Surdas Ke Pad Class 8 :सूरदास के पद भावार्थ,प्रश्न उत्तर 

Surdas ke Pad Class 8 ,

Surdas ke Pad Class 8 Hindi Explanation Chapter 15 , Surdas ke Pad Class 8 Question Answer , सूरदास के पद कक्षा 8 का भावार्थ ,  सूरदास के पद के प्रश्न उत्तर 

Surdas ke Pad Class 8 Summary

सूरदास के पद कक्षा 8 का सारांश 

Surdas ke Pad Class 8 Explanation
 

सूरदास जी कृष्ण के अनन्य उपासक थे। और भक्ति शाखा के सर्वश्रेष्ठ कवि भी माने जाते हैं। उनकी अधिकतर कविताएं कृष्ण जी की अजब – गजब बाल लीलाओं पर आधारित हैं।

सूरदास जी ने कृष्ण का अपनी वात्सल्यमयी माता यशोदा से रठने-मनाने व बाल सखाओं संग खेलने तथा गोपियों के साथ उनकी मस्ती भरी शरारतें और फिर गोपियों का माता यशोदा से शिकायतें लेकर आने के बारे में बड़ा ही खूबसूरत वर्णन किया हैं। सूरदास जी के पदों में वात्सल्य रस की प्रधानता देखने को मिलती हैं।

“सूरदास के पद” पाठ के पहले पद में कृष्ण शिकायत भरे लिहाज में अपनी माता से कहते हैं कि वो उनको रोज दूध पिलाती हैं। उनके बालों की खूब देखभाल करती हैं। रोज धोकर उनको सवाँरती भी हैं। फिर भी उनकी चोटी (सिर के बाल) उनके बड़े भाई बलराम की तरह लंबे क्यों नहीं हो रहे हैं।

और दूसरे पद में एक गोपी माँ यशोदा से कृष्ण की शिकायत करते हुए कहती हैं कि वह प्रतिदिन उसके घर में चुपचाप आकर सारा मक्खन चोरी करके खा जाता हैं। बाकी बचा जमीन में गिरा कर उसे बर्बाद कर देता है। इतना सब नुकसान करने के बाद भी तुम उसे कभी डाँटती क्यों नहीं हो। क्या तुमने किसी अनोखे बच्चे को जन्म दे रखा है। 

Surdas Ke Pad Class 8 Explanation 

सूरदास के पद का  भावार्थ 

पद 1 .

मैया , कबहिं बढ़ैगी चोटी ?

किती बार मोहिं दूध पियत भई , यह अजहूँ है छोटी।

तू जो कहति बल की बेनी ज्यौं , ह्नै है लाँबी-मोटी।

काढ़त-गुहत न्हवावत जैहै , नागिन सी भुइँ लोटी।

काचौ दूध पियावत पचि-पचि , देति न माखन-रोटी।

सूर चिरजीवौ दोउ भैया , हरि-हलधर की जोटी।

भावार्थ –

दरअसल भगवान कृष्ण दूध पीने में आनाकानी करते हैं। “दूध पीने से उनके बाल उनके बड़े भाई बलराम के जैसे लंबे और घने हो जाएंगे” , यह कहकर माता यशोदा जबरदस्ती कान्हा को दूध पिलाती है और लंबे और मोटे बालों के लोभ में कान्हा भी दूध पी जाते हैं। लेकिन दूध पीते-पीते काफी समय बीत जाने के बाद जब उनके बाल बड़े नहीं होते हैं तो , एक दिन कान्हा अपनी मैया से इस बारे में पूछते हैं। 

उपरोक्त पदों में कवि सूरदास ने कृष्ण की बाललीला का बहुत खूबसूरत वर्णन किया हैं। जिसमें वो अपनी माता यशोदा से शिकायत भरे लिहाज में पूछते हैं। हे माता !! उनकी चोटी कब बढ़ेगी , दूध पीते-पीते मुझे कितना समय हो गया हैं। फिर भी मेरी चोटी छोटी की छोटी ही हैं। मैया तू तो कहती थी कि दूध पीने से तुम्हारी चोटी भी बड़े भैया बलराम के जैसी लंबी व मोटी हो जायेगी।

और मैया तू तो यह भी कहती थी कि “बाल सवाँरते वक्त , चोटी बनाते वक्त और नहाने जाते वक्त मेरी चोटी किसी नागिन (सांप) के जैसे भूमि पर लोटपोट करने लगेगी”।

मैया यह सब बातें कह कर तू मुझे बार-बार कच्चा दूध पिलाती है और मुझे कभी भी मक्खन व रोटी खाने को नहीं देती हैं । सूरदास जी अपने ऐसे बाल गोपाल पर न्यौछावर होते हुए कहते हैं कि ऐसी सुन्दर बाल लीलायें करने वाले कृष्ण और उनके बड़े भाई हलधर (बलराम) की जोड़ी सदा बनी रहे।

पद 2.

तेरैं लाल मेरौ माखन खायौ। 

दुपहर दिवस जानि घर सूनो ढूँढ़ि-ढँढ़ोरि आपही आयौ।

खोलि किवारि, पैठि मंदिर मैं , दूध-दही सब सखनि खवायौ। 

ऊखल चढ़ि , सींके कौ लीन्हौ , अनभावत भुइँ मैं ढ़रकायौ।। 

दिन प्रति हानि होति गोरस की , यह ढोटा कौनैं ढँग लायौ। 

सूर स्याम कौं हटकि न राखै तैं ही पूत अनोखौ जायौ।

भावार्थ –

उपरोक्त पदों में कवि सूरदास ने कृष्ण द्वारा किसी गोपी के घर माखन चोरी करने के बाद उस गोपी का माता यशोदा से शिकायत करने का बड़ा मनोहारी वर्णन किया।

सूरदास जी कहते हैं कि एक गोपी , माता यशोदा से कृष्ण की शिकायत ले कर आती हैं और कहती हैं कि हे यशोदा !! तेरा लल्ला (कृष्ण)  रोज मेरा सारा मक्खन खा जाता है। दोपहर के समय जब मेरे घर में कोई नहीं होता है।

यानि पूरा घर खाली होता हैं तो उस समय पूरी छानबीन कर कृष्ण पहले तो खुद मेरे घर के अंदर दाखिल होता हैं। फिर घर के दरवाजे खोल कर अपने दोस्तों को भी मेरे घर के अंदर बुला लेता हैं और फिर उनको सारा दूध दही खिला देता हैं।

हे यशोदा !! तेरा लल्ला कृष्ण ओखली पर चढ़कर छींके (मक्खन रखने की जगह) तक पहुँच जाता  हैं। फिर मक्खन के बर्तन से थोड़ा मक्खन खुद खा लेता हैं और बाकी जमीन में गिरा देता हैं। जिससे हर रोज़ गोरस (दूध , दही , मक्खन) का बड़ा नुकसान होता हैं। भला तेरे लड़के का खाने का यह कौन सा ढंग हैं।

सूरदास जी कहते हैं कि

वह गोपी शिकायत भरे लहजे में यशोदा से कहती हैं कि हे यशोदा !! इतनी सब शरारत या नुकसान करने के बाद भी तुम अपने कान्हा को कभी डाँटती या टोकती क्यों नहीं हो ? यानि कृष्ण हमारे दूध और मक्खन का इतना नुकसान करता हैं। फिर भी तुम उसे कभी यह सब करने से रोकती क्यों नहीं हो ? क्या तुमने किसी अनोखे बच्चे को जन्म दिया हैं।

सूरदास के पद कक्षा 8 के प्रश्न व उनके उत्तर

 Surdas ke Pad Class 8 Question Answer

प्रश्न 1 .

बालक कृष्ण किस लोभ के कारण दूध पीने के लिए तैयार हुए ?

उत्तर-

माता यशोदा नन्हे कान्हा को अक्सर यह बात कहती थी कि यदि वह हर रोज दूध पीएँगे तो उनकी चोटी भी उनके बड़े भाई बलराम की तरह लंबी और मोटी हो जाएगी। इसीलिए कृष्ण अपने बाल बढ़ाने के लोभ में दूध पीने के लिए तैयार हो जाते थे।

प्रश्न 2.

कृष्ण अपनी चोटी के विषय में क्या-क्या सोच रहे थे ?

उत्तर-

कृष्ण सोचते थे कि उनकी मैया हर रोज उनके बाल अच्छे से धोती हैं। उन्हें करीने से सवाँरती है। फिर उनकी चोटी बना देती हैं। और वो माता के कहे अनुसार हर रोज कच्चा दूध भी पीते हैं। फिर भी उनके बाल लंबे व घने क्यों नहीं हो रहे हैं।

प्रश्न 3.

दूध की तुलना में कृष्ण कौन-सा पदार्थ अधिक पसंद करते थे ?

उत्तर-

कृष्ण को दूध के बजाय मक्खन और रोटी बहुत पसंद था।

प्रश्न 4 .

“तैं ही पूत अनोखौ जायौ” पंक्ति में ग्वालन के मन के कौन से भाव मुखरित हो रहे हैं ?

उत्तर-

कृष्ण गोपियों के दूध और मक्खन का रोज-रोज नुकसान कर देते थे। गोपियों इसकी शिकायत माता यशोदा से करती हैं। लेकिन माता यशोदा जब कृष्ण को डाँटती या रोकती नहीं हैं तो गोपी शिकायत भरे लहजे में यह बात कहती हैं कि तुम उसे यह सब करने से रोकती क्यों नहीं हो ? क्या तुमने किसी अनोखे बच्चे को जन्म दिया हैं।

प्रश्न 5.

मक्खन चुराते समय कृष्ण थोड़ा सा मक्खन बिखरा क्यों देते हैं ?

उत्तर-

गोपियों के घरों में छींका बहुत ऊँचे में बंधा होता था।चूंकि कृष्ण उस समय बहुत छोटे थे तो उनका हाथ छींके तक नही पहुँच पाता था।ओखली में चढ़ कर जब वो मक्खन चुरा कर खाते थे तो उनके हाथ से थोड़ा माखन जमीन पर गिर कर बिखर जाता था।

प्रश्न 6.

दोनों पदों में से आपको कौन सा पद अधिक पसंद आया और क्यों?

उत्तर-

दोनों पदों में से मुझे पहला पद ज़्यादा पसंद आया। वजह एक तो ममतामयी यशोदा माता का झूठ बोलकर अपने कान्हा को दूध पिलाना और कृष्णजी का बाल सुलभ मासूमियत से सवाल पूछना  , दूसरा सूरदास जी का सजीव वर्णन। ये दोनों बातें मन मोह लेती हैं। यह वात्सल्य रस की बहुत सुन्दर कविता है।

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