Mahashivratri Festival :
महाशिवरात्रि पर्व
Mahashivratri Festival
भगवान भोलेनाथ और जगत माता पार्वती के विवाह के पर्व के रूप में मनायी जाती हैं महाशिवरात्रि । आस्था व विश्वास का महापर्व महाशिवरात्रि । “सत्यम शिवम सुंदरम” अर्थात् जो सत्य है वही शिव है और शिव ह़ी सुंदर हैं।
देवों के देव महादेव ,संतो के आराध्य देव महादेव ,जिनका रूप ऐसा कि हर मन मोह ले। अद्भुत , अकल्पनीय , अविश्वसनीय । सिर पर जटाओं में सुशोभित हैं ज्ञान की देवी माता गंगा , जिनके भाल में सुशोभित होकर इठलाते हैं स्वयं चंद्र देव , माथा जिनका सजा हैं त्रिनेत्र से और जिनके गले का हार हैं भयंकर विषैले सर्प व रूद्राक्ष , जो पहने हैं सिर्फ बाघम्बर छाला और लपेटे हैं पूरे तन में भस्म और वाहन है जिनका नंदी (बैल)।
ऐसे हैं देवों के देव महादेव।जो प्रसन्न हो जाते हैं सिर्फ एक लोटा जल व विल्वपत्र चढ़ाने से। हर हर महादेव, हर हर महादेव । जो गृहस्थ होकर भी पूर्ण योगी और योगी होकर भी गृहस्थ हैं। जिनका एक रूप हैं नीलकंठ का , तो दूसरा नटराज का और एक रूप अर्धनारीश्वर का। कभी तांडव करते हैं भोलेनाथ , तो कभी कैलाश में शांत ध्यानमग्न गहरी योग मुद्रा में है शिव। संहारक शिव , पालक शिव।
महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है ?
हिन्दू पौराणिक कथा के अनुसार पर्वतराज हिमालय की पुत्री माता पार्वती ने अनेक वर्षों तक भगवान भोलेनाथ को वर रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी।जिससे प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने माता पार्वती को अपनी अर्धागिनी रूप में स्वीकार किया था।
और उनसे इसी दिन विवाह रचाया था।इसीलिए माता पार्वती और भगवान भोलेनाथ के विवाह पर्व यानी शिव और शक्ति के मिलन के रूप में भी महाशिवरात्रि मनायी जाती है यानि भोलेनाथ और जगत माता पार्वती के विवाह के पर्व के रूप मे मनाया जाता हैं महाशिवरात्रि का पर्व ।
शिव का पूरा श्रृंगार समूची मानव जाति को देता है संदेश
वैसे ध्यान से देखा जाए तो शिव का पूरा श्रृंगार विचित्र नहीं।वरन मानव जीवन को इस संसार में कैसे रहना चाहिए इसका स्पष्ट संदेश देता है।सिर पर सजा चंद्रमा मन की अवस्था व ज्ञान का प्रतीक है।
सागर मंथन के वक्त निकले विष को भगवान भोलेनाथ ने ग्रहण किया था।जिसको उन्होंने अपने कंठ तक ह़ी सीमित कर दिया।जिसके फलस्वरूप उनका कंठ नीला हो गया था। इसीलिए वो नीलकंठ कहलाये। लेकिन उनके शरीर में कोई असर नहीं हुआ क्योंकि महायोगी पुरुष अपने सूक्ष्म शरीर पर अधिकार पा लेता है।
और इस संसार की भलाई के लिए अपने जीवन में विष , इर्ष्या , अपमान का धूट पीकर भी निस्वार्थ भाव से मानव मात्र की सेवा करने के लिए हमेशा तैयार रहता है और हमेशा दूसरों पर अमृत लुटाता रहता है। शिव के शरीर पर लपेटी गई भस्म अपने संयम की सिद्धि को दर्शाता हैं जिसका मोह , माया , वासना कुछ नहीं बिगाड़ सकता है।
उनका वाहन बैल प्रतीक हैं कर्मठता , सौम्यता , सरलता का क्योंकि बैल स्वभाव से सरल व सौम्य व छल कपट रहित होता है।और जिसमें लगातार काम करने की क्षमता होती है।शिव शमशानवासी व कैलाशवासी दोनों हैं।शमशानवासी संदेश देता है कि मानव के लिए अंतिम सत्य मृत्यु ह़ी है। उसको यह कभी नहीं भूलना चाहिए।
और शिव की जटाओं में समाहित माता गंगा है ज्ञान का प्रतीक है।जिसमें प्रचंड शक्ति है जिनको लोक कल्याण के लिए उन्हें धरती पर उतारा गया था।और उस प्रचंड शक्ति को सिर्फ शिव ह़ी संभाल सकते थे।और तीसरा नेत्र खुलना मतलब आज्ञा चक्र का जागृत होना।यानी इस संसार में रह कर अपने सभी कर्तव्यों को पूरा करते हुए भी ईश्वर के नजदीक रहा जा सकता हैं।
पूर्ण रूप से गृहस्थ होते हुए भी महायोगी हैं भोलेनाथ
सभी देवों में महादेव ह़ी ऐसे देव हैं जो पूर्ण रूप से गृहस्थ भी हैं और योगी भी।पुत्र गणेश,कार्तिकेय व माता पार्वती के साथ वह पूर्ण रूप से गृहस्थ हैं ।जिनका अर्धनारीश्वर रूप जगत को यही सन्देश देता हैं कि धर्मपत्नी मातृशक्ति का रूप है। और इस जगत में नारी और पुरुष का महत्व बराबर का है।बिना नारी के पुरुष और बिना पुरुष के नारी का कोई महत्व नही हैं।क्योंकि नारी पुरुष दोनों ह़ी मिल कर नई पीढी का निर्माण करते हैं। तन में बाघंबर छाला लपेटे आँखें बंद किये ध्यान मग्न शिव योगी हैं जो इस संपूर्ण जगत का कल्याण करते हैं।
कब मनाई जाती हैं महाशिवरात्रि
महाशिवरात्रि हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है जो भगवान शिव को समर्पित है।वैसे तो पूरे साल में 12 शिवरात्रि यानी हर माह में एक शिवरात्रि होती हैं लेकिन साल की दो शिवरात्रियों का विशेष महत्व है। पहली फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी (फरवरी / मार्च) की शिवरात्रि जिसे फाल्गुन महाशिवरात्रि भी कहते हैं और दूसरी सावन माह में पड़ने वाली शिवरात्रि (जुलाई)। जिसे “सावन महाशिवरात्रि” भी कहते हैं।
ईशान संहिता के अनुसार ऐसा माना जाता हैं कि सृष्टि के आरंभ में फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी के दिन महादेव शिव करोड़ों सूर्योंं के ज्योति पुंज की सी आभा लिए जगत कल्याण के लिए एक लिंग रूप में प्रकट हुए थे।और दूसरी मान्यता के अनुसार शिवरात्रि के दिन ह़ी मां पार्वती और भोलेनाथ का विवाह सम्पन्न हुआ था और सावन माह की महाशिवरात्रि में कांवड़ यात्रा का विशेष महत्व है।इसमें कांवडिये गंगाजल से भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं।
कौन हैं कांवडिये व क्या है कांवड़ यात्रा
सावन के महीने की कांवड़ यात्रा का सीधा संबंध सावन की शिवरात्रि से है। ऐसा माना जाता हैं कि समुद्र मंथन के दौरान निकले विष को सारे जगत की भलाई के लिए भगवान शिव ने खुद ग्रहण कर उसे अपने कंठ में रोक लिया था।इसी विष की जलन को कम करने के लिए भक्त जन सावन मास में पड़ने वाली शिवरात्रि को गंगाजल से जलाभिषेक करते हैं।
सावन महीने के शुरू होते ह़ी शिवभक्त जिन्हें कांवडिये कहा जाता हैं।कई किलोमीटर की पैदल यात्रा जिसे कांवड़ यात्रा कहते हैं करके हरिद्वार , गौमुख , गंगोत्री , वैद्यनाथ , नीलकंठ , देवधर आदि पवित्र जगहों में पहुँच कर वहाँ से गंगाजल भरकर लाते हैं और अपने स्थानीय शिव मंदिरों के शिवलिंग पर उस गंगाजल से भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं।
कांवड़ को बांस के डंडे पर लाया जाता है।सबसे खास बात यह है कि इस पूरी यात्रा के दौरान कांवडिये अपने गंगाजल से भरे कांवडों को जमीन पर नही रखते हैं। चाहे रास्ता कितना भी लम्बा क्यों न हो।और यह कांवड यात्रा हर साल सावन की शिवरात्रि में शिवजलाभिषेक के साथ खत्म हो जाती है।
शिव के अनेक नाम (Names of Lord Shiv )
जटा में गंगा जी को धारण करने वाले, भाल में चंद्रमा को सजाने वाले ,मस्तक पर तीसरा नेत्र व कंठ में नागराज व रुद्र की माला से सुशोभित होने वाले ,एक हाथ में डमरू और एक में त्रिशूल धारण करने वाले भगवान शिव को भक्त बड़ी श्रद्धा से शिव, शंकर, भोलेनाथ, महादेव , आशुतोष , उमापति, गौरी शंकर , सोमेश्वर , महाकाल, ओमकारेश्वर , बैद्यनाथ , नीलकंठ, त्रिपुरारी, सदाशिव नाम से पुकारते हैं।किसी भी नाम से पुकारा जाए शिव तो बस शिव हैं।
बारह ज्योतिर्लिंगों का विशेष महत्व
यूं तो भारत में कई शिव मंदिर हैं लेकिन भगवान भोलेनाथ पूरे भारत में 12 ज्योतिर्लिंगों के रूप में विराजते हैं।
- महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग (उज्जैन, मध्यप्रदेश)
- रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग (रामेश्वरम, तमिलनाडु)
- मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग (श्रीशैल पर्वत , आंध्रप्रदेश )
- केदारनाथ ज्योतिर्लिंग (उत्तराखंड)
- ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग (मालवा, उत्तरी भारत)
- भीमशंकर ज्योतिर्लिंग (डाकिनी ,महाराष्ट्र)
- वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग (झारखण्ड)
- नागेश्वर ज्योतिर्लिंग (बडौदा , गुजरात)
- विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग (काशी , उत्तर प्रदेश)
- त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग (नासिक, महाराष्ट्र)
- सोमनाथ ज्योतिर्लिंग (सौराष्ट्र , गुजरात)
- ध्रिश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग (बेरूरठ, महाराष्ट्र)।
महाशिवरात्रि व्रत में कन्द,मूल,फल का विशेष महत्व
इस दिन अन्य फलों के साथ साथ उत्तर भारत में कन्द मूल फलों जैसे बेल , तरुण , गेठी , शक्करकंद , पीला कददू आदि को विशेष रूप से भोलेनाथ को समर्पित किया जाता है। तत्पश्चात उनको प्रसाद रूप में बड़े चाव से खाया जाता हैं।
महाशिवरात्रि शिव की उपासना का दिन
यूं तो भगवान शिव की उपासना के लिए सप्ताह के सभी दिन अच्छे हैं।फिर भी सप्ताह में पढ़ने वाले सोमवार को शिव उपासना के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।सोमवार का दिन चंद्र से भी जुड़ा हुआ है।
लेकिन महाशिवरात्रि की तो बात ह़ी निराली है।इस दिन महिलाएं , पुरुष और कुंवारी कन्यायों शिव की विशेष पूजा-अर्चना करती हैं।कुंवारी कन्यायों शिव से अपने लिए एक योग्य जीवन साथी का आशीर्वाद पाने के लिए व्रत रखती हैं तो महिलाएं अपने सुखसौभाग्य व सन्तान की रक्षा के लिए शिव की उपासना करती हैं।
कैसे मनाई जाती है महाशिवरात्रि
लोग बड़े हर्षोल्लास के साथ महाशिवरात्रि को मनाते है।अपने आराध्य शिव शंकर को प्रसन्न करने के लिए लोग व्रत रखते हैं।उन्हें गंगाजल , पुष्प , वेलपत्र , दूध, दही, शहद , गुलाब जल , धतूरा व चन्दन , इत्र आदि अर्पित करते हैं। शिवजी की पूजा प्रदोष काल में दिन और रात्रि के मिलन के समय की जाती है।शिव पूजा में रुद्राभिषेक का विशेष महत्व हैं।
लोग इस दिन पूरे परिवार के साथ शिव का रुद्राभिषेक करते हैं।शिवजी की स्तुति में शिव चालीसा, शिव स्तुति, शिव पुराण, शिव अष्टक, शिव पंचाक्षरी का पाठ करते है।
शंकर को सभी देवताओं में सबसे सरल माना जाता है।उन्हें मनाने के लिए ज्यादा जतन भी नहीं करने पड़ते हैं।बस सच्चे मन व श्रद्धा से चढाये गये एक लोटे जल से ही प्रसन्न हो जाते हैं भोलेनाथ। यही वजह है कि भक्त उन्हें प्यार से भोलेनाथ बुलाते हैं।
महाशिवरात्रि के दिन रखे जाने वाले उपवास में कई लोग अन्न ग्रहण नहीं करते हैं।दोनों वक्त फलाहार करते है।भक्तों को शिव काम, क्रोध ,वासना जैसी बुराइयों पर नियंत्रण करना सिखाते हैं।शुद्ध मन से प्रार्थना करने से प्रसन्न होने वाले भगवान भोलेनाथ कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर प्रदान करते हैं तो सौभाग्यशाली स्त्रियों को अखंड सौभाग्य व संतान की दीर्घायु का आशीर्बाद देते हैं।
महाशिवरात्रि महत्व
भगवान भोलेनाथ को समर्पित महाशिवरात्रि का यह त्योहार देश के कोने कोने में बड़ी श्रद्धा, आस्था व विश्वास मनाया जाता है।कश्मीरी ब्राह्मणों के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार है।कश्मीर में शिव और पार्वती के विवाह के सालगिरह के रूप में यह त्योहार हर घर में मनाया जाता है।
हिंदू के लिए शिव सिर्फ एक नाम नही ,एक देव नही बरन आस्था और विश्वास का समूचा केंद्र है। शिव हर हिंदू के आराध्य देव हैं।शिव भारत के कण-कण में बसते हैं।कही ज्योतिर्लिंग के रूप में तो कहीं जमाता (दामाद) के रूप में पूजनीय हैं।
उत्तराखंड की तो पूरी ही देवभूमि शिव को समर्पित है।यहां शिव का घर भी है।और ससुराल भी है। इसीलिए उत्तराखंड में शिव को दामाद के रूप में भी पूजा जाता है। और माता पार्वती को बेटी मानकर उनकी आराधना की जाती है।उत्तराखंड के लोगों द्वारा हर वर्ष माता पार्वती को मायके बुलाया जाता है।दो -तीन दिन तक उनकी पूजा आराधना के बाद उन्हें एक बेटी की तरह ही दामाद भोलेनाथ के साथ विदा किया जाता है।
इसीलिए शिवरात्रि का महत्व हम सब के लिए और अधिक हो जाता है। चूंकि यह दिन माता पार्वती और भगवान भोलेनाथ के मिलन का दिन है।शिव शक्ति के जगत कल्याण के लिए एक होने का दिन है। यह दिन हमें संदेश देता है कि नर और नारी के मिलन से ही इस संपूर्ण सृष्टि की रचना संभव है और गृहस्थ जीवन ही सुखों और खुशियों का आधार है।
भगवान भोलेनाथ का हर रूप मानव जाति को संदेश देता है।कि इस जगत में योगी होकर भी गृहस्थ जीवन जिया जा सकता है। और गृहस्थ होकर भी योगी रहा जा सकता है।अपनी सारी जिम्मेदारियों के साथ-साथ भगवान के समीप रहा जा सकता है।
इसीलिए महाशिवरात्रि को भारतवर्ष में बड़ी आस्था,विश्वास हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह दिन है उस परमपिता को धन्यवाद कहने का जो हमारा संरक्षक है। इसीलिए हिंदुओं के लिए इस दिन का महत्व कई गुना बढ़ जाता है।
पूरे देश में धूमधाम से मनाई जाती हैं महाशिवरात्रि
समूचे उत्तर भारत के साथ साथ दक्षिण भारत में भी (तमिलनाडु , तेलंगाना , आंध्र प्रदेश , केरल ,कर्नाटक ) यह त्योहार धूमधाम से मनाया जाता हैं। यहाँ तक कि विदेशों में रहने वाले भारतीय भी महाशिवरात्रि के इस त्यौहार को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं।इस दिन देश के सभी शिव मंदिरों में भक्तों की भीड़ लगी रहती हैं।लोग शिव मंदिरों में जाकर भगवान भोलेनाथ का आशीर्वाद लेते है। दिन भर श्रद्धा पूर्वक व्रत रखते है। लोग महाशिवरात्रि के दिन दान पुण्य के साथ गरीब व असहाय लोगों की मदद भी करते हैं। कई जगहों पर भंडारे का भी आयोजन किया जाता है।
महाशिवरात्रि पर्व की पौराणिक कथाएं
पहली कथा के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन देव व दानवों के द्वारा किये गये समुद्र मंथन से निकले कालाकूट विष को भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण किया गया था।
दूसरी कथा के अनुसार
पर्वतराज हिमालय की पुत्री माता पार्वती ने अनेक वर्षों तक भगवान भोलेनाथ को वर रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी।जिससे प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने माता पार्वती को अपनी अर्धागिनी रूप में स्वीकार किया था।
और उनसे इसी दिन विवाह रचाया था।इसीलिए माता पार्वती और भगवान भोलेनाथ के विवाह पर्व यानी शिव और शक्ति के मिलन के रूप में भी महाशिवरात्रि मनायी जाती है।
महाशिवरात्रि की तीसरी कथा के अनुसार
चित्रभानु नाम का एक शिकारी जो पशुओं की हत्या कर अपना व अपने परिवार का पेट पालता था।उसके ऊपर एक साहूकार का कर्ज़ था।जिसे वह समय से चुका नहीं कर पाया जिस कारण साहूकार ने शिवरात्रि के दिन शिकारी को बंदी बना लिया।
शिकारी सारी रात साहूकार के घर में हो रही शिव पूजा को ध्यान मग्न होकर शिव की महिमा को सुनता रहा।शाम को साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और जल्दी ऋण चुकाने की बात कह कर छोड़ दिया।अगले दिन शिकारी जनवरों को मारने के उद्देश्य से जंगल की तरफ चला गया।
दिन भर भूखा प्यासा वह रात गुजरने के उद्देश्य से एक बेल वृक्ष में चढ़ गया जिसके नीचे शिवलिंग था।जो बेल के पत्तों से ढका था लेकिन शिकारी को यह बात पता नहीं थी।जानवरों का इंतजार करते हुए वह रात भर बेलपत्र की टहनियों व पत्तों को तोडकर लगातार नीचे शिवलिंग पर फेंकता रहा।इस प्रकार दिन भर भूखे प्यासे शिकारी का महाशिवरात्रि का व्रत पूरा हो गया।
रात्रि बीत जाने के बाद एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने आई।जिसे देखकर शिकारी अत्यधिक प्रसन्न हुआ और उसने मृगी को मारने के लिए जैसे ही तीर चलाने को हुआ तो मृगी बोली ” हे! शिकारी मैं गर्भ से हूं। शीघ्र ही मैं एक बच्चे को जन्म दूंगी। उसके बाद तुम मुझे मरना। अभी तुम एक साथ दो जीव की हत्या करोगे। यह ठीक नहीं है। बच्चे को जन्म देकर मैं तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी “।
शिकारी ने थोड़ी देर सोचा और मृगी को जाने दिया।कुछ देर बाद एक मृग अपनी मृगी को ढूढ़ते हुए उधर से गुजरा।शिकारी फिर से खुश हो गया।उसने जैसे ही मृग को मारने के लिए धनुष में प्रत्यंचा चढ़ाई। तो मृग बोल “हे !शिकारी मैं अपनी मृगी व बच्चे से मिलकर आता हूँ।तब तुम मुझे मार लेना”।शिकारी बोला “हे मृग ! क्या तुम मुझे मुर्ख समझते हो”। लेकिन मृग के अनुनय विनय के बाद शिकारी ने उसे जाने दिया।
इसी तरह रात्रि का तीसरा पहर भी बीत गया।इस बीच लगातार भूखे प्यासे रह कर और शिव में बेलपत्र चढ़ाने के कारण शिव कृपा से शिकारी का हिंसक हृदयं निर्मल हो चुका था।उसके हृदय में भगवान शिव का वास हो चुका था।तब उसके हाथ से धनुष बाण छूट गया और वह अपने कर्मों को याद कर पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा।
लेकिन थोड़ी ही देर बाद मृग और मृगी सपरिवार शिकारी के सामने उपस्थित हो गये ताकि शिकारी उन्हें मार सके।लेकिन शिकारी का मन अब निर्मल हो गया था।इस तरह शिकारी व मृग ,मृगी को शिव कृपा से मोक्ष की प्राप्ति हुई।
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