Himalay Ki Betiyan Class 7 Summary :
Himalay Ki Betiyan Class 7 Summary
हिमालय की बेटियाँ कक्षा 7 साराँश
“हिमालय की बेटियों” , एक निबंध हैं जिसके लेखक नागार्जुन जी हैं। इस पाठ में नागार्जुनजी ने हिमालय और उससे निकलने वाली गंगा , जमुना , सतलुज , सिंधु , ब्रह्मपुत्र व उसकी सहायक नदियों के बारे में बताया है। इस पाठ में लेखक ने हिमालय को पिता और नदियों को उसकी बेटी माना हैं। उन्होंने इन जीवनदायिनी नदियों की तुलना दादी , माँ , मौसी , मामी व बहन के ममतामयी प्रेम से की हैं।
लेखक कहते हैं कि उन्होंने हिमालय से बहने वाली गंगा , जमुना , सतलुज आदि नदियों को अभी तक दूर से ही देखा था यानि लेखक ने उन्हें मैदानी भागों में ही बहते हुए देखा था। जहाँ वो उन्हें किसी संभ्रांत महिला (उच्च कुल की महिला) की तरह शांत व गंभीर दिखाई देती थी। इसीलिए लेखक के मन में उनके प्रति श्रद्धा के भाव थे। लेखक कभी – कभार जब इन नदियों में डुबकी लगाते थे तो उन्हें ऐसा महसूस होता था जैसे वो माँ , दादी , मौसी या मामी गोद में बैठे हों।
लेकिन जब लेखक ने इन नदियों को हिमालय के कंधे पर चढ़कर देखा तो उन्हें लगा कि ये तो काफी पतली (कम चौड़ी) है जो समतल (मैदानी क्षेत्रों) इलाकों में फैल कर विशाल दिखाई देती हैं । यानि लेखक ने जब इन्हें हिमालय में इनके उत्गम स्थान (जहां से नदी निकलती हैं) व उसके आस -पास के इलाकों में (जिन पहाड़ों व घाटियों से होकर ये नदियों मैदानी भागों की ओर बहती हैं) जाकर देखा तो ये उन्हें काफी पतली (कम चौड़ी) नजर आयी ।
लेखक हिमालय की इन बेटियों की बाल लीलाओं जैसे उछलना , कूदना , खिलखिलाकर हँसना और उल्लास को देखकर बहुत आश्चर्यचकित हुए। यहां पर लेखक ने नदियों के ऊँचे पहाड़ से नीचे गिरने , आवाज करते हुए नीचे की तरफ तेजी से बहने की तुलना उनके उछलने , कूदने , खिलखिलाकर हँसने से की हैं। यानि नदी का मानवीकरण (नदी को स्त्री माना हैं) किया गया हैं।
लेखक इन नदियों को लगातार व तेजी से मैदानी इलाकों की तरफ बहता हुआ देखकर कहते हैं कि हिमालय की इन बेटियों का न जाने कौन सा लक्ष्य है जो वो इस प्रकार बेचैन होकर बहती रहती हैं। इनके महान पिता (हिमालय) का प्रेम भी इनके दिल की प्यास नही बुझा पाया। ये नदियाँ बर्फ की पहाड़ियों में , घाटियों में और चोटियों पर लीलाएं करती हुई लगातार बह रही हैं।
लेखक को लगता है कि देवदार , चीड , सरो , चिनार , सफेदा , कैल आदि के जंगलों में पहुंचकर शायद इन नदियाँ को अपनी बीती बातें याद आ जाती होगी और उधर इनके बृद्ध पिता हिमालय भी इनको बहुत याद करते होंगे।
सिंधु और ब्रह्मपुत्र दो महान नदियाँ के नाम सुनकर लेखक को रावी , सतलुज , व्यास , चनाव , झेलम , काबुल , कपिशा ,गंगा , , यमुना , सरयू , गंडक , कोसी आदि नदियाँ भी याद आ जाती हैं। ये सभी नदियाँ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हिमालय से ही निकलती हैं। लेखक यहां पर कहते हैं कि सिंधु और ब्रह्मपुत्र हिमालय में जमी बर्फ के पिघलने से बनी हैं। बर्फ की एक -एक बूँद इकठ्ठा होकर नदी का रूप ले लेती हैं।
ये सभी नदियों हिमालय से निकलकर समुद्र में मिल जाती हैं। इसीलिए लेखक ने हिमालय को ससुर और समुद्र को दामाद बताया हैं क्योंकि नदियाँ जो हिमालय की बेटियों हैं वो अंत में समुंद्र में जाकर मिल जाती हैं।
यहाँ पर लेखक ने कालिदास की एक पुस्तक में लिखी कहानी से कुछ पंक्तियों ली हैं जिसमें कहानी के एक पात्र यक्ष ने अपने मेघदूत में कहा था कि “बेतवा नदी को प्रेम का प्रतिदान देते जाना। तुम्हारी वह प्रेयसी तुम्हें पाकर बहुत खुश होगी”। इस पंक्ति से पता चलता है कि कालिदास जैसे महान कवि को भी नदियों का सजीव रूप (यानी मानव रूप) ही ज्यादा पसंद था।
काका कालेकर ने भी नदियों को “लोकमाता” कहा है। लेकिन लेखक कहते हैं कि इन्हें माता से पहले बेटी व प्रयेसी (प्रेम करने वाली स्त्री) के रूप में देखा जा सकता हैं। एक बार लेखक की थोड़ा तबियत खराब हो गई। उनका मन कही नहीं लगा रहा था इसीलिए वो सतलज नदी के किनारे जाकर बैठ गये। उन्होंने अपने पैर पानी में लटका दिये। थोड़ी देर बाद सतलज नदी के पानी ने जादू किया और उनका तन -मन तरो – ताजा हो गया और वो गुनगुनाने लगे। इसीलिए लेखक ने सतलज नदी को एक ममतामई बहिन के रूप में देखा।
Himalay Ki Betiyan Class 7 Summary :
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