International Workers Day कब और क्यों मनाया जाता है

International Workers Day ,Why is International Workers Day Celebrated ? Why International Workers Day is known as May day ?Aim and Benefits of International Workers Day , International Labor Day ,अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस या अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस ,अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस को मई दिवस (May Day ,1 मई) क्यों कहा जाता है ?

International Workers Day

महात्मा गांधी ने कहा था “किसी देश की तरक्की उस देश के कामगारों पर निर्भर करती है”।और यह सच भी है कि किसी भी देश के चहमुखी विकास के लिए वहां के मेहनतकश मजदूरों व कामगारों का अमूल्य योगदान होता है।क्योंकि बिना उनकी सहायता के कोई भी उद्योग धंधा, कंपनी, संग़ठन , संस्थान ठीक से पनप ही नही सकते है।

और कोई भी औद्योगिक ढांचा उनके बिना खड़ा ही नहीं रह सकता है।इन्ही कामगारों ,मजदूरों और मेहनतकश लोगों को समर्पित है यह “अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस या अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस/ International Workers Day” जिसे “मई दिवस” भी कहा जाता है।

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अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाने का उद्देश्य

(Aim to Celebrate International Workers Day)

अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस (International Workers Day) प्रतिवर्ष 1 मई को मनाया जाता है।International Workers Day दुनिया भर के श्रमिकों और कामगारों को समर्पित है।अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस (International Workers Day) का मुख्य उद्देश्य पूरी दुनिया में मजदूरों के अनुकूल माहौल बनाना , मजदूरों को उनके हक और अधिकारों के प्रति जागरूक करना है।

इसके अलावा काम के घंटे (8 घंटे) निश्चित करना, मजदूर उत्पीड़न व शोषण को कम करना,न्यूनतम मजदूरी कानून को लागू करना है।अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस का एक उद्देश्य अप्रवासी मजदूरों को लेकर जागरूकता फैलाना तथा मजदूरों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ना भी है।ताकि वो भी सम्मानित जीवन जीने को प्रेरित हो सकें।

अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस (International Workers Day) यानी 1 मई को सार्वजनिक अवकाश रखा जाता है।

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अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस/कामगार दिवस की शुरुआत

(International Workers Day History)

अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस या अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस (International Workers Day) मनाने की शुरुआत 1 मई 1886 को शिकागो में हुई थी।यह दौर था अमेरिका में औद्योगिक क्रांति का और इस औद्योगिक क्रांति में मजदूरों के ना तो काम करने के घंटे निश्चित है ना ही मजदूरी।

फलस्वरुप 18वीं सदी के मध्य में कई मजदूर संगठन अस्तित्व में आए।ऐसा माना जाता है कि सबसे पहला मजदूर संगठन इंग्लैंड में बना था।और 19वीं सदी के आरम्भ में अमेरिका में भी कई मजदूर संगठन पनप चुके थे।जो समय के साथ मजबूत होते चले गए।

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अब अमेरिका के मजदूर यूनियनों ने 8 घंटे से ज्यादा काम न करने व सप्ताह में एक दिन अवकाश की मांग का निश्चय किया।और इसके लिए अनेक मजदूर संगठनों ने मिलकर हड़ताल शुरू की।इसी हड़ताल के दौरान शिकागो के हेमार्केट में बम ब्लास्ट हुआ।जिससे वहां अफरा तफरी का माहौल पैदा हो गया।

उस समय की स्थिति को संभालने के लिए पुलिस ने मजदूरों पर गोलियां चला दी।जिसमें कई मजदूर घायल हुए तो,कई की मौत हो गई।इसके बाद सन 1889 में पेरिस “अंतरराष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन” में हेमार्केट नरसंहार में मारे गए निर्दोष श्रमिकों की याद में 1 मई को “अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस (International Workers Day) ” मनाए जाने की घोषणा की।

और मजदूरों के लिए 8 घंटे काम करने का समय निश्चित कर दिया गया।और सप्ताह में एक दिन अवकाश भी।वर्तमान में भारत सहित लगभग 80 देशों में श्रमिकों और कामगारों के लिए 8 घंटे काम करने से संबंधित कानून लागू है।

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भारत में श्रमिक दिवस की शुरुआत (National Workers Day in India)

भारत में श्रमिक दिवस मनाने ( National Workers Day in India) की शुरुआत 1 मई 1923 से हुई थी।इस दिवस की शुरुआत “भारतीय मजदूर किसान पार्टी” के नेता कामरेड सिंगरावेलू चेटयार ने चेन्नई यानी मद्रास में की थी।उस वक्त इसे श्रमिक दिवस ना कहकर “मद्रास दिवस” कहा जाता था।उन्होंने मद्रास हाईकोर्ट के सामने श्रमिकों के साथ एक बड़ा प्रदर्शन कर एक प्रस्ताव पास किया।

जिसमें यह कहा गया कि इस दिवस को कामगार दिवस के तौर पर मनाया जाए।और इस दिन श्रमिकों और कामगारों के लिए अवकाश रखा जाए। तथा उनके लिए 8 घंटे काम करने का समय निश्चित कर दिया जाय।तब से यह दिवस भारत में भी श्रमिक दिवस ( National Workers Day in India) के रूप में मनाया जाता है। और इस दिन सभी कामगारों/ श्रमिकों की छुट्टी रखी जाती हैं।

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अंतर्राष्ट्रीय मजदूर संस्था 

अंतर्राष्ट्रीय मजदूर संस्था संयुक्त राष्ट्र का एक अंग है।यह संस्था दुनिया भर के मजदूरों तथा कामगार लोगों के जीवन स्तर को सुधारने का काम करती है।1 मई को यह संस्था दुनिया के अलग अलग हिस्सों में रैली व जुलुस निकाल कर मजदूरों/श्रमिकों तथा कामगारों को उनके अधिकारों व उनसे संबन्धित क़ानूनों के प्रति जागरुक करने का काम करती हैं।

इसमें खास मुद्दे मजदूर उत्पीड़न, न्यूनतम मजदूरी और अप्रवासी मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए जागरूकता तथा मजदूरों के कानूनी अधिकार होते हैं।

श्रमिकों के लिए बनाये गये कानून (Law for Labor)

भारत के संविधान में भी श्रमिकों के अधिकारों को लेकर अनेक नियम बनाये गये हैं।जो श्रमिकों के अधिकारों के बारे में विस्तार से बताते हैं।

बालश्रम निषेध और विनियमन अधिनियम (1986 )

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1986 के बालश्रम निषेध और विनियमन अधिनियम में 14 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति के रूप में एक बच्चे को परिभाषित किया गया है।यानि 14 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति को बच्चा माना जायेगा।और बाल श्रम पर प्रतिबन्ध है।बाल श्रम एक दंडनीय अपराध है। 

  • भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों में शोषण और अन्याय के विरुद्ध अनुच्छेद 23 और 24 को रखा गया है।
  • अनुच्छेद 23 तस्करी व मजबूर श्रम पर प्रतिबंध लगाता है।14 साल से कम उम्र के किसी भी बच्चे से किसी फैक्ट्री या खदान में काम नहीं कराया जा सकता है।
  • अनुच्छेद 24 के अनुसार खतरनाक उद्योगों में बच्चों की नियुक्ति को दंडनीय अपराध माना गया।
  • अनुच्छेद 21-A में  6 से 14 वर्ष के आयु के सभी बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार प्रदान किया गया है।

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  • अनुच्छेद 39 जो राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित करता है कि बच्चों को दुर्व्यवहार के खिलाफ संरक्षित किया गया है।
  • अनुच्छेद-15 सरकार को ऐसे कानून व नीतियों बनाने का अधिकार देता है जो बच्चों के अधिकारों की रक्षा करते हो।
  • 2016 में बाल मजदूर अधिनियम में दो संशोधन किये गये

(1) 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए शिक्षा अधिकार अधिनियम के तहत शिक्षा अनिवार्य है

(2) किसी भी ऐसे व्यवसाय में जो खतरनाक की श्रेणी में आते हो (जैसे खनन ,आतिशबाजी ,विस्फोटक बनाने,तेज़ाब,रसायन बनाने और कारखाने में काम)में बच्चों के काम करने पर पूर्ण प्रतिबंध है

  • अगर कोई व्यक्ति छोटे बच्चों से काम करते हुए पकड़ा जाता है।तो उसे 3 महीने से लेकर 3 साल तक की सजा हो सकती है तथा साथ में जुर्माने की राशि को भी भरना अनिवार्य होगा। 

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बंधुआ मजदूरी उन्मूलन अधिनियम (1976)

बंधुआ मजदूरी उन्मूलन अधिनियम(1976) को लागू करके बंधुआ मजदूरी को देश से खत्म कर दिया गया है।इस अधिनियम के लागू होने से एक ओर जहां सारे बधुआ मजदूर गुलामी से मुक्त हुए।वही उनके कर्जों को भी समाप्त कर दिया गया।अब बंधुआ मजदूरी कराना कानूनन दंडनीय अपराध है।

फैक्ट्री कानून (1948)

फैक्ट्री कानून (1948) के तहत 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से फैक्ट्रियों काम कराना भी दंडनीय अपराध है।15 से 18 वर्ष तक के किसी बच्चे की फैक्ट्री में नियुक्ति से पहले उसकी शारीरिक जांच होनी आवश्यक है।

फैक्ट्री में काम करने से पहले अगर वह अधिकृत चिकित्सक द्वारा स्वस्थ पाये जाते हैं।तभी वह फैक्ट्री में काम कर सकते हैं।और वह भी सिर्फ दिन।और सिर्फ 4:30 घंटे तक ही काम कराया जा सकता है। रात में उनसे काम नहीं कराया जा सकता है।

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इतने कड़े नियम कानून होने के बाबजूद भी भारत में मजदूरों की हालत बहुत अच्छी नहीं है।वैसे तो कानून के हिसाब से मजदूरों/कामगारों के काम करने के 8 घंटे तय किए गए हैं।लेकिन कई कई जगहों पर कानून की धज्जियों उड़ा कर इससे भी कहीं ज्यादा घंटों तक काम कराया जाता है।और मेहनताना उससे काफी कम दिया जाता है।

बाल मजदूरों की दशा

अपने देश की बड़ी अजीब सी विडंबना है स्कूल जाने की उम्र में छोटे-छोटे बच्चे गली मोहल्लों में कूड़े के ढेरों में बैठकर कूड़ा बिनते हुए या सड़कों पर भीख मांगते हुए या किसी होटल या रेस्टोरेंट में झूठे बर्तन मांजते हुए या वेटर का काम करते हुए या फिर किसी दुकान में काम करते हुए आराम से दिख जाएंगे।

ये बच्चे अपने माता-पिता की खराब आर्थिक हालातों के कारण ना तो स्कूल जा पाते हैं और ना तो ढंग का खाना खा पाते हैं।बस दो जून की रोटी की तलाश में दिन भर काम करते रहते हैं।जिससे इनके शारीरिक,मानसिक और बौद्धिक विकास पर गहरा व बुरा असर पड़ता है।

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देश के हर नागरिक का कर्तव्य है कि जहां पर भी कोई भी बच्चा मजदूरी करता हुआ दिखे।उसे स्कूल जाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।और जो व्यक्ति इनसे बाल मजदूरी करते हुए पकड़ा जाय उसे भारतीय कानून के तहत कठोर दंड दिया जाए।ताकि बाल मजदूरी का जड़ से उन्मूलन हो सके।

2011 की जनगणना के अनुसार भारत में बाल मजदूरों की संख्या (5 से 14 वर्ष के बीच) लगभग 8.22 मिलियन थी।जबकि 2001 में यह संख्या लगभग 12.59 मिलियन थी।

महिला मजदूरों की दशा

आज भी कार्य स्थलों पर महिला मजदूरों और पुरुष मजदूरों के बीच भेदभाव किया जाता है।महिला मजदूरों की मजदूरी पुरुष मजदूरों से कम ही होती है।जबकि कार्य दोनों के ही बराबर होते है।साथ ही कार्य स्थलों पर महिलाओं के लिए कोई भी विशेष सुविधाएं नहीं होती।

कार्य स्थलों में भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं।उनके साथ दुर्व्यवहार, लैंगिक भेदभाव सामान्य सी बात हो गई है। महिलाओं से संबंधित किसी भी कानून का कड़ाई से पालन नहीं किया जाता है।

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मजदूरों/श्रमिकों तथा कामगारों की किसी भी देश के राष्ट्र निर्माण में अहम भूमिका होती है।उस देश की अर्थव्यवस्था,उत्पादन क्षमता तथा चहमुखी विकास व खुशहाली इन्हीं मजदूरों के हाथों से  होकर गुजरती हैं।क्योंकि इनकी अथक मेहनत और दृढ़ संकल्प तथा विषम परिस्थितियों में भी कार्य करने की क्षमता ही देश को विकास के पथ पर अग्रसर करती है।

सिर्फ अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाने से कुछ नहीं होगा।जरूरत है इन लोगों की हालत को सुधारने की।इनकी मेहनत ,लगन और दृढ़ संकल्प के बदले इन्हें पूरे सम्मान के साथ साथ इनकी आर्थिक स्थिति को सुधारने की। 

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