World Environment Day : विश्व पर्यावरण दिवस का महत्व

World Environment Day  :

World Environment Day

विश्व पर्यावरण दिवस

World Environment Day

विश्व पर्यावरण दिवस कब मनाया जाता है ?

हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस ( World Environment Day) मनाया जाता है। 5 जून 1974 को पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया था।

विश्व पर्यावरण दिवस का महत्व 

हरे भरे पेड़ पौधे हमारे चारों ओर का पर्यावरण ही नहीं बल्कि जाने -अनजाने में हमारे अस्तित्व को भी बचाए रखते हैं। अगर ये पेड़ पौधे नहीं होंगे तो हमारा अस्तित्व भी एक दिन इन जंगलों और पेड़ों की तरह ही खत्म हो जाएगा क्योंकि यह हरे भरे पेड़ पौधे ऑक्सीजन के रूप में हमें जीवन देते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर इस धरा का तापमान संतुलित रखते हैं ।

हमें खाने के लिए फल-फूल , सब्जियां देते हैं। हमारे पशुओं को चारा देते हैं और तो और बीमारियों को भगाने के लिए असंख्य जड़ी बूटियां भी उपलब्ध कराते हैं वह भी बिना कहे । पेड़ पौधे हमारी भूमि को कटाव से तो बचाते ही हैं और अन्य कई तरीकों से भी बिना कहे हमारी सुरक्षा करते हैं।

हम ही नहीं वन्य जीव-जंतु के भी यही संरक्षक हैं। वन्य जीव – जंतु , पशु-पक्षी , कीड़े मकोड़े व सभी तरीके के वन्य जीवन को भी यही आवास , भोजन , दाना , पानी मुहैया कराते हैं और उनके इसी जीवन को हम रोज-रोज उनसे छीनते जा रहे हैं। हमें क्या हक है उनसे उनके इस प्राकृतिक हक को छीनने का  ?? जब हम उनको वह दे नहीं सकते।

उनका प्राकृतिक आवास व उनकी आवश्यक चीजों को मानव ने उनसे छीन लिया है। इसीलिए तो वह अपना घर छोड़कर हमारे घरों , हमारे खेतों तक पहुंच गए हैं। हर साल इन्हीं जंगली जानवरों से लाखों रुपए की फसल का नुकसान होता है और साथ ही साथ इंसानी जान-माल का खतरा भी हर वक्त बना रहता है। हम खुद ही अपने पर्यावरण को जाने अनजाने में नुकसान पहुंचा रहे हैं। ऐसे में विश्व पर्यावरण दिवस का महत्व कई गुना बढ़ जाता है।

कैसे मनाया जाता हैं विश्व पर्यावरण दिवस

विश्व पर्यावरण दिवस के दिन लोगों को अनेक कार्यक्रमों के जरिये पर्यावरण के प्रति जागरूक किया जाता है । पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए अनेक अभियान चलाये जाते है। जगह – जगह पर वृक्षारोपण कार्यक्रम चलाये जाते हैं ताकि इस धरती व पर्यावरण को सुरक्षित रखा जा सके। 

स्कूल , कालेजों में भी विश्व पर्यावरण दिवस से संबंधित विषयों में वाद विवाद प्रतियोगिता , भाषण प्रतियोगिता , चित्रकला प्रतियोगिता , फोटोग्राफी प्रतियोगिता आदि का आयोजन किया जाता हैं। खास कर छोटे बच्चों को पर्यावरण के प्रति जागरूक किया जाता है। 

विकास की भेंट चढ़ा पर्यावरण  

आधुनिक समाज की पहली जरूरत विकास जरूर है मगर इस विकास की अंधी दौड़ के लिए हमने अपने वृक्षों , जंगलों , खेती योग्य भूमि की बलि चढ़ा दी है। क्या इन को सुरक्षित रख कर विकास नहीं किया जा सकता ??  हर वर्ष सड़क मार्ग , रेल मार्ग बनाने के लिए या कोई फैक्टरी या कोई बिल्डिंग बनाने के नाम पर हजारों वृक्ष बिना सोचे समझे काट दिए जाते हैं लेकिन बदले में एक भी नया पौधा नहीं लगाया जाता है।

अगर यह नियम बन जाए कि जितने भी वृक्ष काटे जाएंगे उसके दुगुने वृक्षों का पहले रोपण होगा उसके बाद ही उस जगह पर निर्माण की अनुमति मिलेगी तो प्रतिवर्ष लाखों नए पौधे इस पृथ्वी को सुंदर बनाते तथा यही लाखों हरे – भरे नए पेड़ हमारे पर्यावरण को भी बचाते और विकास भी बिना पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए संभव हो पाता।

अगर हमने अपने पर्यावरण को नुकसान पहुंचाये बैगर विकास किया होता तो आज हमें “पेड़ बचाओ , जंगल बचाओ , पर्यावरण बचाओ , पृथ्वी बचाओ , वृक्षारोपण करो जैसे स्लोगन लिखने या देखने ही नहीं पड़ते । ग्लोबल वॉर्मिंग के प्रति सचेत रहने या उसको कम करने के के लिए अभियान नहीं चलाने पड़ते और ग्रामीण महिलाओं को पेड़ों से चिपक कर अपनी जान जोखिम में डालकर पेड़ों को बचाने की मुहिम “चिपको आंदोलन” की शुरुआत नहीं करनी पड़ती।

पर्यावरण को प्राकृतिक रूप से नुकसान

पर्यावरण को प्राकृतिक रूप से नुकसान भी होता है जैसे बादल फटना , भूकंप आना या अन्य कई प्राकृतिक आपदाएं जो समय-समय प्रकृति के द्वारा जनित होती हैं लेकिन उनसे कई गुना ज्यादा नुकसान जो मानव जनित हैं जैसे अंधाधुंध औद्योगिक विकास , आधुनिक जीवन शैली ।

अभी हाल में ही उत्तराखंड के जंगलों में भयंकर आग लगी थी जिससे शायद करोड़ों रुपए की वन संपदा जलकर खाक हो गई और पेड़-पौधों , जड़ी बूटियों , जानवरों , पशु , पक्षियों को भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से नुकसान पहुंचा है। जानवरों और पक्षियों के आवास तक छिन गये।  इस मौसम में प्रजनन करने वाले पक्षियों के घोंसले भी जल गए जिससे नई पीढ़ी की संभावनाएं खत्म हो गई ।

लेकिन बताया जा रहा है कि यह आग मानव जनित थी। शायद किसी व्यक्ति ने सिगरेट या बीड़ी या जलती हुई माचिस की तीली जंगल के किसी एक छोर में फेंक दी अनजाने में सही ।लेकिन उसके इस कार्य ने सूखी पत्तियों और लकड़ियों को जलने के लिए चिंगारी का काम किया और देखते ही देखते पूरा का पूरा जंगल धू-धू कर जल उठा जिससे करोड़ों का नुकसान तो हुआ ही हुआ। प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से पर्यावरण को भी खतरा पैदा हुआ । थोड़ी सी सावधानी रखकर मानव जनित नुकसान से बचा जा सकता था।

प्रदूषण से पर्यावरण को खतरा 

सी तरह कई सारे प्रदूषण भी मानव ने खुद-ब-खुद बढ़ाएं है जैसे जल प्रदूषण , वायु प्रदूषण , मिट्टी प्रदूषण , भूमि प्रदूषण नगरीय व नदी प्रदूषण । यह सब भी ज्यादातर मानव जनित ही है। इस कारण जलवायु में परिवर्तन हो रहा है और दिनोंदिन ग्लोबल वॉर्मिंग का खतरा बढ़ता जा रहा है और इस ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से ग्लेशियर का पिघलना शुरू हुआ जिससे कई देश जो समुद्र किनारे बसे हैं उनमें समुद्र के पानी का स्तर अधिक हो गया है और उनके अस्तित्व में संकट के बादल छाने लगे हैं।

फैक्ट्रियों से निकलने वाला हजारों टन कूड़ा रोज नदियों में बहाया जाता या समंदर में फैंक दिया जाता है जिससे जल प्रदूषण तो बड़ा ही बड़ा है । साथ में जलीय जीवन को भी खासा नुकसान पहुंचा है। इसी तरह फैक्ट्रियों से निकलने वाले जहरीले धुएं ने वायु प्रदूषण का खतरा और भी बढ़ा दिया है । खेतों में डालने जाने वाले कीटनाशक पदार्थों ने मिट्टी को तो नुकसान पहुंचाया ही है।

साथ में उस में रहने वाले जीव जंतुओं को भी खत्म कर दिया है। अब कई सारे पक्षी व मिट्टी में रहकर मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने वाले कीड़े मकोड़े इसी वजह से विलुप्त के कगार में हैं। ऐसे और कई प्रदूषण हैं जैसे रेडियोधर्मी प्रदूषण , तापीय प्रदूषण , विकररीय प्रदूषण या अन्य जिन्होंने रही सही कसर भी पूरी कर दी।

प्रकृति और इंसान का नाता उतना ही पुराना है जितना प्रकृति और इंसान का इस धरा से । अगर एक दिन यह प्रकृति खत्म हो गई तो इंसान भी उसी क्षण खत्म हो जाएगा । डायनासोर तो आसमानी आफत से इस दुनिया से विलुप्त हो गए थे लेकिन मानव जाति तो अपने विनाश की तरफ हर रोज एक कदम बढ़ा रही है।

पर्यावरण बचाना हमारी जिम्मेदारी

विश्व पर्यावरण दिवस साल में सिर्फ एक ही बार मनाया जाता है। लेकिन वर्तमान हालात को देखते हुए हमें सिर्फ 5 जून को ही क्यों ? हर दिन अपने पर्यावरण व अपने पेड़ पौधों की रक्षा करनी ही होगी । हमें अगर इस धरती को बचाना है। सुंदर बनाना है और अपने अस्तित्व को हमेशा इस धरा पर बनाए रखना है। अपनी आने वाली भावी पीढ़ी को इस धरती को सुंदर रूप में विरासत में देना है तो हमें हर दिन पौधे लगाने ही पड़ेंगे।

पर्यावरण की देखभाल की जिम्मेदारी हर व्यक्ति को खुद लेनी पड़ेगी। अपने आसपास के पर्यावरण को साफ सुथरा रखने की कोशिश करनी पड़ेगी । यह एक व्यक्ति का काम नहीं है। यह सामूहिक प्रयास से ही संभव है। हर व्यक्ति अपनी -अपनी जिम्मेदारी को ईमानदारी से निभाएं तो कोई आश्चर्य नहीं कि हमारी धरती फिर से पहले के जैसी सुंदर व प्रदूषण रहित हो जाएगी।

आइए इस त्यौहार को पूरे जोर के साथ मनाएं , वृक्ष लगाएं और पर्यावरण को बचाने तथा संवारने में अपना कर्तव्य ईमानदारी से निभाए !!!!!

क्या खूब कहा है —

इन पेड़ों के लिए भगवान ध्यान देता है । इनको सूखे , बीमारी , हिमस्खलन  तथा एक हजार तूफानों व बाढ़ से बचाता है।लेकिन वह इनको बेवकूफों से नहीं बचा पाता है ——- जाॅन मुइर

प्रकृति एक स्वाभाविक चित्रकार !!!

हमारी प्रकृति एक स्वाभाविक चित्रकार है। वह हमारे चारों ओर हर रोज इतने नए-नए , एक से एक सुंदर चित्र उकेर देती है जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते । जिस चित्र का रंग शाम को अलग होता है । अगले दिन उसी चित्र का रंग अलग हो जाता है । वाकई यह काम तो प्रकृति ही कर सकती है। कई बार तो प्रकृति ऐसे नजारे पेश कर देती है जो ना सिर्फ देखने में अद्भुत होते हैं बल्कि अकल्पनीय , अविश्वसनीय भी होते हैं ।

मानव की सोच या कल्पना तो शायद वहां तक पहुंचती भी नहीं होगी और इंसान तो अपने चित्रों में भी रंग प्रकृति की चित्रकारी को देखकर ही भरता है यानी उसकी नकल भर कर लेता है । जब हम प्रकृति के जैसे हर दिन चित्रकारी नहीं कर सकते हैं। चित्रों में हर पल , हर वक्त नए रंग नहीं भर सकते हैं तो फिर उसके बनाए हुए चित्रों को खराब करने का हमें क्या हक है ??

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