Essay on Holi in Hindi : होली पर 3 हिन्दी निबन्ध , 3 हिन्दी निबंध होली पर
निबन्ध -1
Essay on Holi in Hindi
होली पर हिन्दी निबन्ध
प्रस्तावना
फाल्गुन मास के शुरू होते ही वसंत ऋतु का आगमन हो जाता हैं।और इस समय धरती भी फिर से अपना नया श्रृंगार करने लगती है। खेतों में गेहूं की बालियां पकने को तैयार होती हैं। पहाड़ों में खिले बुरांस के फूल व खेतों में खिले सरसों के पीले फूल सभी को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।ये सभी रंगो के त्यौहार होली के आगमन की सूचना देते हैं। यह त्यौहार एकता , प्रेम , सद्भावना का संदेश देता है। होली का महत्व
भारतवर्ष में यूं तो अनेक त्यौहार मनाए जाते हैं।और हर त्यौहार का अपना अलग-अलग महत्व है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होली मनायी जाती है।होली का त्यौहार बुराई में अच्छाई की विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।यह त्यौहार भगवान के प्रति हमारी आस्था को भी मजबूत करता है।इंसान और प्रकृति के बीच के घनिष्ट संबंध को दिखाता है।और हमें प्रकृति के और करीब ले जाता है।
होली मनाने का कारण
दरअसल यह समय होता है शरद ऋतु की विदाई का और ग्रीष्म ऋतु के आगमन का।फाल्गुन मास के इस समय में बसंत ऋतु का आगमन होता है।बसंत ऋतु को “ऋतुराज” भी कहा जाता है।ऋतुराज यानी सभी ऋतुओं का राजा।
इस समय पेड़ पौधे में नई-नई कोपलें पनपती हैं , रंग बिरंगी फूल खिलने लगते हैं।आम व लीची में बौर आने लगती हैं।धरती एक बार फिर से हरी भरी व फूल पत्तियों से रंगीन होने लगती है। किसान की फसल भी पक कर तैयार हो जाती है या पकने की तैयारी में होती है। और किसानों की कमाई उसकी फसल ही होती है।जिसे देखकर किसान भी प्रफुल्लित होते हैं। इसीलिए वो नाचते गाते हैं।
क्योंकि शरद ऋतु की अत्यधिक ठंड के बाद यह समय न तो बहुत गर्म होता है , और न बहुत ठंडा। इसलिए मन प्रफुल्लित होता है। और पूरा मौज मस्ती के मूड में रहता है। शायद यही कारण है कि हमारे पूर्वजों ने प्रकृति में खिलने वाले नए फूलों को चुनकर या उन फूलों से रंग बनाकर होली के त्यौहार की शुरुआत की हो। क्योंकि होली मौज मस्ती भरा त्यौहार है।
दूसरी ओर यह त्यौहार हमारी एक धार्मिक कथा से भी जुड़ा है।
दरअसल होली के त्यौहार को मनाने के पीछे हमारे धार्मिक ग्रंथों में भी एक कथा मिलती है। जिसके अनुसार प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक असुर राजा राज करता था। वह बहुत शक्तिशाली था। उसने कठोर तपस्या कर शिवजी को प्रसन्न कर उनसे एक बरदान हासिल किया था। वरदान के अनुसार उसकी मृत्यु ना तो आकाश में हो , और न पृथ्वी में। ना उसको मनुष्य मार सके और ना ही पशु। ना उसकी मृत्यु सुबह के समय हो और ना शाम को। और न दिन हो और न रात में।
इस वरदान के अनुसार उसकी मृत्यु असंभव सी लगती थी।इस कारण वह बहुत अधिक अहंकारी हो गया। और अपने आप को भगवान समझने लगा। इसीलिए वह भगवान की पूजा उपासना करने वालों पर कहर बनकर टूटता था।
लेकिन उसका अपना पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का उपासक था। वह हर वक्त भगवान विष्णु की भक्ति में डूबा रहता था। इसी कारण हिरण्यकश्यप अपने पुत्र प्रहलाद से बैर करता था।उसने प्रह्लाद को मारने के लिए अनेक प्रयत्न किए। लेकिन उसका कोई भी यत्न काम न आया।
हिरण्यकश्यप की एक बहन थी जिसका नाम था होलीका। होलीका को भगवान से वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि नहीं जला सकेगी। भले ही वह अग्नि के ऊपर ही क्यों न बैठ जाए। अब हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को अपनी गोद में बिठा कर जलती अग्नि में बैठ जाए। होलिका ने आज्ञा का पालन किया। और वह प्रल्हाद को लेकर जलती अग्नि में बैठ गई।
प्रल्हाद हर वक्त भगवान विष्णु के नाम का जाप करता था। इसीलिए अग्नि तो उसका बाल भी बांका न कर पायी।लेकिन होलीका उस अग्नि में जलकर भस्म हो गई। इसलिए मुख्य होली की पहली रात्रि को होलिका दहन किया जाता है।जिसमें अग्नि की पूजा की जाती है।
होलिका दहन
होली से ठीक एक दिन पहले होलिका दहन की रस्म अदा की जाती है।शहर के किसी चौराहे या होलिका दहन स्थल पर बहुत सारी लकड़ियां इकट्ठी की जाती हैं। और उनके बीच में एक लंबे डंडे पर होली का झंडा बाँध दिया जाता है।
होलिका दहन अमूमन रात्रि के समय किया जाता है।रात में इसमें अग्नि को प्रज्जवलित किया जाता है।फिर पकवान , गेहूं की बालियां , चने के पत्ते , अबीर गुलाल आदि से अग्नि की पूजा की जाती है।
होली की तैयारियों
होली की तैयारी होलिका दहन या मुख्य होली से काफी पहले से शुरू हो जाती हैं। होली के चीर बंधन के साथ ही हर रोज महिलाएं एक जगह इकट्ठा होकर होली से संबंधित गीतों का गायन करती हैं।इनमें राधा कृष्ण के प्रेम से संबंधित गीत अधिक होते हैं। तरह तरह के स्वांग महिलाओं द्वारा रचे जाते हैं। पुरुष भी अपनी टोली में होली का गायन करते हैं जिसमें होली से संबंधित अनेक गीतों को गाया जाता है।
होली का दिन होता है खास
होलिका दहन के अगले दिन पूरे भारत में दोपहर तक होली खेली जाती हैं। इस दिन सुबह सबेरे सफेद वस्त्र पहनकर लोग अपने घरों से बाहर निकलते हैं। अड़ोस पड़ोस के लोगों को टीका लगाकर उन्हें होली की बधाइयां व शुभकामनाएं देते हैं।
ढोलक, मंजीरों के साथ होली के गीत गाये जाते हैं। गुजिया , मिठाई पापड़ों का आनंद भी लिया जाता है। बच्चों के लिए यह दिन सबसे शानदार होता है। क्योंकि उन्हें खूब मस्ती करने का मौका मिलता है। अपनी रंग बिरंगी व आधुनिक डिजाइन वाली पिचकारीयों में पानी और रंग भर भर कर लोगों को भिगाने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते हैं।
यह सिलसिला दोपहर तक चलता है। दोपहर बाद होली खत्म हो जाती है। और लोग अपने घरों में वापस जाकर नहाने धोने का कार्यक्रम करते हैं। और अपना होली का रंग छुड़ाते हैं। कई संस्थानों या सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा होली मिलन समारोह का भी आयोजन किया जाता है। जिसमें होली से संबंधित सांस्कृतिक कार्यक्रमों को दिखाया जाता है।
मथुरा , वृंदावन , ब्रिज की होली
होली लगभग पूरे भारतवर्ष में मनाई जाती है। लेकिन उत्तर भारत की होली का अपना ही एक अलग महत्व है। वृंदावन , ब्रज , मथुरा , बरसाने व काशी की होली अपने आप में खास होती हैं। वृंदावन , ब्रज , मथुरा यह भूमि राधा कृष्ण की भूमि है।यह धरती राधा कृष्ण के अमर प्रेम की धरती है। उनके द्वारा रची गई रास लीलाओं की कहानी यहां हर जगह सुनाई देती है। इसीलिए उनसे संबंधित गीतों को गाया जाता है। होली के समय पूरा ब्रज मंडल होली के रंग में रंगा नजर आता है।
मथुरा की होली प्रसिद्ध है।यहाँ की होली को देखने के लिए लोग देश से ही नहीं ,बल्कि विदेशों से भी आते हैं। ब्रज की होली रंग अबीर गुलाल से खेली जाती हैं। और कहीं-कहीं पर फूलों से भी खेली जाती हैं। लेकिन बरसाने की लठमार होली पूरे भारत में प्रसिद्ध है। इसमें पुरुष महिलाओं पर रंग डालते हैं। और महिलाएं लाठियों से उन्हें मारती हैं। हालांकि यह प्रतीकात्मक ही होता है। हरियाणा में देवर भाभी के साथ होली खेलने की परंपरा है।
होली के व्यंजन
होली के लिए महिलाएं आलू , चावल व साबूदाने के पापड़ व चिप्स तैयार करती हैं। साथ ही होली की शान कहे जाने वाली गुजिया भी बनाई जाती हैं।ये गुजिया बड़ी ही स्वादिष्ट होती हैं।इसके साथ ही मठरी , नमकीन और मिठाई आदि व्यंजनों को भी होली के लिए तैयार किया जाता है।
होली वाले दिन आलू के गुटके भी परोसे जाते हैं। और कहीं-कहीं पर भांग की पकौड़ी भी बनाई जाती हैं। शरबत व भांग की ठंडाई से हुलियारों का स्वागत किया जाता है।
होली का संदेश
होली का त्यौहार एकता , भाईचारे का स्पष्ट संदेश देता है।अपने लोगों के गिले-शिकवे भूलकर उन्हें गले लगाने का संदेश देता है।जाति , धर्म से परे होकर यह त्यौहार एक होने का संदेश देता है।
होली का नकारात्मक पहलू
- पहले प्राकृतिक रंगों से या फूलों से ही होली खेली जाती थी।लेकिन आजकल केमिकल रंगों का भी प्रयोग किया जाता है जो त्वचा व आँखों के लिए हानिकारक होते हैं।केमिकल रंगों का प्रयोग करने से बचना चाहिए।
- कुछ लोग होली के दिन शराब पीकर खूब हंगामा करते है। या “बुरा न मानो होली है ” के बहाने से महिलाओं या बच्चियों से छेड़छाड़ भी करते हैं। जो रंगो के इस खूबसूरत त्यौहार को बदरंगा बना देता है।
उपसंहार
होली रंगो भरा त्यौहार है।और रंग जीवन को आनंद , उत्साह , उमंगों व खूबसूरत पलों से भर देते हैं। यह त्यौहार एक दूसरे की बुराइयों को , नकारात्मकता को भूल कर उन्हें गले लगा लेने का संदेश देता है।
निबंध -2
होली पर हिंदी निबन्ध
प्रस्तावना
होली हमारे देश का एक प्रमुख त्यौहार है।चाहे अमीर हो या गरीब , सभी वर्ग के लोग इस त्यौहार को बहुत खुशी व उत्साह से मनाते हैं।यह त्यौहार फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। होली का मस्ती व रंग भरा त्यौहार बसंत ऋतु की मस्ती में चार चांद लगा देता है।
होली क्यों मनाई जाती हैं
होली के बारे में एक कथा प्रचलित है।भक्त प्रहलाद असुरराज हिरण्यकश्यप का पुत्र था और हिरण्यकश्यप नास्तिक था। वह भगवान के अस्तित्व को नहीं मानता था। लेकिन प्रहलाद विष्णु भक्त था। यह बात हिरण्यकश्यप को बिल्कुल भी पसंद नहीं थी।
इसीलिए उसने बालक प्रह्लाद को आग में जला देने का निश्चय किया। हिरण्यकश्यप की बहन थी होलिका। जिसको वरदान मिला हुआ था कि उसे आग नहीं जला सकेगी।भाई के आदेश पर होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई। लेकिन होलिका उस आग में भस्म हो गई और विष्णु भक्त प्रह्लाद भगवान विष्णु की कृपा से बच गया।
आसुरी शक्ति पर दैवीय शक्ति की विजय हुई।लोग खुशी से नाचने लगे। ऐसा माना जाता हैं कि तभी से होली के उत्सव का आरम्भ हुआ। कुछ लोग होली को “रबी की फसल का त्यौहार” भी मानते हैं। अच्छी फसल उगने की खुशी में भी यह त्यौहार मनाया जाता है।
होली की तैयारियां
होली के त्यौहार की तैयारियां कई दिन पहले शुरू हो जाती हैं। गुलाल , पिचकारीयों व अन्य होली के सामानों से बाजार भर जाते हैं।होली में घरों में ढेर सारे पकवान बनाए जाते हैं। होली में गुजिया , पापड़ , चिप्स का अपना अलग ही मजा है।
मुख्य होली (धुलेंडी ) से पूर्व होलिका दहन के लिए लकड़ियां इकट्ठी की जाती है। पूर्णिमा के एक दिन पहले की शाम के समय होलिका दहन किया जाता है। सुहागन स्त्रियां नारियल , चावल एवं नए अनाज से अग्नि का पूजन करती हैं। बच्चे , बूढ़े , नवयुवक सभी लोग मिलकर गाते और नाचते हैं।
होली के दूसरे दिन धुलेंडी मनाई जाती है। इस दिन लोग एक दूसरे पर खूब अबीर , गुलाल डालते हैं।एक दूसरे को अबीर से टीका लगा कर गले मिलते हैं। सिर्फ कपड़े और चेहरे ही नहीं , इस दिन लोगों के दिल भी रंगीन हो जाते हैं। होली के दिन जाति-पाँति व धर्म का भेदभाव मिट जाता है।
अब होली से जुड़ गई कुछ बुरी परंपराएं
होली मौज मस्ती भरा त्यौहार हैं। लेकिन समय के साथ होली में अब कुछ बुरी परंपराएं भी जुड़ गई हैं।होली के अवसर पर कुछ लोग आपत्तिजनक बातें करते हैं। खासकर महिलाओं के लिए। कुछ लोग रंग के बजाय एक-दूसरे पर कीचड़ उछालते हैं या रासायनिक रंगों का प्रयोग करते हैं। यह रंग आंखें व त्वचा को नुकसान पहुंचाते हैं।हमें इन बुराइयों से बचना चाहिए।
उपसंहार
होली बसंत ऋतु का रंग बिरंगा , मौज मस्ती भरा त्यौहार है।यह हमारे जीवन में उल्लास और प्रेम का रंग भर देता है। सामाजिक एकता , उल्लास और उमंग की दृष्टि से होली अपने आप में एक अनूठा त्यौहार है। इसे ऐसा ही रहने दें। कृपया इसका रूप न बिगाड़ें।
निबंध -3
Essay on Holi : होली पर हिंदी निबन्ध
प्रस्तावना
दीपावली का पर्व हमें अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का संदेश देता है। तो रक्षाबंधन का त्यौहार भाई-बहन के मधुर स्नेह व पवित्र बंधन के बारे में बताता है। दशहरा पर्व बुराई पर भलाई की विजय को दर्शाता है। तो होली का त्यौहार हमें मस्ती , उत्साह , आनंद से भर देता है। सचमुच होली भारतीय जनता के प्राणों का पर्व है।
होली के त्यौहार का संदेश
यह त्यौहार ऋतुराज बसंत की मादकता और महकता का संदेश लेकर आता है।ये धरती फिर से नया श्रृंगार करने लगती हैं।खेत खलिहानों में फिर से हरियाली छाने लगती है। जब पत्ते-पत्ते डाल-डाल व वृक्ष-वृक्ष में नवजीवन का संचार होता है।और पूरी धरती एक मनमोहक चित्र के दृश्य सी नजर आने लगती है।और किसान अपनी फसल को देखकर संतोष का अनुभव करने लगता है।
तब होली का त्यौहार यह संदेश लेकर आता है कि जिंदगी हर्ष , उल्लास , खुशी , उमंग के साथ जीने का नाम है। और निराशा के पतझड़ के बाद फिर से आशा के बसंत के फूल खिल सकते हैं। जीवन का कभी अंत नहीं होता और नवजीवन की कभी भी शुरुआत की जा सकती है।
होली का त्यौहार मनाने का कारण
बहुत ही हर्षोउल्लास के साथ फागुन मास की शुक्ल पूर्णिमा के दिन होली का यह रंगों भरा त्यौहार मनाया जाता है। होली का त्यौहार मनाने के संबंध में एक पौराणिक कथाएं भी प्रचलित है।आसुरराज हिरण्यकश्यप ईश्वर के प्रति बैर भाव रखता था। लेकिन उसका अपना पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था।इसी कारण उसने अपने पुत्र प्रह्लाद को दंड देने का निश्चय किया।
एक दिन आसुरराज की बहन होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई। होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। लेकिन वह आग में जलकर भस्म हो गई। लेकिन भक्त पहलाद का बाल भी बांका ना हुआ। यह चमत्कार भगवान विष्णु की भक्ति का ही था। उस दिन की याद में होलिका जलाई जाती है।इस प्रकार यह त्यौहार नास्तिकता पर आस्तिकता की विजय का प्रतीक है।
एक मान्यता के अनुसार भगवान कृष्ण ने पूतना नामक राक्षसी को मारकर इसी दिन गोपियों के साथ रंग खेलकर होली का उत्सव मनाया था। कुछ लोग होली को “रवि की फसल का त्यौहार” भी मानते हैं। क्योंकि इस वक्त तक किसान की रवि की फसल तैयार होकर घर पहुंच जाती है।और उनका घर अनाज से भर जाता हैं। इसीलिए वो खुश होकर यह त्यौहार मानते हैं।
होली की तैयारियों
होली के आगमन से पहले ही घरों में होली की तैयारियों शुरू हो जाती है। लोग अपने घरों में मधुर पकवान तैयार करने लगते हैं। बाजार अबीर-गुलाल व रंगबिरंगी पिचकारियों से सज जाते है। बच्चों के हाथों में पिचकारी हर कहीं देखने को मिल जाती हैं। होली से एक दिन पूर्व होलिका दहन किया जाता है। जिसके लिए कई दिन से तैयारियां की जाती हैं। किसी चौराहे पर ढेर सारी लकड़ियां इकट्ठी की जाती है। और धुलेंडी के एक दिन पहले की शाम को होलिका जलाई जाती है।
महिलाएं नारियल , कुमकुम , चावल व नए अनाज से अग्नि का पूजन करती हैं। बच्चे खुशी से नाच उठते हैं। नए धान की बालियों को आग में भून कर उसका प्रसाद सबको बांटा जाता है। होलिका दहन के दूसरे दिन धुलेंडी मनाई जाती हैं। इस दिन लोग रंग भरी पिचकारी के साथ पास पड़ोस व मोहल्ले में निकल पड़ते हैं। राग-द्वेष , मतभेद सब भूलकर एक-दूसरे को टीका लगाकर अबीर गुलाल से उनके चेहरे रंगीन कर देते हैं। यह त्यौहार अमीरी-गरीबी , जाति-पाँति का भेद सब मिटा देता है। हर कोई झूम उठता है। क्या बच्चे , क्या युवा , क्या महिलाएं सभी सात रंगों से रंगीन हो जाते हैं।
होली का नकारात्मक पहलू
समय के साथ-साथ इस त्यौहार का स्वरूप बदल गया है। यह बहुत ही दुख की बात है कि कुछ लोग इस दिन भांग का नशा करते हैं तो कुछ शराब पीते हैं। रंगो के बजाय एक दूसरों पर कीचड़ उछालते हैं।इन चीजों से बचना चाहिए।
उपसंहार
हमें होली के रंगीन त्यौहार को निर्मल और स्वच्छ रख कर प्यार और अनुराग के साथ मनाना चाहिए। होली रंगों का त्यौहार बने रहे। हमारी सभ्यता और संस्कृति का उपहास ना बने। इस बात को हमें ही ध्यान में रखना होगा।
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