Essay on Women Empowerment : महिला सशक्तिकरण

Essay on Women Empowerment : महिला सशक्तिकरण पर निबंध

Essay on Women Empowerment

महिला सशक्तिकरण पर निबंध

Essay on Women Empowerment

 प्रस्तावना 

क्या महिलाओं के बगैर एक परिवार , एक समाज , एक राष्ट्र या पूरी दुनिया की कल्पना की जा सकती है ? नहीं , तो फिर वही नारी अपने अधिकारों से वंचित क्यों है ? कोई भी देश बिना महिलाओं की तरक्की के उन्नति नहीं कर सकता।

इसीलिए महिलाओं को उनके संपूर्ण मानव अधिकार दिए जाने आवश्यक हैं।ताकि महिलाओं की समाज में चौतरफा उन्नति हो सके । और वो हर क्षेत्र में अपनी क्षमता के अनुरूप कार्य कर सकें। और देश और समाज की तरक्की में अपना संपूर्ण योगदान दे सकें। 

महिला सशक्तिकरण का अर्थ 

महिला सशक्तिकरण का अर्थ है “महिलाओं की उन्नति के लिए उनको सामाजिक , आर्थिक , राजनीतिक , शिक्षा , विचारों की स्वतंत्रता , रोजगार में समानता आदि अधिकारों को प्रदान करना।यानी हर क्षेत्र में महिलाओं को भी पुरुष के बराबर ही समान अधिकार प्रदान करना”।

सरल शब्दों में कहें तो “महिलाओं को उनके जीवन से जुड़े हर फैसले को लेने का अधिकार प्रदान करना। ताकि वो अपने जीवन से संबंधित सभी निर्णयों को स्वयं ले सकें”। चाहे वह शिक्षा का अधिकार हो या रोजगार का या विचारों की अभिव्यक्ति का अधिकार या कोई भी अन्य। क्योंकि बिना इन अधिकारों का उपयोग किये बिना उसका जीवन स्तर व सामाजिक स्तर ऊंचा नहीं हो सकता है।

भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता क्यों है ?

अपना देश एक पुरुष प्रधान देश है।जहां पर पुरुषों को तो हर अधिकार प्राप्त है। पुरुष चाहे जो भी करें। उसे समाज व परिवार की तरफ से कोई रोक-टोक नहीं होती।लेकिन अगर वही काम महिला करना चाहे तो , पहले तो परिवार ही उसे कई सारे बंधनों में जकड़ देता है।

कभी रीति-रिवाज के नाम पर और कभी सामाज के नाम पर। और फिर रही सही कसर समाज पूरी कर देता है।यूं समझ लीजिए कि जैसे सारी बंदिशें , सारे बंधन महिलाओं को ध्यान में रख कर ही बनाये गये हों। आज की तुलना में प्राचीन काल में महिलाओं की स्थिति मजबूत थी।उस समय की काफी सारी बिदुषी महिलाओं के बारे में हम पढ़ते और सुनते आये हैं।

आज जब हमने हर क्षेत्र में खूब तरक्की कर ली हैं।बाबजूद इसके महिलाओं के प्रति हमारी सोच अभी भी बहुत पिछड़ी हुई है। और यह स्थिति शहरों की अपेक्षा गांव में ज्यादा खराब है।आज भी घुंघट प्रथा ,पर्दा प्रथा , दहेज प्रथा , कन्या भूण हत्या आदि हमारे समाज में जारी है। 

बेटियों के पैदा होते ही उनके साथ भेदभाव शुरू हो जाता है।और यह भेदभाव घर परिवार से ही शुरू होता है। जैसे खानपान , शिक्षा दीक्षा , पहनावे , रहन सहन आदि में भेदभाव।जहां परिवार में बेटों  को पौष्टिक भोजन दिया जाता है। वही बेटियों को इतना पौष्टिक भोजन नहीं मिल पाता हैं। साथ ही बेटे उच्च शिक्षा या अपनी पसंद की शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्वतंत्र हैं। जबकि बेटियों की थोड़ी पढ़ाई के बाद उनके मां-बाप को उनकी शादी करने की जल्दी हो जाती है।

हालांकि शहरी क्षेत्रों में अब बेटियों के साथ यह भेदभाव कम होने लगा है। पढ़े-लिखे मां-बाप अब अपनी बेटियों की पढ़ाई लिखाई को प्राथमिकता देने लगे हैं। खानपान में भी भेदभाव कम होने लगा है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति वैसी की वैसी ही है। 

और भारत में सबसे दुखद बात यह हैं कि यहां बेटियों को पैदा होने से पहले ही उन्हें गर्भ में ही मार दिया जाता है। इसीलिए भारत के कुछ राज्यों में लिंगानुपात असमानता की समस्या पैदा हो गई है। और लड़कों के मुकाबले लड़कियों की संख्या काफी कम हो गयी हैं। 

शिक्षा के मामले में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की शिक्षा दर काफी कम है। भारत में कुल पुरुष शिक्षा दर 81.3 % है। जबकि महिलाओं की शिक्षा दर महज 60% ही है। रोजगार के मामले में भी महिलाएं पुरुषों से काफी पीछे हैं। शहरों में तो फिर भी महिलाएं रोजगार से जुड़ी हैं। लेकिन गांव में इनकी संख्या बहुत कम है ।ज्यादातर ग्रामीण महिलाएं कृषि कार्यों से जुड़ी रहती है।  

घर परिवार व बच्चों की जिम्मेदारियों के बीच महिलाएं घर से बाहर रोजगार के लिए कम ही निकलती हैं।और जो महिलाएं अपनी जिम्मेदारियों के साथ साथ नौकरी भी कर रही हैं। तो उन्हें आफिस या work place पर भी वेतन में असमानता और प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से शोषण का सामना करना पड़ता है।

एक ही काम को करने पर पुरुषों को अधिक वेतन दिया जाता है। और उसी काम को करने में महिलाओं को कम वेतन का भुगतान किया जाता है।मजदूर वर्ग की महिलाएं इसका सबसे ज्यादा शिकार हैं। यह सबसे बड़ा भेद-भाव है।जबकि महिलाएं पुरुषों के मुकाबले ज्यादा ईमानदारी व मेहनत से काम करती हैं। महिलाओं से दुर्व्यवहार , शोषण , अत्याचार और यौन हिंसा की घटनाएं हर रोज सुनाई देती हैं। कहीं बेटियों को दहेज ना लाने के कारण मार दिया जाता है , तो कहीं उनका शोषण किया जाता है।  या फिर उनका यौन शोषण कर उनको मार दिया जाता है। 

हमारे समाज में महिलाओं को एक इंसान न समझ कर , एक वस्तु समझा जाता है जिस पर हर कोई अपना अधिकार जमाने की फिराक में रहता है।या फिर अपनी सारी ताकत उसे दबाने में लगा देता है। 

इसीलिए आज भी हमारे देश की महिलाओं को महिला सशक्तिकरण जैसे मुहिम की आवश्यकता है। ताकि उनको समाज में शिक्षा , रोजगार , आर्थिक स्वतंत्रता , समाज में सिर उठा कर जीने की स्वतंत्रता , विचारों की अभिव्यक्ति आदि का अधिकार मिल सके।ताकि वह भी समाज में सिर उठाकर आत्मनिर्भर होकर जी सकें और अपने सपनों को पूरा कर सकें।

महिला सशक्तिकरण की मुख्य बाधाएं

महिला सशक्तिकरण में आने वाली मुख्य बाधाएं हमारे समाज में फैली कुरीतियां व महिलाओं के प्रति दकियानूसी विचारधाराएं हैं। जिनसे मुक्ति पाकर ही महिला सशक्तिकरण का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। समाज को भी महिलाओं के प्रति अपनी दकियानूसी सोच से बाहर आना होगा। उन्हें जीवन जीने से संबंधित मूलभूत अधिकारों को महिलाओं को प्रदान करना होगा।

हमारे समाज में पुत्र को परिवार का वारिस माना जाता है और बेटियों को पराया धन। इसीलिए हमारे समाज में पुत्र की महत्वता काफी अधिक है। जबकि लड़कियों को एक जिम्मेदारी मानकर उनका पालन पोषण किया जाता है। और मां बाप समय आने पर उनकी शादी कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाना चाहते हैं।

बेटियां भी इस धरती पर जन्म ले सके। यह बात मां बाप को ही सुनिश्चित करनी होगी। क्योंकि अक्सर समाज के दबाव में या फिर परिवार के दबाव में आकर पढ़े लिखे माता पिता खुद कन्या भ्रूण हत्या कर देते हैं।मां बाप को अपनी बेटियों को भी बेटों की तरह ही अपनी संतान मानकर उनका पालन पोषण करना होगा। और घर से ही , शायद मां-बाप से ही महिला सशक्तिकरण का मार्ग प्रशस्त होगा। 

कई जगहों पर तो अभी भी बाल विवाह जैसी कुरीतियां प्रचलन में है। जिसमें लड़की की शादी बहुत छोटी उम्र में कर दी जाती है।और उसके बाद वह लड़की जीवन भर घर गृहस्थी , पति  , बच्चों और परिवार की जिम्मेदारी में ही उलझ कर रह जाती है।बाल विवाह जैसी कुप्रथा को समाज से हटाकर महिला सशक्तिकरण की तरफ एक ठोस कदम उठाना होगा। 

शिक्षा में भी यह असमानता देखने को मिलती है। ग्रामीण क्षेत्र में यह समानता ज्यादा है।महिलाओं और बच्चियों को शिक्षा ग्रहण करने का पूर्ण अधिकार मिलना चाहिए। क्योंकि एक शिक्षित महिला पूरे परिवार को शिक्षित कर सकती है। और समाज की उन्नति में अपनी अहम भूमिका निभा सकती है। आए दिन महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचारों व शोषण के डर से भी मां-बाप अपनी बेटियों को घर से बाहर निकलने में पाबंदी लगा देते हैं जिससे उनकी पढ़ाई बाधित होती है। नतीजा वो अच्छा रोजगार प्राप्त कर आत्मनिर्भर नहीं हो पाती हैं।

आज भी हमारे समाज में महिलाओं को अपने जीवन के लिए स्वयं निर्णय लेने का अधिकार प्राप्त नहीं है। यह माना जाता है कि महिलाएं स्वयं निर्णय नहीं ले सकती चाहे या सही निर्णय नहीं ले सकती हैं। महिलाओं की सुरक्षा एक अहम मुद्दा है। महिलाएं घर से बाहर हमेशा अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित रहती हैं।क्योंकि घर से बाहर निकलते ही कोई अप्रिय घटना घटने या छेड़छाड़ कां अंदेशा उन्हें हमेशा लगा रहता है।

इसलिए महिलाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है। जब तक समाज में महिलाएं सुरक्षित नहीं होंगी। तब तक महिला सशक्तिकरण की सारी बातें व्यर्थ है।

महिला सशक्तिकरण में सरकार की भूमिका

से ही सही लेकिन चाहे वह केंद्र सरकार हो या राज्य की सरकारें हो। अब उनकी समझ में यह बात आ गई है कि बिना महिलाओं के सशक्तिकरण के या महिलाओं की भागीदारी के कोई भी देश ,राज्य या समाज कभी भी उन्नति नहीं कर सकता है।

क्योंकि किसी भी समाज या देश की उन्नति के लिए पूर्ण आबादी की भागीदारी होना आवश्यक है। और जब आधी आबादी अपने अधिकारों से ही वंचित रहेगी तो , कैसे किसी भी देश या समाज की पूर्ण रूप से उन्नति संभव है।

इसीलिए केंद्र व राज्य की सरकारों ने बड़े स्तर पर महिला सशक्तिकरण से संबंधित कई योजनाओं की शुरुआत की है।महिला एवं बाल विकास कल्याण मंत्रालय के द्वारा महिलाओं से संबंधित कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। जिसमें महिलाओं और बच्चियों के जन्म व स्वास्थ , उनकी शिक्षा-दीक्षा , उनकी सुरक्षा व रोजगार से जुडी योजनाएं मुख्य रूप से शामिल हैं ।

इसके अलावा केंद्र तथा राज्य सरकारों में उनकी भागीदारी को सुनिश्चित करना , पंचायत स्तर पर महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण करना भी शामिल हैं। रोजगार संबंधी क्षेत्रों में भी महिलाओं को सीधे रोजगार से जोड़ने तथा उन्हें आत्मनिर्भर बनने के लिए कुछ क्षेत्रों में उन्हें प्रशिक्षण भी दिया जा रहा हैं। महिलाओं को स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहन देने हेतु बैंकों में लोन से संबंधित विशेष सुविधा आदि प्रदान करने संबंधी योजनाओं भी शुरु की गई है।

वही महिलाओं से संबंधित कुछ अधिनियमों को भी बनाया गया है। जैसे दहेज अधिनियम ,एक समान पारिश्रमिक अधिनियम , लिंग परीक्षण एक्ट , अनैतिक व्यापार अधिनियम , बाल विवाह अधिनियम ,यौन शोषण अधिनियम ,घरेलू हिंसा से संबंधित अधिनियम आदि। इनमें दोषियों के लिए कठोर कार्रवाई या दंड का प्रावधान किया गया है। महिलाओं को सम्मान देने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी मातृ दिवस और अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर अनेक कार्यक्रमों का आयोजन  सरकार द्वारा किया जाता है। 

महिला सशक्तिकरण से लाभ 

महिला सशक्तिकरण का सीधा सीधा लाभ महिलाओं को उनके अधिकारों को प्राप्त करने में मिलेगा। इससे महिलाओं को वह सब अधिकार मिलेंगे जिस पर उनका बुनियादी हक है। अगर महिलाएं शिक्षित व आर्थिक रूप से मजबूत होंगी तो वो दूसरों के दबाव में आकर जिंदगी नहीं जिएंगी।

और उनकी आर्थिक मजबूती उन्हें समाज में सम्मानजनक स्थान दिलाएगी। पढ़ी-लिखी महिलाएं अपने घर , परिवार व बच्चों को शिक्षित कर उन्हें सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देगी। शिक्षित व सशक्त महिलाएं राष्ट्र निर्माण में भी अपनी अहम भूमिका निभाएंगी। सशक्त महिलाएं ही आगे आने वाली पीढ़ियों की महिलाओं और बच्चियों के लिए मजबूत सहारा व प्रेरणा बनेंगी। ताकि भविष्य में आने वाली पीढ़ियों को महिला सशक्तिकरण जैसे अभियान की जरूरत ही ना पड़े। 

महिलाएं अपने अधिकारों व अपने हकों के लिए ज्यादा जागरूक हो पाएंगी। समाज में महिलाओं व पुरुषों का अहोदा एक बराबर होगा। और घर परिवार की जिम्मेदारियां भी महिलाओं और पुरुषों में बराबर बाटेंगी। महिलाओं को उनके बुनियादी हक और अधिकार मिलने से महिलाएं और सशक्त होकर खुलकर, हर क्षेत्र में अपना पूर्ण योगदान देंगी। जिससे राष्ट्र की उन्नति निश्चित होगी। 

उपसंहार

किसी भी समाज में पुरुषों और महिलाओं की अपनी अलग अलग जगह है। और हर समाज में पुरुषों और महिलाओं की बराबर भागीदारी भी आवश्यक है। इसीलिए महिलाओं को भी उनके बुनियादी हक और अधिकारों का मिलना आवश्यक है।

किसी भी समाज का आईना महिलाएं ही होती हैं। समाज की उन्नति महिलाओं की उन्नति पर ही निर्भर करता है।इसीलिए कन्या शिशु को इस दुनिया में आने दें। उसका पालन-पोषण उसको उसके संपूर्ण अधिकार देकर करें। तभी हम एक सभ्य समाज की स्थापना कर सकते हैं। वरना वह दिन दूर नहीं , जब कन्या पूजन को कन्याएं ढूंढने से भी नहीं मिलेंगी और बेटे की शादी कर घर में लक्ष्मी के रूप में बहु लाने के सपने सपने ही रह जाएंगे। 

हमारे समाज में महिलाएं की स्थिति किसी सिक्के की तरह ही है।सिक्के के एक तरफ की महिलाएं अशिक्षित , शोषित , घरेलू हिंसा का शिकार व अपने अधिकारों से वंचित हैं।तो सिक्के के दूसरे पहलू में समाज में कुछ महिलाएं उच्च पदों पर भी आसीन हैं। चाहे वह राजनीतिक , आर्थिक , सामाजिक या वैज्ञानिक क्षेत्र ही क्यों न हो।महिलाओं ने अपना लोहा हर क्षेत्र  में मनवाया है।

लेकिन दुख की बात है कि इन महिलाओं की संख्या बहुत कम है। यूं कहें कि “ऊंट के मुंह में जीरा” के समान ही है। आज के समय की सख्त जरूरत है कि सभी महिलाओं को उनके अधिकार प्रदान कर उन्हें सशक्त व सामर्थ्यवान बनाया जाए। ताकि वो बिना किसी दबाव में आकर अपना जीवन पूर्ण रूप से स्वतंत्रता पूर्वक जी सकें। और अपने लिए अपने नियम खुद तय कर सकें। समाज और राष्ट्र की उन्नति में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकें। 

महिला सशक्तिकरण पर निबंध

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