Buddha Purnima का बौद्ध धर्म में क्या महत्व है ?जानिए

What is Buddha Purnima and Why is Buddha Purnima Celebrated ? क्यों कहते है महात्मा बुद्ध को “एशिया का ज्योतिपुंज”

Buddha Purnima

बौद्ध धर्म के संस्थापक, करोड़ों बौद्ध धर्मावलंबियों के पथ प्रदर्शक, सत्य व अहिंसा के पुजारी, पृथ्वी के सभी जीवों के प्रति करुणा व दया का समान भाव रखने वाले भगवान बुद्ध को समर्पित है यह वैशाख/बुद्ध पूर्णिमा का दिन और त्योहार।

Buddha Purnima

वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा क्यों कहते हैं

यह दिन बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है क्योंकि वैशाख पूर्णिमा के दिन भगवान बुद्ध इस धरती पर अवतरित हुए थे।इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व (ज्ञान) की प्राप्ति हुई थी और इसी दिन उन्होंने महापरिनिर्वाण भी प्राप्त किया था।इसीलिए वैशाख पूर्णिमा (Buddha Purnima) को बुद्ध पूर्णिमा भी कहते हैं।

भगवान बुद्ध के जीवन की तीन बड़ी धटनायें (उनका का जन्म, ज्ञान प्राप्ति यानी बुद्धि तत्व की प्राप्ति और महापरिनिर्वाण) वैशाख पूर्णिमा (Buddha Purnima) के दिन ही हुई थी।ऐसा उदाहरण दुनिया में और कोई नहीं है।

 क्यों मनाई जाती है बुद्ध पूर्णिमा (Why Buddha Purnima Celebrated)

भगवान बुद्ध को जब इस संसार की सच्चाई (जन्म, मरण, दुःख, पाप, मोह) का ज्ञान हुआ।तो वो अपना राजमहल, गृहस्थ जीवन,सारे भौतिक व सांसारिक सुखों का त्याग कर सत्य की खोज में निकल पड़े।लगभग सात बरसों तक कठिन तपस्या के बाद वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया (बिहार) में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई।इसीलिए इस दिन को बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima) के रूप में मनाया जाता है

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हिंदूओं के लिए भी खास है बुद्ध पूर्णिमा (Significance of Buddha Purnima)

बुद्ध पूर्णिमा का दिन सिर्फ बौद्ध धर्म के लोगों के लिए ही नहीं बल्कि हिंदू धर्म के लोगों के लिए भी एक पवित्र दिन है।दरअसल हिंदू धर्म के लोगों का मानना है कि भगवान बुद्ध हिंदू देवता विष्णु भगवान के नौवें अवतार हैं।

इसीलिए हिंदू धर्म में भी इस दिन को बड़े श्रद्धा व भक्ति भाव से मनाया जाता है।यही कारण है कि बोधगया (बिहार) हिंदू व बौद्ध धर्मावलंबियों का पवित्र स्थान है।दुनिया भर से बौद्ध धर्म के अनुयायी पवित्र स्थान बोधगया के दर्शन करने आते है।

इसी दिन को “सत्यविनायक पूर्णिमा” के तौर पर भी मनाया जाता है।मान्यता है कि भगवान कृष्ण के बचपन के दोस्त सुदामा बहुत गरीबी थे।एक बार वह कृष्ण से मिलने उनके महल पहुंचे।तब कृष्ण ने सुदामा को उनके कष्टों के निवारण हेतु सत्यविनायक व्रत करने का सुझाव दिया।सुदामा ने कृष्ण की बात मानी और इस व्रत को विधिवत किया तो उनके कष्टों के निवारण हो गया।

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इस दिन धर्मराज की भी पूजा की जाती है।कहते है कि सत्य विनायक व्रत से मृत्यु के देवता धर्मराज खुश होते हैं। और उनके प्रसन्न होने से अकाल मृत्यु का भय खत्म हो जाता है।

पूर्णिमा का दिन विष्णु भगवान को समर्पित है।पूर्णिमा के दिन तीर्थ स्थानों में स्नान करना पाप नाशक माना जाता है।लेकिन वैशाख की पूर्णिमा बहुत खास होती है इस दिन सूर्य अपनी उच्च राशि मेष में होते  है और चन्द्रमा भी अपनी उच्च राशि तुला में होते है।

जीवन परिचय (Gautam Buddha Story )

भगवान बुद्ध का जन्म 563 ई.पूर्व वैशाख पूर्णिमा के दिन लुंबिनी (नेपाल) में शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन और महारानी महामाया के घर में हुआ था।बालक का नाम सिद्धार्थ (अर्थात जो सिद्धि  प्राप्त करने के लिए ही जन्मा हो) रखा गया।गौतम गोत्र में जन्म लेने के कारण उनको गौतम भी कहा जाता है।इनकी माता का निधन इनके जन्म के सातवें दिन हो गया।

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ऐसा कहा जाता है कि सिद्धार्थ के जन्म समारोह के दौरान एक साधु ने बालक सिद्धार्थ का भविष्य पढ़ते हुए यह बताया कि “या तो ये बच्चा महान राजा बनेगा या महान पवित्र पथ प्रदर्शक”।

इनका लालन पालन महारानी की छोटी सगी बहन प्रजापति गौतमी ने किया।गौतम के मन में बचपन से ही अपार दया और करुणा थी।वह किसी का दुखी नहीं देख सकते थे।सिद्धार्थ के चचेरे भाई देवदत्त द्वारा तीर से घायल हंस की उन्होंने खूब सेवा कर उसके प्राणों की रक्षा की।

शिक्षा-दीक्षा 

सिद्धार्थ ने गुरु विश्वामित्र से वेद,पुराण,उपनिषदों,राजकाज कार्य और युद्ध विद्या सीखी।कुश्ती ,घुड़दौड़ और तीर कमान चलाने में वो माहिर थे।

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विवाह

16 वर्ष की उम्र में सिद्धार्थ का विवाह राजकुमारी यशोधरा के साथ कर दिया गया।पिता द्वारा सारी सुख-सुविधाओं का प्रबंध किया गया।राजकुमार सिद्धार्थ व राजकुमारी यशोधरा को एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम राहुल रखा गया।

वैराग्य

राज महल सारी सुख सुविधाओं से भरपूर होने के बाद भी सिद्धार्थ का मन राजमहल में नही रमता था।फिर जीवन के सच्चे रंग (जन्म, जवानी, बूढ़ापा ,रोग ,मृत्यु, सन्यासी )देखने के बाद उनका संसार और भौतिक सुखों से मोह भांग हो गया और सांसारिक समस्याओं से दुखी होकर सिद्धार्थ ने 29 साल की आयु में घर छोड़ दिया।

राजपाट, राजमहल,पत्नी व बेटे को छोड़कर तपस्या के लिए चल पड़े।जिसे बौद्ध धर्म में महाभिनिष्क्रमण कहा जाता है।

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बोधि की प्राप्ति

बिना अन्न जल ग्रहण किए 6 साल की कठिन तपस्या के बाद 35 साल की आयु में बैसाख पूर्णिमा की रात निरंजना नदी के किनारे पीपल के पेड़ के नीचे सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ।ज्ञान प्राप्ति के बाद सिद्धार्थ बुद्ध के नाम से जाने जा लगे।जिस जगह पर उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ उसे “बोधगया” और जिस पेड़ के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ उसे “बोधिवृक्ष” कहा जाता है। बोधि का मतलब होता है ज्ञान प्राप्त होना और संसार के सभी माया मोह से छुटकारा पाना।

पहला उपदेश 

ज्ञान प्राप्त करने के बाद महात्मा बुद्ध आषाढ़ मास की पूर्णिमा को काशी के पास मृगदाव(सारनाथ) पहुंचे।वहीं पर उन्होंने सबसे पहला धर्म उपदेश दिया जिसे बौद्ध ग्रंथों में “धर्मचक्र प्रवर्तन” कहा जाता है।और पांच मित्रों(कौण्डिल्य,बप्पा भादिया,महानामा,अस्सागी)को अपना अनुयायी बनाया।फिर उन्हें धर्म प्रचार के लिए भेज दिया।

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महापरिनिर्वाण

बुद्ध की मृत्यु 80 साल की उम्र में 483 ई.पू. वैशाख पूर्णिमा (Buddha Purnima) के दिन देवरिया जिले के कुशीनगर (उत्तरप्रदेश) में चुद्र द्वारा दिए गये भोजन को खाने के बाद हो गई। जिसे बौद्ध धर्म में महापरिनिर्वाण कहा जाता है।

कैसे मनाई जाती है बुद्ध पूर्णिमा ( How Buddha Purnima Celebrated)

इस वक्त विश्व में लगभग 180 करोड लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी है और बुद्ध पूर्णिमा बौद्ध धर्म के अनुयायी के लिए सबसे बड़ा त्यौहार है।इस दिन अनेक प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।अलग अलग देशों में वहां की संस्कृति, रीति रिवाज़ों के अनुसार ही Buddha Purnima को मनाया जाता है और कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

बौद्ध धर्म के लोग इस दिन मंदिरों व घरों में अगरबत्ती व दीपक जलाते हैं।तथा घरों को फूलों से सजाया जाता है।तथा बौद्ध धर्म ग्रंथों का पाठ किया जाता है।दीपक जलाकर भगवान बुद्ध की पूजाकर उन्हें फल फूल अर्पित करते हैं।

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बोधि वृक्ष की पूजा

Buddha Purnima के दिन संभव हो सके तो बौद्ध धर्म के अनुयायी बोधि वृक्ष के दर्शन जरूर करते हैं।इस दिन पवित्र बोधि वृक्ष की पूजा की जाती है।उसकी शाखाओं को रंगीन पताकाओं से सजाया जाता है।तथा उसकी जड़ों में दूध और सुगंधित पानी डाला जाता है।मंदिर के आसपास दिए जलाए जाते हैं।तथा प्रार्थना की जाती है।

सुखद भविष्य के लिए भगवान बुद्ध का आशीर्वाद लिया जाता है।दिल्ली संग्रहालय में बुद्ध की अस्थियों को सुरक्षित रखा गया है लेकिन वैशाख पूर्णिमा के दिन इन अस्थियों को लोगों के दर्शनार्थ हेतु बाहर निकाला जाता है।जिससे कि बौद्ध धर्मावलंबी वहां आकर प्रार्थना कर सकें।

कई नामों से जाना जाता है बुद्ध पूर्णिमा को 

बुद्ध पूर्णिमा दिवस (Buddha Purnima) को अलग अलग देशों में अलग अलग नाम से जाना जाता है।जैसे वैशाख पूजा,वैशाख,वेसाक,विसाख बचा,सागा दाव ,फ़ो देन,फैट डैन आदि ।श्रीलंका व अन्य दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में इस दिन को “बेसाक” उत्सव के रूप में मनाते हैं।  

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कहां कहां मनाया जाता है

Buddha Purnima का त्यौहार  भारत, नेपाल, सिंगापुर ,वियतनाम, थाईलैंड, जापान, कंबोडिया, मलेशिया, श्रीलंका म्यानमार, इंडोनेशिया, पाकिस्तान तथा विश्व के अन्य देशों में भी बड़े धूम धाम से मनाया जाता है।

महापरिनिर्वाण स्थल पर लगता है मेला

बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima) के अवसर पर बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली कुशीनगर में स्थित महापरिनिर्वाण विहार में एक माह तक मेला लगता है।Buddha Purnima के दिन महापरिनिर्वाण स्थल पर बुद्ध की पूजा अर्चना करने के लिए दूर-दूर से बौद्ध धर्म के अनुयायी बड़ी श्रद्धा भाव से यहां पहुंचते हैं।इस मंदिर की स्थापत्य कला अजंता की गुफाओं से प्रेरित है।

इस विहार में भगवान बुद्ध की लाल बलुई मिट्टी की बनी लेटी हुई (भूमि को स्पर्श करती हुई) 6.1 मीटर लंबी मूर्ति है।यह बिहार उसी स्थान पर बनाया गया है जहां से यह मूर्ति निकाली गई थी।विहार के पूर्वी हिस्से में एक स्तूप भी है यहां भगवान बुद्ध का अंतिम संस्कार किया गया था। 

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भाषा पाली में प्रचार

उन्होंने अपने संदेशों, उपदेशों को संस्कृत के बजाय सीधी-सादी पाली भाषा में प्रचार किया।उनके पाली भाषा में प्रचार करने से उनकी लोकप्रियता बढ़ी।बुद्ध ने अपने उपदेश कौशल, कौशांबी और वैशाली राज्य में पाली भाषा में दिए।बुद्ध ने सर्वाधिक उपदेश कौशल देश की राजधानी श्रीबस्ती में दिए।बिंबिसार, प्रसेनजीत, उदयन जैसे शासक इनके प्रमुख अनुयायी थे।

भगवान बुद्ध के उपदेश

भगवान बुद्ध ने लोगों को मध्यम मार्ग का उपदेश दिया।उन्होंने अपने अनुयायियों को चार आर्य सत्य, अष्टांगिक मार्ग, दस पारमिता, पंचशील आदि की शिक्षा दी।

  • चार आर्य सत्य( दु:ख, दु:ख का कारण, दु:खनिरोध ,दुख निरोध का मार्ग के लिए)बताये।तथा दुख निरोध का मार्ग अष्टांगिक मार्ग बताया।
  • अष्टांगिक मार्ग :-अनुयायियों को अष्टांगिक मार्ग अपनाने का उपदेश दिया।अष्टांगिक मार्ग है सम्यक दृष्टि ,सम्यक संकल्प ,सम्यक वाक् ,सम्यक कर्म ,सम्यक जीविका ,सम्यक प्रयास, सम्यक स्मृति, सम्यक समाधि।
  • पंचशील सिद्धांत :अहिंसा ,अस्तेय ,अपरिग्रह ,सत्य,सभी नशा से विरक्ति ।

उनके महापरिनिर्वाण के अगले पांच शताब्दियों में बौद्ध धर्म पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैला और अब इसके अनुयायी लगभग पूरे विश्व में फैले हुए हैं

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बौद्ध धर्म के संप्रदाय

बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद बौद्ध धर्म कई संप्रदायों में विभाजित हो गया।जैसे हीनयान, महायान, वज्रयान, थेरवाद, नवयान आदि। भले ही ये धर्म कई संप्रदायों में विभाजित हो गया हो लेकिन फिर भी सभी संप्रदाय के लोग बौद्ध धर्म और बुद्ध के मूल सिद्धांतों और उपदेशों को ही मानते हैं और उन्हीं का अनुसरण करते हैं।

ईसाई धर्म के बाद बौद्ध धर्म दुनिया का सबसे बड़ा दूसरा धर्म है।दुनिया के करीब 2 अरब यानी 29% लोग बौद्ध धर्म के अनुयाई हैं ।दुनिया के 200 से अधिक देशों में बौद्ध धर्म के अनुयाई हैं।13 देशों में बौद्ध धर्म प्रमुख धर्म है।

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