At Nahi Rahi Hai Class 10 Explanation : अट नहीं रही है

At Nahi Rahi Hai Class 10 Explanation :

अट नहीं रही है कक्षा 10 सारांश 

At Nahi Rahi Hai Class 10 Explanation

At Nahi Rahi Hai Class 10 Explanation

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इस कविता में कवि ने फाल्गुन माह की खूबसूरती का वर्णन किया हैं। फाल्गुन माह में आने वाली बसंत ऋतु को “ऋतुराज” यूं ही नहीं कहा जाता हैं। यह वाकई में “ऋतुओं का राजा” होता है। इस समय प्रकृति की जो मनमोहक सुंदरता दिखाई देती है। वह शायद ही किसी और ऋतु के आगमन के वक्त दिखता हो।

हाड़ कपाती ठंड के बाद जब धीरे-धीरे धरती का तापमान बढ़ने लगता है। इसी के साथ ही ऋतुराज वसंत का आगमन होता है। बसंत के आगमन से बाग बगीचों में सुंदर-सुंदर रंग-बिरंगे फूल खिलने लगते हैं। उनकी भीनी भीनी खुशबू घर आंगन , पूरे वातावरण में हर जगह फैलने लगती हैं।

कवि ने प्रकृति का मानवीकरण करते हुए कहा है कि “ऐसा लगता हैं मानो जैसे फाल्गुन के सांस लेने से पूरा वातावरण खुशबू से भर गया हो और सुंदर-सुंदर रंग-बिरंगे खिले फूल कवि को ऐसे लगते हैं जैसे प्रकृति ने अपने गले में कोई सुंदर सी माला पहनी हो”। 

इसी के साथ पेड़-पौधों में नए पत्ते लगने लगते हैं। आम , लीची में बौंर आनी शुरू हो जाती है। चारों तरफ हरियाली छाने लगती है। रंग बिरंगी तितलियां व भौरों के मधुर गीत हर तरफ सुनाई देते हैं। इस समय प्रकृति की अद्भुत छटा देखने लायक होती है। ऐसा लगता है मानो प्रकृति ने किसी दुल्हन की तरह अपना श्रृंगार किया हो जिस पर से आँख हटानी कवि को मुश्किल लग रही हैं।

कवि ने फाल्गुन माह में प्रकृति के अद्भुत सौंदर्य का वर्णन इस कविता के माध्यम से बड़ी ही खूबसूरती से किया है। 

अट नहीं रही है कक्षा 10 भावार्थ 

काव्यांश 1 .

अट नहीं रही है

आभा फागुन की तन

सट नहीं रही है।

भावार्थ –

उपरोक्त पंक्तियों में कवि ने फागुन माह में आने वाली वसंत ऋतु का वर्णन बहुत ही खूबसूरत ढंग से किया है। कवि कहते हैं कि फागुन की आभा (सुंदरता) इतनी अधिक है कि वह प्रकृति में समा नहीं पा रही है यानि वसंत ऋतु में प्रकृति बहुत सुंदर लग रही है। 

काव्यांश 2 .

कहीं साँस लेते हो ,

घर-घर भर देते हो ,

उड़ने को नभ में तुम

पर-पर कर देते हो ,

आँख हटाता हूँ तो

हट नहीं रही है ।

भावार्थ –

फागुन माह में ऐसा लगता हैं मानो प्रकृति एक बार फिर दुल्हन की तरह सज धज कर तैयार हो गयी है क्योंकि वसंत ऋतु के आगमन से सभी पेड़ – पौधे नई-नई कोपलों (नई कोमल पत्तियों ) व रंग-बिरंगे फूलों से लद जाते हैं और जब भी हवा चलती हैं तो सारा वातावरण उन फूलों की भीनी खुशबू से महक उठता हैं। 

उस समय कवि को ऐसा लगता है मानो जैसे फागुन ख़ुद सांस ले रहा हो और सांस लेकर सारे वातावरण को महका रहा हो। कवि आगे कहते हैं कि कभी – कभी मुझे ऐसा एहसास होता है जैसे तुम (फागुन माह) आसमान में उड़ने के लिए अपने पंख फड़फड़ा रहे हो।

कवि बसंत ऋतु की सुंदरता पर मोहित हैं। इसीलिए वो कहते हैं कि मैं अपनी आँखें तुमसे हटाना तो चाहता हूँ लेकिन मेरी आँखें तुम पर से हट ही नहीं रही है। यहाँ पर फागुन माह का मानवीकरण किया गया है। 

काव्यांश 3 .

पत्तों से लदी डाल

कहीं हरी , कहीं लाल,

कहीं पड़ी है उर में

मंद गंध पुष्प माल,

पाट-पाट शोभा-श्री

पट नहीं रही है।

भावार्थ –

बसंत ऋतु में सभी पेड़-पौधों में नये-नये-कोमल पत्ते निकल आते हैं और डाली – डाली रंग बिरंगी फूलों से लद जाती हैं।

कवि उस समय की कल्पना करते हुए कहते हैं कि ऐसा लग रहा है मानो जैसे प्रकृति ने अपने गले में रंग – बिरंगी भीनी खुशबू देने वाली सुंदर सी माला पहन रखी हो। कवि के अनुसार प्रकृति के कण – कण में इतनी सुंदरता बिखरी पड़ी है कि अब वह इस धरा (पृथ्वी) में समा नहीं पा रही है । यहाँ भी मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किया गया है। 

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