Why Makar Sankranti Is Celebrated In India :
Why Makar Sankranti Is Celebrated In India
मकर संक्रांति का त्यौहार क्यों है खास ?
हिन्दू धर्म ग्रथों में भगवान सूर्य को साक्षात (समक्ष्य दिखाई देने वाले) देवता माना गया है।जो हर रोज सूर्योदय से सूर्यास्त तक इस संसार के प्राणी मात्र को जीवन प्रदान करते हैं।उनमें सकारत्मक ऊर्जा व नवजीवन का संचार करते हैं।
मानव मात्र को अंधेरों से बिना डरे और बिना रुके , बिना थके निरन्तर उजाले की ओर बढ़ते रहने की प्रेरणा देते हैं। सूर्योदय के साथ ही इस धरती के समस्त प्राणी मात्र पर जीवन संचार होने लगता है। इंसान ही नहीं बल्कि जीव जन्तु ,पेड़ पौधे भी सूर्य की रोशनी से ही चैतन्य होते हैं।
आध्यात्मिक जीवन में भी भगवान सूर्य का बड़ा महत्व बताया गया है।जीवन में श्रेष्ठ मुकाम हासिल करने के लिए , यशस्वी बनने के लिए भगवान सूर्य को अर्घ्य देना , सूर्य की उपासना करना लाभकारी बताया गया हैं। योग में भी स्वस्थ रहने के लिए सूर्य नमस्कार के महत्व को समझाया गया है।
मकर संक्रांति का त्यौहार क्यों मनाया जाता है ?
दरअसल सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में संक्रमण (जाने को) करने को ही संक्रांति कहते हैं।और जब भगवान सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो इसे मकर संक्रांति के रूप में जाना जाता है।यह दिन लगभग हर साल 14 या 15 जनवरी को मनाया जाता है।
मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं।और इस दिन से भगवान सूर्य उत्तर दिशा की ओर बढ़ते हैं।इसीलिए यह महत्वपूर्ण है।यह सूर्य का संक्रमण काल है।मकर संक्रांति के दिन से मौसम में बदलाव आना शुरू हो जाता है।
इस दिन से रातें छोटी व दिन बड़े होने लगते हैं।सूर्य के उत्तरी गोलार्ध की ओर जाने के कारण ग्रीष्म ऋतु का प्रारंभ होता है।सूर्य की गर्मी धीरे धीरे बढ़ने लगती हैं।जिससे प्राणियों में चेतना और शक्ति का विकास होता है। इसीलिए मकर संक्रांति को इतना महत्वपूर्ण माना गया हैं।
मकर संक्रांति का दिन सूर्य की उपासना का दिन है।कुंभ के पहले स्नान की शुरुआत भी इसी दिन से होती है।मकर संक्रांति का त्यौहार है तो एक ही है।लेकिन भारत के हर प्रांत में इसको अलग अलग नाम से जाना जाता है। और हर प्रान्त में इसे बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि मकर संक्रांति के दिन देवता भी धरती पर आते हैं।पूर्वजों की आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है।अंधकार का नाश प्रकाश का आगमन होता है।इस दिन दान पुण्य ,धार्मिक अनुष्ठानों को विशेष महत्व दिया गया है।
साल में होती हैं 12 संक्रांतियों
एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति के बीच के समय को सौर मास कहते है। वैसे तो एक वर्ष में सूर्य की 12 संक्रांतियों होती हैं। जिनमें से चार संक्रांति महत्वपूर्ण हैं। मेष संक्रांति ,कर्क संक्रांति ,तुला संक्रांति और मकर संक्रांति।
मकर संक्रांति का शुभ दिन स्नान, ध्यान , दान पुण्य के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है।दरअसल जब सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर चलते हैं।तब सूर्य की किरणें सेहत पर खराब असर डालती हैं।लेकिन जब वही सूर्य पूर्व से उत्तर की ओर चलते हैं।तो सूर्य की किरणों को लाभदायक व शांति दायक माना जाता है।
मकर संक्रांति का त्यौहार कैसे मनाया जाता है (How is Makar Sankranti celebrated)
मकर संक्रांति का त्यौहार पूरे देश में बड़े ही उत्साह व उमंग के साथ बनाया जाता है।लेकिन देश के हर प्रांत में मकर संक्रांति को मनाने का उद्देश्य अलग-अलग है और हर प्रांत में इसको अलग अलग नाम से जाना जाता है।
कही उरद व चावल की खिचड़ी को खाना व दान करना श्रेष्ठ माना जाता हैं।तो कही पतंग उड़ा कर मकर संक्रांति मनाई जाती हैं। पंजाब में इसे फसल से जोड़ कर मनाया जाता हैं। तो महाराष्ट्र में इस दिन “हल्दी कुमकुम” नामक रस्म निभाई जाती हैं।
मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान ,पवित्र नदियों में स्नान व तीर्थ स्थानों पर स्नान करने का विशेष महत्व है। इसीलिए लोग इस दिन गंगा स्नान करने का भरसक प्रयास करते हैं। मकर संक्रांति के दिन गुड़ तिल से बने व्यंजन खाये व उपहार स्वरूप दिये जाते हैं।
क्यों है मकर संक्रांति महत्वपूर्ण ( Makar Sankranti Significance)
मकर संक्रांति के दिन से भगवान सूर्य उत्तर दिशा की तरफ चलना आरंभ करते हैं।यानि सूर्य भगवान उत्तरायण होते हैं।सूर्य की स्थिति के अनुसार वर्ष के आधे भाग को एक अयन कहते हैं।
एक वर्ष में दो अयन होते हैं उत्तरायण और दक्षिणायन। इसीलिए उत्तरायण भी देवताओं के लिए एक अयन ही है।और एक अयन देवताओं के लिए एक दिन के बराबर होता है।360 अयन पूरे होने पर देवताओं का एक वर्ष होता है।
जब सूर्य पूर्व से उत्तर दिशा की तरफ चलना शुरू करते हैं तो उसे उत्तरायण कहते हैं।और ये दिन बहुत ही शुभ माने जाते हैं। मकर संक्रांति के दिन से हिंदू धर्म में शादी विवाह , मुंडन , यज्ञोपवीत , नामकरण , गृह प्रवेश जैसे संस्कार शुरू हो जाते हैं।
ऐसा माना जाता है कि अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु उत्तरायण के समय होती हैं। तो उसे मोक्ष प्राप्त होता है। इसीलिए भीष्म पितामह ने उत्तरायणी (मकर संक्रांति) के दिन ही अपने प्राणों का त्याग किया था।
मकर संक्रांति के दिन तीर्थ स्थानों में स्नान को शुभ माना जाता है
मकर संक्रांति का दिन बहुत ही शुभ माना जाता है।इस दिन हरिद्वार, काशी, प्रयागराज या बड़े-बड़े तीर्थ स्थानों पर स्नान और पवित्र नदियों में स्नान करने को विशेष महत्व दिया गया है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव की आराधना गुड़ , तिल ,श्वेतार्क और लाल फूलों से की जाती हैं। सूर्य की आराधना , सूर्य को जल देना मकर संक्रांति के दिन बड़ा अच्छा माना जाता है।
दान का भी हैं महत्व
मकर संक्रांति के दिन दिये गये दान का महत्व अन्य दिनों में दिए गए दान के महत्व से कई गुना अधिक माना गया है।इस दिन व्यक्ति अपनी यथाशक्ति के हिसाब से किसी भी गरीब को अन्न , तिल , गुड़ , चावल का दान दे सकता है। मकर संक्रांति के दिन तिल से बने हुए लड्डू या तिल गुड़ के लड्डू या तिल और गुड़ से बना हुआ कोई भी खाद्य पदार्थ दान करना बहुत ही शुभ माना जाता है।
तिलों का दान करने के साथ-साथ तिलों का सेवन करना भी स्वास्थ्यवर्धक होता है। तिल का उबटन लगाना, तिल के तेल का प्रयोग करना, तिल मिश्रित जल से स्नान करना, तिल मिश्रित जल को पीना , तिल से पूजा या हवन करना, तिल की वस्तुओं का सेवन करना श्रेष्ठकारी माना जाता है।
मकर संक्रांति मनाने के पीछे का वैज्ञानिक कारण ( Scientific Reason )
इसे आप हमारे पूर्वजों की समझदारी ही कह सकते हैं कि उन्होंने बड़ी ही सरलता से हमारे स्वास्थ्य, प्रकृति और विज्ञान को धर्म से जोड़ दिया।ताकि लोग उसका अनुसरण करें। मकर संक्रांति का त्यौहार भी अपने वैज्ञानिक महत्व को समझाता है।
क्योंकि मकर संक्रांति जनवरी माह के 14 या 15 तरीख को पड़ती हैं। और उस समय समस्त भारत में कड़ाके की ठंड पड़ती है।हालाँकि मकर संक्रांति के बाद धीरे-धीरे वातावरण के तापमान में भी परिवर्तन आने लगता है। लेकिन अगर इस वक्त सावधानी न बरती जाए तो इससे लोगों के स्वास्थ्य में नकारात्मक प्रभाव भी पड़ सकता है।
मकर संक्रांति के दिन से मौसम में बदलाव आना शुरू हो जाता है।इस दिन से रातें छोटी व दिन बड़े होने लगते हैं। सूर्य के उत्तरी गोलार्ध की ओर जाने के कारण ग्रीष्म ऋतु का प्रारंभ होता है।सूर्य की गर्मी धीरे धीरे बढ़ने लगती हैं।जिससे प्राणियों में चेतना और शक्ति का विकास होता है।
सूर्योदय के वक्त की सूर्य की किरणों को जीवनदायिनी व स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है।इसीलिए भगवान सूर्य को जल या अर्ध्य देने वक्त या उनकी उपासना करने वक्त लोग थोड़ी देर के लिए भगवान सूर्य के सम्मुख खड़े हो जाते हैं। जिससे भगवान सूर्य की किरणें सीधे सीधे उनके शरीर पर पड़ती हैं। जो शरीर व हड्डियों के लिए काफी लाभदायक मानी जाती हैं।
मकर संक्रांति में गुड़ ,तिल से बने व्यंजन व गजक खाना है लाभकारी
मकर संक्रांति के दिन से गुड़ और तिल का सेवन करने की सलाह दी जाती हैं। इसका भी वैज्ञानिक आधार है।क्योंकि सर्दी का मौसम होने के कारण इस वक्त तक लगभग कड़ाके की ठंड रहती है। मौसम में ठंड होने की वजह से शरीर को ठंड से बचाने के लिए तिल और गुड़ बहुत उपयोगी होते हैं।
तिल में अन्य मिनरल्स के अलावा तेल पर्याप्त मात्रा में होता है।जो हमारे शरीर को गर्मी पहुंचाता है। तथा शरीर को स्वस्थ रखने में सहायक होता है। इसी तरह गुड़ की तासीर भी गर्म होती है। जो शरीर को गर्मी पहुंचाती है। इसीलिए तिल और गुड़ को एक साथ मिलाकर अगर व्यंजन बनाकर सर्दी के मौसम में खाया जाता हैं तो यह हमारे शरीर को ठंडक तथा अन्य बीमारियों से बचाने में सहायक होते हैं।
मकर संक्रांति पूजा विधि ( Makar Sankranti Pooja Vidhi )
मकर संक्रांति को बहुत ही पवित्र दिन माना जाता है। मकर संक्रांति के दिन लोग घरों , मंदिरों तथा तीर्थ स्थानों पर जा कर पूजा करते हैं।लोग मकर संक्रांति के दिन इस तरह से उपासना करते हैं।
पूजा विधि
जो लोग इस दिन घर में रहते हैं। वो लोग इस दिन ब्रह्म मुहूर्त पर उठ जाते हैं। उसके बाद स्नान करने के लिए बाल्टी में पानी के साथ-साथ गंगा जल व काले तिलों को मिला कर स्नान करते है और कुछ लोग इस दिन गंगा तटों पर जाकर स्नान करते है। स्नान करने के बाद अपने मंदिर की साफ सफाई कर ली जाती है। ततपश्चात अपने मंदिर में दीया बाती जला ली जाती हैं। उसके बाद एक थाली में काले व सफेद तिल से बने लड्डू व दक्षिणा स्वरूप कुछ रुपए और मिठाई भगवान को समर्पित किया जाता है।
तत्पश्चात सूर्य भगवान की उपासना हेतु एक थाली सजा लीजिए।जिसमें काले व सफेद तिल के चार चार लड्डू रखकर, दक्षिणा के रूप में कुछ रुपए रख लीजिए।साथ ही चावल का आटा , थोड़ा सा हल्दी , सुपारी, पान के पत्ते , फूल ,अगरबत्ती , दीया बाती आदि थाली में रख लीजिए। सूर्योदय होने के साथ ही सूर्य भगवान को जल से अर्घ्य देकर उनकी उपासना की जाती है। ॐ सूर्याय नमः या ॐ भानु भास्कराय नमः या ॐ आदित्याय नमः के 108 मंत्रों का जाप किया जाता है।
इसके बाद समस्त पूजा सामग्री को भगवान सूर्य को अर्पित कर अपने घर परिवार की सुख, समृद्धि की मंगल कामना भगवान सूर्य देव से की जाती है। उसके बाद यथाशक्ति से किसी भी गरीब को दान कीजिए।शास्त्रों में तो यह भी कहा गया है कि कोई भी धर्म कार्य पूर्ण आस्था व विश्वास के साथ किया जाना चाहिए। तभी वह फलीभूत होता है।मकर संक्रांति के दिन पितरों का ध्यान कर उन्हें तर्पण भी दिया जाता है।
Makar Sankranti Celebration
मकर संक्रांति का दिन बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन स्नान , दान पुण्य का विशेष महत्व होता है। खासकर गुड और तिल लगाकर किसी भी पावन नदी में स्नान करने को सर्वोत्तम माना जाता है।भगवान सूर्य को जल अर्घ्य दिया जाता है। उनकी पूजा उपासना काले व सफेद तिल के लड्डू से की जाती हैं।
मकर संक्रांति के दिन तिल से ही बने हुए व्यंजनों का सेवन भी किया जाता है। कई जगहों पर इस दिन उड़द और चावल से बनी हुई खिचड़ी खाई व दान भी की जाती है। इसीलिए इसे “माघी खिचड़ी” भी कहा जाता है।
इस दिन पतंग उड़ाने का भी अपना ही अलग मजा है। कई राज्यों जैसे गुजरात और सौराष्ट्र में इस दिन लोग दिनभर पतंगबाजी करते हैं।क्योंकि इस त्यौहार में यहां पर लंबा अवकाश दिया जाता है।इसीलिए दिनभर पतंग उड़ाये जाते है। यहां तक कि पतंग प्रतियोगिता भी रखी जाती है। किसानों के द्वारा इस दिन नई दिन फसल भी काटी जाती है।
मकर संक्रांति के हैं कई नाम
मकर संक्रांति का त्यौहार हमारे देश में मनाया तो पूरे देश में जाता है।लेकिन हर प्रांत में इसे मनाने का उद्देश्य अलग-अलग है। और हर प्रांत में इसको अलग अलग नाम से जाना जाता है।जैसे उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र में उत्तरायणी ,तो गढ़वाल में खिचड़ी संक्रांति और पूरे उत्तर भारत में यह पर्व मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है।
असम में इसे “माघ बिहू या भोगली बिहू ” के रूप में मनाया जाता है। तो जम्मू कश्मीर में इसे “शिशुर सेंक्रांति या लोहड़ी ” के नाम से जाना जाता है। दक्षिण भारत में “पोंगल” के नाम से मनाया जाता है।
तो राजस्थान व गुजरात में इसी पर्व को “उत्तरायण” के नाम से जाना जाता है। तो मध्य प्रदेश में इसे “सकराता” के नाम से जाना जाता है।गुजरात में इस दिन पतंगबाजी या पतंग महोत्वसव का आयोजन किया जाता है। जिसमें स्थानीय लोग के साथ साथ दूर-दूर से आए लोग बडी ही खुशी से भाग लेते हैं।
आंध्र प्रदेश में इसे “संक्रांति” के नाम से जाना जाता है और यह पर्व 3 दिन तक मनाया जाता है।
पंजाब व हरियाणा में “लोहड़ी पर्व” के नाम से जाना जाता है।इस दिन किसान अपनी फसल की कटाई की शुरुआत करते हैं।
उत्तर प्रदेश और बिहार में इसे “खिचड़ी पर्व” कहा जाता है।प्रयागराज में इस अवसर पर पूरे एक महीने का मेला लगता है। जिसे “माघी मेला” कहा जाता हैं।इस मेले में पहुंचने के लिए व प्रयागराज घाट पर स्नान करने के लिए साधु-संतों ,तीर्थ यात्रियों की बड़ी भीड़ उमड़ती है।
पश्चिमी बंगाल में गंगा सागर एक पवित्र तीर्थ स्थान है।गंगा सागर तट पर एक बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसी जगह राजा भागीरथ के पूर्वजों को माता गंगा ने मोक्ष्य प्रदान किया था। इसीलिए यहां पर हर साल लाखों तीर्थयात्री आते हैं।
तमिलनाडु में इसे “पोंगल” के नाम से जाना जाता है। इस दिन किसान अपनी फसल की कटाई की शुरुआत करते हैं।
उड़ीसा में यह त्यौहार “नए साल” के रूप में मनाया जाता है खासकर आदिवासी समाज के बीच में।
हरियाणा व हिमांचल में इसे “मगही” नाम से जाना जाता है।
महाराष्ट्र में भी इस त्यौहार को बड़े ही शानदार तरीके से मनाया जाता है।लोग एक दूसरे को तिल से बने लड्डू व गजक को उपहार स्वरूप भेंट करते हैं।महाराष्ट्र के घरों में इस दिन महिलाएं “हल्दी कुमकुम” नाम की रस्म को अदा करती हैं। जिसमें अपने करीबी रिश्तेदारों ,परिचितों को घर बुलाकर उन्हें बर्तनों को उपहार के रूप में दिया जाता है।
भारत के अलावा भारत के पड़ोसी देशों में भी मकर संक्रांति का त्यौहार मनाया जाता हैं।नेपाल में “माघे संक्रांति” , श्रीलंका में “उलावर तिरुनाल” ,कंबोडिया में “मोहा संगक्रण”, म्यांमार में “थिन्झान” ,थाईलैंड में “सोंगक्रण” के नाम से यह त्यौहार पूरे जोर-शोर से मनाया जाता है।
मकर संक्रांति से जुड़ी जानकारियों ( Makar Sankranti Information )
- दरअसल मकर संक्रांति त्यौहार की पहचान ही गुड़ और तिल से बने व्यंजनों के त्यौहार के रूप में है।गुड़ और तेल का सेवन इस समय स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। जो इन्सान को कई रोगों से बचाता है।
- यह त्यौहार पतंगों से भी जुड़ा है।इस दिन आसमान रंग बिरंगी ,एक से एक कलात्मक व सुंदर पतंगों से भर जाता है।कई जगहों पर पतंगों प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। जिसमें लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। क्योंकि इस दिन पतंगबाजी भी की जाती है। इसीलिए बच्चे इस दिन कुछ ज्यादा ही जोश में रहते हैं।और इस त्यौहार का भरपूर मजा उठाते हैं।
- मकर संक्रांति बसंत ऋतु के आगमन की भी सूचना देता है।इस वक्त कई जगहों पर खेतों में नई फसल बोने की तैयारी की जाती हैं। तो कई जगहों पर फसल लहराने लगती है। सरसों के पीले पीले फूल फिर से खिलने प्रारंभ हो जाते हैं। जो बसंत ऋतु के आगमन की सूचना देते हैं। इसीलिए मकर संक्रांति पर्व को बसंत के आगमन का पर्व भी माना जाता है।
- मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व भी है। जिन लोगों की कुंडली में सूर्य की स्थिति नीच होती है या सूर्य निम्न स्थिति में होते हैं। वो लोग इस दिन से सूर्य की आराधना पूजा कर सूर्य को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
- मकर संक्रांति के दिन लोग उड़द और चावल की खिचड़ी बनाकर भगवान सूर्यदेव को भोग लगाते हैं। खुद भी खिचड़ी का सेवन करते हैं।इसीलिए देश के कई जगहों पर , कई प्रांतों पर इसको खिचड़ी पर्व भी कहा जाता है। उड़द और चावल की खिचड़ी को भी स्वास्थ्य वर्धक माना जाता हैं।
मकर संक्रांति से जुड़ी कथाएं ( Makar Sankranti story )
मकर संक्रांति से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं।
- ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव ने इस दिन भगवान विष्णु को आत्म ज्ञान का दान दिया था।देवताओं के दिनों की गणना भी इसी दिन से ही प्रारंभ मानी जाती है।सूर्य जब दक्षिणायन में रहते हैं। तो उस अवधि को देवताओं की रात्रि और उत्तरायण के छह माह को दिन कहा जाता है।
- हिंदुओं के धार्मिक पुस्तक महाभारत की कथा के अनुसार भीष्म पितामह को यह वरदान प्राप्त था कि वो अपने शरीर का त्याग अपनी इच्छा के अनुसार कर सकते हैं। इसीलिए जब महाभारत के युद्ध में पांडवों द्वारा भीष्म पितामह को तीरों से छलनी कर दिया गया। तब भीष्म पितामह ने अपने वरदान का इस्ते माल नहीं किया।भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का पवित्र दिन ही चुना। और तीरों की शैया पर लेट कर ही मकर संक्रांति का इंतजार किया। और मकर संक्रांति के आने पर ही अपनी देह का त्याग किया।
- एक अन्य कथा के अनुसार राजा भगीरथ के अथक प्रयास व तपस्या से प्रसन्न होकर माता गंगा ने धरती पर अवतरित होने का निर्णय लिया।और मकर संक्रांति के ही दिन माता गंगा राजा भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थी।इसीलिए गंगा स्नान या ऐसे तीर्थ स्थान जहां से होकर माता गंगा निकलती है वहाँ स्नान को विशेष महत्व दिया गया है।इस दिन प्रयागराज त्रिवेणी, हरिद्वार, गढ़मुक्तेश्वर, पटना आदि जगहों पर धार्मिक स्थान भी किया जाता है।
- एक अन्य कथा के अनुसार मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य अपने रूठे पुत्र भगवान शनि को मनाने के लिए उनसे मिलने गये थे।और उस समय भगवान शनि मकर राशि में विचरण कर रहे थे। भगवान सूर्य ने अपने पुत्र भगवान शनि को आख़िरकार मना ही लिया था। इसीलिए यह त्यौहार पिता-पुत्र के संबंधों को मजबूती प्रदान करने वाला भी बताया जाता है।
मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ।
हिंदी निबंध हमारे YouTube channel में देखने के लिए इस Link में Click करें । YouTube channel link – (Padhai Ki Batein / पढाई की बातें)
You are most welcome to share your comments.If you like this post.Then please share it.Thanks for visiting.
यह भी पढ़ें……
- महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती हैं जानिए
- बुद्ध पूर्णिमा का क्या है महत्व जानिए
- विश्वकर्मा पूजा का क्या है महत्व जानिए
- जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती हैं जानिए