Mary Kom, Who is Mary Kom,The Indian Boxer,Biography of Mary Kom. मैरीकाॅम , भारतीय महिला बॉक्सर,मैरीकाॅम का जीवन व उनकी उपलब्धियों ,6 बार वर्ल्ड वुमन बॉक्सिंग चैंपियनशिप जीतने वाली दुनिया की पहली महिला खिलाड़ी।
Who is Mary Kom
भारत की महिला बॉक्सिंग खिलाड़ी एम.सी मैरीकाॅम ने 24 नवंबर 2018 को ” आईबा वर्ल्ड वुमन बॉक्सिंग चैंपियनशिप” के 10वें संस्करण में 48 किलोग्राम भारवर्ग में स्वर्ण पदक जीत कर बॉक्सिंग के इतिहास में भी अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों से लिखवा लिया।Mary Kom ने फाइनल में यूक्रेन की हना ओखोटा को 5-0 से हराकर स्वर्ण पदक जीत लिया। इसी के साथ मैरीकॉम 6 बार वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण जीतने वाली दुनिया की पहली महिला खिलाड़ी बन गई है।
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फाइनल मुकाबला जीतने के बाद एम.सी Mary Kom ने तिरंगे के साथ अपने दोनों हाथ हवा में लहरा कर अपनी जीत का इजहार किया।इस दौरान उनकी आंखों से लगातार बहते आंसू उनकी खुशी बयाँकर रहे थे। मैरीकॉम की इस उपलब्धि ने न केवल एक विश्व कीर्तिमान स्थापित किया बल्कि अपने देश को भी गौरवान्वित किया।
मैरी कॉम के पुरस्कार
( Mary Kom Awards )
- अर्जुन पुरस्कार मुक्केबाजी 2003।
- पद्मश्री 2006।
- राजीव गांधी खेल रत्न 2009 (इनके साथ मुक्केबाज बिजेंदर कुमार तथा पहलवान सुशील कुमार को भी सम्मानित किया गया)।
- पद्म भूषण 2013।
- वर्ष 2007 में लिम्का बुक द्वारा “People Of The Year” का सम्मान दिया गया।
- सन 2008 में “पेप्सी एमटीबी(MTV) यूथ आइकाॅन” का अवार्ड मिला।
- वर्ष 2010 में सहारा स्पोर्ट्स अवॉर्ड द्वारा “Sportswomen Of The Year” का अवार्ड मिला।
- मध्य प्रदेश के ग्वालियर में 17 जून 2018 को “वीरांगना सम्मान” से सम्मानित किया गया।
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Mary Kom ने “महिला विश्व चैंपियनशिप” में एक रजत पदक व 6 स्वर्ण पदक जीतकर एक नया इतिहास रचा।
- 2001 सिल्वर मेडल (रजत) .. पेंसिल्वेनिया
- 2002 गोल्ड मेडल (स्वर्ण)….तुर्की(45 किलोग्राम भार वर्ग)
- 2005 गोल्ड मेडल (स्वर्ण)….रूस पर (48 किलोग्राम भार वर्ग)
- 2006 गोल्ड मेडल (स्वर्ण)…नई दिल्ली (48 किलोग्राम भारवर्ग)
- 2008 गोल्ड मेडल (स्वर्ण) ..चीन(48 किलोग्राम भारवर्ग) (इस खिताब को जीतने के बाद आइबीए ने उन्हें “मैग्नीफिशेंट मैरीकॉम (प्रतापी मैरी या शानदार मैरी)” की उपाधि से नवाजा।
- 2010 गोल्ड मेडल बारबाडोस 48 किलोग्राम भार वर्ग
- 2018 गोल्ड मेडल नई दिल्ली।
बराबरी
- Mary Kom विश्व चैंपियनशिप में 6 गोल्ड जीतने वाली दुनिया की पहली महिला बॉक्सर बन गयी है। इससे पहले मैरीकाॅम और आयरलैंड की केटी टेलर के नाम पांच-पांच गोल्ड थे। लेकिन केटी टेलर अब प्रोफेशनल बॉक्सर बन गई हैं। जिस कारण उन्होंने इस टूर्नामेंट में हिस्सा नहीं लिया।
- इसी के साथ मैरीकाॅम विश्व चैंपियनशिप (दोनों में महिला और पुरुष) में सबसे ज्यादा पदक जीतने वाली मुक्केबाज भी बनी है।
- Mary Kom ने छह स्वर्ण और एक रजत जीतकर क्यूबा के फेलिक्स सेवोन (91 किलोग्राम भार वर्ग)की बराबरी की है ।फेलिक्स 1986 से 1999 के बीच में छह स्वर्ण पदक और एक रजत पदक जीता था।
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वीमेन बॉक्सिंग चैंपियनशिप मणिपुर
बर्ष 2000 में Mary Kom ने “वूमन बॉक्सिंग चैंपियनशिप मणिपुर” जीतकर अपने बॉक्सिंग करियर का आगाज किया।
एशियन गेम्स
- 2010 एशियन वूमन्स बॉक्सिंग चैंपियनशिप (कजाकिस्तान) में मैरीकाॅम ने गोल्ड मेडल जीता।
- 2011 एशियन वूमन्स कप (चीन) में उन्होंने गोल्ड मेडल जीता।
- वर्ष 2012 में एशियन वूमन्स बॉक्सिंग चैंपियनशिप (मंगोलिया) में भी गोल्ड मेडल जीता।
- वर्ष 2014 में एशियन गेम इंचियोन (दक्षिण कोरिया) में 51 किलोग्राम फ्लाईवेट प्रतियोगिता में भारत के लिए गोल्ड जीता।
- वर्ष 2017 में एशियन वूमन्स बॉक्सिंग चैंपियनशिप (वियतनाम ) में भी गोल्ड मेडल जीता।
कॉमनवेल्थ गेम
2018 में गोल्डकोस्ट(आस्ट्रेलिया) में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स में मैरीकाॅम ने 48 किलोग्राम लाइटवेट प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता।
ओलंपिक गेम्स
Mary Kom एकमात्र ऐसी भारतीय महिला मुक्केबाज है जिन्होंने ओलंपिक गेम्स के इतिहास में भारत के लिए एक व्यक्तिगत पदक जीता। 2012 लंदन ओलंपिक्स में उन्होंने 51 किलोग्राम फ्लाइवेट प्रतियोगिता में भारत के लिए ब्राॅन्ज (काॅस्य) मेडल जीता।
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अन्य उपलब्धियों ( Mary Kom Other Achievement )
- वर्ष 2016 में Mary Kom को भारत के राष्ट्रपति ने राज्यसभा का मेंबर चुना।
- और वर्ष 2017 में उन्हें खेल मंत्रालय की तरफ से अखिल कुमार के साथ बॉक्सिंग का “नेशनल आबजर्वर” बनाया।
- ट्राइब्स इंडिया की ब्रांड एंबेसडर।
- वह मणिपुर पुलिस में उच्च पुलिस अधिकारी (स्पोर्ट्स) के पद पर तैनात हैं।
- मैरीकाॅम की नज़रें 2020 में होने वाले टोक्यो ओलंपिक पर हैं जिसकी तैयारी शुरू कर दी है।
कोच
नरजित सिंह और चार्ल्स एक्टिनसल।
कौन है मैरीकाॅम (who is Mary Kom )?
मौंंगते चुंगनेइजैंंग मैरीकाॅम का जन्म 1 मार्च 1983 को कन्गथेई मणिपुर भारत में हुआ।पिता मांगते अक्हम काॅम तथा माता मांगते टोंपा काॅम के घर जन्म लेने वाली मौंंगते चुंगनेइजैंंग मैरीकॉम से “मैग्नीफिसेंट मैरी” बनने तक की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है।
who is Mary Kom ,यह कहानी है फर्श से अर्श तक पहुंचने की,जमीन के गहरायों से आसमान की ऊचाईयों को छू लेने की, यह कहानी हैं उस महिला की जिसके सामने थी हर कदम-कदम पर चुनौतियां, हर दिन सामने खड़ी रहती थी हौसले तोड देने वाली बाधाएं ,हर दम बाहें फैलाए गरीबी ,अभाव, उस पर मां बाप की इस खेल के प्रति असहमति, खेल में राजनीति की दखल, ऊपर से जिस खेल के लिए इतना सब कुछ कर रही थी उसका भविष्य भी धुधला ह़ी दिखाई देता था।
लेकिन अपनी कठोर मेहनत और अथक परिश्रम और कभी ना हारने वाली इच्छाशक्ति से मैरीकाॅम ने हर बाधा को पार किया और अपना नाम हमेशा के लिए विजेताओं में शामिल किया।फिर चाहे वह कोई मैदान कोई भी हो घर का या खेल का।इसीलिए उन्हें “लौह महिला” भी कहा जाता है।
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Mary Kom का बचपन बीता एक मिट्टी की झोपड़ी में जहां बसती थी।गरीबी ,अभाव और जीवन जीने के लिए अथाह संधर्ष।उनका पूरा बचपन बीता कमरतोड़ मेहनत करने में। दोस्तों के साथ पढने-लिखने,खेलने और खाने के उम्र में वह अपने मां-बाप के साथ खेतों में मजदूरों के रूप में काम करती थी।बैलों के साथ जुताई कर खेतों में बुआई करती थी।
जानवरों को चराने जंगल जाती थी, जानवरों का दूध दूहती।कपड़े नाममात्र के ह़ी होते,खासकर जाड़ों की सर्द रातों को काटना मुश्किल हो जाता,पढाई के लिए एक लेम्प ,बस यही जीवन था।इसी जीतोड़ मेहनत व अभावों ने मैरी को एक मजबूत इच्छाशक्ति वाली शख्सियत में बदल दिया और उनके सपनों को पंख देकर उड़ने का हौसला दे दिया।
मैरीकाॅम का बॉक्सिंग की तरफ रुझान (Boxer Mary Kom)
बेहद गरीब घर में जन्मी Mary Kom के लिए बॉक्सर बनने का सपना देखना भी असंभव को संभव करने जैसा असंभव कार्य था। लेकिन उन्होंने हर बाधा को अपनी मजबूत इच्छाशक्ति व कठोर मेहनत से पार पाया।बॉक्सिंग के प्रति उनका लगाव वर्ष 1999 में हुआ।
जब उन्होंने “खुमान लंपक स्पोर्ट्स कंपलेक्स ” में लड़कों के साथ लड़कियों को भी बॉक्सिंग के गुर सीखते व दाँव पेच आजमाते हुए देखा तो उनका रुझान बॉक्सिंग की तरफ एकाएक बढ़ गया।उनका कहना था कि..
“नजारा देख कर मैं स्तब्ध थी।मुझे लगा कि जब वो लड़कियां बॉक्सिंग कर सकती हैं तो मैं क्यों नहीं ?”
साथ ही उनके अपने गृह नगर के बॉक्सर डिंग्को सिंह की कामयाबी ने भी उन्हें इस क्षेत्र में आने के लिए प्रेरित किया। डिंग्को सिंह ने वर्ष 1998 में एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीता था।
टर्निंग प्वाइंट ( Mary Kom Life’s Turning Point )
गांव से प्रारंभिक शिक्षा लेने के बाद वह अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए इंफाल गई।यही उन्होंने “भारतीय खेल प्राधिकरण बॉक्सिंग अकैडमी” जॉइन की। और वहां जाकर बॉक्सिंग की विधिवत ट्रेनिंग लेनी शुरू की।उन्होंने बॉक्सिंग के हर गुर व हर दांव पेंज को सीखना शुरू किया।हालांकि इस दुबली पतली सी लड़की पर कोई भी विश्वास नहीं करता था कि वह कभी भी बॉक्सिंग में कोई मेडल ला पाएगी।
लेकिन जब राज्य स्तरीय प्रतियोगिता शुरू हुई। और Mary Kom ने 48 किलोवर्ग भार में भाग लिया। और गोल्ड मेडल जीत का सबका मुंह बंद कर दिया। इस प्रतियोगिता में उन्हें “श्रेष्ठ बॉक्सर” का अवार्ड दिया गया। इस प्रतियोगिता के बाद 2001 में “पहली नेशनल वूमन बॉक्सिंग चैंपियनशिप चेन्नई ” में संपन्न हुई। उन्होंने उस में 48 किलोवर्ग भार में भाग लिया और फिर से गोल्ड मेडल अपने नाम कर लिया।
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अंतर्राष्ट्रीय खेलों में पदार्पण व सफलता
अंतर्राष्ट्रीय खेलों में Mary Kom ने पहली बार कदम बैंकॉक में हुई एशियाई बॉक्सिंग चैंपियनशिप में रखा।उन्होंने रजत पदक जीता और देखते ही देखते वह मणिपुर के स्टार बन गई।साथ ही पूरे भारत की नजर भी उन पर पहली बार पडी।शौहरत तो मिल गयी लेकिन पैसों का अभाव यहां भी उनकी राह रोके रहा।
जब उनका चयन अमेरिका के पेंसिल्वेनिया में होने वाली महिला विश्व बॉक्सिंग चैंपियनशिप के लिए हुआ तो उनके पास वहां जाने के लिए पैसे नहीं थे।किसी तरह उनके पिता ने दो हजार तथा मणिपुर के लोगों ने 15,000/-रुपये इकट्ठे कर मैरी को दिए।अमेरिका पहुच कर मैरीकॉम ने रजत पदक जीता।
और यहीं से उनके अंतरराष्ट्रीय खेल जीवन की शुरुआत हो गई और इस वक्त की खास बात यह रही कि भारत से गई पूरी टीम में सिर्फ Mary Kom ने ही पदक जीता था। बाकी अन्य कोई भी खिलाड़ी पदक नहीं जीत पाया था।
दिन फिरने लगे
अंतरराष्ट्रीय खेल जगत में यह उपलब्धि हासिल करने के बाद Mary Kom के दिन फिरने लगे।अब शौहरत व दौलत मिलने लगी।एक ओर जहाँ खेल मंत्रालय ने उन्हें 9लाख का पुरस्कार दिया वही दूसरी ओर उन्हें कई अन्य पुरस्कार भी मिलने शुरू हो गए और इसके बाद उनके एक के बाद एक राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय गेम को खेलने तथा जीतने की शुरुआत हो गई।
पर्सनल लाइफ (Personal Life)
Mary Kom ने 2005 में ओन्लर कॉम से शादी की जिन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से लॉ में डिग्री ली हैं।वर्ष 2007 में उन्होंने अपनी पहली जुड़वा संतानों (रेचुनग्वार और खूपनेईवार) को जन्म दिया।मैरीकॉम के लिए यह वह कठिन दौर था।जब उन्हें अपने दो नन्हे(सिर्फ 9 महीने) बच्चों को छोड़कर 2008 की महिला विश्व बॉक्सिंग चैंपियनशिप की तैयारी के लिए कैंप जाना था।उन्होंने साहसिक निर्णय लिया और कैंप चली गयी।
Mary Kom का सफर कभी भी आसान नहीं रहा।दो बच्चों के जन्म के बाद बॉक्सिंग रिंग में उतरना,फिर से अपना वही पुराना जलवा हासिल करना,यह कठिन कार्य था, ऊपर से कोच का बेरुखी भरा बर्ताव।लेकिन पति का सहयोग, दृढ़ इच्छाशक्ति से सब आसान होता चला गया।और वो रजत पदक लेकर घर लौटी।2013 में उन्होंने तीसरी संतान (बेटे प्रिन्स) को जन्म दिया।
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ब्रांड एंबेसडर
Mary Kom “ट्राइब्ज इंडिया” ब्रांड एंबेसडर हैं।ट्राइब्ज इंडिया भारतीय आदिवासी समाज के द्वारा बनाये गये सामानों का प्रचार व बिक्री करता हैं। इनके देश भर में कई बिक्री केंद्र व दुकाने हैं। मैरीकॉम को इसका ब्रांड एंबेसडर बनाया गया है। मैरीकाॅम आईबा समेत अनेक संस्थाओं की ब्रांड एंबेसडर हैं।ट्राइब्ज इंडिया के ब्रांड एंबेसडर बनाये जाने पर उन्होंने कहा…..
“मैं मणिपुर भारत से हूं।और उम्मीद करती हूं कि ट्राइब्स इंडिया के साथ मेरे जुड़ाव से जनजाति समुदाय के जीवन में बड़ा वित्तीय व आर्थिक परिवर्तन आएगा।मैं अपनी तरफ से जनजाति लोगों की मदद करने की पूरी कोशिश करूंगी।”
सुपर माँम हैं महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत ( Mary Kom,The Super Mom)
अगर Mary Kom के बारे में कोई पूछे ” Who is Mary Kom” ।तो उसका Boxer के अलावा एक जबाब यह भी होता है कि ” Mary Kom is a Super Mom”.
शादी और बच्चे हो जाने के बाद भारत में लगभग महिलाओं का करियर खत्म ही मान लिया जाता है। लेकिन Mary Kom ने 3 बच्चों के जन्म के बाद विश्व चैंपियनशिप का खिताब जीतकर इन सारे अवधरणाओं को कोरा साबित कर दिया है।इसीलिए उन्हें सुपर माँम भी कहते हैं। हालांकि वो अपनी इस सफलता के पीछे अपने पति व पूरे परिवार का बहुत बड़ा योगदान मानती है।
आज भी जब वो अपने घर में होती हैं तो अपने बच्चों व परिवार का पूरा ध्यान रखती हों।उन्होंने पूरे देश को बता दिया है कि जुनून क्या चीज होती है।उन्होंने अपनी हर जिम्मेदारी को बखूबी निभाया है।यह मैरीकाॅम की खेल के प्रति प्रतिबद्धता ही है कि उन्होंने बचपन से ही हारना नहीं सीखा।
हैरत नहीं होनी चाहिए कि अगर भविष्य में मैरीकॉम के पद चिन्हों पर चलते हुए कई नई लड़कियां इस क्षेत्र में आए और मुक्केबाजी में अपना नाम रोशन करें।
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मैरीकाॅम बहुत ही अनुशासित जीवन जीती हैं
भारत में ही नहीं विश्व स्तर में किसी भी शाररिक खेल की तरह ही पुरुष बॉक्सिंग के मुकाबले महिला बॉक्सिंग में महिलाओं के लिए ज्यादा चुनौतियां होती हैं।खास कर तब,जब महिला 3 बच्चों की मां हो।वो लोग विरले ही होते हैं जो बढ़ती उम्र के साथ लगातार सीखने की रफ्तार को बनाए रखते हैं।
35 साल की उम्र में Mary Kom बिल्कुल उसी नए बच्चे की तरह है जो हर रोज कुछ नया सीखता रहता है।उन्होंने वह किया जो करना तो दूर सोचना भी मुश्किल है।मैरीकाॅम मेहनत व समर्पण का पर्याय बन चुकी है।इस सब को सम्भव करने के लिए मैरीकाॅम बहुत ही अनुशासित जीवन जीती हैं।
Mary Kom जिस इलाके का प्रतिनिधित्व करती हैं वहां पर बार-बार मैरीकाॅम पैदा नहीं होती हैं।उनको पता है कि उनकी मेहनत से देश को जितनी खुशी हासिल होती है उससे कहीं ज्यादा खुशी उस हिंसाग्रस्त पूर्वोत्तर के राज्य में होती है।
Mary Kom ने अपने करियर में जो भी मापदंड तय किए।किसी भी दूसरी महिला मुक्केबाज के लिए वहां तक पहुंचना नामुमकिन ही लगता है ।पुरुष मुक्केबाजों की तुलना में महिला मुक्केबाजों के लिए यह आसान नहीं होता है क्योंकि महिला मुक्केबाजों के सिर पर घर की जिम्मेदारियों के साथ साथ खेल जगत की जिम्मेदारी भी होती है।
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मैरीकाॅम बॉक्सिंग एकेडमी
Mary Kom ने अपने गृह राज्य में एक “मैरीकाॅम बॉक्सिंग एकेडमी” खोली है।जहां पर वह नई- नई प्रतिभाओं को तराशने का काम करती हैं।उनकी एकेडमी से नए-नए नगीने निकलने भी शुरू हो गए हैं।अभी हाल ह़ी में उनकी एकेडमी से निकला एक खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर में पहचान भी बना चुका है।
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राज्यसभा की सदस्य
खेल व अन्य क्षेत्रों की अनेक महान हस्तियों को राज्यसभा में भेजा जाता रहा है।लेकिन कई हस्तियां संसद में नहीं जाना चाहती हैं।ढाई साल पहले Mary Kom को राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया गया था।सदस्य बनने के बाद मैरीकॉम जब भी दिल्ली में रहती हैं तो राज्यसभा जरुर जाती हैं।दिल्ली में रहते हुए शायद ही वो किसी संसद सत्र में गैरहाजिर रही हो।
यह महान खिलाड़ी संसद की गरिमा को निभाते हुए हर रोज जब भी संसद सत्र होता है वहां उपस्थित रहती हैं।उनको पता है कि वह संसद में जितना ज्यादा उपस्थित रहेंगी।उतना ह़ी वह अपने क्षेत्र की समस्याओं को राष्ट्रीय पटल पर ला पायेगी।वह उस इलाके से आती है जहां पर उन्होंने अशांति ह़ी अशांति देखी हैं लेकिन यही अशांति व दुश्वारियां उनकी ताकत बनती चली गई।
मैरीकाॅम के जीवन पर आधारित फिल्म
Mary Kom के जीवन पर आधारित एक फिल्म भी बन चुकी है।इस फिल्म के डायरेक्टर ओमंग कुमार थे।इस फिल्म में मैरी की भूमिका प्रसिद्ध बॉलीवुड अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ने निभाई।और यह फिल्म लोगों को अत्यधिक पसंद आयी।
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छटी बार वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप जीतने पर
प्रधानमंत्री ने बधाई कर लिखा ….
“A proud moment for Indian Sports .. Congratulations to Mary Kom for winning gold in the Women’s World Boxing Championship. The diligence with which she’s Pursued sports and excelled at the world stage is extremely inspiring .Her win truly special ” .
अमिताभ बच्चन ने लिखा…
“मैरीकाॅम आपने हमारे देश का नाम रोशन किया है।छटी बार विश्व महिला बॉक्सिंग चैंपियनशिप जीतने पर बधाइयां… आपके द्वारा गिफ्ट किए गए बॉक्सिंग ग्लव्स मेरे लिए हमेशा बहुत अहम रहेंगे।वो मेरे गोल्ड मेडल है”। इन ग्लव्स पर मैरी कॉम की ऑटोग्राफ भी है।
और अन्त में ..
मैं सलाम करती हूं !!! मैरीकाॅम को और ऐसी साहसी महिलाओं को जो अपने जुनून के बल पर अपने जीवन में एक मुकाम हासिल करती हैं और अपने देश का नाम रोशन करती हैं।
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