Chidiya Ki Bachchi Class 7 Summary : चिड़िया की बच्ची का सारांश

Chidiya Ki Bachchi Class 7 Summary :

Chidiya Ki Bachchi Class 7 Summary

चिड़िया की बच्ची कक्षा 7 सारांश 

इस कहानी के लेखक जैनेंद्र कुमार जी हैं जिन्होंने इस पाठ के माध्यम से आजादी के महत्व और मनुष्य के आत्मकेंद्रित स्वार्थी स्वभाव के बारे में बताया है। कहानी में एक अमीर व्यक्ति माधवदास अपनी खुशी के लिए एक नन्ही चिड़िया को सोने के पिंजरे में कैद करना चाहता है जिसके लिए वह उसको तरह – तरह के लालच देता है मगर छोटी चिड़िया को सोने के पिंजरे में रहने से ज्यादा घास के तिनकों से बना अपना घोंसला , माँ के द्वारा खाने के लिए लाये गए अनाज के दाने , माँ की छाती से चिपक कर सोना , आजादी से इधर -उधर फुदकना , सूरज की धूप में उड़ना , हवा से बातें करना व फूलों से खेलना ज्यादा प्रिय है । इसीलिए वह सेठ की बात नही मानती है और उड़ कर अपनी माँ के पास पहुँच जाती है।

कहानी एक ऐसे अमीर व्यक्ति माधवदास की है जिसने संगमरमर की एक आलीशान नई कोठी बनवाई और उसके सामने एक सुंदर बगीचा भी लगवाया जिसमें तरह – तरह के फूल -पौधे व पानी के फव्वारे लगे हुए थे। शाम को थोड़ी गर्मी कम होने के बाद माधवदास कोठी के बाहर चबूतरे में तख्त डालकर मसनद के सहारे बैठकर अपने बगीचे की सुंदरता का आनंद लिया करता था मगर इतना सब होने के बाद भी उसे अपने अंदर कुछ खालीपन सा महसूस होता था।

एक शाम को एक छोटी सी चिडिया गुलाब की टहनी में आकर बैठ गई। उसकी गर्दन लाल थी मगर उसके पंख गुलाबी व किनारों पर नीले रंग के थे जो बहुत ही सुंदर व चमकदार थे। उसके पूरे शरीर में कुदरत ने विचित्र चित्रकारी की थी जिसकी वजह से वह बहुत सुंदर लग रही थी। वह एक डाल से दूसरी डाल पर अपनी नन्ही चोंच से मीठी आवाज निकाल कर खुशी – खुशी पुदक रही थी। माधवदास को वह चिड़िया बहुत पसंद आई। वह कुछ थोड़ी देर तक उसे देखते रहा।

फिर उसने चिड़िया से कहा कि मैंने यह बगीचा तुम्हारे लिए ही बनवाया है। चिड़िया ने माधवदास से कहा कि मैं तो केवल पलभर सांस लेने के लिए यहां रुक गई थी। अब साँझ हो गई है।  मैं माँ के पास जाती हूँ । मुझे नही मालूम था कि यह बगीचा आपका है। माधवदास ने चिड़िया को समझाते हुए कहा कि यह बगीचा मेरा है। तुम चाहो तो यही रह सकती हो।

माधवदास की बात सुनकर चड़िया ने कहा कि मैं तो थोड़ी देर के लिए सूरज की धूप खाने , हवा से बातें करने व फूलों से खेलने के लिए  बाहर निकली थी मगर अब मैं अपनी मां के पास वापस जा रही हूँ । माधवदास चाहता था कि वह नन्ही चिड़िया उसके बगीचे में ही रह जाय। इसीलिए उसने उस नन्ही चिड़िया को तरह -तरह के लालच देने शुरू किये । माधवदास ने नन्ही चिड़िया से कहा कि मैं तेरे रहने के लिए एक सोने का पिंजरा बनवा दूंगा जिसमें मोतियों की झालर लटकी होगी। उसमें तू खुश रहना और मुझे भी खुश रखना।

नन्ही चिड़िया माधवदास की बातों को सुनकर थोड़ा डर गई। वह कहती रही कि दुनिया में मां से अच्छा कोई नही है। वह अपनी माँ के बनाये छोटे से घोंसले में व माँ के लाये अनाज के दानों में ही बहुत खुश है। इसीलिए वह अपनी माँ के पास वापस जा रही है। इसके बाद भी माधवदास उसे रोकने के लिए तरह – तरह के लालच देता रहा। वह कहता रहा कि मेरे पास ढेर सारा सोना है जिससे मै तेरे रहने के लिए एक बहुत ही सुंदर सोने का पिंजरा बनवा दूंगा , तेरे पानी पीने की कटोरी भी सोने की होगी और तू इस सुंदर से बगीचे में रहेगी।

इस बीच माधवदास ने चालाकी से एक बटन दबा दिया जिसकी आवाज सुनकर उसका नौकर दौड़ा-दौड़ा बाहर चला आया। माधवदास ने अपने नौकर को उस नन्ही चिड़िया को पकडने का इशारा किया और खुद उस चिड़िया को अपनी बातों में उलझाने की कोशिश करने लगा। उसने जानबूझकर चिड़िया से पूछा कि उसके कितने भाई – बहन है। इस पर चिड़िया ने कहा कि उसके दो बहिन व एक भाई है।

माधवदास लगातार चिड़िया से बातें करता रहा मगर चिड़िया अपने घर जाने के लिए बैचेन थी। उसने माधवदास से कहा कि रात होने वाली है और वह अँधेरे में अपने घर का रास्ता भूल जायेगी और उसकी माँ भी उससे बहुत दूर है। इतना कहते ही अचानक उस नन्ही चिड़िया को आभास हुआ कि उसके कोमल शरीर को किसी कठोर हाथों ने स्पर्श किया है। वह जोर से चीखी और एकदम उड़ गई जिससे वह नौकर के हाथ से फिसल गई।

नन्ही चड़िया तेजी से उड़कर अपनी मां के पास पहुंच गई। मां की गोद में पहुंचकर उसने जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया। मां उससे उसके रोने व डरने का कारण पूछती रही लेकिन वह कुछ ना बता पाई। थोड़ी देर बाद वह अपनी पलक बंद कर अपनी मां की छाती से ऐसे चिपक कर सो गई जैसे तो वो अब कभी अपनी पलक खोलेगी ही नही।

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