Geneva Conventions :
जेनेवा समझौता क्या है ?
Geneva Conventions
जेनेवा समझौता ही बना विंग कमांडर अभिनंदन का असली सुरक्षा कवच । जम्मू कश्मीर के पुलवामा में आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के आत्मघाती हमले में CRPF के 44 जवान शहीद हो गए जिससे भारत और पकिस्तान के बीच तनाव काफी बढ़ गया था।
इस बीच भारत ने पाकिस्तान में पल रहे आतंकी संगठनों के ऊपर एक एयर स्ट्राइक की।जिसके जबाब में 27 फरवरी 2019 को पाकिस्तानी विमान भारतीय सीमा में धुस आये। पाकिस्तानी विमानों के खिलाफ करवाई में भारतीय वायु सेना का एक मिग-21 दुर्घटना ग्रस्त हो गया जिसमें विंग कमांडर अभिनंदन सवार थे।
विंग कमांडर अभिनंदन ने पैराशूट की मदद से उतरने की कोशिश की लेकिन वो पाकिस्तान की सीमा में गिरे। इसके बाद उन्हें पाकिस्तानी सेना द्वारा पकड़ लिया गया । लेकिन भारत सरकार के प्रयासों तथा अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण पाकिस्तान को विंग कमांडर अभिनंदन को भारत को सकुशल लौटना पड़ा।लेकिन इन सब में जेनेवा समझौता ही विंग कमांडर अभिनंदन का असली सुरक्षा कवच बना।
दरअसल तीसरे जेनेवा समझौते के अनुसार दो देशों के बीच युद्द खत्म होने के बाद यदि कोई भी सैनिक (थल सेना ,जल सेना , वायु सेना) दुश्मन देश में रह जाता है तो दुश्मन देश को उस सैनिक को उसके देश वापस भेजना ही होता है। इसी समझौते के तहत पाकिस्तान ने भारत के विंग कमांडर अभिनंदन को रिहा किया।
क्या हैं जेनेवा समझौता ?
जब दो देशों के बीच युद्ध होता हैं और युद्ध के दौरान यदि एक देश का कोई भी सैनिक / नागरिक सीमा पार करके दुश्मन देश में पहुंच जाता है।और दुश्मन देश द्वारा उसे पकड़ लिया जाता हैं तो उस स्थिति में उस सैनिक / नागरिक को “प्रिजनर ऑफ वॉर” यानी “युद्धबंदी” कहा जाता है।
इन्हीं युद्धबंदियों के लिए एक अंतरराष्ट्रीय कानून बनाया गया हैं जिसे “जेनेवा समझौता” कहते हैं। यही जेनेवा समझौता युद्ध बंदियों के लिए सुरक्षा कवच का काम करता हैं।
इंटरनेशनल कमेटी ऑफ़ रेडक्रॉस के अनुसार जेनेवा समझौते में युद्ध के दौरान गिरफ्तार सैनिकों / नागरिकों के साथ कैसा बर्ताव करना चाहिए।युद्ध बंदियों के क्या-क्या अधिकार है।जेनेवा समझौते में इस बारे में साफ तौर से दिशा निर्देश दिए गए हैं।
जेनेवा समझौते के अनुसार दुश्मन देश उस सैनिक के साथ बर्बरता पूर्ण व्यवहार नहीं कर सकता हैं।या किसी भी तरह का कोई अत्याचार या भेदभाव पूर्ण व्यवहार नहीं कर सकता हैं या उसे डरा धमका या अपमानित भी नहीं कर सकता हैं।
इसके साथ ही अगर वह घायल है तो उसकी अच्छे से देखभाल की जिम्मेदारी भी उस देश की ही होगी । हालांकि जेनेवा समझौते में एक नियम ऐसा भी है जिसके तहत यदि दुश्मन देश उस सैनिक के खिलाफ मुकदमा चलाना चाहता है तो वह चला सकता है।ऐसे में उस सैनिक को पूरी कानूनी सुविधा भी दी जायेगी। जेनेवा समझौते में युद्ध क्षेत्र में घायलों की उचित देखभाल के साथ साथ आम लोगों की सुरक्षा की बात कही गई है।
जेनेवा समझौते के अनुच्छेद 3 के मुताबिक “युद्ध के दौरान घायल होने वाले युद्धबंदी का अच्छे तरीके से उपचार होना चाहिए । युद्धबंदी से उसकी जाति , धर्म , जन्म आदि के बारे में नहीं पूछा जा सकता है”।
जेनेवा समझौता मुख्य रूप से युद्ध के दौरान मानवता व मानवीय मूल्यों को बनाए रखने के लिए तथा युद्ध क्षेत्र में युद्ध बंदियों के मानवीय अधिकारों की सुरक्षा के लिए बनाया गया हैं ताकि युद्ध के दौरान शत्रु देश द्वारा बंदी बनाये गए सैनिकों के साथ मानवीय व्यवहार किया जाए।
जिनेवा समझौते का विचार कैसे अस्तित्व में आया
सन 1859 में फ़्रांस व ऑस्ट्रिया के बीच “सोलफेरिनो का युद्ध” हुआ था । फ्रांस की तरफ से इस युद्ध का नेतृत्व नेपोलियन तृतीय कर रहा था। इस युद्ध में भयंकर रक्तपात हुआ और हजारों की संख्या में सैनिक घायल हुए । इन घायल सैनिकों के उपचार के लिए न तो कोई उचित चिकित्सा सुविधा उपलब्ध थी और नहीं सैनिकों की मूलभूत जरूरतों को पूरा किया जा रहा था।
इसी बीच स्विच व्यापारी तथा सामाजिक कार्यकर्ता हेनरी डूरेंट लड़ाई के बाद घायल सैनिकों से मिलने युद्ध स्थल गए।और युद्ध स्थल के भयंकर दृश्यों ने उन्हें अंदर से विचलित कर दिया।उसके बाद उन्होंने ” रेडक्रॉस संगठन” की स्थापना की।और साथ ही साथ इस युद्ध के भयंकर अनुभवों को समेत कर एक किताब “मेमोरी ऑफ़ सोलफेरिनो” भी प्रकाशित की।
इसके साथ ही जेनेवा में अन्य यूरोपीय देशों के साथ मिलकर एक बैठक की।जिसमें युद्ध बंदियों के अधिकारों तथा मानवीय मूल्यों की रक्षा के बारे में विस्तार से बातचीत की गई जिसका सुखद परिणाम “जिनेवा समझौते” के रूप में सामने आया। हेनरी डूरेंट को पहला नोबेल शांति पुरस्कार भी दिया गया।
जिनेवा समझौते की संधियों और प्रोटोकॉल
जिनेवा समझौते में मुख्य रूप से चार संधियों (समझौते) तथा तीन प्रोटोकॉल्स (मसौदे) शामिल किए गए हैं।
पहला जिनेवा समझौता (1864)
पहला जिनेवा समझौता 22 अगस्त 1864 को हुआ। इस समझौते का मुख्य उद्देशय “युद्ध में घायल और बीमार सैनिको को सुरक्षा प्रदान करना था “।इसके अलावा इसमें चिकित्सा कर्मियों, धार्मिक लोगों व चिकित्सा परिवहन की सुरक्षा की व्यवस्था भी की गई है।
दूसरा जेनेवा समझौता (हैग समझौता , 1906)
दूसरा जेनेवा समझौता 1906 में हुआ था। इस समझौते का मुख्य उद्देशय “समुद्री युद्ध और समुद्र में घायल या बीमार समुद्री युद्ध बंदियों और जलपोत वाले सैन्य कर्मियों की रक्षा और उनके अधिकारों के बारे में विस्तार से बताया गया है”। इसके नियम भी लगभग पहले जेनेवा समझौते के नियमों के जैसे ही हैं।
तीसरा जेनेवा समझौता (1929)
1929 में तीसरा जेनेवा समझौता हुआ । यह समझौता मुख्य रूप से “युद्ध के कैदियों या युद्धबंदियों” के लिए बनाया गया है जिन्हें हम”प्रिजनर ऑफ वॉर”कहते हैं”। इस समझौते में युद्ध बंदियों की कैद की स्थिति , उनके स्थान को सटीक रूप से परिभाषित किया गया है। इसमें युद्ध बंदियों के श्रम, वित्तीय संसाधनों का जिक्र और राहत और न्यायिक कार्यवाही के संबंध में व्यवस्था की गई है। इसमें युद्ध बंदियों को बिना देरी के रिहा करने का भी प्रावधान किया गया हैं।
चौथा जेनेवा समझौता (1949)
चौथा जेनेवा समझौता (1949) में हुआ। इस समझौते का मुख्य उद्देशय “युद्ध के समय में नागरिकों की सुरक्षा था”। इसमें युद्ध के आसपास के क्षेत्रों तथा वहां के नागरिकों की सुरक्षा का भी प्रावधान किया गया है ताकि किसी भी नागरिक के अधिकारों का उल्लंघन ना हो सके। चौथे जेनेवा समझौते के नियम व कानून 21 अक्टूबर 1950 से लागू किए गए। इस समय जेनेवा समझौते को मानने वाले 194 देश हैं।
जेनेवा समझौता के प्रोटोकॉल
जेनेवा संधि में तीन प्रोटोकॉल्स भी हैं।
पहला प्रोटोकॉल
पहला प्रोटोकॉल 1977 में जोड़ा गया। जिसमें “अंतरराष्ट्रीय सशस्त्र युद्ध में पीड़ितों की सुरक्षा” से संबंधित प्रावधान थे ।
दूसरा प्रोटोकॉल
दूसरा प्रोटोकोल 1977 में जोड़ा गया। जिसमें “गैर-अंतरराष्ट्रीय सशस्त्र युद्ध में पीड़ितों की सुरक्षा” से संबंधित प्रावधान थे ।
तीसरा प्रोटोकॉल
तीसरा प्रोटोकोल 2005 में जोड़ा गया।यह “एक अतिरिक्त विशेष प्रतीक को अपनाने “से संबंधित था ।
जेनेवा समझौते के अहम नियम
दो देशों के बीच में होने वाले युद्ध में अगर एक देश का सैनिक दूसरे देश द्वारा पकड़ लिया जाता हैं।तो उस पर तत्काल जिनेवा संधि लागू हो जाती हैं।
- दुश्मन देश युद्धबंदी सैनिक के साथ बर्बरता या भेदभाव पूर्ण व्यवहार नहीं कर सकता हैं।
- युद्ध बंदी सैनिक को अपमानित भी नहीं किया जा सकता हैं।
- युद्ध बंदी सैनिक के साथ कोई अत्याचार नहीं किया जा सकता।और नहीं उसे डराया धमकाया जा सकता है।
- युद्ध बंदी से पूछताछ केवल उसका नाम,यूनिट,सैन्य पद एवं नंबर के बारे में ही की जा सकती है।
- युद्ध बंदी से उसकी जाति,धर्म,जन्म आदि के बारे में नहीं पूछा जा सकता है।
- इसके साथ ही युद्धबंदी घायल सैनिक की अच्छी देखभाल व चिकित्सा सुबिधा उपलब्ध कराना भी उस देश की जिम्मेदारी होगी।
- युद्धबंदी सैनिक को बुनियादी सुविधाएं के साथ खाने पीने की चीजें उपलब्ध कराई जायेगी।
- जेनेवा समझौते के तहत यह सबसे जरूरी नियम है कि जब युद्ध समाप्त हो जाए तो उस सैनिक को दुश्मन देश द्वारा वापस उसके देश को लौटा दिया जायेगा।
- इस समझौते में एक नियम ऐसा भी है जिसके तहत यदि दुश्मन देश उस सैनिक के खिलाफ मुकदमा चलाना चाहता है तो वह चला सकता है।ऐसी सूरत में उस सैनिक को भी कानूनी सुविधा दी जायेगी।
- इसके अलावा यह नियम उनके ऊपर भी लागू होंगे जो नागरिक या घायल सैनिक अब युद्ध में हिस्सा नहीं ले सकता।
जेनेवा समझौता दरअसल दुनिया भर के सभी युद्धबंदी सैनिकों के लिए एक सुरक्षा कवच के जैसे ही कार्य करता हैं।और सभी 194 देश जेनेवा समझौते का सम्मान भी करते हैं।कारगिल युद्ध के दौरान पायलट नचिकेता को जब पाकिस्तान ने बंदी बना लिया था तो भारत ने इस मामले को जेनेवा समझौते के तहत ही उठाया था और तत्कालीन बाजपेई सरकार ने पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव भी बनाया।
जिसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान सरकार ने नचिकेता को सकुशल,सुरक्षित भारत को वापस कर दिया था।इसी प्रकार 1971 की लड़ाई में भारत ने पाकिस्तान के लगभग 93 हजार सैनिकों को युद्ध बंदी बना लिया था।जिन्हें बाद में उन्हें सुरक्षित पाकिस्तान भेज दिया गया।
जिनेवा
जिनेवा स्विजरलैंड में स्थित हैं। इसकी राजभाषा फ्रांसीसी है।यह शहर “जेनेवा सरोवर” के किनारे बसा है।और यहां पर संयुक्त राष्ट्र संघ के कई संगठनों के कार्यालय स्थित हैं।
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