Leap Year : हर चौथे वर्ष फरवरी 29 दिन की क्यों होती है ?

Leap Year 

क्या होता है लीप ईयर 

वर्ष 2020 एक लीप ईयर है। यानी वर्ष 2020 में फरवरी माह में 28 दिन के बजाय 29 दिन होंगे। लेकिन क्यों ? फरवरी तो हर साल 28 दिन की ही होती है।फिर वर्ष 2020 में 29 दिन की फरवरी क्यों ? ये लीप ईयर ( Leap Year) क्या होता है ? और हर 4 साल बाद ही क्यों आता है ?

अगर ये ढेर सारे सवाल आपके मन में उठ रहे हैं। तो आइए जानते हैं कि लीप ईयर हर 4 साल बाद ही क्यों आता है। और लीप ईयर (Leap Year) में फरवरी 28 दिन के बजाय 29 दिन की क्यों होती है ?

लीप ईयर किसे कहते हैं (What is Leap Year)

दरअसल इस सवाल का जवाब पृथ्वी की सूर्य की परिक्रमा से जुड़ा हुआ है। दरअसल हमारी पृथ्वी लगातार सूर्य की परिक्रमा करती है। जिस कारण एक निश्चित समय में दिन-रात आते जाते हैं। ऋतुओं बदलती रहती हैं।और महीने , साल बदलते रहते हैं।त्यौहार व तिथियों आती जाती रहती हैं। लेकिन सब कुछ एक निश्चित समय में होता हैं। 

पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा में लगने वाले समय से ही लीप ईयर की गणना होती है। दरअसल पृथ्वी सूर्य की एक परिक्रमा करने में जितना समय लगाती है। उसे हम एक वर्ष कहते है। पृथ्वी को सूर्य की एक परिक्रमा को पूरा करने में 365 दिन और 5 घंटे 48 मिनट 46 सेकंड का समय (यानि करीब करीब 6 घंटे) लगता है।

यानी हर साल पृथ्वी को सूर्य की परिक्रमा करने में 365 दिन के अलावा 6 घंटे अतिरिक्त लगते हैं। और यही 6 घंटे अगले 4 साल में पूरा (6 घंटे *4 साल =24 घंटे और 24 घंटे=1 दिन ) 1 दिन बन जाते हैं। और यही पूरा एक दिन चौथे वर्ष में जुड़ जाता है। यानि (365+1)=366 ।

इस कारण से हर चौथा साल 366 दिन का हो जाता है। 366 दिन वाले वर्ष को ही लीप ईयर (Leap Year ) कहा जाता है

लीप डे (Leap Day )

वैसे फरवरी 28 दिन की होती हैं। लेकिन हर चौथे साल में फरवरी 29 दिन की होती है। तो उस 29 वें दिन को लीप डे (Leap Day ) कहा जाता है।ग्रेगोरियन कैलेंडर सौर प्रणाली पर आधारित है। और इसी सौर प्रणाली को एक समान बनाए रखने के लिए लिप डे को फरवरी में जोड़ा गया। 

 कैसे की जाती है लीप ईयर की गणना (Leap Year Calculations)

लीप ईयर (Leap Year) की गणना करने का तरीका बहुत सरल है।ग्रेगोरियन कैलेंडर में लीप ईयर को निकालने के कुछ नियम बनाए गए हैं।

पहला नियम

जिस भी वर्ष में 4 से भाग देने पर शेष शून्य बचता है।वह लीप ईयर माना जाता है।जैसे वर्ष 2020 लीप ईयर है। वर्ष 2020 में 4  से भाग देने पर शेष शून्य (0) रहता हैं। ( 2020 /4 , Reminder will be zero )। ऐसे सभी वर्ष जो 4 से पूरी तरह से divide हो जाते हैं। वो लीप ईयर ( Leap Year ) कहलाते हैं। जैसे 2012 , 2016 , 2020 ।

दूसरा नियम

लेकिन पहला नियम उन वर्षों के लिए लागू नहीं होता हैं जिनके अंत में zero ,zero होता हैं । जैसे 1900 , 2100  , 2200 , 2500 आदि

वजह 

क्योंकि पृथ्वी को सूर्य की एक परिक्रमा को पूरा करने में 365 दिन और 6 घंटे के बजाय 365 दिन 5 घंटे 48 मिनट 46 सेकंड का समय लगता है। यानि 6 घंटे में करीब 11 मिनट 14 सेकंड कम।यानि हम हर साल में 11 मिनट 14 सेकंड अतरिक्त जोड़ देते हैं। 

क्योंकि जब हम लीप ईयर में 4 साल बाद एक दिन को फरवरी के अंत में जोड़ते हैं। तो पूरे 6 घंटे के हिसाब से जोड़ते हैं।क्योंकि 11 मिनट 14 सेकंड को हम बहुत ज्यादा अंतर नहीं मानते। लेकिन करीब 100 साल में यह अन्तर बहुत ज्यादा हो जाता है।यहां तक कि ऋतुओं , महत्वपूर्ण तिथियों , त्योहारों की गणना में भी अंतर आ जाता है । 

16वीं शताब्दी तक यह सब ऐसे ही चलता रहा। और 1600 सालों में ये 11 मिनट (1600 साल  *11 मिनट  =10 दिन  ) 10 दिन बन गए।और ये 10 दिन कलेंडर में ज्यादा थे। जिससे सूरज और कलेंडर में 10 दिनों का अंतर आ गया। 

1582 में जब पोप ग्रेगरी ने नए कैलेंडर का एलान किया तो , कैलेंडर से इन 10 दिनों को निकाल दिया गया। और उस वर्ष 4 अक्टूबर के बाद सीधे अगली तारीख 15 अक्टूबर की थी।यानी कि 10 दिन कैलेंडर से कम कर दिए गए या हटा दिये गये । 

सबकुछ सही रहे इसीलिए इसके बाद एक नया नियम बनाया गया। जिसके अनुसार 100 सालों में एक लीप ईयर को छोड़ दिया जाएगा।और छोड़ा गया वह साल आसानी से याद हो। इसीलिए शताब्दी का सबसे पहला साल छोड़ने का निर्णय लिया गया। जिसके अंत में जीरो जीरो (Double Zero ) आता हो।  जैसे 1700 , 1800 ,1900 , 2100 । यानी कि 100 से भाग जाने वाले नंबरों (वर्षो ) को लीप ईयर से हटा दिया गया। 

तीसरा नियम 

लेकिन यह फार्मूला भी काम ना आया और समस्या जस की तस रही। फिर इसके बाद एक और नियम बनाया गया। जिसके अनुसार हर जीरो जीरो (Double Zero )  वाले वर्ष को लीप ईयर से हटाने के बजाय , हर 400 साल में पड़ने वाले एक Double Zero वाले वर्ष को लीप ईयर रहने दिया जाए तो , सब कुछ सही हो जाएगा।

और अंत में इसके लिए एक फॉर्मूला निश्चित किया गया। जिसके अनुसार ऐसे वर्ष जिनके अंत में जीरो जीरो (Double Zero ) होगा। मगर उन वर्षों में 100 और 400 से भाग देने के बाद शेष शून्य होगा । तभी वह वर्ष लीप ईयर होगा अन्यथा नही ।

जैसे 2000 लीप ईयर था और 2400 लीप ईयर होगा। इनमें 100 और 400 दोनों से भाग देने के बाद शेष शून्य आता है ( Reminder will be zero) । लेकिन 1900 , 2100 , 2200 , 2500  लीप ईयर नहीं है।क्योंकि इनमें 100 और 400 दोनों से भाग देने के बाद शेष शून्य नहीं आता है ( Reminder will not be zero )।

यानी कि शताब्दी के उन वर्षों को लीप ईयर माना जाएगा , जो 100 और 400 दोनों से Divide होंगे।जैसे 1600 , 2000 , 2400  Leap Year  हैं । 

फरवरी में ही क्यों बढ़ता है एक दिन

पृथ्वी सूर्य का एक चक्कर 365 दिन 5 घंटे 48 मिनट 46 सेकंड में पूरा करती है। यानी 365 दिन के अलावा करीब करीब 6 घंटे का अतिरिक्त समय पृथ्वी को सूर्य की परिक्रमा करने में लगता है। 

और ये अतिरिक्त 6 घंटे हर चौथे वर्ष 1 दिन बन जाता है। वैसे हम सबको ही पता है कि हमारे 1 साल में 12 महीने होते हैं। और इन 12 महीनों में कुछ महीने 30 दिन के होते हैं तो कुछ महीने 31 दिन के होते हैं।

लेकिन फरवरी 28 दिन की ही होती है।इसीलिए इस एक दिन को फरवरी में जोड़ दिया जाता हैं। लीप ईयर के समय एक दिन और जुड़ जाने से फरवरी 29 दिन की होती है। इससे बाकी के 11 महीनों में कोई फर्क नहीं पड़ता है। 

कब से शुरू हुआ लीप ईयर 

रोमन कैलेंडर सबसे पुराना कैलेंडर है। रोमन सम्राट न्यूमा पोंपिलियस के समय बना था। रोमन कैलेंडर में 304 दिन और 10 महीने होते थे।इस कैलेंडर में साल की शुरुआत मार्च महीने से मानी जाती थी। 

जूलियस सीजर ने ईशा पूर्व पहली शताब्दी में पहला कैलेंडर बनवाया था।यूनानी ज्योतिषी सोसिजिनीस ने इस कैलेंडर को बनाने में मदद की थी।जूलियन कैलेंडर में 365 दिन और 12 महीने होते थे।

जूलियन कैलेंडर जुलियस सीजर के नाम पर बना था।जुलियस सीजर के नाम पर जुलाई महीना भी जोड़ा गया था। आंगस्टन के नाम पर अगस्त महीना जोड़ा गया।

जूलियन कैलेंडर की शुरुआत जनवरी से मानी गई। ईसा के जन्म से 46 साल पहले लागू किया गया था। 

सेंट बीड ने बताया था कि 1 साल में 365 दिन 5 घंटे 48 मिनट 46 सेकंड होते हैं। पोप ग्रेगोरी ने 1582 में नया कैलेंडर पेश किया। जिसमें 1 जनवरी को नए साल की शुरुआत मानी गई। 

ग्रेगोरियन कैलेंडर को अक्टूबर 1582 से अपनाया गया। उस वक्त कैलेंडर में 10 दिन आगे कर दिये गये। इसीलिए 5 अक्टूबर के बाद सीधे 15 अक्टूबर से कैलेंडर की शुरुआत की गई। 

ज्यादातर कैथोलिक देशों ने ग्रेगोरियन कैलेंडर को अपनाया है।ब्रिटिश साम्राज्य ने 1752 में और स्वीडन ने 1753 में ग्रेगोरियन कैलेंडर को अपनाया था। जबकि रूस में 1917 तक जूलियन कैलेंडर चलता था। रूसी क्रांति के बाद ग्रेगोरियन कैलेंडर को अपनाया गया।

ग्रीस में जूलियन कैलेंडर 1923 तक चलता रहा। भारत ने 1752 में ही ग्रेगोरियन कैलेंडर को अपनाया गया। 

Interesting Facts About Leap Year facts

  • वर्तमान में प्रचलित कैलेंडर ग्रेगोरियन कैलेंडर है। जो जूलियन कैलेंडर पर आधारित है। लेकिन काफी बदलाव के बाद।
  • पृथ्वी सूर्य का एक चक्कर 365 दिन 5 घंटे 48 मिनट 46 सेकंड में पूरा करती है।  
  • सबसे ज्यादा मुश्किल उन लोगों की होती है। जिनका जन्म 29 फरवरी को होता है। ऐसे लोग 4 साल बाद ही अपना असली जन्मदिन मना पाते हैं।और 100 साल के अपने जीवन में सिर्फ 25 बार ही अपना जन्मदिन मना पाते हैं। 
  • ऐसे लोगों में अपने देश के पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई का नाम भी शामिल है।
  • रोमन लोग लीप ईयर को अच्छा नहीं मानते हैं। वो इस समय कोई भी महत्वपूर्ण कार्य करना शुभ नहीं मानते हैं।
  • लीप ईयर में पैदा हुए बच्चों को लिपलिंग्स या लीपर्स पर कहा जाता है। 
  • लीप डे के दिन पैदा होने वाले बच्चों को असाधारण प्रतिभा का धनी माना जाता हैं।
  • हमारे कैलेंडर के साथ ऋतुओं , मौसम व हमारे तीज त्यौहार एक समान चलते रहे। यानि ये सब हर साल एक निश्चित समय व महीने में आते हैं। इसीलिए लीप ईयर की अहमियत बढ़ जाती हैं। 

Leap Year

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