घी संक्रांति या धी त्यार या घ्यूसग्यान या ओलगिया का त्यौहार

घी संक्रांति

हमारा देश प्राचीन काल से ही कृषि प्रधान देश रहा है ।यहां पर कृषि ,किसान ,पशु तथा ऋतु से संबंधित अनेक पर्व मनाए जाते हैं। कोई पर्व खेती के परिपक्व होने व काटे जाने के वक्त तथा कोई पर्व खेती के बोने के समय पर मनाया जाता है। ये पर्व अलग-अलग राज्यों में वहां के ऋतु-परिवर्तन तथा वहां पर होने वाली फसल के हिसाब से मनाए जाते हैं ।

उत्तराखंड में भी ऋतु परिवर्तन के वक्त, किसान ,पशु और फसलों को लेकर कई तरह के उत्सव मनाए जाते हैं। क्योंकि प्राचीन काल से यहां के लोगों का खासकर कुमाऊं के पहाड़ी भूभाग में लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि और पशु ही हैं।

विभिन्न ऋतुओं में होने वाली पैदावार ,फल ,फूल ,अनाज को इन पर्वों से जोड़कर उसके महत्व को समझाया गया है ।इनके वैज्ञानिक आधार भी हैं जिनकी जानकारी हमारे पूर्वजों को थी।इसीलिए उन्होंने इन वैज्ञानिक आधारों को बड़ी चतुराई से धर्म और पर्व से जोड़कर इसे एक त्यौहार का रूप दे दिया। जिसे लोग बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाते हैं ।

विश्व स्वास्थ्य दिवस क्यों मनाया जाता है

घी संक्रांति कब मनाया जाता है 

ऐसा ही एक त्यौहार है भाद्रपद मास के प्रथम दिन (सिंह संक्रांति) को मनाया जाने वाला पर्व धी-संक्रांति या धी त्यौहार ।कुमाऊ के पर्वतीय इलाकों में घर-घर में मनाया जाने वाला यह त्यौहार (घी संक्रांति ) विशेष रूप से किसान को पशुओं से मिलने वाली वस्तुओं व प्रकृति से मिलने वाले फल ,फूलों पर आधारित है । यानी एक दिन जमकर घी खाने व खिलाने का व उपहार स्वरूप देने का।

पहले घी संक्रांति का यह पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता था।जिन परिवारों में दुधारू पशु होते थे। उस घर की महिलाएं इस दिन दही को मथ कर ताजा मक्खन बनाती थी।फिर उस ताजा मक्खन से ताजा धी बनाया जाता था। फिर परिवार के सभी सदस्यों को ताजा धी स्वादिष्ट पकवानों के साथ खाने को दिया जाता था।

घी संक्रांति के दिन कई सारे पकवान भी बनाए जाते थे। जो खासकर पहाड़ में उगने वाले अनाजों से बनाए जाते थे। जैसे उड़द के बड़े, उड़द की रोटी जिसे आम भाषा में “बेडवा रोटी “ कहा जाता हैं। साथ ही साथ चावल के आटे से बनने वाले स्वादिष्ट व्यंजन सिंगल तथा चावल से बनने वाली खीर व पुवे आदि तरह के पकवान बनाए जाते हैं ।जिनमें धी का खूब इस्तेमाल किया जाता हैं।

क्या है प्रधानमंत्री मुद्रा योजना

ऐसा माना जाता था कि घी संक्रांति के दिन धी न खाने वाला व्यक्ति अगले जन्म में निश्चित ही धोंधा (गनेल) बनता है ।वर्षा ऋतु के बाद आने वाले इस त्यौहार में कृषक परिवारों के पास दूध व धी की कोई कमी नहीं होती हैं क्योंकि वर्षा काल में पशुओं के लिए हरा घास व चारा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होता हैं।

इसी कारण  दुधारु जानवर पालने वाले लोगों के घर में  दूध व धी की कोई कमी नहीं होती है। यह सब आसानी से वह प्रचुर मात्रा में  उपलब्ध हो जाता है।और इस मौसम में घी खाना स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक लाभदायक भी माना जाता है। यह शरीर को नई ऊर्जा प्रदान करता है।तथा बच्चों के सिर में भी घी की मालिश करना अति उत्तम समझा जाता है।

घी संक्रांति   ताजा व धी स्वादिष्ट …

बदलते समय में घी संक्रांति के इस त्यौहार का अस्तित्व लगभग खत्म हो गया है।क्योंकि अधिकतर लोगों ने पशुपालन व खेती करना छोड़ दिया है। लेकिन अभी भी उत्तराखंड के गांव में जो लोग कृषि का कार्य व पशुपालन का कार्य करते हैं वो इस त्यौहार को आज भी बड़े शौक से मनाते हैं।

कब मनाया जाता है विश्व पर्यावरण दिवस

ओलगिया 

कुमाऊं मंडल में इस त्यौहार को एक और रूप में भी मनाया जाता है जिसे वह ओलगिया कहते हैं ।जिसका अर्थ है  “व्यक्ति विशेष से भेंट कर उसको प्रकृति से मिलने वाली वस्तुओं को उपहार में देना “। यह एक अनोखा पर्व है जिसमें दामाद की ओर से अपने ससुरालियों को उपहार या ओलग दिया जाता है ।

इस मौसम में आसानी से उपलब्ध होने वाली चीजों को उपहार स्वरूप दिया जाता है। जैसे दही , मक्खन, भुट्टे ,ककड़ी, अखरोट, और एक सबसे विशेष साग गाबा (अरबी या पिनालू की कोमल पत्तियां) । अरबी की इन पत्तियों को विशेष तौर से भेंट किया जाता है। इनको सम्मान का प्रतीक माना जाता है।

इस मौसम में उगने वाले अरबी के कोमल पत्तों (गाबों) की सब्जी बहुत ही स्वादिष्ट होती है।इसीलिए इस दिन प्रथम बार इन गाबौं को तोड़ा जाता है। उसके बाद सबसे पहले भुट्टे ,धी व मक्खन के साथ इसको भूमि देवता को और ग्राम देवता को अर्पित किया जाता है । उ

सके बाद ही घरवाले इसे सब्जी के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। तथा उपहार स्वरुप दे सकते हैं । इससे पहले अरबी के पत्तों को तोड़ना व खाना वर्जित माना जाता है ।

गाबा (अरबी या पिनालू की कोमल पत्तियां)     गाबा (अरबी या पिनालू की कोमल पत्तियां)

हो सकता है इसका एक वैज्ञानिक आधार हो कि इससे पूर्व अरबी के पौधे पूरी तरह से तैयार नहीं होते हैं और ना ही अरबी की गांठे (भूमि के अंदर बनने वाली ) का पूर्ण तरीके से विकास होता है ।अगर इन पत्तों को तोड़ लिया जाए तो अरबी की गांठ है नहीं बन पाएंगी। क्योंकि पत्तियों से ही पूर्ण पोषण गाठों को मिलता है ।

इस समय तक यह अरबी पूरी तरह से तैयार हो जाती है इसलिए अब इसकी कोमल पत्तियों को तोड़कर सब्जी के रूप में प्रयोग करने से  इसकी गांठों और पौधों को ख़ास नुकसान नहीं पहुंचता है ।इस परंपरा का निर्वहन हमारे पूर्वज बहुत ही शौक से करते थे।

लेकिन समय बदलने के साथ-साथ अब यह  लगभग लुप्त प्राय हो गई है। और शायद हमारी आगे आने वाली पीढ़ी तो इस लोकपर्व के नाम को सुन भी नहीं पाएगी ।यह बहुत ही दुखद है!!!!!! मगर सच है….।

You are most welcome to share your comments.If you like this post.Then please share it.Thanks for visiting.

यह भी पढ़ें……

पढ़िए शानदार Inspirational New Year Quotes (हिंदी में )

कब मनाया जाता है पितृ दिवस

क्या संबंध है हरेला त्यौहार और पर्यावरण

अंतरराष्ट्रीय रेडक्रॉस दिवस क्यों मनाया जाता है