Deewano ki Hasti Class 8 Explanation :
Deewano ki Hasti Class 8 Explanation
दीवानों की हस्ती कविता का सारांश
Note – “दीवानों की हस्ती” कविता के भावार्थ को हमारे YouTube channel में देखने के लिए इस Link में Click करें । YouTube channel link – (Padhai Ki Batein / पढाई की बातें)
इस कविता के कवि “भगवती चरण वर्मा जी” है। इस कविता में कवि ने अपने मस्त-मौला और खुशमिजाज स्वभाव के बारे में बात कर लोगों को एक स्पष्ट संदेश दिया हैं कि इस सुख , दुःख भरी दुनिया में मनुष्य को कैसे जीना चाहिए और कैसे अपने अंदर सकारात्मक विचारों को बनाये रख कर एक प्रसन्न व आनंदमय जीवन जीया जा सकता हैं।
सुख और दुख , जीवन रूपी सिक्के के दो पहलू हैं। इसीलिए उन से विचलित नहीं होना चाहिए। सुख और दुख को एक समान भाव से देखते हुए जीवन में निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए। लोगों से उनकी अच्छी बातें ग्रहण करनी चाहिए और लोगों को भी अपने अंदर की कुछ अच्छी बातें सिखानी चाहिए।
कवि अपने मस्त-मौला स्वभाव के कारण एक स्थान पर टिक नहीं पाते हैं। इसीलिए एक जगह से दूसरी जगह जाते रहते हैं। लेकिन जहाँ पर भी जाते हैं वहाँ लोगों के सुख-दुख बाँटकर माहौल को खुशनुमा बनाने की कोशिश करते हैं । दुनिया के सभी लोगों को अपना समझ कर राग-द्वेष से ऊपर उठकर , सभी के साथ एक जैसा व्यवहार करते हैं। इसीलिए उनके जाने के बाद लोग उनको याद करते हैं।
कवि चलते-चलते भी लोगों से कुछ अच्छी व ज्ञान की बातें सीखते हैं और कुछ सच्ची बातें उनको भी सिखाते हैं। कवि के अनुसार इस दुनिया में लोग प्रेम के मामले में बहुत गरीब हो चुके हैं लेकिन वो अपनी प्रेम की दौलत को बेफिक्र होकर लोगों में खूब लुटाते हैं। जीवन चलते रहने का नाम है। इसीलिए सुख दुख से विचलित हुए बैगर जीवन में सदैव आगे बढ़ते रहने में ही समझदारी है।
कवि अपनी मर्जी से रिश्त नातों , स्वार्थ , अपने पराये , माया मोह आदि के बंधनों तोड़ कर जीवन के सफर में आगे बढ़ चुके हैं। अर्थात उन्होंने संसार के सभी बंधनों , रिश्ते नातों , अपना-पराया , राग-द्वेष के बंधनों से मुक्ति पा ली है। वो “बसुधैवकुटंबकुंम यानि सारी दुनिया ही मेरा परिवार हैं और इसमें रहने वाले सभी मेरे अपने हैं” की भावना मन में रख कर जीते हैं।
दीवानों की हस्ती का भावार्थ
काव्यांश 1.
हम दीवानों की क्या हस्ती,
हैं आज यहाँ, कल वहाँ चले,
मस्ती का आलम साथ चला,
हम धूल उड़ाते जहाँ चले।
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि हम जैसे मस्त-मौला लोगों का स्वभाव या व्यक्तित्व कुछ अलग , कुछ अनोखा ही होता हैं। हमारा कोई निश्चित ठौर-ठिकाना भी नहीं होता है। हम आज इस जगह पर हैं तो कल किसी और स्थान की तरफ चले जाते हैं अर्थात हम कभी भी एक स्थान पर टिके नहीं रहते हैं।
लेकिन हमारा स्वभाव कुछ ऐसा होता है कि हम बेफिक्र होकर जहां भी चले जाते हैं। हमारे साथ – साथ हमारा खुशनुमा स्वभाव व लोगों के सुखों व दुखों को बांटने की आदत भी हमारे साथ जाती हैं। और फिर अपने प्रसन्न व फक़्कड़ स्वभाव से हम उस जगह पर भी खुशियाँ बिखेर देते हैं ।
काव्यांश 2.
आए बन कर उल्लास अभी,
आँसू बन कर बह चले अभी,
सब कहते ही रह गए, अरे,
तुम कैसे आए, कहाँ चले
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि वो जहां भी जाते हैं। अपने मस्त-मौला स्वभाव के कारण वहां के माहौल को खुशनुमा बना देते हैं। साथ में वो लोगों के दुखों को बांटने का भी प्रयास करते हैं। इसलिए उनके आ जाने से लोग प्रसन्न हो जाते हैं और उनके चले जाने पर लोग दुखी हो जाते हैं जिस कारण उनके आँखों से आंसू निकल आते हैं।
ऐसे लोगों के साथ रहने पर लोगों को समय कैसे निकल (बीत) गया। इस बात का पता ही नहीं चलता हैं और कवि जैसे मस्त मौला स्वभाव के लोग एक स्थान पर अधिक समय तक टिक कर नहीं रह सकते हैं। अपने स्वभाव के अनुरूप वो निरंतर आगे बढ़ते रहते हैं। इसीलिए लोग कवि से कहते हैं कि आप तो अभी-अभी ही आए थे और अभी जाने भी लगे हैं।
यहां पर कवि लोगों को स्पष्ट संदेश देना चाहते हैं कि रुकने का नाम नहीं बल्कि चलते रहने का नाम जिन्दगी है। इसीलिए जीवन में निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए।
काव्यांश 3.
किस ओर चले ? यह मत पूछो,
चलना है, बस इसलिए चले,
जग से उसका कुछ लिए चले,
जग को अपना कुछ दिए चले,
भावार्थ –
कवि अपने घुमक्क्ड स्वभाव के कारण लोगों से यह कह रहे हैं कि हम किस तरफ चल पड़ेंगे। यह हमें खुद भी नहीं पता हैं क्योंकि हमारी कोई निश्चित मंजिल नहीं है। पता – ठिकाना नही है। बस चलते जाने की हमारी आदत है। इसलिए हम निरन्तर चलते जाते हैं।
चूंकि कवि पल दो पल के लिए जहां भी ठहरते हैं। अपने मस्तमौला स्वभाव के कारण लोगों में निस्वार्थ भाव से प्रेम बाँटते हैं। उनका सुख-दुख बाँटते हैं। उनसे कुछ अच्छी व ज्ञान की बातें सिखाते हैं। और कुछ सच्ची बातें उनको भी सिखाते हैं।
इसीलिए कवि कहते हैं कि मैंने इस संसार के लोगों से बहुत कुछ सीखा हैं और आगे बढ़ने से पहले मैंने भी हमेशा इस संसार के लोगों को थोड़ा किसी न किसी रूप में अवश्य वापस किया हैं।
काव्यांश 4.
दो बात कही, दो बात सुनी।
कुछ हँसे और फिर कुछ रोए।
छककर सुख-दुख के घूँटों को
हम एक भाव से पिए चले।
भावार्थ –
उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि हम जहाँ भी जाते हैं वहाँ पर लोगों की सुख-दुःख भरी बातें को सुन लेते हैं और अपने दिल की बात भी लोगों से कर लेते हैं। कभी-कभी उनकी खुशियों भरी बातों को सुनकर हम उनके साथ हँस लेते हैं तो कभी उनके दुःख से दुखी होकर रो भी पड़ते हैं।
सुख व दुःख , दोनों भावनायें हमारे लिए एक समान ही हैं। हम लोगों की दोनों तरह की बातों को एक समान भाव से सुनते हैं। सुखी व्यक्ति के साथ उसकी खुशी बाँट कर उसको दुगना करने की कोशिश करते हैं , तो दुखी व्यक्ति के दुख को सुनकर अपने मधुर वचनों से उसको दिलासा देकर उसके दुखों को आधा करने का प्रयास करते हैं।
यानि लोगों के सुख में हँस लेते हैं तो उनके दुख में दुखी होकर रो भी जाते हैं। पर हम सुख और दुःख दोनों को एक समान भाव से देखते हैं। उसको सुनते हैं और आगे बढ़ जाते हैं। यहां पर कवि लोगों को संदेश देना चाहते हैं कि इस दुनिया के दुख में ज्यादा दुखी और सुख में ज्यादा खुश होने की जगह , दोनों को एक समान भाव से देखो और आगे बढ़ते रहो।
काव्यांश 5.
हम भिखमंगों की दुनिया में,
स्वच्छंद लुटाकर प्यार चले,
हम एक निसानी – सी उर पर,
ले असफलता का भार चले।
भावार्थ –
कवि कहते हैं कि ये पूरा संसार भिखारी है। जो हरदम या तो एक दूसरे से या भगवान से रुपया-पैसा , धन दौलत मांगते ही रहते हैं यानि स्वार्थ भरी इस दुनिया में धन दौलत तो सबको चाहिए लेकिन प्रेम की दौलत को चाहने वाले बहुत कम है जिस वजह से लोगों के पास प्रेम की दौलत की कमी हो गयी हैं। इसीलिए कवि इस दुनिया को “भिखमंगों की दुनिया” कहते हैं।
कवि कहते हैं कि वो प्रेम के मामले में बहुत अमीर हैं। इसीलिए वह दुनिया भर वालों में पूरी आजादी से अपना प्यार व अपनी खुशियां लुटाते रहते हैं फिर भी उनकी दौलत कभी कम नहीं होती है बल्कि बढ़ती ही जाती है।
कवि अपना प्यार व खुशियां लोगों में खुले हृदय से बांटते रहते हैं और उनके दुख और परेशानियों को भी कम करने की कोशिश करते हैं। अगर किसी के दर्द या परेशानी को कम करके उसके चेहरे पर मुस्कुराहट नहीं भी ला पाते हैं तो उसे अपनी असफलता मानकर उसकी जिम्मेदारी का भार खुद अपने सिर पर लेकर आगे बढ़ जाते हैं।
काव्यांश 6.
अब अपना और पराया क्या?
आबाद रहें रुकने वाले!
हम स्वयं बँधे थे और स्वयं
हम अपने बँधन तोड़ चले।
भावार्थ –
कवि कहते है कि हमारे लिए इस दुनिया में न कोई अपना हैं न कोई पराया। सब मेरे लिए एक समान हैं यानि मेरे लिए सारा संसार एक परिवार हैं और यहाँ रहने वाले सभी लोग मेरे लिए एक समान हैं । वो एक जगह टिक कर अपने लिए धन-सम्पति इकठ्ठा करने वालों , माया मोह , लोभ लालच में फंसे लोगों को दिल से दुआएं देते हैं कि सब लोग आबाद रहें व खुशहाल रहें।
कवि आगे कहते है कि हम अपनी मर्जी से रिश्ते-नाते , स्वार्थ , अपने पराये , माया मोह आदि के बंधनों में बंधे थे । लेकिन अब हम इन सब बंधनों को खुद ही तोड़ कर जीवन के सफर में आगे बढ़ चुके हैं। अर्थात हमने संसार के सभी बंधनों रिश्ते नाते , अपना-पराया , राग-द्वेष के बंधनों से मुक्ति पा ली है।
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