Why Do We Celebrate Valmiki Jayanti :
Why Do We Celebrate Valmiki Jayanti ?
बाल्मीकि जयंती का महत्व।
यूं तो भारत की धरती में एक से बढ़कर एक महान ऋषि-मुनियों ने जन्म लिया। विज्ञान आज जिस भी चीज की खोज कर इतराता है।उसका ज्ञान हमारे ऋषि-मुनियों ने आज से हजारों साल पहले ही हमें दे दिया था। महान ऋषि मुनियों की धरती भारत भूमि में एक ऐसे ही ऋषि भगवान बाल्मीकि का जन्म भी हुआ जिन्होंने रामायण जैसे अद्भुत महाकाव्य की रचना की।जिसने दुनिया को विश्वबंधुता , भाईचारे का संदेश दिया।इस पौराणिक ग्रंथ द्वारा दी गई बाल्मीकि जी की शिक्षा आज भी लोगों के लिए अमूल्य है।
असाधारण प्रतिभा के धनी वाल्मीकि का जीवन हमें सही मार्ग में चलने को प्रेरित करता है और यह भी समझाता है कि जीवन में घटने वाली प्रत्येक घटना चाहे वह कितनी ही छोटी क्यों न हो। उससे आदमी प्रेरणा लेकर अपने जीवन में परिवर्तन ला सकता है। बाल्मीकि जी के जीवन में घटी एक घटना ने उनका जीवन को देखने का नजरिया ही बदल दिया।और उनको एक डाकू रत्नाकर से बाल्मीकि जैसे महान पूज़्यनीय ऋषि की श्रेणी में खड़ा कर दिया।
महर्षि बाल्मीकि जी को माना जाता है आदिकवि व प्रथम श्लोक रचयिता
महर्षि बाल्मीकि ने संस्कृत भाषा में रामायण की रचना की थी। उनके द्वारा रची गई रामायण को आज लोग “बाल्मीकि रामायण” के नाम से जानते है। यह रामायण पूरी तरह से संस्कृत भाषा में लिखी गई है। चूँकि महर्षि बाल्मीकि ने संस्कृत के प्रथम महाकाव्य की रचना की थी।इसीलिए उनको “आदिकवि” भी कहा जाता है। वो प्रथम श्लोक के रचयिता भी थे।
बाल्मीकि जयंती कब मनाई जाती है
हिंदू धर्म के धार्मिक व पौराणिक महाकाव्य रामायण के रचयिता महर्षि बाल्मीकि का जन्मोत्सव यानि बाल्मीकि जयंती अश्वनी मास की शरद पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। बाल्मीकि जयंती को “प्रकट दिवस” के रूप में भी मनाया जाता है।
एक घटना जिसने डाकू रत्नाकर को महान ऋषि बाल्मीकि में बदल दिया
महर्षि बाल्मीकि का वास्तविक नाम रत्नाकर था। रत्नाकर प्रचेता के पुत्र थे।प्रचेता ब्रह्माजी के मानस पुत्र थे।बालक रत्नाकर को बचपन में एक भील परिवार ने चुरा लिया था जिस कारण उनका पालन पोषण भील परिवार में होने लगा।भील परिवार में पालन-पोषण होने के कारण रत्नाकर ने भी भील परंपराओं को सीखना व अपनाना शुरू किया।
बालक रत्नाकर जब बड़े हुए तो वह अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिए एक डाकू बन गए। अब उनकी आजीविका लूटपाट पर निर्भर रहती थी। वह प्रतिदिन जंगल से गुजरने वाले किसी न किसी राहगीर को लूट लेते थे और इस तरह वह अनजाने में ही अनेक पापों को अपने सिर पर लेते जा रहे थे।
नारद मुनि ने दिखाया सही मार्ग
एक दिन जब वह जंगल में छुपकर लूटने के लिए किसी राहगीर का इंतजार कर रहे थे। तभी वहां नारद मुनि प्रकट हुए।नारद मुनि उस समय पृथ्वी लोक के भ्रमण पर थे। रत्नाकर ने उन्हें भी लूटने के उद्देश्य से पकड़ लिया। नारद मुनि ने रत्नाकर से पूछा “तुम यह सब काम क्यों कर रहे हो”। रत्नाकर ने जवाब दिया “यही तो मेरी आय का स्रोत है।जिससे मैं अपने परिवार का भरण पोषण करता हूं”।
तब नारद मुनि ने उनसे पूछा “जिस परिवार के लिए तुम यह सब पाप हर रोज करते हो । क्या वह परिवार तुम्हारे पापों के फल भोगने के वक्त भी तुम्हारे साथ रहेगा “। रत्नाकर ने बड़े विश्वास से कहा “हां क्यों नहीं !!मेरा परिवार हमेशा मेरे हर काम में साथ देता है।तो मेरे पापों को अपने सिर लेने के लिए क्यों नहीं तैयार होगा”।
नारद जी यह सुनकर मुस्कुराए और बोले “एक बार घर जाकर अपने परिजनों से पूछ लो। अगर उन्होंने आपकी बात मान ली और उन्होंने इस प्रश्न के जवाब में हां कहा तो मैं तुम्हें बहुत सारा धन दूंगा”।
रत्नाकर बड़े आत्मविश्वास के साथ घर गया और उसने अपने परिजनों से एक-एक कर यही प्रश्न दोहराया। लेकिन किसी ने भी इस सवाल का जवाब हां में नहीं दिया । रत्नाकर को इस बात से गहरा दुख पहुंचा और उन्हें पहली बार अपनी गलतियों का एहसास हुआ। उन्होंने उस मार्ग को तुरंत छोड़ कर सत्कर्म के मार्ग पर चलने का दृढ़ निश्चय किया।
नारद मुनि ने दिया बाल्मीकि को राम नाम का महामंत्र
नारद जी ने बाल्मीकि को सत्मार्ग पर चलने की राह दिखाई और उन्हें राम नाम का महा मंत्र जपने की सलाह दी जिसके फलस्वरूप बाल्मीकि परिवार को छोड़कर वन में तपस्या करने चले गए। जहां वो कई सालों तक तपस्या करते रहे और राम नाम का जप करते रहें।महर्षि बाल्मीकि को तपस्या करते वक्त दीन दुनिया का कोई एहसास ही नहीं रहा। यहां तक कि महर्षि बाल्मीकि के शरीर में दीमक ने अपना घर भी बना लिया था जिसे सामान्य भाषा में बाल्मीकि कहा जाता है।
कई वर्षों की कठोर तपस्या करने के बाद ब्रह्मा जी उनसे प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन दिए। उनके शरीर में दीमक की बांबी (घर) देखकर ब्रह्मा जी ने रत्नाकर को बाल्मीकि नाम से संबोधित किया। बस यही से रत्नाकर का महर्षि बाल्मीकि बनने का सफर शुरू हुआ।
महर्षि बाल्मीकि ने की सबसे पहले श्लोक की रचना
एक बार महर्षि बाल्मीकि गंगा नदी के तट पर गए।उन्होंने देखा कि पास पर ही एक क्रोंच पक्षी का जोड़ा अपनी प्रणय लीला में व्यस्त था।अचानक उसी वक्त एक शिकारी ने तीर मारा , जो सीधे आकर नर पक्षी को लगा जिससे नर पक्षी के प्राण पखेरू उड़ गए और वह जमीन में गिर पड़ा । यह हृदय विदारक दृश्य देखकर बाल्मीकि जी के मुख से अचानक ही श्लोक निकल पड़ा।
मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम: शास्वती समा:।
यत्क्रौँचमिथुनादेकम् अवधी: काममोहितम्।
जिसका अर्थ था जिस शिकारी ने प्रणय लीला करते इस पक्षी का वध किया है। उसे जीवन में कभी सुख नहीं मिलेगा।
लेकिन जब इसके बाद उन्होंने गौर से सोचा कि यह उनके मुंह से अचानक क्या निकल गया। उसी समय नारद वहां पर प्रकट हुए। उन्होंने महर्षि बाल्मीकि को बताया कि यही आपके जीवन का पहला श्लोक है और इस धरती में श्लोक के जन्मदाता भी आप ही हैं। अब आप रामायण जैसे महाकाव्य की रचना करेंगे।
महाग्रंथ रामायण की रचना संस्कृति भाषा की
इसके बाद महर्षि बाल्मीकि ने महाकाव्य रामायण की रचना देवभाषा संस्कृति में की। इस ग्रंथ में प्रेम , त्याग , तपस्या , बड़ों के सम्मान आदि भावनाओं को बड़ी ही सुंदरता से बताया गया है।तथा प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में सतमार्ग पर चलने की प्रेरणा दी गई है।
बाल्मीकि जयंती का हमारे जीवन में महत्व
महर्षि बाल्मीकि ने हमें रामायण जैसे महाग्रंथ को दिया।जिसमें रिश्तो के ताने-बानों को बड़े ही मर्यादित ढंग से बुना गया है।यह महाकाव्य पुत्र धर्म , भाई धर्म , गृहस्थ धर्म , मित्र धर्म ,भ क्त धर्म आदि को बड़े मर्यादित तरीके से निभाने का संदेश देता है। महर्षि बाल्मीकि द्वारा इस महाकाव्य में लिखी हुई हर बात आज भी हमारे समाज को प्रेरणा देती है। इसीलिए बाल्मीकि जयंती हमारे लिए महत्वपूर्ण हो जाती है।
महर्षि बाल्मीकि के आश्रम में लिया लव कुश ने जन्म
एक बार जब भगवान राम ने किसी कारणवश देवी सीता का त्याग कर दिया।तब देवी सीता ने महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में ही शरण ली।जहां पर उन्होंने अपने दोनों पुत्रों लव और कुश को जन्म दिया। महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में ही लव और कुश का लालन-पालन हुआ।आज भी वाल्मीकि का आश्रम नैनीताल जिले में स्थित है। जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में स्थित यह आश्रम आज सीताबनी के नाम से जाना जाता है।
कैसे मनाई जाती है बाल्मीकि जयंती
बाल्मीकि जयंती यूं तो पूरे देश भर में मनाई जाती है।लेकिन उत्तर भारतीय लोगों में यह ज्यादा ही प्रचलित है।इस दिन बाल्मीकि मंदिरों में पूजा अर्चना की जाती है।कई धार्मिक आयोजन किए जाते हैं।बाल्मीकि जी के जीवन पर आधारित रंगारंग कार्यक्रमों को दिखाया जाता है।
बाल्मीकि जयंती के मौके पर कई जगहों पर बाल्मीकि जी के जीवन पर आधारित नाटक प्रस्तुत किए जाते हैं।तथा कई जगहों पर रामायण को भी नाट्य रूप में प्रस्तुत कर लोगों को दिखाया जाता है।इस दिन भब्य शोभायात्रायें निकाली जाती हैं।स्वयंसेवी संस्थाएं एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा बाल्मीकि जयंती के मौके पर फल,मिष्ठान व खाने आदि का वितरण किया जाता है।
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