A Ramayana Story : श्री राम के सबसे छोटे भाई शत्रुघ्न व श्रुतिकीर्ति का अनोखा त्याग

A Ramayana Story : शत्रुघ्न व श्रुतिकीर्ति का त्याग 

शत्रुघ्न व श्रुतिकीर्ति का त्याग

A Ramayana Story

यह कहानी है राजा दशरथ के चारों पुत्रों के अनंत आपसी प्रेम की , उनके त्याग की।यह कहानी  भगवान राम के सबसे छोटे भाई शत्रुघ्न के त्याग से जुड़ी हुई है।

जब भगवान राम पिता की आज्ञा से वनवास गए।तब भरत अयोध्या के बाहर नंदीग्राम में एक कुटिया बनाकर तपस्वी के भेष में रहते थे।और वही से अयोध्या का राजकार्य देखते थे। 

लेकिन अयोध्या के राजकार्य को देखने व उसे ठीक से चलाने की समस्त जिम्मेदारी शत्रुघ्न के कंधों पर थी।वो भरत के दिशानिर्देशों का पालन कर राजकार्य की जिम्मेदारी बखूबी निभा रहे थे।शत्रुघ्न ने अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए त्याग का एक अनोखा उदाहरण प्रस्तुत किया। 

एक रात माता कौशिल्या को अपने महल की छत पर किसी के चलने की आहट सुनाई दी।उन्होंने तुरंत पहरेदार को बुलाकर पता करवाया कि छत में आधी रात को कौन घूम रहा  हैं।पहरेदार तुरंत छत में गया तो पता चला की छत में श्रुतिकीर्ति टहल रही थी । श्रुतिकीर्ति शत्रुघ्न की पत्नी थी।

पहरेदार ने माता कौशल्या को आकर इस बारे में जानकारी दी। इसके बाद माता कौशल्या ने श्रुतिकीर्ति को नीचे बुलाया गया।श्रुतिकीर्ति तुरंत माता के आदेश पर नीचे आई और उसने माता को प्रणाम किया। 

माता कौशिल्या ने श्रुतिकीर्ति से पूछा “श्रुतिकीर्ति  इतनी रात में छत पर अकेली क्या कर रही थी ? शत्रुघ्न कहाँ है ? श्रुतिकीर्ति ने बड़ी गंभीरता से माता कौशल्या की तरफ देखा। फिर कुछ क्षण रुक कर बोली “माता , उन्हें तो मैने तेरह वर्षों से नहीं देखा हैं ” ।

यह सुनकर माता कौशल्या बहुत दुखी हुई और उन्होंने तुरंत पहरेदारों को बुलाया और उनसे पालकी तैयार करने को कहा। माता कौशल्या आधी रात में ही खुद शत्रुघ्न की खोज में निकल पड़ी।

पूरा राज महल ढूंढा डाला , नगर-नगर गांव-गांव शत्रुघ्न को ढूंढा।पर शत्रुघ्न कही नहीं मिले। अंत में माता कौशल्या नंदिग्राम पहुंची , जहाँ भरत कुटिया बनाकर तपस्वी भेष पर रहते थे।उसी कुटिया के बाहर एक पत्थर की शिला पर अपनी बाँह का तकिया बनाकर शत्रुघ्न सोये थे ।

माता ने जब उनको इस तरह सोये हुए देखा तो इनका ह्रदय काँप उठा। वो धीरे से शत्रुघ्न के बगल में जाकर बैठ गई और प्यार से उनके सिर में हाथ फेर कर उन्हें जगाने लगी। 

शत्रुघ्न ने जैसे ही मां की आवाज सुनी तो , वो उठ खड़े हुए और माता को प्रणाम कर बोले “माता , आपने यहां आने का कष्ट क्यों किया। मुझे ही बुला लिया होता”। 

माता ने बड़े प्यार से जवाब दिया “क्यों , एक मां अपने बेटे से मिलने नहीं आ सकती। मैं भी आज अपने बेटे से ही मिलने आई हूं। लेकिन तुम इस हालत में यहां क्यों सोए हो”। 

शत्रुघ्न का गला रुंध गया। वो बोले “माँ। बड़े भैया राम पिता की आज्ञा से वन चले गए। भैया लक्ष्मण उनके साथ चले गए। और भैया भरत भी नंदिग्राम में कुटिया बनाकर मुनि भेष धारण कर रह रहे हैं। क्या ये राजमहल , राजसी ठाट बाट सब विधाता ने मेरे ही लिए बनाए हैं ?

माता कौशल्या इस सवाल का कोई जबाब नहीं दे पाई। और वह एकटक शत्रुघ्न को निहारती रही।

दरअसल शत्रुघ्न राजसी भेषा में रहकर राजकाज का काम जरुर करते थे। लेकिन उन्होंने भी अपनी पत्नी श्रुति कीर्ति से दूरी बना ली थी। और राजमहल की भोग विलासिता का भी त्याग कर दिया था। 

 यह कहानी मिसाल है  हम सभी लोगों के लिएवैसे तो रामायण की हर कहानी अपने आप में त्याग प्रेम  सहिष्णुतामर्यादा की सीख देती है लेकिन यह कहानी अपने आप में त्याग की एक मिसाल है

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