वट सावित्री व्रत का महत्व व व्रत कथा

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वट सावित्री व्रत

हिंदू धर्म के अनुसार शादी के बंधन को एक जन्म का ना मानकर जन्मों-जन्मों तक या सात जन्मों का माना गया है। यह एक पवित्र बंधन है। और इस बंधन की पवित्रता व ताजगी बनी रहे ,पति-पत्नी का एक दूसरे के लिए प्यार व विश्वास बना रहे। इसलिए हमारे धर्म में अनेक व्रत और त्योहार समय समय पर मनाए जाते हैं जो एक दूसरे (पति पत्नी )का महत्व समझाते हैं।

वट सावित्री व्रत

पति पत्नी को एक दूसरे के प्रति पूर्ण समर्पण का सिखलाते हैं। एक दूसरे की भावनाओं की कद्र व आदर- सम्मान करना बताते  हैं। तथा एक दूसरे के लिए कुछ भी कर गुजरने की सीख देते हैं।ऐसा ही एक व्रत है ।वट सावित्री का

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वट सावित्री का व्रत जो पति पत्नी के रिश्ते को और मजबूती प्रदान करता है। वट सावित्री का व्रत ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को पड़ता है।आकाश में रोहिणी नक्षत्र होने से इस व्रत का महत्व और भी बढ़ जाता है। इस दिन सुहागन महिलाएं निर्जला या फलाहार व्रत रखकर अपने पति व संतान की लंबी आयु ,उनकी सलामती तथा उन्नति की दुआ मांगती हैं ।

बरगद और पीपल के पेड़ों की पूजा का हैं विधान 

यह भी एक अद्भुत व्रत है जिसमें वट यानी बरगद और पीपल के पेड़ों की पूजा की जाती है। तथा उनकी परिक्रमा कर उनके चारों तरफ सात (7 ) बार रक्षा धागा बांधकर अपने अखंड सुख-सौभाग्य की सलामती की दुआ मांग कर पूरा किया जाता है। वैसे भी अपने देश में विभिन्न पेड़-पौधों को पूजने की प्रथा प्राचीन काल से ही है ।क्योंकि हमारे धर्म ग्रंथों में अलग-अलग पेड़ पौधों में अलग-अलग देवी-देवताओं का निवास स्थान माना गया है।

वट सावित्री व्रत करती महिलाएं

इसलिए इन पौधों को साल के अलग-अलग महीनों में विशेष अवसरों (दिनों) पर लगाया जाता है ।इससे ऊपर वाले के प्रति हमारी आस्था व विश्वास तो बना ही रहता है ।साथ ही साथ प्रकृति भी हरी भरी रहती हैं ।

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वट का पेड़ कई देवताओं का निवास स्थान

वट के पेड़ में कई देवताओं का निवास स्थान माना गया है।वट वृक्ष के मूल (जड़) में ब्रह्माजी का तो मध्य भाग में विष्णु जी का और अग्रभाग में भगवान भोलेनाथ का निवास स्थान माना गया है। ।इसीलिए वट वृक्ष को देव वृक्ष भी कहा गया है। यह वृक्ष कई सौ सालों तक जीवित रहता है। इसलिए वट के वृक्ष को अक्षय वृक्ष ( यानी जिसका क्षय न हो या नाश ना हो) भी माना जाता है।

इसीलिए सौभाग्यवती स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र के लिए इस वृक्ष की पूजा करती हैं।और इसकी अनगिनत शाखाएं होती हैं।जिनमें मां सावित्री देवी का निवास स्थान माना जाता है।इसीलिए सौभाग्यवती महिलाएं अपने व्रत को इसी वृक्ष की पूजा अर्चना कर इसके चारों तरफ रक्षा धागा बात कर संपन्न करती हैं।

मैं भी अपनी देवरानी के साथ पूरी आस्था व विश्वास के साथ इस व्रत को रखती हूं। व्रत की तैयारी पहले दिन से ही शुरू हो जाती है।पहले दिन ही सारी पूजा सामग्री को इकट्ठा कर मंदिर में रख लेते हैं। तथा हाथों में मेहंदी भी रचा लेते है।वैसे भी कहा जाता है कि इस व्रत को पूरे सोलह श्रृंगार कर के ही रखना चाहिए ।सो हम भी थोड़ा-बहुत श्रृंगार करके ही पूजा करते हैं।

आज पूजा का दिन है। हम दोनों (मैं और मेरी देवरानी) ने ही सुबह का अपना काम फटाफट निपटाया।और बच्चों को स्कूल भेजकर व अपने घर के मंदिर में दीया बाती की। अपने इष्टदेव का नाम लेकर तथा उनका आशीर्वाद लेकर प्राचीन शिव मंदिर में पूजा अर्चना करने चल पड़े।यह शिव मंदिर लगभग ‌‌‌‌घर से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं।

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यहा पर वट और पीपल के दो विशाल शादीशुदा वृक्ष हैं जो पूजनीय हैं।इन पेड़ों के चारों तरफ चबूतरा बना हुआ है।इस मंदिर में कई और देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं।इसलिए यह मंदिर लोगों की आस्था व विश्वास का केंद्र है ।लोग यहां पर प्रतिदिन आते हैं और पूजा अर्चना कर भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

वट और पीपल की पूजा

मंदिर पहुंचने पर हमने (मैं और मेरी देवरानी) देखा कि वहां पर काफी संख्या पर महिलाएं पूजा करने को आई हुई हैं ।और बातों ही बातों में पंडित जी ने बताया कि वह तो सुबह ब्रह्म मुहूर्त से ही पूजा विधि संपन्न करा रहे हैं।कई कामकाजी महिलाएं तो ब्रह्म मुहूर्त पर ही अपनी पूजा अर्चना कर वापस अपने काम पर चली गई है।

यहाँ पर एक सामूहिक पूजा होती है जिसमें बहुत सारी महिलाएं अपनी-अपनी पूजा सामग्री लेकर पेड़ के चारों तरफ बैठ जाती हैं ।और पंडित जी मंत्र पढ़ते रहते हैं। और महिलाएं पंडित जी के बताए अनुसार पूजा अर्चना करती रहती है।इसीलिए हम दोनों ने भी एक सामूहिक पूजा में सम्मिलित होकर अपनी पूजा अर्चना शुरू की ।पंडित जी ने पूजा आरंभ की। हमें एक-एक मंत्र के बारे में विस्तार से समझाया।

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वट सावित्री व्रत कथा 

पंडित जी ने पति पत्नी के रिश्ते की अहमियत के बारे में बताया ।उन्होंने वट सावित्री व्रत कथा भी हमें सुनाई। और उन्होंने यह भी बताया कि कैसे एक पतिव्रता नारी सावित्री ने अपनी मजबूत इच्छाशक्ति से अपने पतिव्रत धर्म का पालन करते हुए अपने पति के प्राणों को यमराज से वापस ले लिया।जब यमदेव (यमराज) सत्यवान के प्राण लेने आए तो सावित्री भी उनके (यमराज)  पीछे पीछे चल दी।

यमराज ने सावित्री को बहुत समझाया कि वह घर वापस चली जाय। लेकिन सावित्री कहाँ मानने वाली थी। वह यमराज के पीछे-पीछे चलने लगी। उसने यमराज से कहा कि वह पति के साथ ही घर वापस जाएगी। यह देखकर यमराज ने सावित्री से कहा कि पति के प्राणों के अलावा कोई भी तीन वर मांग लो ।

सावित्री ने बहुत ही समझदारी के साथ सौ पुत्रों की माता होने का आशीर्वाद यमदेव से मांगा। यमदेव ने सावित्री को सौ पुत्रों की माता होने का आशीर्वाद दे दिया ।तब माता ने उनसे कहा कि मैं तो पतिव्रता स्त्री हूं। और मेरे पति के प्राणों को आप  लेकर जा रहे हैं ।तो मैं सौ पुत्रों की माता कैसे बनूंगी।

तब यमदेव को अपनी गलती का एहसास हुआ। और उन्हें अपने वरदान की रक्षा हेतु सावित्री को सत्यवान के प्राण वापस करने पड़े। सावित्री ने न सिर्फ पति के प्राणों को ही वापस पाया। बल्कि उसका पूरा राज्य (जो उनसे किसी कारणवश छीन गया था) वापस पाया। तथा साथ ही साथ पूरे परिवार की सुख ,शांति ,उन्नति का वरदान भी यमदेव से हासिल किया ।

इसीलिए माना जाता है कि इस व्रत को पूर्ण आस्था व विश्वास के साथ किया जाए तो पति पर आने वाला हर संकट दूर तो होता ही है।साथ ही साथ पति व संतान को दीर्घायु का वरदान भी प्राप्त होता है ।

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कथा को सुनकर मन में असीम शांति महसूस हुई। धीरे-धीरे पंडित जी ने हमारी पूजा-अर्चना को संपन्न कराया। उसके बाद (पंडित जी) उन्होंने बोला कि सभी लोग अपने-अपने रक्षा धागे को इस बरगद और पीपल के पेड़ के तने के चारों तरफ सात बार लपेट लो। ताकि आपके पति के साथ आपका सात जन्मों का बंधन सदा बना रहे ।

हमने भी अन्य महिलाओं के साथ खुशी-खुशी यह रक्षा धागा वृक्ष के तने के चारों ओर लपेटना शुरू किया।रक्षा सूत्र को वटवृक्ष के चारों तरफ लपेटने के बाद हमने आरती की ।पंडित जी से आशीर्वाद लिया और भगवानों के दर्शन कर पूजा अर्चना के बाद हम घर पहुंचे ।मन में अजीब सा संतोष का भाव था और असीम शांति थी। एक ख़ुशी का एहसास था।

रक्षा धागा वट वृक्ष के तने के चारों ओर लपेटती महिलाएं

सच में हमारे पूर्वजों ने इन व्रत व त्यौहारों को बहुत सोच समझकर बनाया है। आज भी हम इन व्रत व त्योहारों को पूरी शिद्दत से , पूरे आस्था व विश्वास के साथ मनाते हैं ।इस व्रत से पति पत्नी के रिश्ते में भावात्मक रूप से मजबूती तो जरूर आती है ।एक दिन का यह व्रत हमें अपने रिश्ते की मजबूती ,उसके प्रति आदर भाव ,त्याग, तपस्या की भावना को मजबूत प्रदान करने की प्रेरणा देता है ।हम अपने रिश्ते में और मजबूती से बंध जाते हैं।

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पारिवारिक मूल्यों की आवश्यकता व गरिमा को समझाता यह व्रत हमारी प्रकृति को भी सुरक्षा प्रदान करता है ।क्योंकि हम उन वृक्षों को नुकसान नहीं पहुंचा सकते जिनकी हम पूजा करते हैं। इससे प्रकृति भी हरी भरी रहती है। व वातावरण भी शुद्ध व प्रदूषण रहित रहता है। हरे पेड़ पौधों से हमें अनेक चीजें भी प्राप्त होती हैं और आज के समय में हरे भरे पेड़ों की उपस्थिति कितनी जरूरी है यह हम सब जानते हैं।और यह व्रत हमें पेड़ों को लगा कर इस धरती को हरा- भरा बनाए रखने की प्रेरणा देता है।

हमने अपने व्रत को पूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ के रखा है ।तथा शाम को पूजा अर्चना के बाद भगवान का आशीर्वाद लेकर पति और संतान के लिए लंबी आयु व उनकी उन्नति की कामना कर इस पर व्रत को संपन्न करेंगे।

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