An Essay On Teacher’s Day In Hindi : शिक्षक दिवस पर निबन्ध

An Essay On Teacher’s Day In Hindi :

An Essay On Teacher’s Day In Hindi

शिक्षक दिवस पर हिन्दी निबन्ध

Content 

  1. प्रस्तावना (Introduction)
  2. शिक्षक दिवस मनाने का उद्देश्य ( Aim of Teacher’s Day Celebration )
  3. क्यों मनाया जाता हैं शिक्षक दिवस (Why Teacher’s Day Celebrated)
  4. शिक्षक दिवस कैसे मनाया जाता है ( How Teacher’s Day Celebrated )
  5. जीवन में शिक्षक की भूमिका
  6. उपसंहार

प्रस्तावना (Introduction)

“गुरु गोविंद दोऊ खड़ेकाके लागू पाय बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए।” अर्थात गुरु और भगवान दोनों ही मेरे सामने खड़े हैं। मैं पहले किसे प्रणाम करूं। मै तो पहले गुरु को ही प्रणाम करूंगा , क्योंकि गुरु ने ही मुझे उस परम् पिता तक पहुंचने का मार्ग बताया है।

उक्त दोहे से ही गुरु की महत्ता समझ में आ जाती है। क्योंकि गुरु ही अपने शिष्यों को अज्ञानता के अंधेरे से निकाल कर उसके अंदर ज्ञान की ज्योति जला कर उसे प्रकाशमान करते हैं। गुरु का अर्थ ही होता है अंधकार से प्रकाश की तरफ ले जाने वाला “इसीलिए शिक्षक का स्थान किसी भी समाज में सदैव ऊँचा ही होता हैं।

शिक्षक दिवस मनाने का उद्देश्य ( Aim of Teacher’s Day Celebration )

भारत में गुरुजनों या शिक्षकों को हमेशा ही सर्वोच्च स्थान दिया गया है।यूं तो गुरुजनों का सम्मान हर दिन ही किया जाना आवश्यक हैं।लेकिन साल का एक दिन यानि 5 सितंबर विशेष रूप से शिक्षकों को समर्पित है।हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।

गुरु या शिक्षक ही हैं जो छात्र को अच्छी शिक्षा देकर , जीवन में हर परिस्थिति का सफलतापूर्वक सामना करना सिखाते हैं ।और जीवन में निरन्तर आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। अपने उन्हीं गुरुजनों के प्रति कृतज्ञता व सम्मान जताने के लिए शिक्षक दिवस मनाया जाता है।

क्यों मनाया जाता हैं शिक्षक दिवस (Why Teacher’s Day Celebrated)

भारत में शिक्षक दिवस एक महान शिक्षाविद , उच्च विचारक तथा भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉसर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।।डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म सितंबर 1888 को हुआ था।डॉ राधाकृष्णन राष्ट्रपति बनने से पहले दर्शनशास्त्र के प्रोफ़ेसर थे।वो अपने छात्रों के लिए पूर्ण समर्पित भाव से शिक्षण का कार्य करते थे।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के छात्र उनका अत्यधिक सम्मान करते थे। इसीलिए वो उनका जन्म दिवस मनाना चाहते थे। लेकिन डॉ राधाकृष्णन ने अपने जन्म दिवस को संपूर्ण शिक्षकों के सम्मान के लिए समर्पित कर इसे शिक्षक दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया।सन 1962 से हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस पूरे देश में मनाये जाने लगा।

शिक्षक दिवस कैसे मनाया जाता है ( How Teacher’s Day Celebrated )

शिक्षक दिवस का दिन अपने शिक्षकों के प्रति प्यार व सम्मान जताने का दिन हैं।तथा उस सब के लिए उनको धन्यबाद कहने व उनके प्रति आभार व्यक्त करने का दिन है जो उन्होंने आपके लिए किया।शिक्षक दिवस के दिन सभी शिक्षण संस्थाओं में स्कूली बच्चों द्वारा अपने शिक्षकों के प्रति आदर व सम्मान जाहिर किया जाता है।तथा उन्हें उपहार या फूल भेंट किये जाते है।

शिक्षक दिवस के दिन स्कूलों , कालेजों तथा सभी सरकारी व प्राइवेट शिक्षण संस्थाओं में शिक्षकों के सम्मान में अनेक रंगारंग कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।शिक्षक दिवस पर शिक्षकों को अभिभावकों , गैर सरकारी संस्थाओं तथा सरकार की तरफ से भी सम्मानित भी किया जाता है।

जीवन में शिक्षक की भूमिका

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:। , गुरुर्साक्षात् परमब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः।

अर्थात गुरु ही ब्रह्मा हैं।गुरु ही विष्णु हैं।गुरु ही साक्षात शिव हैं।और गुरु ही परम पिता परमेश्वर हैं ।अतः उस गुरु को हम सब का प्रणाम है।

एक बच्चे के लिए पहली शिक्षक उसकी मां होती है।माँ ही बच्चे का इस संसार से परिचय कराती है।उसे अच्छे संस्कार देकर जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। और उसका परिचय ज्ञान देने वाले गुरु से कराती है।बच्चे के लिए माता पिता के बाद शिक्षक ही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण व्यक्ति होता है।

किसी भी बच्चे का चरित्र निर्माण करने में , उसका भविष्य उज्जवल बनाने में तथा उसे सर्वश्रेष्ठ इंसान बनाने में , देश का एक सभ्य व संस्कारवान नागरिक बनाने में शिक्षक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।बच्चे भी अपने शिक्षक के प्रति अथाह प्यार व विश्वास रखते हैं।

बच्चों के लिए एक शिक्षक उस कुम्हार की तरह है जो गीली कच्ची मिट्टी को आकार देकर एक सुंदर से बर्तन में बदल देता है। इसी तरह शिक्षक भी अपने छात्रों को कभी निस्वार्थ प्यार देकर , तो कभी आखें दिखाकर , अपने अथक परिश्रम से उसे ज्ञान देकर , निराशा में भी आशा की ज्योति जलाकर , उसके सुंदर सपनों को हौसला देकर , उसे उसकी कामयाबी का विश्वास दिलाकर, हर पल आगे बढ़ने को प्रेरित करता है।

शिक्षा और शिक्षक का पेशा बिल्कुल अलग है क्योंकि शिक्षक तो वह दीया है जो जलकर अपने छात्रों के अंदर ज्ञान की रोशनी भर देता है। गुरु के पास तो अथाह ज्ञान होता है।अब यह शिष्य पर निर्भर करता है कि वह अपने गुरु से कितनी शिक्षा ग्रहण कर सकता है।और उसको अपने जीवन में कितना आत्मसात कर पाता है

भले ही छात्र कितनी भी तरक्की क्यों ना कर ले।उसका स्थान शिक्षक के चरणें में ह़ी माना गया हैंकिसी भी देश व समाज का चरित्र व उन्नति बहुत हद तक उसके शिक्षकों पर निर्भर करती हैं

भारतीय संस्कृति का हिस्सा गुरु शिष्य परंपरा 

गुरु-शिष्य परंपरा इस देश की सदियों पुरानी परंपरा का हिस्सा है।पहले छोटे-छोटे बच्चे गुरुकुल में जाकर गुरुजनों के सानिध्य में रहकर शिक्षा ग्रहण करते थे।बदलते समय के साथ-साथ गुरुकुल की जगह स्कूल , कॉलेजों ने ले ली।और गुरुजनों की जगह शिक्षकों ने ले ली।लेकिन उद्देश्य आज भी वही पुराना है शिक्षा देना और शिक्षा ग्रहण करना।

ऐसे अनेक उदाहरण हैं। जो गुरु शिष्य की श्रेष्ठ परंपरा को दिखाते हैं। जैसे अर्जुन-द्रोणाचार्य , कर्ण -परशुराम , राम-वशिष्ठ मुनि  , भगवान कृष्ण – गुरु सांदीपनि , चंद्रगुप्त-चाणक्य  , शिवाजी-रामदास ,स्वामी विवेकानंद -श्री रामकृष्ण परमहंस ,महात्मा गांधी – दादाभाई नौरोजी आदि।

शिक्षकों  शिक्षण संस्थानोंं का बदलता स्वरूप 

हालांकि आघुनिक समय में शिक्षा को भी एक व्यवसाय में बदल दिया गया है।कई प्राइवेट स्कूल व कॉलेजों में तो फीस व अन्य खर्चे इतने ज्यादा है कि वहां पर गरीब बच्चे तो पढ़ने की सोच ही नहीं सकते।

और कई शिक्षकों व शिक्षण संस्थानोंं ने तो इस पेशे को पैसा कमाने का एक साधन बना दिया है। कई बार तो अभिभावकों को‌ अपने बच्चों को अच्छे शिक्षण संस्थानों में पढ़ाने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाना पड़ता है।

उपसंहार

हर छात्र को अपने शिक्षक का आदर सम्मान करना चाहिए।विपरीत परिस्थितियों में भी कभी अपने गुरु की आलोचना या गुरु का अपमान कभी नहीं करना चाहिए।सदैव अपने शिक्षक के लिए समर्पित व विनम्र रहना चाहिए। क्योंकि शिक्षक ही वह व्यक्ति हैं जो आपको अंधकार से प्रकाश की तरफ , अज्ञान से ज्ञान की तरफ ले जाता है।

चाहे प्राचीन काल हो , चाहे वर्तमान या फिर भविष्य , शिक्षक की आवश्यकता हर युग में हमेशा ही बनी रहेगी। और शिक्षक का महत्व व दर्जा हमेशा ही ऊंचा रहेगा। क्योंकि हर आने वाली पीढ़ी को ज्ञान की आवश्यकता तो होगी ही होगी।इसीलिए अलेक्जेंडर महान ने कहा “मै जीवन  के लिए पिता का ऋणी हूँ पर अच्छा जीने के लिए गुरु का

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