Lohri Festival ,उत्साह व सद्भावना का संदेश देता लोहड़ी पर्व

Lohri Festival:

लोहड़ी पर्व

Lohri Festival

Lohri Festival ,उत्साह व सद्भावना का संदेश देता लोहड़ी पर्व

वैसे तो हमारे देश के हर राज्य में हर महीने कोई ना कोई त्यौहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।लेकिन अपने पंजाब की तो बात ही और है।पंजाब एक ऐसा राज्य है जहां त्यौहारों को बड़े उत्साह , उमंग व जोश के साथ ढोल की थाप पर पारम्परिक गीत संगीत के साथ न्रत्य कर मनाया जाता है।

पंजाब में मनाये जाने वाले अधिकतर त्यौहार फसल से या गौरवगाथाओं से जुड़े होते हैं। पंजाबी लोग अपने सुंदर पहनावे , समृद्ध संस्कृति , मधुर संगीत व भंगड़ा व गिद्दा नृत्य के जरिये दुनिया में जहाँ अपनी अलग पहचान रखते हैं।

वही पंजाब के त्यौहारों की भी अपनी एक अलग जगह है।वर्ष में होने वाली सभी ऋतुओं में चाहे वो पतझड़ हो या सावन या फिर बसंत ह़ी क्यों ना हो । पंजाब में हर ऋतु में कोई न कोई त्यौहार अवश्य मनाया जाता हैं जिनमें से एक प्रमुख त्यौहार लोहड़ी पर्व है जो बसंत के आगमन के साथ 13 जनवरी पौष महीने की आखिरी रात को मनाया जाता है।

इसके अगले दिन माघ महीने की शुरुवात हो जाती हैं जिसे माघ महीने की संक्रांति या माघी के रूप में मनाया जाता है। लोहड़ी शब्द तिल और रोड़ी शब्दों के मेल से बना है जो समय के साथ बदल कर तिलोड़ी और बाद में लोहड़ी हो गया । पंजाब के कई इलाकों में इसे लोही या लोई के नाम से जाना जाता है। यह त्यौहार पूरे विश्व में मनाया जाता है। लेकिन पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में इस त्यौहार को बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है।

क्यों मनायी जाती हैं लोहड़ी ?

इस त्यौहार का सीधा संबंध फसल से है।इस समय पंजाब के खेतों में गेहूं , सरसों और चने जैसी फसलें लह-लहराती हैं या यूँ कहें कि लगभग पक कर तैयार हो जाती हैं । इस दिन के बाद किसान अपनी फसलों की कटाई शुरू कर देते है।

लोहड़ी मुख्य रूप से अग्नि देवता को साल की पहली फसल समर्पित करने के रूप में मनाया जाता है। साथ ही यह पर्व शीत का मौसम जाने और बसंत का मौसम आने का संकेत भी देता है। लोहड़ी का त्यौहार फसल की बुवाई और उसकी कटाई से भी जुड़ा हुआ है। किसान अपने नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत के रूप में लोहड़ी मनाते हैं।

लोहड़ी की रात को साल की सबसे लंबी रात माना जाता है। इस दिन के बाद दिन धीरे-धीरे बड़े होने लगते हैं और मौसम चक्र में थोडा-थोडा बदलाव शुरू हो जाता हैं। भगवान सूर्य के उत्तारायण आने से तापमान बढने लगता हैं और ठंडक धीरे-धीरे कम होने लगती हैं।

कैसे मानते हैं लोहड़ी पर्व? 

इस जोश से भरे त्योहार की शुरुवात गांव के लड़के लड़कियां अपनी अपनी टोलियां बनाकर घर-घर जाकर लोहड़ी के गाने गाते हुए लोहड़ी मांगते हुए करते हैं । इनमें अनेक लोकगीतों के साथ दूल्ला भट्टी का गीत प्रमुख तौर से गाया जाता है।

लोग इन टोलियों को लोहड़ी के रूप में गुड़ , रेवड़ी , मूंगफली , तिल या फिर पैसे भी देते हैं । फिर ये टोलिया रात को अग्नि जलाने के लिए घरों से लकड़ियां , गोबर के उपले आदि इकठ्ठा करती हैं। रात में मोहल्लों के आसपास या बीचों-बीच या आसपास की किसी  खुली जगह में आग जलाकर लोकगीत गाते हैं। अपने लोकगीत गाते हुये भांगड़ा, गिद्दा करते हैं।

लोहड़ी पर्व में पूरा पंजाबी समुदाय अपने परिवार के सदस्यों के साथ लोहड़ी पूजन की सामग्री जुटाकर शाम होते ही विशेष पूजन के साथ आग जलाकर लोहड़ी का जश्न मनाता है। अग्नि में तिल , गुड व मक्का डालते हुए अपने पूरे परिवार के अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हैं और गुड , मूंगफली , रेवड़ी खाते हुए लोहड़ी मनाते हैं । लोहड़ी की रात यानी पौष महीने में गन्ने के रस की खीर बनाई जाती है और उसे अगले दिन माघी के दिन खाया जाता है। ऐसा करना शुभ माना जाता है।

समय के साथ भले ह़ी इसका रंग थोडा आधुनिक हो गया है। भले ह़ी गांवों में लड़के लड़कियां लोहड़ी मांगते हुये कम ही दिखाई देते हो।मगर आज भी लोहड़ी रिश्तो में मधुरता , सुकून और प्रेम का प्रतीक है। नफरत भुलाकर प्यार और भाईचारे को बढ़ाने व सद्भावना फ़ैलाने का संदेश देने का नाम ह़ी लोहड़ी है।

लोहड़ी पर्व खास महत्व है नववधू या नवजात के लिए 

वैसे तो लोहड़ी हर पंजाबी के लिए खास महत्व रखती ह़ी है क्योंकि लोहड़ी का पर्व एक दूसरे से मिलने मिलाने का , खुशियां बांटने का पर्व है। पर जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चे का जन्म हुआ हो। उन्हें विशेष तौर पर लोहड़ी की बधाई दी जाती है। घर में नववधू या बच्चे की पहली लोहड़ी का काफी महत्व होता है।

लोहड़ी के दिन विवाहित बहनों और बेटियों को घर बुलाया जाता है । उन्हें सम्मान के साथ ढेरो तोहफे भी दिये जाते हैं। यह त्यौहार बहन बेटियों की रक्षा व सम्मान के तौर पर भी मनाया जाता है। इस दिन रात भर अग्नि के चारों ओर नृत्य व संगीत का दौर चलता है। पुरुष जहां भांगड़ा करते हुए तो वही महिलाएं गिद्दा करती नजर आती हैं।

लोहड़ी को बहुत ही उत्साह व उमंग से मनाया जाता है। अग्नि को तिल , मूंगफली , रेवड़ी आदि का भोग लगाकर उसको प्रसाद के रूप में सभी परिजनों तथा रिश्तेदारों को वितरित किया जाता है।

लोहड़ी पर्व से संबंधित लोककथाएं 

Lohri festival का संबंध एक ऐतिहासिक कहानी से जोड़ा जाता है।

एक प्रमुख लोक कथा के अनुसार दूल्ला भट्टी जो मुगलों के समय में पंजाब प्रान्त का एक बीर योद्धा था जिसने मुगलों के बढ़ते जुर्म के खिलाफ समय-समय पर आवाज उठायी थी और उनसे हर अन्याय के खिलाफ डट कर मुकाबला किया। खास कर महिलाओं की रक्षा के लिए सदैव आगे रहता था।

कहा जाता है कि एक बार एक ब्राह्मण की दो सुंदर लड़कियां सुंदरी और मुंदरी के साथ इलाके का मुगल शासक जबरन शादी करना चाहता था । मगर दोनों बहनों की सगाई पहले ह़ी कहीं और तय हो चुकी थी मगर उस मुगल शासक के डर से उनके भावी ससुराल वाले शादी करने को तैयार नहीं थे। इस मुसीबत की बक्त दूल्ला भट्टी ने ब्राह्मण की मदद की और लड़के वालों को लेकर वह एक जंगल में पहुंचा।

और उसने वहीं आग जलाकर सुंदरी और मुंदरी का ब्याह करवाया।दूल्ला भट्टी ने खुद ही उन दोनों का कन्यादान किया और शगुन के रूप में उन दोनों बहनों को शक्कर दी।दुल्ला भट्टी की जुल्म के खिलाफ मानवता की सेवा को आज भी पंजाब के लोग याद करते हैं।और सत्य और साहस की जुल्म पर जीत को लोहड़ी के पर्व के रूप में मनाते हैं।

इसी कथा से संबंधित एक गीत लोहड़ी पर्व के दिन गाया जाता है।

सुंदर ,मुंदरये हो , तेरा कौन विचारा हो ।

दूल्ला भट्टी वाला हो, दूल्ले धी ब्याही हो।

सेर शक्कर पाई हो।

लोहड़ी पर्व की एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार

दक्ष राजा प्रजापति ने अपने भवन में एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया।जिसमें अपने दामाद भगवान भोलेनाथ और पुत्री माता पार्वती को आमंत्रित नहीं किया।लेकिन माता पार्वती बिना आमंत्रण के अपने पिता के घर यज्ञ में शामिल होने चली गई । जहां पर दक्ष राजा प्रजापति ने उनका और उनके पति का घोर अपमान किया।इस अपमान से दुखी होकर माता पार्वती ने खुद को अग्नि को समर्पित कर दिया।

ऐसा माना जाता है कि उन्हीं की याद में यह अग्नि जलाई जाती है तथा यज्ञ पर अपने जमाता महादेव का भाग न निकालने के दक्ष प्रजापति के प्रायश्चित के रूप में लोहड़ी पर्व पर परिजन अपनी विवाहित बहनों व बेटियों के घर से वस्त्र , मिठाइयां, रेवड़ी , फल आदि भिजवाते हैं।

एक अन्य कथा के अनुसार

मकर संक्रांति के दिन ह़ी मामा कंस ने नन्हें बालक श्री कृष्ण को मारने के लिए लोहिता नाम की भयानक राक्षसी को गोकुल भेजा था।जिसे श्री कृष्ण ने इसी दिन  मार डाला था । उसी के फलस्वरूप लोहड़ी पर्व मनाया जाता है।

आप सब को लोहड़ी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।

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