Lokpal and Lokayukt ,What is Lokpal and Lokayukt Law,Who is appointed as lokpal, Function of Lokpal and Lokayukt ,Difference between Lokpal and Lokayukt,Lokpal and Lokayukt Act, लोकपाल और लोकायुक्त कानून क्या हैं ?जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष (Justice Pinaki Chandra Ghose) बने देश के पहले लोकपाल।
Lokpal and Lokayukt
मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री कार्यकाल में सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए अन्ना हजारे ने अरविंद केजरीवाल व किरण बेदी के साथ मिलकर लोकपाल कानून को लागू करने तथा लोकपाल की नियुक्ति के लिए आंदोलन शुरु किया था।
इस आंदोलन ने लोकपाल की जरूरत व अहमियत को देशभर के लोगों को समझाई।लोकपाल और लोकायुक्त कानून के तहत कुछ श्रेणियों के सरकारी सेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति का प्रावधान किया गया है।
“लोकपाल और लोकायुक्त कानून 2013” को 16 जनवरी 2014 में लागू तो कर दिया गया था।लेकिन 2019 तक भी लोकपाल की नियुक्ति नहीं गयी।आखिरकार सुप्रीम कोर्ट को लोकपाल की नियुक्ति के लिए हस्तक्षेप करना पड़ा ।
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7 मार्च को उच्चतम न्यायालय ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल को 10 दिन के भीतर लोकपाल चयन समिति की बैठक का आदेश दिया।इस आदेश के बाद 15 मार्च को चयन समिति की बैठक हुई और नरेंद्र मोदी,चीफ जस्टिस रंजन गंगोई, लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन और सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी के पैनल ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष (पी.सी.घोष) को देश का पहला लोकपाल चुन किया।और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 23 मार्च 2019 को जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष को देश का पहला लोकपाल नियुक्त कर शपथ दिलाई।
First Lokpal of India
जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष (Justice Pinaki Chandra Ghose) देश के पहले लोकपाल बने।
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प्रधानमंत्री, मंत्री सांसद ,केंद्र सरकार के ग्रुप A ,B ,C ,D के सभी ऑफिसरों के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार की जांच लोकपाल कर सकता है या करवा सकता है।इन सभी के विरुद्ध पद का दुरुपयोग करने या भ्रष्टाचार करने पर लोकपाल जांच कर सकता है।
या नागरिकों की शिकायत पर जांच करना ,सरकारी संस्थानों में किसी भी प्रकार की रिश्वत लेने या नियम विरुद्ध कार्य करने पर अब स्वतंत्र एवं निष्पक्ष जांच संभव है।क्योंकि लोकपाल और लोकायुक्त दोनों ही स्वतंत्र संस्थाएं हैं।लोकपाल का कार्यक्षेत्र केंद्र(पूरा भारत) तथा लोकायुक्त का कार्य क्षेत्र राज्य है।
लोकपाल कानून की शुरुवात (Lokpal and Lokayukt History)
लोकपाल कानून बनाने का विचार सर्वप्रथम लक्ष्मी मल सिंघवी ने 1963 में दिया था।इसके बाद मोरारजी देसाई की “प्रशासनिक सुधार कमेटी” ने 1966 में सार्वजनिक जीवन के उच्च पदों में भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति की सिफारिश की थी।
इसके बाद 1971,1977, 1985, 1989, 1996, 1998, 2001, 2005, 2008 में लोकपाल बिल बनाने तथा उसको लागू करने का प्रयास किया गया।लेकिन तब यह संभव नहीं हो पाया।लेकिन 16 जनवरी 2014 को लोकपाल और लोकायुक्त कानून 2013 (Lokpal and Lokayukt Act 2013 ) को लागू कर दिया गया।
2014 से 2019 के बीच लोकपाल नियुक्त न होने की वजह
2014 में मोदी सरकार के काम काज संभालने के बाद भी लोकपाल की नियुक्ति नही हो पायी थी। सरकार का कहना था कि लोकपाल नियुक्त करने के लिए बनने वाली कमेटी में विपक्षी दल के नेता का होना जरुरी है।और सांसद में विपक्षी दल के नेता का दर्जा पाने के लिए विपक्षी दल के पास संसद में 10% सीटें होनी चाहिए।जो इस वक्त विपक्षी दल के पास नहीं हैं।
इसीलिये जब तक कानून में संशोधन नहीं होता।तब तक विपक्षी दल के नेता के तौर पर किसी को भी कमेटी में शामिल नहीं किया जा सकता।लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की इस बजह को मानने से इंकार कर दिया।और कहा था कि लोकपाल की नियुक्ति न होने की यह वजह नहीं होनी चाहिए।
क्या है लोकपाल कानून ?
(What is Lokpal and Lokayukt Law)
लोकपाल के पास सेना को छोड़कर प्रधानमंत्री / किसी भी जनसेवक/ किसी भी स्तर का सरकारी अधिकारी/ मंत्री/ पंचायत सदस्य आदि के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत की सुनवाई का अधिकार होगा।साथ ही वह इन सभी की संपत्तियों को भी जप्त करने का अधिकार रखता है।विशेष परिस्थितियों में लोकपाल किसी व्यक्ति के खिलाफ अदालती ट्रायल चलाने और ₹2 लाख तक का जुर्माना लगाने का अधिकार भी रखता हैं।
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लोकपाल का कार्य क्या हैं ? (Function of Lokpal )
लोकायुक्त और लोकायुक्त कानून (Lokpal and Lokayukt Act ) मुख्य रूप से सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार की शिकायतों का निपटारा करने के लिए बनाया गया हैं।लोकसेवक यानी पब्लिक सर्वेंट पर लगे भ्रष्टाचार की जांच के लिए यह व्यवस्था की गई है।लोकपाल के चेयरमैन और सदस्य भी पब्लिक सर्वेंट की परिभाषा के दायरे में आते हैं।
- अगर कोई जांच कमेटी मौजूद नहीं है तो भ्रष्टाचार के आरोपी सरकारी कर्मचारी के खिलाफ शुरूवाती जांच के लिए लोकपाल एक निदेशक के नेतृत्व में एक “जांच शाखा/ विभाग” का गठन भी कर सकता है।यह “भ्रष्टाचार निरोधक कानून 1988” के तहत दंड के दायरे में आने वाले लोक सेवकों के भ्रष्टाचार से जुड़े अपराधों की शुरुआती जांच करेगा।
- केंद्र सरकार अपने मंत्रालय या विभाग से लोकपाल द्वारा गठित इस “जांच शाखा” के लिए प्राथमिक जांच के लिए अधिकारी और कर्मचारी उपलब्ध कराएगी यानी लोकपाल के पास केंद्र/राज्य सरकार के अधिकारियों की सेवा को इस्तेमाल करने का अधिकार होगा।
- भ्रष्टाचार के आरोपी सरकारी कर्मचारी की शिकायत की पैरवी के लिए लोकपाल एक निदेशक के नेतृत्व में एक “अभियोजन शाखा” का भी गठन करेगा।
- केंद्र सरकार अपने मंत्रालय या विभाग से लोकपाल द्वारा गठित इस “अभियोजन शाखा” के लिए अधिकारी और कर्मचारी उपलब्ध कराएगी।
- लोकपाल के पास तलाशी और जब्तीकरण का अधिकार हैं।
- कुछ मामलों में लोकपाल के पास दीवानी अदालत के अधिकार भी होंगे।
- संपत्ति को अस्थाई तौर पर नत्थी करने का और नत्थी की गई संपत्ति की पुष्टि करने का अधिकार भी होगा।
- विशेष परिस्थितियों में भ्रष्ट तरीके से कमायी गई संपत्ति /आय को जब्त करने का अधिकार भी होगा।
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- भ्रष्टाचार के आरोप वाले सरकारी कर्मचारी के स्थानांतरण या निलंबन की सिफारिश करने का अधिकार।
- शुरुआती जांच के दौरान उपलब्ध रिकॉर्ड को नष्ट होने से बचाने के लिए निर्देश देने का अधिकार।
- केंद्र सरकार को भ्रष्टाचार के मामलों की सुनवाई के लिए उतनी विशेष अदालतों को गठन करना होगा जितनी लोकपाल बताएं।
- अपना प्रतिनिधि नियुक्त करने का अधिकार हैं।
- विशेष अदालतों में मामला दायर होने के एक साल के अंदर उसकी सुनवाई पूरी करना होगी ।अगर एक साल के समय में यह सुनवाई पूरी नहीं हो पाती तो विशेष अदालत इसके कारण बताएगी और सुनवाई को 3 महीने में पूर्ण करेंगी।अगर सुनवाई 3 महीने में पूर्ण नहीं होती है तो फिर इस अवधि को तीन-तीन महीने के लिए बढ़ाया जाएगा।
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लोकपाल निकाय/ संस्था में सदस्य
लोकपाल और लोकायुक्त कानून 2013 (Lokpal and Lokayukt Act 2013) के अनुसार लोकपाल नाम से एक निकाय बनाया जाएगा। जिसमें एक चेयरमैन के अलावा अधिकतम 8 सदस्य होंगे।लोकपाल के 50% सदस्य (चार सदस्य) न्यायिक क्षेत्र से होंगे। तथा बाकी के 50% सदस्य (चार सदस्य) अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, ओबीसी, अल्पसंख्यक वर्ग व महिलायें होगी।
लोकपाल के सदस्य व अध्यक्ष की योग्यता (Members of Lokpal)
- भारत के मौजूदा चीफ जस्टिस/पूर्व चीफ जस्टिस या सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा/पूर्व जज को या कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति लोकपाल निकाय के अध्यक्ष के रूप में चुना जा सकता है।
- अध्यक्ष या सदस्य बनने के लिए व्यक्ति की उम्र 45 वर्ष से अधिक होनी अनिवार्य है।
- संसद सदस्य/किसी राज्य/केंद्र शासित प्रदेश की विधान सभा के सदस्य, किसी पंचायत/ निगम के सदस्य लोकपाल में शामिल नहीं हो सकते हैं।
- ऐसा व्यक्ति विशेष जो राज्य/केंद्र सरकार की नौकरी से बर्खास्त या हटाया गया हो ऐसे लोग लोकपाल में शामिल नहीं हो सकते हैं।
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लोकपाल निकाय के सदस्यों की चयन समिति के मुख्य सदस्य
लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम 2013 की धारा 4(1) के अनुसार अध्यक्ष एवं सदस्य राष्ट्रपति द्वारा एक चयन समिति की सिफारिश पर नियुक्ति किए जाएंगे।इस चयन समिति के
- अध्यक्ष – प्रधानमंत्री।
- सदस्य -लोकसभा का अध्यक्ष, लोकसभा में विपक्ष के नेता,मुख्य न्यायधीश,या उनकी अनुशंसा पर नामित सुप्रीम कोर्ट के जज ,राष्ट्रपति द्वारा नामित कोई प्रतिष्ठित व्यक्ति।
- चयन समिति में कोई पद रिक्त होने पर की गई अध्यक्ष या किसी सदस्य की नियुक्ति को अबैध नहीं माना जायेगा।
- लोकपाल अधिनियम की धारा 6 के अनुसार अध्यक्ष और सदस्य कार्यभार करने की तारीख से 5 वर्ष तक या 70 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक पद में बने रहेंगे।
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लोकपाल की जांच में कौन कौन शामिल
लोकसभा द्वारा 27 दिसंबर 2011 को पारित विधेयक के अनुसार लोकपाल के क्षेत्र अधिकार में प्रधानमंत्री, मंत्री सांसद , केंद्र सरकार के ग्रुप A, B, C,D के सभी ऑफिसर होंगे।प्रधानमंत्री के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार की जांच भी लोकपाल कर सकता है या करवा सकता है।लेकिन कई मामलों में प्रधानमंत्री पर जांच नहीं हो सकती है।
जैसे अंतरराष्ट्रीय,आंतरिक और बाहरी सुरक्षा, लोक व्यवस्था,परमाणु उर्जा और अंतरिक्ष से जुड़े मामले।प्रधानमंत्री की जांच लोकपाल बेंच के पूर्ण या इसके दो तिहाई सदस्यों के समर्थन के बगैर नहीं हो सकती।और लोकपाल को यदि विश्वास हो तो जांच ख़ारिज भी हो सकती है।जांच को न तो प्रकाशित किया जा सकता हैं और नही ही सार्वजनिक। जांच पूर्णतह कैमरे में रिकॉर्ड होगी।
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2016 में लोकपाल कानून में संशोधन
2016 में लोकपाल कानून में संशोधन कर इसमें कई बदलाव किये गये दिया जिसके अनुसार
- सार्वजनिक क्षेत्र में उच्च पदों पर बैठे लोगों की संपत्ति घोषित करने का स्वरुप और तरीका सरकारी ही तय करेगी।
- पब्लिक सर्वेंटस के पति/ पत्नी/ बच्चों को अपनी संपत्ति घोषित नहीं करनी होगी।संपत्ति घोषित न करने के इस नए नियम से लोकपाल कमजोर भी हुआ हैं।
- अंतरराष्ट्रीय,आंतरिक और बाहरी सुरक्षा, लोक व्यवस्था,परमाणु उर्जा और अंतरिक्ष से जुड़े मामले में प्रधानमंत्री के खिलाफ जांच नहीं होगी।
रिटायर के बाद क्या करेंगे लोकपाल व सदस्य
लोकपाल के अध्यक्ष और उसके सदस्य लोकपाल कार्यालय से रिटायर होने के कुछ कार्य नहीं कर पाएंगे।
- पद छोड़ने के पांच साल बाद ही ये राष्ट्रपति,उपराष्ट्रपति,संसद के किसी सदन/किसी राज्य विधानसभा/निगम/पंचायत के सदस्य के रूप में चुनाव लड़ सकते।
- इसके अध्यक्ष व सदस्यों की दुबारा इस पद पर नियुक्ति नहीं सकती हैं।
- केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासक के रूप में भी नियुक्ति नहीं सकती हैं।
- इसके अलावा ऐसी कोई भी जिम्मेदारियां/नियुक्ति नहीं मिल सकती जिसके लिए राष्ट्रपति को अपने हस्ताक्षर और मुंहर से वारंट जारी करना पड़े।
- इन्हें कोई कूटनीतिक जिम्मेदारी नहीं दी जा सकती।
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लोकायुक्त और लोकायुक्त कानून क्या हैं ?
(What is Lokayukt and Lokayukt Act )
केंद्र में जो लोकपाल का कार्य है वही राज्यों में लोकायुक्त का कार्य है।राज्यों में उच्च पदों पर भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए लोकायुक्त की नियुक्ति की गई हैं।
लोकायुक्त और लोकायुक्त कानून (Lokpal and Lokayukt Act) के अनुसार इसके लागू होने के एक साल के भीतर जिन राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं हुई है।वहां विधानसभा के कानून के मुताबिक इसकी नियुक्ति जल्दी से जल्दी करनी होगी।जो सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार की शिकायतों का निपटारा करेगी।
लोकायुक्त निकाय में सदस्य (Members of Lokayukt)
लोकपाल और लोकायुक्त कानून 2013 (Lokpal and Lokayukt Act 2013) के अनुसार “लोकायुक्त” नाम से एक निकाय बनाया जाएगा।जिसमें एक चेयरमैन के अलावा अधिकतम 8 सदस्य होंगे।लोकायुक्त के 50% सदस्य (चार सदस्य) न्यायिक क्षेत्र से होंगे तथा बाकी के 50% सदस्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति ,ओबीसी, अल्पसंख्यक वर्ग व महिलायें होनी अनिवार्य हैं।
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लोकायुक्त के सदस्य व अध्यक्ष की योग्यता
- लोकायुक्त का भी एक अध्यक्ष होगा जो राज्य के हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश या हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज या कोई भी अन्य महत्वपूर्ण व्यक्ति हो सकता है।
- हाईकोर्ट के जज हो/रह चुके व्यक्ति की न्यायिक सदस्य के रूप में नियुक्ति हो सकती है।
- अध्यक्ष या सदस्य बनने के लिए व्यक्ति की उम्र कम से कम 45 वर्ष होनी अनिवार्य है।
- सदस्य बनने के लिए पूरी तरह से भ्रष्टाचार निरोधी नीति,पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन ,सतर्कता,बीमा, बैंकिंग,कानून और प्रबंधन के मामलों में कम से कम 25 साल का विशेष अनुभव होना आवश्यक है।
- संसद सदस्य/किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश की विधानसभा का सदस्य, किसी पंचायत या निगम का सदस्य लोकायुक्त में शामिल नहीं हो सकते हैं।
- ऐसा व्यक्ति विशेष राज्य/केंद्र सरकार की नौकरी से बर्खास्त या हटाया गया हो।ऐसे लोग लोकायुक्त में शामिल नहीं हो सकते हैं।
लोकायुक्त निकाय के सदस्यों की चयन समिति के मुख्य सदस्य
लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम 2013 की धारा 4(1) के अनुसार अध्यक्ष एवं सदस्य राज्यपाल द्वारा एक चयन समिति की सिफारिश पर नियुक्ति किए जाएंगे।
- अध्यक्ष – मुख्यमंत्री
- सदस्य -विधानसभा अध्यक्ष,विधानसभा में विपक्ष के नेता,हाई कोर्ट के मुख्य न्यायधीश,या उनकी अनुशंसा पर नामित हाई कोर्ट के जज ,राज्यपाल द्वारा नामित कोई प्रतिष्ठित व्यक्ति।
- चयन समिति में कोई पद रिक्त होने पर की गई अध्यक्ष या किसी सदस्य की नियुक्ति को अबैध नहीं माना जायेगा।
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लोकायुक्त का कार्य क्या हैं ? (Function of Lokayukt)
यह कानून मुख्य रूप से राज्य के सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार की शिकायतों का निपटारा करने के लिए बनाया गया हैं।भ्रष्टाचार के आरोप लगने पर लोकायुक्त किसी भी लोकसेवक की जांच कर या करवा सकता है।
- लोकायुक्त वर्तमान मुख्यमंत्री/पूर्व मुख्यमंत्री/वर्तमान मंत्री/पूर्व मंत्री/विधानसभा का सदस्य/राज्य के अधिकारी या कर्मचारी के खिलाफ लगे आरोपों की जांच कर सकता हैं।
- लोकायुक्त के पास तलाशी और जब्तीकरण का अधिकार हैं
- कोई जांच कमेटी मौजूदा में मौजूद नहीं है तो भ्रष्टाचार के आरोपी सरकारी कर्मचारी के खिलाफ शुरूवाती जांच के लिए लोकायुक्त एक निदेशक के नेतृत्व में एक “जांच शाखा” का गठन भी कर सकता है।
- राज्य सरकार अपने मंत्रालय या विभाग से लोकायुक्त द्वारा गठित इस “जांच शाखा” के लिए प्राथमिक जांच के लिए अधिकारी और कर्मचारी उपलब्ध कराएगी यानी लोकायुक्त के पास राज्य सरकार के अधिकारियों की सेवा का इस्तेमाल करने का अधिकार होगा।
- भ्रष्टाचार के आरोपी सरकारी कर्मचारी की शिकायत की पैरवी के लिए लोकायुक्त एक निदेशक के नेतृत्व में एक “अभियोजन शाखा” का भी गठन करेगा।
जानें मिशन चंद्रयान-2 के बारे में ?
- राज्य सरकार अपने मंत्रालय या विभाग से लोकायुक्त द्वारा गठित इस “अभियोजन शाखा” के लिए अधिकारी और कर्मचारी उपलब्ध कराएगी।
- जांच और अभियोजन निदेशक राज्य सरकार के अतरिक्त सचिव के समकक्ष या उससे उच्च पद पर आसीन व्यक्ति होंगे।इनके नाम का सुझाव राज्य की सरकार द्वारा दिया जायेगा तथा नियुक्ति लोकायुक्त अध्यक्ष द्वारा की जाएगी।
- कुछ मामलों में लोकपाल के पास दीवानी अदालत के अधिकार भी होंगे।
- संपत्ति को अस्थाई तौर पर नत्थी करने का और नत्थी की गई संपत्ति की पुष्टि करने का अधिकार भी होगा।
- विशेष परिस्थितियों में भ्रष्ट तरीके से कमायी गई संपत्ति /आय को जब्त करने का अधिकार भी होगा।
- भ्रष्टाचार के आरोप वाले सरकारी कर्मचारी के स्थानांतरण या निलंबन की सिफारिश करने का अधिकार होगा।
- शुरुआती जांच के दौरान उपलब्ध रिकॉर्ड को नष्ट होने से बचाने के लिए निर्देश देने का अधिकार।
सुकन्या समृद्धि योजना की खासियत जाने
राज्य सरकार के कर्मचारी कौन कौन माने जायेगे
- ऐसे सभी कर्मचारी राज्य सरकार के कर्मचारी माने जाएंगे जो ऐसे किसी भी संस्थान/ बोर्ड/कॉरपोरेशन/ अथॉरिटी/ कंपनी/ सोसायटी/ ट्रस्ट/ स्वायत्त संस्था में काम करते हो जिनका गठन संसद या राज्य सरकार के कानून द्वारा किया गया हो। या राज्य सरकार द्वारा आंशिक या पूर्णरूप से नियंत्रित या वित्तपोषित हो।
- ऐसे व्यक्ति भी शामिल होंगे जो किसी सोसाइटी/ एसोसिएशन का निदेशक/ प्रबंधक/ सचिव/ अधिकारी हो।जो पूर्ण या आंशिक रूप से राज्य सरकार द्वारा वित्तपोषित या अनुदान प्राप्त हो।जिसकी वार्षिक आय सरकार द्वारा तय की गई सीमा से अधिक हो।
- ऐसे व्यक्ति भी शामिल किये जायेगे जो किसी भी सोसायटी/एसोसिएशन का निदेशक/प्रबंधक/ सचिव/ अधिकारी हो।जिन्हें डोनेशन जनता से मिलता हो और जिसकी वार्षिक आय राज्य सरकार द्वारा तय की गई सीमा से अधिक हो या विदेश से प्राप्त होने वाली धनराशि (विदेशी चंदा) ₹10लाख से अधिक हो या केंद्र सरकार द्वारा तय की गई सीमा से अधिक हो।
लोकपाल कानून 2013 में एक साल के भीतर राज्य में उच्च पदों पर भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए राज्य सरकारों से लोकायुक्त नियुक्त करने के लिए कहा गया था। लेकिन तय समय सीमा के भीतर कई राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं हो पाई है सुप्रीम कोर्ट ने कई राज्यों को लोकायुक्त नियुक्त करने की प्रक्रिया तेज करने को कहा है।
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हांलाकि भारत के सभी राज्यों में लोकायुक्त के एक जैसे अधिकार नहीं है।कुछ राज्यों में इन की ताकत को सीमित कर दिया गया है ।
देश के पहले लोकपाल पिनाकी चंद्र घोष (First Lokpal of India)
जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष मई 2017 में सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए थे।इससे पहले वह कोलकाता और आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं।सुप्रीम कोर्ट से रिटायर होने के बाद वह जून 2017 से मानवाधिकार आयोग के सदस्य थे।राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष को 23 मार्च 2019 को देश के पहले लोकपाल के रूप में शपथ दिलाई थी।
27 मार्च 2019 को नई दिल्ली में आयोजित एक समारोह में लोकपाल न्यायमूर्ति पी.सी घोष ने सभी 8 सदस्यों को पद की शपथ दिलाई।
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लोकपाल संस्था में 8 सदस्य हैं।
न्यायिक सदस्य
सदस्यों में जस्टिस दिलीप बी भोंसले, जस्टिस पीके मोहंती, जस्टिस अभिलाषा कुमारी और जस्टिस ए.के त्रिपाठी को न्यायिक सदस्य के तौर पर नियुक्ति किया हैं।
गैर न्यायिक सदस्य
इसके साथ ही सशस्त्र सीमा बल की पूर्व पहली महिला प्रमुख अर्चना रामासुंदरम, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्य सचिव दिनेश कुमार जैन, पूर्व आईआरएस अधिकारी महेंद्र सिंह और गुजरात कैडर के आईएएस अधिकारी इंद्रजीत प्रसाद गौतम लोकपाल के गैर न्यायिक सदस्य हैं।
लोकपाल और लोकायुक्त का कार्यालय ( Lokpal and Lokayukt Office )
लोकपाल का कार्यालय नई दिल्ली में स्थापित किया गया है।जबकि लोकायुक्त का कार्यालय राज्य की राजधानी में स्थापित किया जाएगा।
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लोकपाल और लोकायुक्त का वेतन ( Lokpal and Lokayukt Salary)
लोकपाल और लोकायुक्त के अध्यक्ष का वेतन एवं भत्ते सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के बराबर होगा तथा सदस्यों का वेतन मान एवं भत्ते सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान होगा।
विदेशों में भी हैं लोकपाल
भारत के अलावा कई अन्य देशों में लोकपाल संस्थाए काम कर रही है।1967 तक लोकपाल संस्था 12 देशों में अस्तित्व में आ गई थी।इंग्लैंड, डेनमार्क, न्यूजीलैंड, सोवियत संघ, फिनलैंड ,डेनमार्क ,नॉर्वे ,ब्रिटेन में भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए लोकपाल की स्थापना की गई थी।इंग्लैंड डेनमार्क और न्यूजीलैंड में इसे “संसदीय आयुक्त” और सोवियत संघ में से “वक्ता” के नाम से जाना जाता है।
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