The National Medical Commission Bill 2019
नेशनल मेडिकल कमीशन बिल (NMC) की क्या है खासियत ? The National Medical Commission Bill 2019 , नेशनल मेडिकल कमीशन बिल के जरिये अब गांवों में भी पहुचेंगें डॉक्टर।
The National Medical Commission Bill 2019
नेशनल मेडिकल कमीशन बिल (NMC) 29 जुलाई 2019 को लोकसभा में तथा 1 अगस्त 2019 को राज्यसभा में पारित हो गया।यह बिल भारत की चिकित्सा शिक्षा में सुधार लाने के उद्देश्य से पारित किया गया है।जो गुणवत्तापूरक मगर सस्ती चिकित्सा शिक्षा प्रदान करेगा।हालांकि इस बिल को मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान साल 2018 में भी तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने लोकसभा में रखा था।
नेशनल मेडिकल कमीशन बिल के अंतर्गत चिकित्सा शिक्षा को विनियमित करने वाली “केंद्रीय मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI)” को खत्म कर इसकी जगह पर “राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC)” का गठन किया जाएगा।
अब देश में मेडिकल शिक्षा और मेडिकल सेवाओं से संबंधित सभी नीतियां को बनाने की जिम्मेदारी इस कमीशन के पास होगी।नेशनल मेडिकल कमिशन बिल 2019 के लागू होते ही “मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया एक्ट 1956” स्वतः ही समाप्त हो जायेगा।
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नेशनल मेडिकल कमिशन बिल (NMC Bill) है क्या ?
(What is The National Medical Commission Bill 2019)
नेशनल मेडिकल कमिशन अब तक चले आ रहे मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) की जगह लेगा लेकिन कुछ नए प्रावधानों और नियमों के साथ।इस बिल में नेशनल मेडिकल कमिशन को नए मेडिकल कॉलेजों को खोलने और पुराने कॉलेजों के मूल्यांकन की जिम्मेदारी दी गई है।इसके साथ ही कमिशन प्रवेश परीक्षा और एग्जिट परीक्षा भी करवाएगा।
नेशनल-मेडिकल-कमीशन-बिल पास होने के बाद अगले 3 सालों में “नेशनल मेडिकल कमीशन” का गठन किया जाएगा।भारत में अब मेडिकल शिक्षा ,मेडिकल संस्थानों और डॉक्टरों के रजिस्ट्रेशन से संबंधित सारे काम यही कमीशन देखेगा।
सरकार ने प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में MBBS की कुल सीटों में से 50 फ़ीसदी सीटों पर मैनेजमेंट को फैसला लेने का अधिकार दिया है।और MBBS की डिग्री हासिल करने वालों को प्रेक्टिस करने के लिए एग्जिट टेस्ट पास करना होगा।अब तक यह व्यवस्था सिर्फ उन छात्रों के लिए थी जो विदेशों से MBBS की डिग्री हासिल कर अपने देश वापस आकर यहां प्रैक्टिस करना चाहते थे।
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मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) खत्म (End of National Medical Commission Bill)
इस नये विधेयक (The National Medical Commission Bill 2019) को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलते ही तो नेशनल काउंसिल ऑफ इंडिया खत्म हो जाएगी और उसकी जगह राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग यानी नेशनल मेडिकल कमिशन (NMC) ले लेगा।
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग की धारा 58 के अनुसार नेशनल-मेडिकल-कमीशन-बिल के नये कानून के लागू होते ही मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया स्वतः ही खत्म हो जाएगा।और इसके साथ ही साथ इस के अधिकारियों और कर्मचारियों की सेवाएं भी स्वतः ही समाप्त हो जाएंगी।लेकिन उन्हें 3 महीने का वेतन और भत्ते दिये जाएंगे।इसके साथ ही “भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम 1956” निरस्त हो जाएगा।
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नेशनल मेडिकल कमिशन बिल का उद्देश्य (Aim of National Medical Commission Bill)
नेशनल मेडिकल कमीशन बिल (The National Medical Commission Bill 2019) का मुख्य उद्देश्य चिकित्सा शिक्षा व चिकित्सा क्षेत्र में आवश्यक सुधार लाना।मेडिकल शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाना तथा इसके लिए आवश्यक उच्च मानक तैयार करना।देश के हर नागरिक को जरूरी प्राथमिक चिकित्सा सेवा प्रदान करना।खासकर ग्रामीण इलाकों में जहां पर डॉक्टरों की भारी कमी है।
इसीलिए नेशनल मेडिकल कमीशन बिल की धारा 32 के तहत साढ़े तीन लाख नॉनमेडिकल लोगों को लाइसेंस दिया जा रहा हैं।ताकि उन्हें मरीजों के लिए सभी प्रकार की दवाइयां लिखने और इलाज करने का कानूनी अधिकार दिया जा रहा है।सरकार इस बिल को देश को मेडिकल एजुकेशन शिक्षा की दिशा में एक बड़ा सुधार मानकर चल रही है।
बोर्ड का गठन (The National Medical Commission Bill 2019)
नेशनल मेडिकल कमिशन के तहत मुख्य रूप से चार बोर्ड का गठन किया जायेगा।
- अंडर ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन बोर्ड (UGMEB) और
- पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन बोर्ड(PGMEB) :- इनकी दोनों की जिम्मेदारी पाठ्यक्रम और चिकित्सा शिक्षा के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश बनाना व उन्हें लागू करना और चिकित्सा योग्यता को मान्यता प्रदान करना है।
- नैतिकता और चिकित्सा पंजीकरण : – यह बोर्ड देश में सभी लाइसेंस प्राप्त चिकित्सकों का एक रजिस्टर बनायेगा और केवल रजिस्टर में शामिल डॉक्टरों को ही प्रैक्टिस की अनुमति प्रदान करेगा।
- चिकित्सा मूल्यांकन और रेटिंग बोर्ड बोर्ड :- यह बोर्ड मुख्य रूप से नए मेडिकल कॉलेजों की स्थापना,नये पाठ्यक्रम शुरू करने,मेडिकल कॉलेजों में सीटों की संख्या बढ़ाने की अनुमति देने का काम करेगा।साथ ही साथ यह बोर्ड UGMEB और PGMEB द्वारा निर्धारित न्यूनतम मानकों को बनाए रखने में असफल रहने वाले संस्थानों पर आर्थिक दंड भी लगायेगा।
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राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग का गठन
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग 25 सदस्यों का एक संगठन होगा।जिसमें एक अध्यक्ष,एक सचिव, 8 पदेन सदस्य और 10 अंशकालिक सदस्य शामिल होंगे।ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन चिकित्सा शिक्षा इसी आयोग के अधीन होगी।इसके अलावा चिकित्सा संस्थानों की मान्यता और डॉक्टरों के पंजीकरण का काम भी इसकी ही जिम्मेदारी होगीं।
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति सरकार द्वारा की जाएगी।जबकि सदस्यों को एक सर्च कमेटी द्वारा नियुक्त किया जाएगा।जिसकी अध्यक्षता कैबिनेट सचिव करेंगे।पहले यह प्रक्रिया एक चुनाव द्वारा पूरी की जाती थी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानक
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानकों के अनुसार प्रति हजार मरीजों पर एक डॉक्टर होना चाहिए।लेकिन भारत में लगभग 1596 मरीजों पर एक डॉक्टर है।हालांकि ग्रामीण इलाकों में तो यह मानक खरा नहीं उतरता क्योंकि भारत में कई ऐसे गांव हैं।जहां प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक नहीं हैं।
गांव के लोगों को छोटी-मोटी बीमारी के लिए भी कई किलोमीटर पैदल चल कर दूसरे गांवो के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचना पड़ता है।और ज्यादातर डॉक्टर गांवों में प्रैक्टिस करना नही चाहते हैं इसलिए गांव में अच्छे डॉक्टरों की भारी कमी है।
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राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग बिल के कुछ मुख्य प्रावधान
नेशनल मेडिकल कमिशन बिल (The National Medical Commission Bill 2019) में कई नए प्रावधानों को जोड़ा गया है जैसे
- ब्रिज कोर्स
नेशनल मेडिकल कमिशन बिल की धारा 49 के अंतर्गत एक ब्रिज कोर्स करने के बाद आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक डॉक्टर एलोपेथी इलाज करने के योग्य हो जाएंगे।अर्थात वो मरीजों के लिए एलोपेथी की दवाइयां भी लिख सकेंगे और उनका इलाज भी कर सकेंगे।हालांकि इसके लिए उन लोगों को मॉडर्न मेडिसिन से संबंधित न्यूनतम जानकारी होना जरूरी है।
इससे पहले भी ब्रिज कोर्स का प्रावधान था जिसे नॉन मेडिकल प्रैक्टिशनर एक परीक्षा पास करने के बाद एलोपैथी प्रैक्टिस कर सकता था।
- नेक्स्ट की परीक्षा उत्तीर्ण करना अनिवार्य
नेशनल मेडिकल कमिशन बिल की धारा 15(1) में छात्रों को प्रैक्टिस करने से पहले और स्नातकोत्तर चिकित्सा पाठ्यक्रमों में दाखिला लेने के लिए नेक्स्ट की परीक्षा उत्तीर्ण करने का प्रस्ताव रखा गया है।नेशनल मेडिकल कमिशन बिल में एक ऐसा प्रावधान रखा गया है जिसके तहत एमबीबीएस के फाइनल ईयर की परीक्षा को पीजी के लिए इंट्रेंस टेस्ट माना जाएगा।
इसमें विदेश में मेडिसिन की पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स के लिए स्क्रीनिंग की भी व्यवस्था की गई है।इस परीक्षा को नेशनल एग्जिट टेस्ट यानी नेक्स्ट कहा जाएगा।
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- अब मेडिकल की पढ़ाई के लिए पास करनी होगी NEET परीक्षा
देश के सभी मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश लेने के लिए अब छात्रों को केवल नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट(NEET) पास करना होगा।इस परीक्षा के आधार पर छात्रों को मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन दिया जाएगा।नीट एक संस्थागत इकाई है जो 13 भाषाओं में परीक्षा आयोजित करती है।
- मेडिकल एडवाइजरी काउंसिल का गठन
केंद्र सरकार एक मेडिकल एडवाइजरी काउंसिल का गठन करेगी।जहां देश के सभी राज्य मेडिकल शिक्षा और ट्रेनिंग के बारे में अपनी समस्याओं के बारे में बताएंगे और सुझावों को भी देंगे।इसके बाद यह काउंसिल,राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग को मेडिकल शिक्षा की समस्याओं को सुलझाने और मेडिकल शिक्षा को और बेहतर बनाने संबंधी सुझाव देगी।
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- मेडिकल संस्थानों की फीस
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग देशभर के सभी निजी मेडिकल संस्थानों में 40% सीटों की ही फीस तय करेगा और 60% सीटों की फीस निजी संस्थान खुद तय करेंगे।
- मेडिकल रिसर्च को बढ़ावा
नेशनल मेडिकल कमिशन बिल में मेडिकल रिसर्च को बढ़ावा बढ़ाने का प्रावधान है।स्नातक और परास्नातक स्तर पर डाक्टरों को दक्ष बनाने के लिए मेडिकल रिसर्च को बढ़ावा दिया जाएगा।नेशनल मेडिकल कमीशन का मकसद चिकित्सा शिक्षा में अंडर ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट दोनों स्तर पर उच्च कोटि के डॉक्टर लाने का है।मेडिकल रिसर्च को बढ़ावा देने के साथ ही मेडिकल प्रोफेशनल्स को नए मेडिकल रिसर्च के लिए भी प्रोत्साहित किया जाएगा।
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कई देशों में कारगर है ये तरीके
दुनिया के कई देशों में गांवों तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाने के लिए इन्हीं प्राथमिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं या डिप्लोमा डॉक्टरों की मदद ली गई जो बड़ी कारगर सिद्ध हुई।चीन और क्यूबा में यही स्वास्थ्य मॉडल अपनाए गये।चीन में 1960 के दशक में यह स्वास्थ्य सुधार मॉडल बनाया गया।जिसके कारण अब वहां के हर गांव में एक डॉक्टर हमेशा उपलब्ध रहता है।
इसी तरह क्यूबा ने भी अपनी स्वास्थ्य व्यवस्थाओं में आवश्यक सुधार किया।जिसका परिणाम लोगों का बेहतर स्वास्थ्य रहा।क्यूबा में लोगों की औसत उम्र 80 साल है।क्यूबा में इन डॉक्टरों को “क्रांतिकारी डॉक्टर” कहते है।
आजादी से पहले भारत में था यही सिस्टम
भारत में आजादी से पहले एमबीबीएस डॉक्टरों की संख्या बहुत कम थी और लाइसेंसी डॉक्टरों की संख्या ज्यादा थी।और यही लाइसेंसी डॉक्टर अधिकतर दूर दराज गांवो में जाकर मरीजों का इलाज करते थे।तब लाइसेंसी डॉक्टर बनने के लिए साढ़े तीन साल का कोर्स करना पड़ता था।जबकि एमबीबीएस के लिए साढ़े पांच साल का कोर्स था।
भोरे समिति की रिपोर्ट(1947)के अनुसार उस समय देश में कुल 47,524 पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टिशनर थे। जिसमें से साढे सत्रह हजार ही MBBS डॉक्टर थे,जबकि करीब 30,000 लाइसेंसी डॉक्टर थे।इस समिति ने लाइसेंसी डॉक्टरों को प्रतिबंधित किए जाने का फैसला किया था।
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भारत के कई राज्यों में सक्रिय है डिप्लोमा होल्डर
हमारे देश में छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य है जो 2001 में मध्य प्रदेश से अलग हुआ।अलग होने के बाद वह स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहा था।क्योंकि वहां पर उस वक्त बहुत कम डॉक्टर थे।उस वक्त प्राथमिक स्वास्थ्य समस्याओं को दूर करने के लिए 3 साल का डिप्लोमा कोर्स शुरू किया गया और डिप्लोमा धारकों को “ग्रामीण मेडिकल असिस्टेंट” के तौर पर भर्ती किया था।
इसी तरह असम में 2005 में साढ़े तीन साल का कोर्स करने वालों युवाओं को “कम्युनिटी हेल्थ वर्कर” के तौर पर भर्ती किया गया।जिसका नतीजा बेहद अच्छा रहा और दोनों राज्यों के ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं बहुत कम हुई।
इनके अलावा महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जैसे अति पिछड़े ग्रामीण इलाकों व हिमाचल प्रदेश के कई गांवों में भी इस तरह की शुरुआत की गई।जो काफी हद तक सफल रही।
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नेशनल मेडिकल कमिशन बिल से फायदे
भारत के दूर दराज व दुर्गम गांवों में प्राथमिक स्वास्थ्य संस्थाओं की बहुत कमी है।और इन्हीं गांवों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाने और डॉक्टरों की उपलब्धता बढ़ाने की खासी जरूरत है।अच्छे व उच्च डिग्री वाले डॉक्टर इन गांवों में जाकर प्रैक्टिस करना नहीं चाहते है।इसीलिए अब सरकार लाइसेंसी व्यवस्था के जरिये गांवों में हेल्थ वर्कर उपलब्ध कराएगी।
नेशनल मेडिकल कमिशन बिल के जरिए सीएचपी व्यवस्था लागू होगी जिसके तहत कम्युनिटी हेल्थ प्रोवाइडर्स यानि सीएचपी के लिए लाइसेंसी व्यवस्था होगी।इनको प्राथमिक स्वास्थ्य की दिशा में आधुनिक इलाज की प्रैक्टिस करने का हक मिलेगा जो अभी तक सिर्फ एमबीबीएस डिग्री धारकों के पास ही था।
चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में भी आवश्यक सुधार होंगे।शिक्षा के लिए उच्च मानक तैयार किये जाएंगे तथा शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा।सरकार का कहना है कि नेशनल मेडिकल कमिशन बिल मरीजों और डॉक्टरों दोनों के हित में है।यह बिल वरदान साबित होगा।कई विकसित देशों में ऐसा प्रावधान है जो कारगर है।
नेशनल मेडिकल कमिशन बिल ( The National Medical Commission Bill 2019) के कुछ प्रावधान जिनका डॉक्टर विरोध कर रहे हैं
इस बिल में कुछ ऐसे प्रावधान भी हैं जिनका डॉक्टर सड़कों पर उतर कर विरोध कर रहे हैं।
- नेशनल मेडिकल कमिशन बिल के तहत 6 महीने का एक ब्रिज कोर्स लाया जाएगा जिसके तहत प्राइमरी हेल्थ में काम करने वाले भी मरीजों का इलाज कर पाएंगे।विरोध करने वाले डॉक्टरों का कहना है कि हम 10 साल पढ़ने के बाद डॉक्टर बनते हैं तो वो लोग 6 महीने में कैसे डॉक्टरी पढ़ाई कर डॉक्टर बन सकते हैं।इससे गांवों में अराजकता आ सकती है।डॉक्टर कहते हैं कि 6 महीने की पढ़ाई के बाद प्राइमरी हेल्थ डॉक्टर तो बना दिए जाएंगे लेकिन उन्हें रेगुलेट कौन करेगा।
- इंडियन मेडिकल एसोसिएशन,नेशनल मेडिकल कमिशन बिल की धारा 32 पर विरोध कर रही है।क्योंकि इसी सेक्शन के तहत 3.5 लाख नॉनमेडिकल लोगों को लाइसेंस देकर सभी प्रकार की दवाइयां लिखने और इलाज करने का कानूनी अधिकार दिया जा रहा है।जिसका देश भर के डॉक्टर विरोध कर रहे हैं।विरोध करने वाले डॉक्टरों का कहना है कि इससे ग्रामीण इलाकों में नकली डॉक्टरों की संख्या बढ़ेगी।और वो मरीजों को मूर्ख बनाकर उनसे पैसा वसूल करेंगे।
- ग्रेजुएशन के बाद डॉक्टरों को नेक्स्ट की परीक्षा देनी होगी।इस परीक्षा को पास करने के बाद ही उन्हें मेडिकल प्रैक्टिस करने का लाइसेंस मिलेगा और इसी परीक्षा के आधार पर पोस्ट ग्रेजुएशन में भी दाखिला मिलेगा।अगले 3 वर्षों में एग्जिट परीक्षा शुरू कर दी जाएगी।मेडिकल के छात्र इस एग्जिट परीक्षा का विरोध कर रहे है।
- एनएमसी(NMC) निजी मेडिकल संस्थानों की फीस तय करेगा।लेकिन 60% सीटों पर निजी संस्थान खुद फीस तय कर सकते हैं।
- आईएमए ने दो प्रावधानों पर विशेष तौर पर ऐतराज किया है।(1) सरकार ने प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में MBBS सीटों में 50 फ़ीसदी सीटों पर मैनेजमेंट को फैसला लेने का अधिकार दिया है।(2)MBBS की डिग्री हासिल करने वालों को प्रेक्टिस करने के लिए एग्जिट टेस्ट पास करना होगा।
- यदि कोई छात्र किसी वजह से एक बार एग्जिट परीक्षा नहीं दे पाया तो उसके पास दूसरा विकल्प नहीं है क्योंकि इस बिल में दूसरी परीक्षा का विकल्प नहीं है।अब तक यह व्यवस्था उन छात्रों के लिए थी जो विदेशों में एमबीबीएस की डिग्री हासिल कर भारत में प्रैक्टिस करना चाहते थे।
- आजतक मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के अधिकारियों की नियुक्ति चुनाव के माध्यम से की जाती थी।जिसमें अधिकतर सदस्य डॉक्टर ही होते थे।लेकिन अब नेशनल मेडिकल कमिशन में 25 सदस्य होंगे।और इन सदस्यों को मनोनीत सरकार द्वारा गठित एक कमेटी के द्वारा किया जाएगा जिनमें 60% डॉक्टर होंगे।
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- डॉक्टरों का कहना है कि एक बार आयुर्वेद का डॉक्टर एलोपैथिक प्रैक्टिस करने के बाद दोबारा आयुर्वेद में नहीं जाएगा।इससे देश की आयुर्वेदिक संस्थायें खत्म हो जाएगी।इसीलिए आयुर्वेद और होम्योपैथी के डॉक्टरों को ब्रिज कोर्स करवाकर एलोपैथी की इजाजत देना सही नहीं है।यह मरीजों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ है।
- राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग में डॉक्टरों को उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है।इसमें सारी शक्तियां ब्यूरोक्रेसी के पास रहेंगी जिससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा।
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