Narayan Dutt Tiwari ,कौन है नारायण दत्त तिवारी ?, क्यों कहते हैं उनको उत्तराखंड का विकास पुरुष ?आर्थिक संकटों व संघर्षों के फर्श से राजनीति के अर्श तक पहुंच गये नारायण दत्त तिवारी।
Narayan Dutt Tiwari
चार बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे तथा उत्तराखंड बनने के बाद उत्तराखंड के तीसरे मुख्यमंत्री बने। जन्म 18 अक्टूबर 1925 , मृत्यु 18 अक्टूबर 2018
उत्तराखंड के विकास पुरुष नारायण दत्त तिवारी (Narayan Dutt Tiwari)। जी हां इसी नाम से उत्तराखंड के हर इंसान के दिल में बसते हैं नारायण दत्त तिवारी।एक बेहतरीन प्रशासक, उच्च कोटि के राजनेता, एक प्रखर पत्रकार ,एक समर्पित जनसेवक , दूरदृष्टा, जिसके हृदय में उत्तराखंड के लोगों के हित में कुछ कर गुजरने का जुनून था।
एक ऐसा व्यक्ति जो बेहद गरीबी, आर्थिक संकटों व संघर्षों से होकर गुजरा, लेकिन अपनी लगन ,मेहनत व कुछ कर गुजरने के जुनून के बल पर फर्श से राजनीति के अर्श तक पहुंच गया।
कौन थे नारायण दत्त तिवारी
बहुमुखी प्रतिभा के धनी ,सरल व मिलनसार ,हंसमुख आशावादी, इरादों के पक्के नारायण दत्त तिवारी जी का जन्म नैनीताल जिले के बल्यूटी ग्राम में अपने ननिहाल में 18 अक्टूबर 1925 की रात को हुआ था ।यह गांव काठगोदाम से करीब 5 किलोमीटर उत्तर दिशा में मां शीतला देवी मंदिर के निकट है ।गरीबी में बचपन बीता ।
घरेलू कार्य में परिवार की मदद करने के बाद कोषों पैदल चलकर प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की। गरीबी इतनी कि स्कूल की फीस भी नहीं भर पाते थे।उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा हल्द्वानी ,नैनीताल व बरेली के एडवर्ड मेमोरियल स्कूल से प्राप्त की।सन 1939 हाईस्कूल तथा 1941 में इंटर की परीक्षा प्राइवेट उत्तीर्ण की।
मात्र 7 वर्ष की आयु में अपनी माता चंद्रा देवी को खोने के बाद उनका जीवन संघर्षों भरा रहा।मात्र 17 वर्ष की आयु में स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय हो गये और 19 दिसंबर 1942 में “भारत छोड़ो आंदोलन” के दौरान वह अपने पिता के साथ गिरफ्तार हुए और उन्हें 15 माह की जेल की सजा हुई।नैनीताल जेल में वो अपने पिता पूर्णानद तिवारी के साथ एक ही कोठरी में 6 माह तक रहे ।
बाद में उनके पिता को बरेली जेल में भेज दिया गया।जेल में उन्हें कई सारी यात्राएं दी गई जिसकी वजह से एक कान खराब हो गया।जेल से छूटने के बाद उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में MA किया उसके बाद एलएलबी।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय को उन्होंने टॉप ही नहीं किया बल्कि इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के यूनियन के अध्यक्ष बनकर छात्र राजनीति में भी कदम रख दिया और 1947 में वो इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष बने।
एक नज़र उनके राजनीतिक जीवन पर
नारायण दत्त तिवारी (Narayan Dutt Tiwari) का राजनीतिक सफर बहुत ही शानदार रहा है ।वो देश के पहले ऐसे राजनीतिज्ञ थे जिनको 2 राज्यों के मुख्यमंत्री होने का गौरव प्राप्त हुआ। चार बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे तथा उत्तराखंड बनने के बाद उत्तराखंड के तीसरे मुख्यमंत्री बने।
जानें ..क्यों मनाया जाता हैं Mother’s Day
वे नेहरू गांधी के दौर के उन चंद राजनेताओं में शामिल थे जिन्होंने आजादी की लड़ाई में सक्रिय योगदान दिया।1944 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की विधिवत रूप से सदस्यता ली और 1945 से लेकर 1949 तक “ऑल इंडिया स्टूडेंट कांग्रेस” के सचिव रहे।
लेकिन 1948 में आजादी के तुरंत बाद समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए और मार्च 1952 में नैनीताल सीट पर “प्रज्ञा समाजवादी पार्टी” के टिकट में विधायक बने और उत्तर प्रदेश विधानसभा भवन में पहुंच गए।
1957 में दूसरी बार नैनीताल विधानसभा से चुनाव जीते।तथा यूपी विधानसभा में विपक्ष के उपनेता व कार्यवाहक बने।लेकिन 1962 में नैनीताल सीट से विधानसभा का चुनाव हार गए।उसके बाद 1963 में कांग्रेस में सम्मिलित हुए और 1965 में काशीपुर सीट से विधायक चुने गए।
उसके बाद ताउम्र कांग्रेसी बने रहे।सन् 1969 मध्यवर्ती चुनाव जीतकर यूपी सरकार में पहली बार श्रम ,योजना व पंचायती राज मंत्री बने।
एक नजर उनकी उपलब्धियों पर
- 1952 में Narayan Dutt Tiwari मात्र 27 वर्ष की उम्र में यूपी में सबसे कम उम्र के विधायक बने।
- उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकाल, पहली बार 1976 से अप्रैल 1977 , दूसरी बार 3 अगस्त 1984 से 10 मार्च 1985 , तीसरी बार 11 मार्च 1985से 24 सितम्बर 1985, चौथी बार 25 जून 1988 से 4 दिसम्बर 1989। उन्होंने यूपी में चार बार सीएम पद की शपथ ली थी।
- और उत्तराखंड में एक बार मुख्यमंत्री रहे।2002 से 2007तक ।
- उसके बाद 1980, 1996, 1999 में सांसद चुने गए।
- 1952, 1957, 1969, 1974, 1977, 1985, 1989, 1991 में विधासभा सदस्य रहे।
- 1981 में योजना मंत्री व योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे ।
- 15 जुलाई 1987 को केंद्र सरकार में वित्त एवं वाणिज्य मंत्री पद की शपथ ली।
- नवंबर 1989 आम चुनाव में हल्द्वानी सीट से जीते ।
- 1991 में भाजपा के बलराम पासी से नैनीताल लोकसभा सीट से हारे ।
- 23 अगस्त 1994 को उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने ।
- 1998 नैनीताल से चुनाव हारे तथा कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया
- 2002-2007 तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद पर रहे।
- 22 अगस्त 2007 से 26 दिसंबर 2009 तक आंध्र के राज्यपाल रहे।
- दिसम्बर 1985 से 1988 तक राजसभा सदस्य रहे।
- अपने जीवन का अंतिम चुनाव उन्होंने रामनगर से लड़ा।
- 9 बार यूपी में बजट पेश करने का रिकॉर्ड भी नारायण दत्त तिवारी के ही नाम है।1988 में उन्होंने देश का भी बजट प्रस्तुत किया था।
- उन्होंने लगभग 62 साल तक देश की सेवा की।
- प्रखर पत्रकार पूर्व सीएम एनडी तिवारी ने 22 साल की छोटी सी उम्र में “नेशनल हेराल्ड” समाचार पत्र में बतौर पत्रकार अपनी शुरुआत की थी और कम ही समय में उनकी गिनती तेजतर्रार पत्रकारों में होने लगी थी।
क्यों हो रहा हैं उत्तराखंड के पहाडों से पलायन ?
“कांग्रेस तिवारी” का गठन
उन्होंने केंद्र सरकार में योजना मंत्री ,उद्योग मंत्री, पेट्रोलियम मंत्री,विदेश मंत्री के पद पर कार्य किया ।1994 में तत्कालीन प्रधानमन्त्री पी.बी.नरसिम्हाराव से नाराजगी के चलते कांग्रेस से अलग होकर अर्जुन सिंह के साथ मिलकर अपनी नई पार्टी “कांग्रेस तिवारी” का गठन किया। लेकिन मात्र 2 साल में ही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के जोर देने पर वापस कांग्रेस में शामिल हो गये।
उत्तराखंड में उनका योगदान
उत्तराखंड में उनके (Narayan Dutt Tiwari) योगदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता।उत्तराखंड राज्य बनने के बक्त इसका नाम “उत्तरांचल “था।जो लोगों की जन भावनाओं से मेल नहीं खाता था।जन भावनाओं को ध्यान में रखते हुए उसका नाम “उत्तरांचल से उत्तराखंड” नारायण दत्त तिवारी ने ही किया।
Narayan Dutt Tiwari को उत्तराखंड में ” विकास पुरुष” के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि राज्य गठन के बाद पिछले 18 सालों में उत्तराखंड का जो भी विकास हुआ है उसका खाका एनडी तिवारी के कार्यकाल में ही खींचा गया।विशेष औद्योगिक पैकेज का एनडी तिवारी ने अपने पूरे राजनीतिक अनुभव और प्रभाव के दम पर भरपूर लाभ उठाया और उत्तराखंड को “औद्योगिक राज्य“की श्रेणी में ला खड़ा किया।
Narayan Dutt Tiwari ने देहरादून, हरिद्वार, उधमसिंह नगर में औद्योगिक अवस्थापना की शुरुआत की।और वो दून घाटी को हैदराबाद की तर्ज पर “सिलिकॉन सिटी” बनाने की की संभावना तलाश रहे थे।एनडी तिवारी (Narayan Dutt Tiwari) के कार्यकाल में ही तकनीकी विश्वविद्यालय, उत्तराखंड संस्कृत विद्यालय तथा दून विश्वविद्यालय की नींव रखी गई।
उनके कार्यकाल के दौरान करीब 3700 मेगावाट की बिजली परियोजनाओं पर विशेष फोकस किया गया।भौगोलिक चुनौतियों को देखते हुए उन्होंने “आपदा प्रबंधन और न्यूनीकरण” की स्थापना की।
युवाओं का पलायन रोकने के लिए 11 दिसंबर 1982 “एचएमटी(HMT घड़ी) ” जैसे बडे कारखाना की नींव रानी बाग (हल्द्वानी) में रखी। 14 नवंबर1985 को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी तथा उद्योग मंत्री नारायण दत्त तिवारी (Narayan Dutt Tiwari) ने इसका उद्घाटन किया।”सेंचुरी पेपर मिल” की स्थापना में उनका अहम योगदान रहा और रुद्रपुर में सिडकुल की परिकल्पना भी उनकी ही देन है।
हरिद्वार, रुद्रपुर तथा देहरादून जिले में उन्होंने सिडकुल की स्थापना कर उद्योगपतियों को प्रदेश की ओर आकर्षित किया। बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देने के लिए डॉक्टर सुशीला तिवारी अस्पताल की नींव रखी।आजकल सडकें (रोड) हॉट मिक्स प्लांट से बन रही हैं।
यह पेवर रोड की तकनीक को तिवारी जी ही बतौर मुख्यमंत्री उत्तराखंड में लेकर आए थे।विकास पुरुष की ख्याति पाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी की कर्म स्थली काशीपुर भी रहीं। 1974 में उन्होंने काशीपुर में चौथे “इंडस्ट्रियल स्टेट” की स्थापना की ।उस वक्त देश में सिर्फ तीन ह़ी इंडस्ट्रियल स्टेट थे।
साहित्य व साहित्यकरों के प्रति भी गहरा लगाव रखते थे।उन्होंने अपने कार्यकाल में “महादेवी वर्मा संग्रहालय “को सहेजने के लिए 2004 में डेढ़़ करोड़ रुपये स्वीकृत किए तथा यहां पर एक “सृजन पीठ” का निर्माण भी करवाया।उत्तराखंड में “साहित्य संस्कृति एवं कला परिषद ” की स्थापना नारायण दत्त तिवारी ने ही की।
इस दिग्गज कांग्रेसी नेता का नाता विवादों से भी रहा।
- जैविक पुत्र का मामला
लगभग 6 साल की लंबी अदालती लड़ाई लड़कर खुद को नारायण दत्त तिवारी का जैविक पुत्र साबित करने वाले रोहित शेखर तिवारी को मार्च 2014 में नारायण दत्त ने अपनी जैविक संतान के रूप में अपना लिया। तथा उनकी मां उज्ज्वला शर्मा से 2014 में 88 वर्ष की उम्र में विधिवत शादी की।और उन्हें पत्नी के रूप में अपनाया।
उज्वला शर्मा उनकी दूसरी पत्नी हैं।पहली पत्नी डां सुशीला तिवारी का 16 मई 1993 को कैंसर की बीमारी से न्यूयॉर्क में निधन हो गया था।
- “मेरी लाश पर उत्तराखंड बनेगा” जैसे विवादित बयान देने वाले नारायण दत्त तिवारी आखिरकार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने।और अपने ही बनाए हुए डॉ सुशीला तिवारी मेडिकल कॉलेज के गेट पर धरना दिया।
- 1994 में कांग्रेस से अलग होकर अर्जुन सिंह के साथ मिलकर एक नई पार्टी “कांग्रेस तिवारी” का गठन किया।
- 2009 में आंध्र के राज्यपाल रहते हुए कथित सेक्स स्कैंडल विवाद के चलते राज्यपाल पद से इस्तीफा देना पड़ा।
- उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाने के चक्कर में लोगों को लाल बत्ती जमकर बांटी। जिससे वह विवादों में आ गए।इसी विवाद से संबंधित एक चर्चित लोकगीत भी बना।
- कई लोगों ने उनका मजाक भी बनाया “ना मैं हूं नर, ना मैं नारी , मैं हूं संजय की सवारी, मेरा नाम है नारायण दत्त तिवारी”।
- उन पर राज्य की वेशकीमती व उपजाऊ कृषि भूमि को तबाह कर करने का भी आरोप लगा।
प्रधानमंत्री बनने की राह मे रोड़ा बनी चुनावी हार
मात्र 800 वोटों की हार ने देश का प्रधानमंत्री बनने के उनके सपने को तोड़ दिया।सन 1991 में लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान 21 मई 1991 को श्रीपेरंबदूर में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की बम विस्फोट में हत्या हो जाने के बाद पूरे देश में कांग्रेस के प्रति भारी सहानुभूति थी।
और इसी वजह से कांग्रेस भारी बहुमत से जीती।लेकिन Narayan Dutt Tiwari की किस्मत ने ऐन वक्त पर उन्हें धोखा दिया और नए-नए राजनीति में उतरे बलराज पासी से मात्र 800 वोटों से हार गए और प्रधानमंत्री बनते बनते रह गए।
कठोर निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता
जब निर्णय एक बार ले लेते थे उस बात को करके ही छोड़ते थे ।एक बार इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान गुंबद में सुबह तिरंगा फहरा कर दिखाने की अंग्रेज ऑफिसर की चुनौती को स्वीकार करते हुए उन्होंने पुलिस की सारी घेराबंदी को धता देकर सारी रात गुंबद से चिपक कर गुजार दिया।और गुंबद में सुबह-सुबह तिरंगा फहरा दिया।
शालीन व विनम्र स्वभाव होने के कारण उनके विरोधी भी उनके सामने नतमस्तक हो जाते थे ।उनमें कठोर निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता थी।
जानें …. क्या हैं इंडिया पोस्ट पेमेंट योजना ?
अपनी ईमानदारी, मेहनत, लगन, काबिलियत के बल पर वह राजनीति के शिखर पुरुष बन गए।लेकिन उनका प्रारंभिक जीवन बहुत ही संघर्षपूर्ण रहा।उन्होंने अथाह गरीबी व संघर्ष देखा।आर्थिक गरीबी के कारण अपने पिता के मित्र से 5 रुपए उधार लिए और इलाहाबाद पहुंच गये।
इलाहाबाद में भी टूशन पढ़ा कर उन्होंने अपनी गुजर -बसर कर अपनी पढ़ाई जारी रखी।उनका प्रशासनिक व राजनीतिक कौशल ही था कि उन्हें उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्य का मुख्यमंत्री बनने का गौरव मिला। वास्तव में वह देश के ऐसे अकेले ही नेता थे जिन्होंने 2 राज्यों में मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया।
Narayan Dutt Tiwari ने विदेश मंत्रालय, वित्त मंत्रालय, वाणिज्य उद्योग, श्रम सचिव जैसे अहम जिम्मेदारियों को संभाला।वो एक लोकप्रिय व कद्दावर नेता होने के साथ-साथ बहुत ही विनम्र स्वभाव के व्यक्ति भी थे। उत्तराखंड के जनमानस के बीच उनकी लोकप्रिय छवि हैं वो यहाँ विकास पुरुष के नाम से जाने जाते हैं।
एनडी (Narayan Dutt Tiwari) देश के उन चंद नेताओं में से हैं जो गांधी, नेहरू के दौर में सक्रिय राजनीति में रहे और उन्होंने गांधी परिवार की 3 पीढ़ियों के साथ काम किया।
एक विचित्र संयोग
यह एक विचित्र संयोग है कि इस विकास पुरुष ने अपने जन्मदिन (18 अक्टूबर ) के दिन ह़ी इस संसार से विदाई ली। 93 बसंत देख चुके एनडी तिवारी का निधन 18 अक्टूबर 2018 को दोपहर 2:50 मिनट में दिल्ली स्थित मैक्स अस्पताल में हुआ।उन्हें दिल का दौरा पड़ा।
उत्तराखंड का यह सपूत उत्तराखंड तथा देश के लोगों के दिलों में सदा सदा के लिए जीवित रहेगा।बहुमुखी प्रतिभा के धनी, सरल एवं मिलनसार, हंसमुख, आशावादी ,प्रखर पत्रकार, कुशल प्रशासक तथा इरादों के पक्के एनडी तिवारी ने 65 साल की अपनी राजनीतिक यात्रा में जो भी कार्य किए हैं वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत होंगे। उनको हमारी भावभीनी श्रध्दांजलि
वह अक्सर यही गुनगुनाते थे।
जब से सुना है मरने का नाम जिंदगी है,
सिर पर कफन लपेटे कातिल को ढूंढता हूं।
You are welcome to share your comments.If you like this post Then please share it.Thanks for visiting.
यह भी पढ़ें …
क्यों मनाया जाता हैं करवाचौथ ?
कहा हैं भगवान भोलेनाथ का गांव ?
क्या हैं नंदा गौरा कन्या धन योजना ?