Lakh Ki Chudiyan Class 8 Summary :
लाख की चूड़ियाँ कक्षा 8 सारांश
Lakh Ki Chudiyan Class 8 Summary
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इस कहानी के लेखक कामतानाथ हैं। यह कहानी ग्रामीण क्षेत्रों में हर रोज होते शहरीकरण की जीती जागती मिसाल है। ग्रामीणों का अपनी मूल ग्रामीण संस्कृति को छोड़कर शहरी जन जीवन व रहन-सहन के प्रति आकर्षण अत्यधिक बढ़ा है। कम लागत व कम मेहनत में मशीनों द्वारा वस्तुओं के बनने से अपने हाथ से कारीगरी कर वस्तुओं को बनाने वालों (हस्तकला शिल्पी) का रोजगार किस तरह छिन गया है। यह कहानी उसका एक प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।
यह कहानी एक ऐसे शख्स बदलू की है जो लाख की बहुत सुंदर चूड़ियां बनाता था। लेकिन धीरे धीरे मशीन के द्वारा बनने वाली हल्की कांच की चूड़ियां को पहनना गांव की महिलायें ज्यादा पसंद करने लगी जिस वजह से उसकी लाख की चूड़ियां बिकनी बंद हो गयी थी। बदलू का काम धंधा बंद हो जाने की वजह से वह बेरोजगार हो गया था।
लाख की चूड़ियाँ का सारांश
कहानी की शुरुआत लेखक के बचपन से शुरू होती हैं। लेखक को अपने मामा के गांव जाना बहुत पसंद था। क्योंकि वहां बदलू नाम का एक मनिहार (चूड़ी बनाने वाला) उन्हें ढेर सारी सुंदर सुंदर लाख की गोलियां बनाकर देता था।जिनके साथ खेलना लेखक को बहुत पसंद था।
छुट्टियां खत्म होने के बाद जब वह अपने घर लौटेते थे तो उनके पास ढेर सारी रंग बिरंगी गोलियां हुआ करती थी जिन्हें देखकर उनके हमउम्र बहुत आकर्षित होते थे। वैसे तो बदलू उनके ननिहाल के गांव में रहने वाले थे। इसीलिए वो रिश्ते में लेखक के मामा लगते थे। लेकिन गांव के अन्य बच्चे उन्हें “काका” कहकर बुलाते थे । इसलिए लेखक भी उन्हें “बदलू काका” कहते थे।
बदलू अपने घर के सामने ही एक पुराने नीम के वृक्ष के नीचे बैठकर चूड़ियां बनाने का काम करते थे। उनके सामने ही जलती भट्टी व अन्य औजार रखे रहते थे। जिनकी मदद से वो अक्सर लाख को पिघला कर एक से एक खूबसूरत व मजबूत लाख की चूड़ियां बनाया करते थे। बदलू काका को हुक्का पीने का शौक था। इसलिए काम के बीच में वो हुक्का भी पी लेते थे।
लेखक जब भी अपने मामा के गांव में जाते थे । तो वे अक्सर दोपहर के समय बदलू काका के पास जाकर घंटों बैठे रहते हैं । और उनके काम को देखते रहते थे। बदलू काका भी उन्हें प्यार से “लल्ला” कहते थे। बदलू पेशे से एक मनिहार था। चूड़ियां बनाना उसका पैतृक पेशा था यानि उसके पिता , दादा सब चूड़ियां बनाने का ही काम करते थे और उनकी रोजी-रोटी कमाने का भी यही एक तरीका था। उनकी चूड़ियां खूब बिकती थी।
गांव की सभी महिलाएं उन सुंदर-सुंदर चूड़ियों को बदलू काका से खरीद कर पहनती थी। लेकिन बदलू काका उनसे पैसे लेने के बजाय अनाज लेते थे। “वस्तु विनिमय” का यह पुराना तरीका था यानि सामान के बदले सामान लेना “वस्तु विनिमय” कहलाता हैं ।
बदलू स्वभाव से बहुत सीधा-साधा था। वह किसी से लड़ता-झगड़ता नहीं था। बस अपने काम से मतलब रखता था। लेकिन शादी विवाह के अवसरों पर कभी-कभी जिद पकड़ कर बैठ जाता था। शादी ब्याह के अवसरों पर सुहाग की चूड़ियों को थोड़ा महंगा बेचकर खूब कमाई करता था । सुहाग की चूड़ियों को बहुत ही पवित्र माना जाता है।
इसीलिए सुहाग की चूड़ियों के बदले लोग बदलू काका की पत्नी के लिए वस्त्र और घर के प्रत्येक सदस्य के लिए कुछ ना कुछ उपहार , बदलू के लिए पगड़ी व कुछ रुपए भी देते थे। सो शादी के वक्त उसकी अच्छी खासी आमदनी हो जाती थी। बदलू काका लेखक की अच्छी खातिरदारी करते थे। कभी उनको गाय के दूध में मलाई डाल कर तो कभी आम की फसल में आम खिलाते थे और साथ में कुछ लाख की गोलियां भी बना कर देते थे।
बदलू काका को कांच की चूड़ियां जरा भी पसंद नहीं थी क्योंकि वो लाख की चूड़ियां बनाते थे । लेकिन धीरे-धीरे गांव का भी शहरीकरण हो गया। नए-नए उद्योग स्थापित हो गए और वस्तुओं मशीनों द्वारा बनाई जाने लगी। जो लोगों को खूब पसंद आती थी। अब गांव की महिलाएं भी लाख की चूड़ियों की जगह कांच की चूड़ियां पहनने लगी थी। इसीलिए अब उसका धंधा धीरे-धीरे मंदा होते चला गया।
लेखक गर्मियों की छुट्टियों में मामा के गांव चले जाते थे और स्कूल खुलने पर वापस अपने घर आ जाते थे।लेकिन अचानक लेखक के पिता का ट्रांसफर दूसरे शहर हो गया जिस कारण लेखक आठ -दस वर्षों तक मामा के गांव नहीं जा पाए। इस बीच उम्र बढ़ने के साथ-साथ उनकी लाख की गोलियों में भी रूचि कम हो गई।
लंबे अरसे बाद जब लेखक अपने मामा के गांव गए। एक दिन अचानक बरसात की वजह से उनकी मामा की लड़की आँगन में फिसल कर गिर पड़ी और हाथ में पहनी कांच की चूड़ियां टूट कर उसकी कलाई में चुभ गई जिसकी वजह से काफी खून बह गया। लेखक के मामा उस वक्त घर पर नहीं थे। इसीलिए लेखक ने ही अपनी बहन की मरहम पट्टी की।
तभी लेखक ने महसूस किया कि गांव की अधिकतर महिलाएं अब लाख की चूड़ियों की जगह कांच की चूड़ियां पहनने लगी है।तब लेखक को बदलू काका का ध्यान आया और वो उनसे मिलने चले गये। जब वो बदलू काका के घर पहुंचे तो देखा कि बदलू उसी नीम के पेड़ के पास एक खटिया (चारपाई ) डाल कर लेटे हुए थे।
बदलू को लेखक को पहचानने में थोड़ी मुश्किल हुई। लेकिन धीरे धीरे उन्हें याद आ गया। कुशलक्षेम पूछने के बाद जब लेखक ने चूड़ियों के काम-धंधे के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि उन्होंने कई साल पहले ही काम करना बंद कर दिया क्योंकि अब गांव की सभी महिलाएं कांच की चूड़ियां पहनने लगी हैं।
बदलू लेखक को बताने लगा कि आजकल सभी कुछ मशीनों से होता है। खेत जोतना हो या कांच की चूड़ियां बनाना हो या कुछ और। इसीलिए लाख की चूड़ियों को कोई पसंद नहीं करता। बदलू काका अब काफी कमजोर हो चुके थे। लेखक की खातिरदारी के लिए बदलू काका ने अपनी बेटी से आम मँगवाए।
जब उनकी बेटी आम लेकर आई तो लेखक ने देखा कि उनकी बेटी ने अपने पिता द्वारा बनाई गई सुंदर लाख की चूड़ियां पहन रखी है। तब बदलू ने उन लाख की चूड़ियों के बारे में बताया कि ये चूड़ियों जमीदार साहब की बेटी के लिए बनवाये थे। लेकिन अच्छे दाम ना मिलने की वजह से बदलू ने जमींदार साहब को वो चूड़ियां नहीं दी।
बदलू ने इस मशीनी युग में भी हार नहीं मानी । भले ही बदलू का काम इस मशीनी युग की वजह से बंद हो चुका था। लेकिन उन्होंने न हार मानी और ना ही वो पीछे हटे। वो वाकई में बहुत परिश्रमी स्वभाव के थे और अपने काम को पूर्ण निष्ठा के साथ करना पसंद करते थे।
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