Ramayan Ki Story : केवल लक्ष्मण ही मेघनाद का वध कर सकते थे। जानिए कारण

Ramayan Ki Story :

Ramayan Ki Story

केवल लक्ष्मण ही मेघनाद का वध कर सकते थे 

रामायण की कहानी

ऐसा कहा जाता हैं कि केवल लक्ष्मण ही मेघनाद का वध कर सकते थे। जी हाँ !! एक कथा अनुसार यही सच हैं।आइये जानते हैं लक्ष्मण का यह रहस्य।

भगवान श्री राम के राज्याभिषेक के बाद एक दिन अगस्त्य मुनि अयोध्या पधारे और बातों बातों में ही लंका युद्ध का प्रसंग छिड़ गया ।

तब भगवान श्रीराम ने अगस्त्य मुनि को बताया कि कैसे उन्होंने रावण और कुंभकर्ण जैसे राक्षस वीरों का वध किया और कितनी वीरता व कुशलता से लक्ष्मण ने भी मेघनाद और अतिकाय जैसे शक्तिशाली राक्षसों को मारा। और विभीषण को लंका का राजा बना उसे दिया हुआ वचन भी निभाया।

अगस्त्य मुनि शान्त भाव से यह सब सुनते रहे। फिर कुछ क्षण रुक कर बोले “इसमें कोई शक नहीं कि रावण और कुंभकर्ण अत्यंत वीर थे।उन्हें मारना अत्यधिक कठिन था। लेकिन सबसे बड़ा व अजेय वीर तो मेघनाद ही था। उसने देवताओं के राजा इंद्र से युद्ध किया था और उसे बांधकर लंका ले आया।

उसके बाद ब्रह्माजी को इंद्र को मेघनाद के चुंगल से मुक्त करने के लिए मेघनाद से दान के रूप में इंद्र को मांगना पड़ा। तब जाकर कहीं इंद्र मुक्त हुए।ऐसे योद्धा का लक्ष्मण ने वध किया। इसलिए लक्ष्मण ही सबसे बड़े योद्धा हुए।

भाई की प्रशंसा सुनकर श्रीराम बड़े खुश भी हुए।लेकिन साथ ही वो ये भी सोच रहे थे कि मेघनाद का वध करना रावण के वध करने से ज्यादा मुश्किल क्यों था।

उन्होंने अगस्त्य मुनि के सामने अपनी जिज्ञासा रखी और कहा  “हे गुरु श्रेष्ठ !! आप मेरी इस जिज्ञासा का समाधान कीजिए।

तब अगस्त्य मुनि ने कहा “हे राम !! आप तो सर्वज्ञानी हैं। आपको सब पता हैं। फिर भी आप कहते हैं तो सुनिए”।

मेघनाद को ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त था कि उसका वध सिर्फ वही व्यक्ति कर सकता हैं जो चौदह वर्षों तक सोया न हो , जिसने चौदह वर्षों तक किसी स्त्री का मुख न देखा हो और जिसने चौदह वर्षों तक भोजन न किया हो।

श्रीराम बोले “परंतु गुरुदेव , बनवास के दौरान मैं चौदह वर्षों तक नियमित रूप से लक्ष्मण के हिस्से का कन्द मूल फल उसे दे देता था। और बनवास के दौरान मैं सीता के साथ जिस कुटिया में रहता था। उसी के बगल में लक्ष्मण की कुटिया थी। फिर ऐसा कैसे सम्भव हैं कि उसने सीता का मुख न देखा हो।

और गुरुदेव कोई भी व्यक्ति बिना सोए नहीं रह सकता। हर व्यक्ति के शरीर को विश्राम की आवश्यकता तो होती ही है। और अत्यधिक थके होने पर व्यक्ति को नींद आना स्वाभाविक है। ऐसे में लक्ष्मण चौदह वर्षों तक सोए न हों , ऐसा कैसे संभव है”। 

श्री राम की बात सुनकर अगस्त मुनि मंद मंद मुस्काए। और बोले “क्यों न इस सच को लक्ष्मण से ही सुना जाए” ।

भगवान श्रीराम ने तुरंत लक्ष्मण को बुला भेजा और उनसे कहा आपसे जो पूछा जाए उसका जबाब सही सही देना।लक्ष्मण बोले “भैया क्या ऐसा हो सकता है कि मैं आपसे झूठ बोलूं । पूछिये आप क्या पूछना चाहते हैं”।

तब श्रीराम ने लक्ष्मण से पूछा “मैं , सीता और तुम हम तीनों चौदह वर्षों तक वनवास में एक साथ रहे। फिर भी तुमने सीता का मुख कभी नहीं देखा। क्या यह सच हैं “?

लक्ष्मण ने गंभीरता पूर्वक जबाब “भैया , जब हम भाभी की तलाश में ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचे , तो सुग्रीव ने हमें भाभी के आभूषण दिखाकर पहचानने को कहा था । आपको याद होगा मैं उनके पैरों के पायलों के अलावा उनका कोई और आभूषण नहीं पहचान पाया था। क्योंकि मैंने उनके चरणों के ऊपर उनको कभी भी नहीं देखा।

फिर श्रीराम ने दूसरा सवाल किया “गुरुदेव कह रहे हैं कि तुम 14 साल तक सोए नहीं ? क्या यह भी सच हैं “?

लक्ष्मण ने मुस्कराते हुए जबाब दिया “हाँ भैय्या , यह सच हैं। जब आप औऱ भाभी कुटिया में सोते थे। तो मैं रातभर उस कुटिया के बाहर धनुष पर बाण चढ़ाए पहरेदारी में करता था।जब निद्रा देवी ने मेरी आंखों पर कब्जा करने की कोशिश की तो , मैंने उसे भी अपने बाणों से बेध दिया।

आख़िरकार एक रात निद्रा देवी ने हारकर मुझसे कहा कि अब वह चौदह वर्षों तक मेरे आँखों में नहीं बसेगी। लेकिन अयोध्या में जब श्रीराम का राज्याभिषेक होगा और मैं उनके पीछे छत्र लेकर खड़ा रहूंगा। तो वह मेरी आँखों में बस जायेगी। भैय्या शायद आपको याद होगा , आपके राज्याभिषेक के वक्त नींद आने के कारण मेरे हाथों से छत्र गिर गया था। 

श्री राम लक्ष्मण की तरफ बड़े प्यार से देख कर मुस्कुराए और फिर बोले “जब भी हम भोजन करते थे , तो मैं अपने और सीता के हिस्से के फल रखकर तुम्हें तुम्हारे हिस्से के फल खाने को देता था। फिर तुम 14 वर्षों तक निराहार /अनाहार कैसे रहे। क्या तुमने सच में वह फल नहीं खाए थे” । 

अब लक्ष्मण शांत होकर बोले “हाँ , मैं 14 वर्षों तक अनाहारी रहा । इसका कारण था कि मैं जो कंद मूल या फल लेकर आता था। आप उसके तीन हिस्से करते थे। मेरा हिस्सा मुझे देकर , आप मुझसे कहते थे “लक्ष्मण फल रख लो”। आपने कभी यह नहीं कहा कि “लक्ष्मण फल खा लो”। फिर मैं भला आपकी आज्ञा के बिना कैसे उन फलों को खाता”।

मैंने उन सभी फलों को संभाल कर रख दिया। आज भी वो सभी फल उसी कुटिया में रखे होंगे।

भगवान श्री राम ने चित्रकूट से उस फल की टोकरी को लाने का आदेश दिया। आदेश का पालन किया गया। लक्ष्मण चित्रकूट की उस कुटिया में रखी फलों की टोकरी को लेकर आये और दरबार में रख दिया। सभी फलों की गिनती हुई , तो उस टोकरी में सात दिन के फल नहीं थे।

भगवान श्री राम बोले “इसमें सात दिन के तुम्हारे हिस्से के फल नहीं हैं। इसका मतलब तुमने सात दिन तो वो फल खाये”।

तब लक्ष्मण ने भगवान श्री राम को बताया उन सात दिनों में फल आए ही नहीं। इसीलिये उन सात दिनों के फल कम हैं।अब श्री राम बड़े आश्चर्य चकित होकर लक्ष्मण की तरफ देखने लगे। तब लक्ष्मण ने उन्हें विस्तारपूर्वक बताया 

1 . जिस दिन हमें पिताजी के स्वर्गवासी होने की सूचना मिली , उस दिन हमने आहार नहीं लिया ।

2 . जिस दिन रावण ने माता सीता का हरण किया। उस दिन मैं फल लाया ही नहीं ।

3 . जिस दिन हम लंका जाने के लिए समुद्र से रास्ता मांगने के लिए समुद्र की साधना कर रहे थे।उस दिन भी फल नहीं आए। 

4 . जिस दिन आप और मैं मेघनाद के नागपाश में बंधकर दिनभर अचेत रहे।उस दिन फल कौन लाता। 

5 . जिस दिन मेघनाद ने मायावी सीता का सिर काटा था। हम शोकमग्न होकर बैठ गये थे।

6 . जिस दिन मेघनाद के द्वारा मुझे शक्ति लगी थी।

7 . और जिस दिन रावण का वध हुआ था।

इन दिनों में हमने भोजन नहीं किया। भैय्या मैंने गुरु विश्वामित्र से और विद्याओं के साथ-साथ एक बिना आहार किए जीने की विद्या का ज्ञान भी लिया था।उसी विद्या के प्रयोग से मैं चौदह वर्षों तक भूखा रह सका।

भगवान श्रीराम ने जब यह सुना तो उनके आखों से अश्रु बह निकले। और उन्होंने लक्ष्मण को गले से लगा लिया ।

सच में लक्ष्मणजी की राम भक्ति व तपस्या अद्भुत थी।जिसके बल पर उन्होंने मेघनाद जैसे शक्तिशाली , महापराक्रमी वीर को परास्त किया और भगवान श्री राम की विजय का मार्ग प्रशस्त किया। 

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