Yarsagumba medicine ,यारसागुम्बा ,हिमालय में पाई जाती है दुनिया की सबसे महंगी फंगस, हिमालय की वियाग्रा Yarsagumba – A Miracle Himalayan Herb,Yarsagumba as a medicine, Himalayan Viagra in hindi
Yarsagumba Medicine
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाई जाती है एक ऐसी जड़ी जो सर्दियों(जाडे) में होती है एक कीड़ा और गर्मीयों के आते ह़ी बदल जाती है एक छोटे से पौधे के रूप में।यारसागुम्बा यानि कीड़ा जड़ी।हाल के कुछ वर्षो में इस जीव-बनस्पति ने अपने औषधीय गुणों के कारण खूब सुर्खियों बटोरी हैं।
यारसागुम्बा की खास बात यह है कि यह एक कीड़ा होते हुए भी इसको आयुर्वेद में जड़ी बूटी की श्रेणी में रखा गया है। और इसको दवा के रूप में खाने से कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता है।और यह एक महंगी जडीबूटी है। इसकी कीमत हजारों में नहीं लाखों तक हो सकती हैं।
Yarsagumba Cordyceps Sinensis
क्या आपको दुनिया की एक ऐसी विचित्र सी जड़ी के बारे में पता जो सर्दियों में एक कीडे़ के रूप में अपना जीवन गुजारता है।यानी लगभग 6 माह में अपना जीवन चक्र पूरा करता है।और फिर वह एक पौधे के रूप में बदल जाता है। इस जड़ी का नाम है यारसा गुंबा।यारसा गुंबा का वनस्पतिक नाम का काॅर्डिसेप्स साइनेन्सिस है।
उपलब्ध क्षेत्र (Yarsagumba Availability in India)
Yarsagumba मुख्य रूप से उच्च हिमालयी क्षेत्रों में खासकर बर्फ से ढके हुए इलाकों में 3000 से 4000 मीटर की ऊंचाई पर या उससे ऊपर तथा हिम शिखरों की तलहटी में पाया जाता है।यारसा गुंबा मुख्यतया सिक्किम, कुमाऊं के उच्च हिमालयी क्षेत्र, तिब्बत, नेपाल ,भूटान, अरुणाचल एवं चीन के सिचुवान ,किंधाई, जिझांग आदि जगहों पर मुख्य रूप से पायी जाती है।
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के उच्च हिमालई क्षेत्रों जैसे धारचूला,मुनस्यारी के विकास खंडों जैसे दरमा ,व्यास , जोहर ,चौदांस, तथा छिपला कोट क्षेत्र में यह पाया जाता है।मुनस्यारी क्षेत्र में यह पंचचूली ,नागिनीधूरा ,नामिक ,छिपलाकोट आदि क्षेत्रों में अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है।
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जडी का उत्पत्ति ( Yarsagumba Keeda Jadi or Yarsagumba Medicine )
यारसागुंबा (Yarsagumba )एक तिब्बती भाषा का शब्द है जिसमें यारसा का मतलब है सर्दियों का कीड़ा और गुंबा का मतलब है गर्मियों का पौधा । इसीलिए इसे कीड़ा घास या कीड़ा जड़ी का नाम दिया गया है। इस जडी का उत्पत्ति दो भागों में होती है।यह जड़ी एक फंगस पैरासाइट है।जो मौस (कैटरपिलर) के लारवा (कूचकीडा) में पैदा होती है।
यह कैटरपिलर सिर्फ उच्च हिमालयी क्षेत्रों में उगने वाली कुछ खास किस्म की घास पर ह़ी पैदा होते है।और उन्ही पर अपना 6 माह का जीवन चक्र पूरा करते हैं।इन्ही कैटरपिलरों को एक परजीवी फफूंद हमला कर धीरे-धीरे मारकर मिट्टी के नीचे दबा देती है।
और कुछ समय बीतने के बाद इसी मरे हुए कैटरपिलर के पिछले हिस्से से धीरे-धीरे फफूंद उगने लगती है। और जो समय के साथ धीरे-धीरे एक छोटे से पौधे का रुप ले लेती हैं। इसे ही कीड़ाजड़ी कहते हैं।
What is Yarsagumba
यह जड़ी आधा पौधा और आधा कीडा होती है क्योंकि यह फंगस एक परजीवी फंगस है।जो सीधे-सीधे मिट्टी में नहीं उग सकती है।इसलिए यह कैटरपिलर के ऊपर उगती है।जब हिम शिखरों में बर्फ पिघलने लगती है तो यह पनपती है।इसका रंग भूरा या नारंगी लाल होता है।इसकी लंबाई लगभग 2 से 3 इंच के बीच में होती हैं।तथा इसका वजन करीब 5 ग्राम से 9 ग्राम के बीच में होता है।
यारसा गुंबा की खोज
ऐसा माना जाता है कि यारसागुंबा (Yarsagumba) की खोज आज से लगभग 1500 वर्ष पूर्व तिब्बती चरावाहों द्वारा की गई थी। ये चरावाहे अपने खच्चरों व याकों को ऊंचे-ऊंचे हिमालयी क्षेत्रों के घास के मैदानों में घास चराने हेतु ले जाते थे। तब उन्होंने अनुभव किया कि एक विशेष मौसम (जून – जुलाई) में ये जानवर एक विशेष प्रकार की फंगस घास को खाकर अत्यधिक ऊर्जावान हो जाते थे।
धीरे-धीरे उनकी दिलचस्पी इस वनस्पति के बारे में बढ़ गई। और फिर Yarsagumba के औषधीय गुणों की पहचान हो पाई।इस Yarsagumba के औषधीय गुणों को देखते हुए मिंग साम्राज्य के राज वैद्य ने इससे एक शक्तिशाली अर्क बनाने का तरीका ढूंढ लिया जिससे वो कई रोगों का इलाज करते थे।भारत में यारसा गंबू की खोज एक दशक पूर्व तिब्बत के लामाओं द्वारा की गई।
औषधीय गुण ( Yarsagumba Medicine)
Yarsagumba को औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। Yarsagumba में विटामिन बी12 , मेनिटाॅल , काॅर्डिसेपिक अम्ल,इरगोस्टीराॅल तथा काॅर्डिसेपिन 3′ डीआक्सीएडेनोसीन (C10H13N5O3) पाया जाता हैं। इस कीड़ा जड़ी में सबसे अधिक काॅर्डिसेपिन 3′ डीआक्सीएडेनोसीन 25 से 35% तक पाया जाता है। इस कीड़ाजड़ी में प्रोटीन, विटामिन, एसिड़ की भरपूर मात्रा पाई जाती है इसलिए इसको औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।इसलिए यह प्राकृतिक रूप से वियाग्रा हैं।
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औषधि के रूप में प्रयोग (Yarsagumba Fungus Uses)
Yarsagumba कई रोगों को दूर करने में एक औषधि ( Yarsagumba Medicine) के रूप में काफी कारगर है।कोलेस्ट्रॉल व ब्लड प्रेशर को कम करता है। इम्यून सिस्टम को ठीक करता है।खांसी तथा जुकाम में राहत देता है।याददाश्त को दुरुस्त करता है।
दिमाग को तरोताजा रखता है।तनाव को दूर भगाने के काम भी आता है।Anti- Aging गुण पाए जाने के कारण व्यक्ति को युवा व ऊर्जावान बनाए रखता है।तथा बुढ़ापे को बढ़ने से रोकता है।Yarsagumba Medicine के रूप में शारीरिक ताकत को बढ़ाता है।
सांस की बीमारी, गुर्दे की बीमारी को रोकने में सहायक होता है।फेफड़े, अस्थमा, किडनी की बीमारियों को दूर भगाने में मदद करता है।टूटी हड्डियों को तुरंत जोड़ने के काम आता है।तथा हड्डियों को मजबूती भी प्रदान करता है।शारीरिक शक्ति को बढ़ाता है।पुरुषों में यौन शक्ति को बढ़ाने के काम आता है। नपुंसकता को भी दूर करता है। गठिया, वात को दूर करने में भी सहायक होता है।
Yarsagumba Medicine के रूप हेपेटाइटिस बी, मधुमेह, कर्करोग को दूर करने में भी सहायक होता है। ऐसा माना जाता है खांसी ,दमा, नपुंसकता, ऐठन, जोड़ों के दर्द एवं लंबी बीमारी की दुर्बलता का इलाज भी इसकी महज कुछ खुराक से ही संभव हो जाता है।शरीर को क्षमतावान बनाता है।इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत अधिक मात्रा में होती हैं।
दोहन
इस जड़ी का दोहन मुख्य रुप से माह जून तथा जुलाई में किया जाता है।
बाजार में अत्यधिक मांग ( Yarsagumba Cost)
अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी अत्यधिक मांग है। इसी कारण इस जड़ी का मूल्य बहुत अधिक है।मलेशिया, चीन, ब्रिटेन, जापान, थाईलैंड में इस जड़ी की कीमत बहुत अधिक है। भारत में भी यह 30,000 से लेकर 50,000 रुपए किलो तक बिकती है।कभी-कभी यह इससे भी ज्यादा कीमत पर बिकती हैं। भारत में यह पूरी तरह से प्रतिबंधित है।लेकिन फिर भी चोरी छुपे लोग इसका दोहन कर इस को बाजार में बेचते हैं।
Yarsagumba Uses
यह जड़ी का प्रयोग वैसे तो हर व्यक्ति अपनी जरूरत और रोग के हिसाब से करता है। लेकिन इस जड़ी के मांग ज्यादातर खिलाड़ी या खेल में रुचि रखने वाले व्यक्ति करते हैं।वो इस का प्रयोग शरीर को ऊर्जावान बनाए रखने के लिए तथा शरीर को स्वस्थ रखने के लिए करते है।
जब चीन के कई खिलाड़ियों ने इसका सेवन कर कई सारे मेडल हासिल किए।तब यह जड़ी अचानक ही खिलाड़ियों के बीच चर्चा का विषय बन गई।और बीजिंग ओलंपिक में इस जड़ी की मांग इतनी अधिक हो गयी कि इसकी कीमत लगभग 5 लाख प्रति किलो तक पहुंच गयी। उस वक्त इस जड़ी के विक्रेताओं ने अत्यधिक मुनाफा कमाया।
जड़ी की उपलब्धता में गिरावट
लेकिन लगातार व अत्यधिक दोहन के कारण तथा ग्लोबल वार्मिंग के कारण इस जड़ी की उपलब्धता में गिरावट आई है ।यह जड़ी पहले बहुत अधिक मात्रा में उगती थी।लेकिन अब हाल के वर्षों में इसमें काफी कमी आई है।उपलब्धता कम होने के कारण और अपने दुर्लभ औषधि गुणों के कारण यह जड़ी अत्यधिक महंगी मिलती है।
सीमांत इलाकों तथा उच्च हिमालय क्षेत्र के नजदीकी ग्रामीणों के लिए तो यह आय का मुख्य स्रोत बन गया है। हर साल ग्रामीण इन क्षेत्रों में जाकर इस जड़ी का अत्यधिक मात्रा में दोहन करते हैं। तथा इसे बाजार में ऊंची कीमत में बेचकर अत्यधिक लाभ कमाते हैं। इसी वजह से सीमांत क्षेत्र की संस्कृति में भी जबरदस्त बदलाव आया है।
साल-दर-साल बढ़ते इस जड़ी घास की कीमतों ने इन ग्रामीणों की जिंदगी में काफी परिवर्तन ला दिया है।कई ग्रामीण तो आर्थिक रुप से अत्यधिक सम्पन्न हो गये है।हर साल मई-जून के महीने में ये ग्रामीण इसी क्षेत्र में प्रवास कर इस जड़ी का अधिक से अधिक मात्रा में दोहन करते हैं।इस समय सीमांत क्षेत्रों में गांव के गांव खाली हो जाते है क्योंकि अधिकतर लोग इस जडी का दोहन करने पूरे परिवार के साथ निकल जाते हैं।
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सीमांत क्षेत्र में गरीबी व अत्यधिक पैसे की चाह के वजह से इस कीड़ाजड़ी का अनियंत्रित दोहन किया जाता हैं।ग्रामीण इस जड़ी का दोहन कर स्थनीय ठेकेदारों को बेच देते हैं।और ये ठेकेदार फिर आगे देश या विदेशो में ले जा कर बेचते है।और मोटा मुनाफा कमाते है।
इसी मोटे मुनाफे व प्रतिबंधित होने के कारण लोग इसे तस्करों के हाथो बेचने से भी परहेज नहीं करते।चीन में इस जडी के जबरदस्त मांग हैं।वहा यह 20 लाख रुपये प्रति किलो तक या उससे ऊची कीमत पर बिकती हैं।इसीलिए एक ओर जहां हिमालय उपज का अत्यधिक पैसा विदेशों में चला जाता है वही इस औषधि पौधे के अनियंत्रित दोहन पर प्रदेश सरकार की नीतियां भी नाकाफी हुए हैं।
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