Maa Nanda-Sunanda Devi Mahotsav At Nainital.
Maa Nanda-Sunanda Devi Mahotsav
कुमाऊं में बड़े श्रद्धा व विश्वास के साथ मनाया जाता है मां नंदा-सुनंदा देवी महोत्सव (Maa Nanda-Sunanda Devi Mahotsav)।
नंदा देवी महोत्सव (Maa Nanda-Sunanda Devi Mahotsav) कुमाऊं में अनेक जगहों जैसे अल्मोड़ा, नैनीताल, भवाली ,रानीखेत ,बागेश्वर आदि क्षेत्रों में धूमधाम से मनाया जाता है।लेकिन आज मैं बात करूंगी सरोवर नगरी नैनीताल में मनाए जाने वाले नंदा देवी महोत्सव की।
इन दिनों नैनीताल पूरी तरह से मां नंदा देवी के महोत्सव (Maa Nanda-Sunanda Devi Mahotsav) के रंग में रंगा हुआ है। पूरा शहर किसी दुल्हन की तरह से सजा हुआ है।विशेषकर मां नैना देवी मंदिर की सजावट देखते ही बनती हैं। मां नंदा देवी के भक्तों के आरती ,कीर्तनों व जयकारों से पूरा शहर गुंजायमान हुआ है।
चारों तरफ मां के भजन व जयकारे ही सुनाई देते हैं। आज तो ऐसा लग रहा है कि वाकई में मां नंदा और सुनंदा इस सरोवर नगरी के कण कण में व हर भक्त के हृदय में विराजमान है।नैनीताल ही नहीं बरन दूर-दूर से ( देश-विदेश से) इस महोत्सव (Maa Nanda-Sunanda Devi Mahotsav) को देखने और इसमें शामिल होने के लिए लोग से इन दिनों नैनीताल पहुंचते हैं। क्या बच्चे, क्या बूढ़े, क्या युवा सभी लोग इस महोत्सव में बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं।
हर व्यक्ति बड़ी श्रद्धा और विश्वास के साथ मां नंदा-सुनंदा का स्वागत करता है।और फिर उसकी भक्ति में डूब जाता है।यह महोत्सव लगभग सप्ताह भर तक चलता है। इस महोत्सव में भव्य मेलों तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है।
क्या हैं स्टार्टअप और स्टैंडअप योजना ?
भाद्रपद माह यानी सितंबर माह में अटूट श्रद्धा व विश्वास के साथ मनाए जाने वाले इस नंदा-सुनंदा देवी महोत्सव (Maa Nanda-Sunanda Devi Mahotsav) का कुमाऊं में विशेष महत्व है। यह महोत्सव कुमाऊं के महान पौराणिक व समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाता है साथ ही साथ यह कुमाऊं की लोक संस्कृति की पहचान भी है।
नैनीताल में मां नंदा-सुनंदा देवी महोत्सव (Maa Nanda-Sunanda Devi Mahotsav) को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। नैनीताल में मां नंदा देवी महोत्सव का शुभारंभ भाद्रपद माह की पंचमी तिथि से होता है इस दिन लगभग दोपहर के वक्त महोत्सव का शुभारंभ किया जाता है।
उसके बाद चार बजे शाम को पहले से निर्धारित व पूजा अर्चना किए हुए कदली (केले के पेड़) के वृक्षों को लेने हेतु महोत्सव की आयोजक संस्था श्री राम सेवक सभा के सभी पदाधिकारी तथा अन्य भक्तगणों के साथ समीपवर्ती चयनित गांव में जाते हैं।(गांव तथा कदली के वृक्षों का चयन आयोजक संस्था श्री रामसेवक के द्वारा पहले ही कर लिया जाता है)।
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अगले दिन (पष्ठी तिथि को) इन कदली के वृक्षों को जड़ समेत उखाडा जाता हैं।और उसकी जगह पर नये पौधे का रोपण किया जाता हैं।इससे आस्था के साथ-साथ पर्यावरण की भी सुरक्षा का सन्देश दिया जाता हैं।फिर इन कदली वृक्षों को नैनीताल लाया जाता है।
सूखाताल व तल्लीताल में मां वैष्णो देवी के मंदिर में इन वृक्षों की पूजा अर्चना की जाती है। उसके बाद माता के भक्तगण इन्हें मां के जयकारों के साथ नगर भर में घुमाते हैं ।अंत में शाम को ये भक्तगण मां नंदा देवी मंदिर में पहुंचते हैं। इसके बाद यहां पर भी इनकी पूजा अर्चना की जाती है। फिर इनसे (कदली के वृक्षों ) से मां नंदा-सुनंदा की प्रतिमाओं का निर्माण शुरू हो जाता है ।
सप्तमी तिथि के दिन इन कदली वृक्षों से दिनभर सभा के पदाधिकारी व अन्य भक्तजन मां नंदा-सुनंदा की आकर्षक मूर्तियों का निर्माण करते हैं ।देर रात में इन्हें मां नैना देवी मंदिर में सजे मंडप में सजा दिया जाता है।
अष्टमी तिथि के दिन ब्रह्म मुहूर्त में पंडितों के द्वारा पूरे विधि विधान से इन मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है।उसके बाद भक्तजनों की पूजा अर्चना हेतु खोल दिया जाता है।
इसके बाद शुरू होता है भक्तों का आने का सिलसिला।भजन-कर्तन का सिलसिला। हजारों की संख्या में भक्तगण आते हैं।माता के दर्शन करते हैं।आशीर्वाद स्वरुप प्रसाद ग्रहण करते हैं।तथा माता से आशीर्वाद लेकर अपने जीवन में तरक्की व सफ़लता के रास्ते पर चलते हैं।दिनभर मंदिर में धार्मिक अनुष्ठानों चलता रहता हैं ।जिसकी वजह से नगर का वातावरण भक्तिमय हो जाता है।
यह क्रम द्वादशी तिथि तक चलता है। द्वादशी के दिन दोपहर लगभग 12 बजे मां नंदा-सुनंदा की मूर्तियों को एक डोली में सजा कर नगर में उनकी भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है।डोली के साथ भक्त नाचते गाते नैना देवी मंदिर से निकलते हैं। और दिनभर नाचते-गाते मां के जयकारे लगाते इस डोले के साथ पूरे नगर भर में चलते रहते हैं।
लोकसंगीतों की धुन,छोलिया,झोड़ा लोकगीत,लोक नृत्य ,शिव महाकाली,राधा कृष्ण व गोपियों की भव्य झांकियां,अखाड़े में करतब करते जांबाज आकर्षण का केंद्र रहे रहते हैं। श्रद्धा व विश्वास से उठता है मां नंदा-सुनंदा का डोला।और शाम को ठंडी सड़क स्थित पाषाण देवी मंदिर में इन मूर्तियों को विधि विधान के साथ विसर्जित कर दिया जाता है।
मां नंदा-सुनंदा भी सबको आशीर्बाद देकर बिदा होती है।इसी के साथ ही इस शानदार महोत्सव का समापन हो जाता है। हर व्यक्ति के दिल में मां सुनंदा का यह महोत्सव अपनी मीठी-मीठी यादें देकर चला जाता हैं।हर व्यक्ति यही कामना करता है कि मां नंदा -सुनंदा अगले साल फिर से आना।
महोत्सव के दौरान अष्टमी से हर रोज मल्लीताल मां नैना देवी मंदिर प्रांगण में श्री राम सेवक सभा तथा तल्लीताल दर्शन घर में उद्योग व्यापार मंडल तल्लीताल की ओर से पंच आरती का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है ।जो महोत्सव का विशेष आकर्षण रहता है इसी दौरान भक्तजनों को प्रसाद वितरित किया जाता है।
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इस दौरान शहर की खूब साज सज्जा की जाती है।पूरे शहर को सजाया जाता है।मेलों का आयोजन किया जाता है जिसमें सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम रहती है।तथा लोक कलाकार सांस्कृतिक कार्यक्रमों को बड़े धूमधाम से प्रस्तुत करते हैं ।
इन सांस्कृतिक कार्यक्रमों में जहां एक ओर छबेली, झोड़ा चांचरी ,भगनौल,ननौलों को शानदार ढंग से प्रस्तुत किया जाता है वहीं दूसरी ओर छोलिया नृत्य के कलाकार अपने नृत्य से लोगों का मन मोह लेते हैं।दुकानें भी तरह तरह के आकर्षक वस्तुओं से सजी रहती हैं। इस नंदा देवी महोत्सव के लिए कुमाऊं के प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में अपार श्रद्धा है।
यह भक्ति और आस्था का महोत्सव है। कुमाऊ के हर जड़ चेतन ,यहां के कण-कण में मां नंदा-सुनंदा का वास है। मां नंदा-सुनंदा महोत्सव कुमाऊं की लोक संस्कृति की पहचान तो है ही।साथ ही साथ इससे हमारे आने वाली नई पीढ़ियों को अपने रीति रिवाज ,अपनी परंपराओं,संस्कृत धरोहरों को जानने का मौका मिलता है। जिससे वह आने वाले वक्त में अपनी इस अनमोल विरासत को, अपने पूर्वजों की धनी व समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को संभाल सकें।
मेले में सभी लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। खासकर युवा वर्ग में इस मेले के प्रति काफी उत्साह रहता है। नगर की साज-सज्जा तो देखते ही बनती हैं।नंदा देवी महोत्सव (Maa Nanda-Sunanda Devi Mahotsav) से जुड़े लोग इस मेले की तैयारियां एक महीने पहले से ही शुरु कर देते हैं।
इस महोत्सव से जुड़ी कथाएं भी हैं।
(1) एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार दक्ष प्रजापति ने एक विशाल यज्ञ के आयोजन किया। और इस आयोजन में भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती को आमंत्रित नहीं किया । माता पार्वती को यह बात अत्यधिक बुरी लगी और वह हठ कर यज्ञ में पहुंच गई ।लेकिन उनके पिता दक्ष प्रजापति ने भगवान भोलेनाथ का घोर अपमान किया।
माता पार्वती अपने पति का यह अपमान सहन नहीं कर पाई और माता पार्वती ने स्वयं को यज्ञ कुंड में समर्पित कर दिया ।बाद में भगवान भोलेनाथ ने वीरभद्र को भेजकर दक्ष को दंडित कर तो दिया लेकिन वे स्वयं सुध बुध भूलकर मां पार्वती का शव लेकर जहां-तहां भटकने लगे ।इस पर नारायण ने अपने सुदर्शन चक्र से माता पार्वती के शव को कई टुकड़ों में बांट दिया।
ऐसा माना जाता है कि ये टुकड़े 51 स्थानों पर गिरे। बाद में इन सभी जगहों पर शक्तिपीठों की स्थापना हुई ।और वहां पर मां पार्वती की पूजा अर्चना की जाने लगी । ऐसा कहा जाता है कि मां सती की आंख नैनीताल में गिरी जिससे यहां नैनी झील बनी।
(2) एक अन्य कथा के अनुसार चंद्र राजा की दो बहनें नंदा व सुनंदा एक बार देवी के मंदिर जा रही थी ।तभी एक राक्षस ने भैंस का रूप धारण कर उनका पीछा करना शुरू कर दिया।इससे डरी-सहमी ये दोनों बहनें केले के पत्तों के बीच जाकर छुप गई। तभी एक बकरे ने आकर केले के पत्तों को खा लिया और भैंसे ने दोनों बहनों को मार डाला।
बाद में अतृप्त आत्माओं के रूप में दोनों बहनों ने चंद् राजा को मां नंदा देवी मंदिर स्थापित कर पूजा अर्चना करने को कहा था।ताकि उनकी आत्मा को शांति मिल सके।तभी से मां नंदा-सुनंदा की पूजा-अर्चना होने लगी।धीरे-धीरे पूरी देवभूमि (कुमाऊं) में कई जगहों पर भव्य महोत्सवों का आयोजन होने लगा।
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महोत्सव के आयोजन के शुरुवात
नगर के एक महान समाजसेवी तथा धर्म में अटूट आस्था रखने वाले स्वर्गीय मोतीलाल शाह की ओर से वर्ष 1883 में मां नैना देवी मंदिर का निर्माण शुरू कराया गया। उसके बाद 1903 में पहली बार मां नंदा देवी महोत्सव (Maa Nanda-Sunanda Devi Mahotsav) का आयोजन किया गया ।वर्ष 1925 तक स्वर्गीय मोती लाल शाह के परिजनों के द्वारा ही इस महोत्सव का आयोजन किया जाता था।
वर्ष 1926 से नगर की प्रतिष्ठित संस्था श्री राम सेवक सभा की ओर से लगातार इस महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। इस वर्ष महोत्सव 115 वहां वर्ष पूरा कर चुका है।वर्तमान में सरोवर नगरी नैनीताल में आयोजित होने वाला मां नंदा देवी महोत्सव (Maa Nanda-Sunanda Devi Mahotsav) सभी भक्तगणों की आशा, अभिलाषा व सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक बन चुका है।आयोजक संस्था श्री राम सेवक सभा अपना शताब्दी वर्ष मना रही है।
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