्ता व उर्वकता को बनाये रखना और प्राकृतिक संसाधनों को बचाना।
- रासायनिक खादों और जहरीले कीटनाशकों से होने वाली मानव व जानवर के स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों को दूर करना।
- फसल के उत्पादन को बढ़ाना और फसल उत्पादन खर्चे को कम करना।
जैविक खेती से फायदे (Benefits of Organic Farming)
जैविक खेती करने के कई फायदे होते हैं।
- इससे भूमि की उर्वरक क्षमता बनी रहती है। और जैविक खादों का प्रयोग करने से मिट्टी की उर्वरक क्षमता की गुणवत्ता में निरन्तर सुधार होता रहता है।
- जैविक विधि से खेती करने से भूमि की जलधारण क्षमता भी बढ़ती है।और लम्बे समय तक मिट्टी पर नमी बनी रहती हैं।
- इस प्रकार की खेती में सिंचाई की बहुत अधिक आवश्यकता नहीं होती है।
- जैविक खादों का प्रयोग करने से वातावरण भी प्रदूषण मुक्त रहता है।
- जैविक खादों का उपयोग करने से फसलों को नुकसान नहीं होता हैं। और इंसान ,पशु , पक्षियों , व मित्र कीटों की रक्षा होती है।
- अच्छी व उत्तम गुणवत्ता की पैदावार होती है।
- जैविक खेती के द्वारा उगाया गया अनाज उच्च गुणवत्ता लिए हुए होता है , जो स्वास्थ्य की दृष्टि से भी उत्तम होता है।
- रासायनिक खाद और कीटनाशक बहुत महंगे होते हैं। लेकिन जैविक खेती में इनका प्रयोग नही किया जाता है। जिस कारण किसान का काफी पैसा बच जाता हैं।
- जैविक खेती के द्वारा उगाए गए अनाज का मूल्य भी अधिक होता है जिससे किसान की आमदनी में बढ़ोतरी होती है।यानी कम लागत में अच्छा मुनाफा।
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मिट्टी की दृष्टि से जैविक खेती के फायदे (Benefits of Organic Farming)
- मिट्टी की दृष्टि से भी जैविक खेती व जैविक खाद लाभदायक होती है। भूमि की जल धारण क्षमता बढ़ती है।
- भूमि से पानी का वाष्पीकरण कम होता है।जिसके कारण मिट्टी पर नमी बनी रहती हैं।
- भूमि में रहने वाले कई सारे कीट जो किसान के मित्र होते हैं। कीटनाशकों के डालने से वो भी नष्ट हो जाते हैं। जैविक खेती करने से हमारे मित्र कीटों को फलने फूलने का मौका मिलता है।जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ा देते हैं। और भूमि की गुणवत्ता पर सुधार लाते हैं।
- भूमि के अंदर जल स्तर तो बढ़ता ही है , प्रदूषण भी कम होता है।
- जैविक खाद का प्रयोग करने से मित्र कीट भी नष्ट नहीं होते हैं।तथा मित्र कीटों व मित्र जीवाणु की संख्या में बढ़ोतरी होती है। जो भूमि की गुणवत्ता में निरंतर सुधार करते रहते हैं।
- भूमि में नाइट्रोजन स्थिरीकरण बढ़ता है। तथा मिट्टी का कटाव भी कम होता है।
पर्यावरण की दृष्टि से जैविक खेती के फायदे (Benefits of Organic Farming)
- जैविक खेती पर्यावरण की दृष्टि से भी लाभकारी है। इससे भूमि के जल स्तर में भी वृद्धि होती है।
- मिट्टी , खाद्य पदार्थ और जमीन में पानी के माध्यम से होने वाले प्रदूषण में कमी आती है।
- प्रदूषण व गंदगी को कम करता है जिससे अनेक प्रकार की बीमारियां को पनपने का मौका नहीं मिलता हैं।
- खाद बनाने के लिए कचरे व फसल के अवशेषों का उपयोग करने से बीमारियों में भी कमी आती है।
- फसल उत्पादन की लागत में कमी और आय में वृद्धि होती है।
- प्राकृतिक संसाधनों व स्रोतों की रक्षा होती हैं।
- सबसे बड़ा फायदा तो हमारे पर्यावरण , हमारे जीव जंतु , पशु पक्षियों को होता है।
जैविक खाद क्या है ?
जैविक खाद उस खाद को कहते हैं जो मुख्य रूप से पशुओं के गोबर ,मल मूत्र , हरी घास , फसलों के अवशेषों व घर में निकलने वाले जैविक कूड़े को सड़ा कर तैयार की जाती हैं।इस खाद में वो सभी आवश्यक पोषक तत्व मौजूद होते हैं जो मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए आवश्यक होते हैं।
इसके साथ-साथ ये खाद वायु तापमान व पृथ्वी की जल धारण क्षमता को भी बढ़ाती हैं। मित्र जीवाणु संख्या को स्थिर करने तथा भूमि कटाव को रोकने में भी सहायक होती हैं। इस तरह की खाद से वो सभी पोषक तत्व जो फसलों के लिए आवश्यक हैं पुनः प्राप्त हो जाते हैं।
जैविक खेती में प्रयोग जैविक खाद के प्रकार
जैविक खेती में जैविक खाद का प्रयोग किया जाता हैं। जो निम्न प्रकार के होती हैं।
गोबर की खाद
भारत में प्राचीन काल से ही पशुओं के गोबर को खाद के रूप में उपयोग किया जाता था है।जो सबसे उच्च गुणवत्ता वाली खाद होती है।इस खाद में गोबर के अलावा , पशुओं का मल मूत्र भी मिला होता है। गोबर को एक जगह इकट्ठा कर कुछ समय के लिए छोड़ दिया जाता है।अच्छी तरह से सड़ने के बाद यह फसलों के लिए उच्च गुणवत्ता वाली खाद बन जाती है।
गोबर की खाद में नाइट्रोजन और फास्फोरस की अच्छी मात्रा में पायी जाती हैं।
गोबर गैस खाद
आजकल गांव घरों में गोबर गैस संयंत्र लगाए जाते हैं।जिसमें पशुओं के गोबर को तरल कर डाला जाता है।जिससे रसोई में इस्तेमाल होने वाली गैस उपलब्ध होती है। लेकिन गोबर से गैस बनने की एक लंबी प्रक्रिया होती है।लेकिन इस लम्बी प्रक्रिया में गोबर का वह तरल रूप एक अच्छी खाद में तब्दील हो जाता है।
इस प्रक्रिया में गोबर से गोबर गैस व गोबर खाद दोनों मिलते हैं। एक तो खाना बनाने के लिए गैस उपलब्ध हो जाती है और दूसरा इससे एक उत्तम क्वालिटी की खाद भी हमारे खेतों को मिल जाती है। इसमें नाइट्रोजन , फास्फोरस और पोटाश अच्छी मात्रा में पाया जाता है। नाइट्रोजन पौधों व मिट्टी दोनों के लिए लाभदायक होता है।
हरी खाद
इस प्रक्रिया में हरी घास को जो खुद उग आती हैं या दलहनी फसलों के अवशेषों को हल ने जुताई करके मिट्टी में मिला दिया जाता है।जो कुछ समय बाद सड़ कर खाद के रूप में मिट्टी में मिल जाता हैं। इस प्रकार की हरी खाद से भूमि के गुणवत्ता में सुधार होता हैं। और मिट्टी कटाव भी कम होता हैं।भूमि में नाइट्रोजन स्थिीरीकरण भी बढ़ता हैं।
केंचुआ खाद
केंचुआ खाद को वर्मी कंपोस्ट भी कहा जाता है। इसमें केंचुवे गोबर व अन्य अवशेषों को कम समय में उत्तम गुणवत्ता की जैविक खाद में बदल देते हैं।केंचुआ वैसे भी किसान व मिट्टी दोनों के मित्र माने जाते हैं।
केंचुआ खाद से पौधों को बढ़ने के लिए आवश्यक पोषक तत्व भी मिल जाते हैं।इस तरह की खाद से मिट्टी जल धारण क्षमता व उर्वरा शक्ति बढ़ती है। और पौधों में दीमक नहीं लगता है।
जैव उर्वरक
दरअसल केंचुओं की तरह ही कुछ जीवाणु भी किसान व मिट्टी दोनों के मित्र होते हैं।जैव उर्वरक बनाने के लिए इन्हीं मित्र सूक्ष्म जीवों की जीवित कोशिकाओं को लिया जाता है। जैसे राइजोबियम कल्चर।
जैव उर्वरक एक प्रकार के ऐसे जीव होते हैं जो मिट्टी में पोषण तत्वों को बढ़ाते हैं। और वायुमंडलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कर इसे कार्बनिक रूप में परिवर्तित कर देते हैं। जिससे पौधों को आवश्यक पोषक तत्व आसानी से मिलते हैं। तथा भूमि में मौजूद अघुलनशील फास्फोरस भी घुलनशील होकर पौधों को आसानी से उपलब्ध होता हैं।
यह सूक्ष्म जीव प्राकृतिक होते हैं। इसीलिए पर्यावरण पर इनका कोई बुरा असर नहीं पड़ता। इसके जीवाणु दलहनी फसलों की जड़ों में गांठे बनाकर उसमें रहते हैं। और नाइट्रोजन का भूमि में स्थिरीकरण कर फसल को उपलब्ध कराते हैं।
सिक्किम बना पहला जैविक राज्य ( First Organic State Of India )
भारत का सिक्किम पहला ऐसा राज्य है जिसे 2016 में पहला “पूर्ण जैविक राज्य घोषित /(Organic State ) “ किया गया। सिक्किम की लगभग 75000 हेक्टेयर कृषि भूमि पर जैविक तरीके से खेती की जाती है। और रासायनिक खादों व कीटनाशकों का प्रयोग बिल्कुल नहीं किया जाता है। यहां जैविक खादों का प्रयोग कर फसल उगाई जाती हैं।
सिक्किम में इसके लिए बकायदा एक “राज्य जैविक बोर्ड “का गठन किया गया।ऑर्गेनिक फार्म स्कूल तथा बायो विलेजों का निर्माण किया गया। किसानों को जैविक खाद व बीज दिया गया।
सिक्किम को पूर्ण रूप से ऑर्गेनिक स्टेट बनाने का लक्ष्य रखा गया और उस पर निरंतर प्रयास किया गया , जिसकी वजह से सिक्किम पूर्ण जैविक राज्य घोषित हुआ। जैविक कृषि को अपनाने वाले देशों में देशों की सूची में भारत का नाम नौवां स्थान है।
जैविक खेती के लिए आवश्यक कदम
- जैविक कृषि (Organic Farming) को अपनाने के लिए सबसे पहले किसानों को जागरूक करना आवश्यक है।
- किसानों को जैविक कृषि करने के लिए प्रशिक्षण देना भी आवश्यक है। जिसके तहत उन्हें यह समझाना भी जरूरी है कि कौन सी फसल के लिए कौन-कौन सी चीजें उपयोग कर उस फसल में लाभ कमाया जा सकता है।
- किसानों को अपनी मिट्टी के बारे में जानकारी होना भी आवश्यक है।
- समय-समय पर जैविक तरीके से खेती करने वाले किसानों को खेती करने की नई तकनीक व वैज्ञानिक तरीकों से रूबरू कराना भी जरूरी है।
- किसानों को जैविक तरीके से खेती करने के लिए अपने खेत की मिट्टी की उर्वरा शक्ति व मित्र कीटों की पहचान भी आवश्यक है।
- फसलों में कितना अंतर हो और उत्तम क्वालिटी की खाद का निर्माण कैसे करना हैं। इन विषयों पर प्रशिक्षण देना आवश्यक है।
- जैविक खेती के लाभ किसानों को बताना आवश्यक है।
- किसानों को हर दिन कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। समय-समय पर उन समस्याओं का कृषि वैज्ञानिकों द्वारा निस्तारण भी आवश्यक है।
- कृषि वैज्ञानिकों का किसानों से सीधे सीधे जुड़े रहकर उन्हें सलाह देकर उनकी समस्याओं का निवारण करना भी आवश्यक है।
जैविक खेती में चुनौतियों (Challenges in Organic Farming)
- जैविक उत्पाद अन्य उत्पादों के मुकाबले महंगे होते हैं। जिस कारण बाजार मिलने में शुरुआती कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है।
- गांव से शहर में जैविक उत्पादों को लाना या गांव में भी जैविक उत्पादों को बाजार उपलब्ध कराना। यह एक कठिन चुनौती हैं।
- शहरीकरण के चलते हमारे देश में कृषि जोत भूमि दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है। ऐसे में शुरुवाती समय में उतनी ही कृषि भूमि पर पूरी जनसंख्या का पेट भरना थोड़ा मुश्किल है।
- इतनी बड़ी मात्रा में जैविक खाद का उपलब्ध होना यह किसी चुनौती से कम नहीं है। यानी किसान इतनी बड़ी मात्रा में जैविक खाद कहां से लाएगा।
- हालांकि इस तरीके में खेती से फायदा कुछ समय बाद होने लगता है। लेकिन शुरुआती दौर में किसान अपने खर्चे की भरपाई कैसे करेगा।
- जैविक खेती करने से संबंधित गांव घरों में किसी तरह की प्रशिक्षण व्यवस्था नहीं है। ऐसे में किसान को जैविक खेती की जानकारी कहां से मिलेगी।
- जैविक खेती (Organic Farming) में उत्पादन घटने की संभावना बनी रहती है। ऐसे में किसान के नुकसान की भरपाई कैसे होगी।
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जैविक उत्पाद का प्रमाण पत्र कैसे प्राप्त होता है। (Organic Farming Certificate )
जैविक खेती या जैविक उत्पादों का प्रमाण पत्र लेना भी एक लंबी प्रक्रिया है। इसमें आवेदन कर्ता को आवेदन करने वक्त इसके लिए एक निर्धारित फीस चुकानी होती है।इसके साथ ही फसल उगाने में इस्तेमाल हर वस्तु का जैविक होना भी आवश्यक हैं।
तथा समय-समय पर अपनी मिट्टी , खाद , बीज , सिंचाई , कीटनाशकों , कटाई , पैकेजिंग , भंडारण आदि का रिकॉर्ड रखना भी जरूरी होता है।यह उसके उत्पाद के जैविक होने का सबूत है।
यह सब रिकॉर्ड कृषि विभाग में जमा करना होता हैं। इसके बाद कृषि विभाग के अधिकारी इस रिकॉर्ड की प्रमाणिकता को जांचते हैं। सब सही पाये जाने के बाद ही उत्पाद को जैविक उत्पाद घोषित किया जाता हैं।
इसके बाद ही जैविक उत्पाद पैकेट के बाहर जैविक उत्पाद लिखकर बेचा जा सकता है। भारत में फिलहाल जैविक उत्पाद की मान्यता 19 एजेंसियों द्वारा दे जाती है।
कैसे करें ऑर्गेनिक खेती की शुरुआत (How to Start Organic Farming)
इसके लिए सबसे पहले आपको एक प्रोजेक्ट बनाकर राज्य के “डिपार्टमेंट ऑफ ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन” में जमा करना होता है। जिसमें आवेदन कर्ता को जमीन संबंधी जानकारी (यानि उसके पास कितनी खेती योग्य भूमि हैं ) , जमीन किस फसल के लिए उपयोगी है , उस में लगने वाला बजट आदि की जानकारी देनी होती है।
साथ में ही एक फार्म (1 ए 1 , 1 ए 3 , 1 जी और फार्म -11 ) को अच्छी तरह से भरकर रजिस्ट्रेशन फीस के साथ जमा करना होता है।
इसके बाद कृषि वैज्ञानिक आकर आप की जमीन , व मिट्टी की जांच करेंगे। और साथ में कृषि वैज्ञानिक यह भी तय करेंगे कि उस भूमि में कौन सी फसल उगाई जा सकती है आदि । इसके बाद यह प्रोजेक्ट कृषि विभाग के पास भेज दिया जाता है।
सरकार की तरफ से इसके लिए सब्सिडी भी दी जा रही है। एक बार प्रोजेक्ट पास होने के बाद ऑर्गेनिक फार्मिंग से जुडी कंपनियां खुद ही इससे जुड़े सेटअप बनाने के लिए आपसे संपर्क करती हैं। तथा ग्रीनहाउस और ऑर्गेनिक फार्मिंग से संबंधित सारे सेटअप लगाने के साथ-साथ , आवेदन कर्ता को इसकी ट्रेनिंग भी दी जाती है।
जैविक खेती की भारत में आवश्यकता (Organic Farming in India)
पूरे विश्व में जैविक खेती (Organic Farming) अपनाई जा रही है।भारत में भी लोगों को जागरूक किया जा रहा हैं। भारत ने भी जैविक खेती की तरफ अपने ठोस कदम बढ़ा दिये है।यही नहीं सरकार भी खुद आगे आकर लोगों को जैविक उत्पादों और जैविक खेती के बारे में जानकारी दे रही है।
जैविक खेती करने वालों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। जैविक खेती करने वाले लोगों को जरूरी सहायता के साथ-साथ लोन में सब्सिडी भी दी जा रही है।सरकारी स्तर पर भी जैविक उत्पादों को बढ़ावा दिया जा रहा है।
वास्तव में भारत में भी जैविक तरीके से खेती (Organic Farming) की जाने की आवश्यकता है।दिनोंदिन बंजर होती जमीनों , दूषित होती हवा और पानी आखिर कब तक।अनेक प्रकार के हानिकारक रसायन जो अनाज के द्वारा इंसानी शरीर में पहुंच रहा है।और जिससे अनेक नई नई बीमारियों का जन्म हो रहा है। जिन से लड़ना मानव के लिए अब आसान नहीं रह गया है। और कई बीमारियों ने तो महामारी का रूप ले लिया है।इसे रोकना जरूरी हैं।
अतः हमें खेतों में उपलब्ध जैविक साधनों की मदद से खाद , कीटनाशक दवा , चूहा नियंत्रण के लिए दवा इत्यादि बनाकर उनका उपयोग करना चाहिए। इन तरीकों के उपयोग से फसल भी अधिक मिलेगी और अनाज , फल , सब्जियां भी इस विषमुक्त उत्तम होंगी।
आजकल पढ़े-लिखे कई नौजवान लाखों का पैकेज छोड़कर अपने घर गांव की तरफ वापस लौटकर जैविक खेती को अपना रहे हैं। और खुद अपने बॉस आप बनकर कई गुना लाभ कमा रहे हैं।
इस विषय पर गंभीरता से सोचने और कदम उठाने की आवश्यकता है। आज दुनिया भर में खेती , पर्यावरण , प्राकृतिक संसाधनों को लेकर फिर से एक नई बहस छिड़ चुकी है। यह बहस संसाधनों में पड रहे तकनीक के असर को लेकर है।जैविक खेती को लेकर हैं।
Organic Farming : जैविक खेती
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