Kathputli Class 7 Explanation : कठपुतली का भावार्थ

Kathputli Class 7 Explanation :

Kathputli Class 7 Explanation

कठपुतली कक्षा 7 भावार्थ

यह भवानी प्रसाद मिश्र द्वारा लिखित एक कविता है जिसमें उन्होंने कठपुतली के माध्यम से हमें अपनी स्वतंत्रता के प्रति सचेत रहने की सलाह दी है। धागों से बंधी कठपुतली हमेशा दूसरों के इशारे पर नाचती है। वह नचाने वाले व्यक्ति के अधीन रहती है। जैसे – जैसे वह व्यक्ति उसे नचायेगा वैसे -वैसे ही वह नाचेगी यानि वह अपनी इच्छा अनुसार नही नाच सकती है। धागों से बंधी हुई सभी कठपुतलियों नचाने वाले व्यक्ति की गुलाम होती है। एक दिन अपनी पराधीनता से दुखी होकर एक कठपुतली विद्रोह कर देती है । वह अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती है और अपनी इच्छा अनुसार नाचना चाहती है। उसकी देखा -देखी और कठपुतलियां भी विरोध करने लगती है। लेकिन जब पहली कठपुतली पर सब की स्वतंत्रता की जिम्मेदारी आती है तो वह सोच समझकर कोई महत्वपूर्ण कदम उठाना जरूरी समझती है। 

कविता

काव्यांश 1.

कठपुतली

गुस्से से उबली

बोली – ये धागे

क्यों है मेरे पीछे – आगे ?

इन्हें तोड़ दो  ;

मुझे मेरे पांव पर छोड़ दो।

भावार्थ –

उपरोक्त पंक्तियों में भवानी प्रसाद मिश्रजी कहते हैं कि एक दिन अपनी गुलामी से तंग आकर एक कठपुतली विद्रोह कर देती है और गुस्से से कहती है कि मेरे शरीर के आगे – पीछे इतने धागे क्यों बांध रखे हैं । इन्हें तोड़कर मुझे स्वतंत्र कर दो ताकि मैं अपने पैरों पर खुद चल सकूं। यानि मुझे सभी बंधनों से आजाद कर दो ताकि मैं स्वतंत्र होकर अपने पैरों पर खड़ी हो सकूँ। आत्मनिर्भर बन सकूँ।  अपने जीवन के फैसले खुद ले सकूँ और अपने मन के मुताबिक स्वेच्छा से काम कर सकूँ।  

यानि कवि कठपुतली के माध्यम से यह समझाना चाहते हैं कि स्वतन्त्रता प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक हैं ताकि वह अपने हिसाब से अपना जीवन जी सके। अपने जीवन के फैसले खुद ले सके और आत्मनिर्भर बन सके। 

काव्यांश 2.

सुनकर बोली और – और

कठपुतलियों

कि हाँ ,

बहुत दिन हुए

हमें अपने मन के छंद छुए।

भावार्थ –

उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि एक कठपुतली के स्वतंत्र होने की इच्छा को सुनकर अन्य कठपुतलियों के मन में भी स्वतंत्र होने की इच्छा जागने लगती है । वो सभी कहने लगती हैं कि हाँ हमने भी बहुत दिनों से अपने मन की बात नही सुनी है। अपनी सभी इच्छाओं को दबाकर रखा है। अपने मन के मुताबिक काम नही किया है यानि स्वतंत्र होकर अपनी इच्छा अनुसार जीवन नही जीया है। 

काव्यांश 3.

मगर …..

पहली कठपुतली सोचने लगी –

यह कैसी इच्छा

मेरे मन में जागी ?

भावार्थ –

उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि अन्य कठपुतलियों के स्वतंत्र होने की इच्छा को देखकर अब पहली कठपुतली सोचने लगती है कि इस इच्छा का क्या परिणाम होगा।  क्या हम स्वतंत्र होकर सुरक्षित रह पाएंगे। अपने पैरों पर खड़े हो पाएंगे। आत्मनिर्भर बन पाएंगे। अन्य कठपुतलियां अपनी आजादी का सही उपयोग कर पायेंगी। इन सभी बातों को ध्यान में रखकर पहली कठपुतली सोच समझ कर कोई कदम उठाना जरूरी समझती है ?

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