रिश्तों की जमा पूंजी : Motivational Story in Hindi Language

Motivational Story in Hindi Language :

रिश्तों की जमा पूंजी

Motivational Story in Hindi Language

किसी भी व्यक्ति का समय हमेशा एक सा नहीं रहता है जो व्यक्ति आज सामर्थ्यवान है। कल वह असहाय भी हो सकता है और जो आज राजा है कल वह रंक भी बन सकता है। यह कहानी है वक्त के करवट लेने की ।

कुछ दिन पहले बाजार में अचानक प्रतिभा की मुलाकात उनके एक पुराने परिचित से हुई जो एकदम कमजोर और बहुत बूढ़े लग रहे थे।प्रतिभा उनको देखकर एकाएक पहचान नहीं पाई। उनसे बात करने के बाद प्रतिभा को महसूस हुआ कि वह बहुत परेशान है और आजकल अकेले रहते हैं। खैर थोड़ी देर बात करने के बाद प्रतिभा अपना सामान खरीदने बाजार की तरफ निकल पड़ी। घर आकर प्रतिभा यही सोचती रही कि यह वही व्यक्ति थे जिनको वह 10 साल पहले जानती थी ।

वह एक उच्च पदासीन राजपत्रित अधिकारी थे जिनको सरकार की तरफ से गाड़ी , बंगला नौकर-चाकर सब मिले थे और अच्छी तनख्वाह के साथ ही साथ अच्छी खासी ऊपरी कमाई भी थी। बहुत ठाठ-बाट व घमंड से रहते थे । किसी से सीधे मुंह बात भी नहीं करते थे । पास-पड़ोस वालों से  बात करना तो दूर उनकी तरफ देखते भी नहीं थे और शायद बिना किसी से कुछ लिए किसी का काम या मदद करने की तो उनसे उम्मीद ही नहीं की जा सकती थी । खैर खूब पैसा कमाया , खूब जमीन खरीदी और हाई प्रोफाइल लाइफ बितायी।

लेकिन एक दिन वक्त बदला और वह सज्जन रिटायर हो गए।  सरकारी ठाठ-बाठ यार , दोस्त सब रिटायरमेंट के साथ ही चले गये और जो जमीन व पैसे कमाए थे । वह बेटे-बहू, बेटियों के नाम हो गई और पत्नी स्वर्गवासी। अब वह सज्जन बिल्कुल अकेले हो गये हैं। साथ में न धर्मपत्नी और न ही औलाद । उम्र की बीमारियों ने और आ घेरा । आज उनका ना कोई दोस्त है , न परिचित और पास पड़ोस वालों से वो कभी बोलते नहीं थे । सो आज पास पड़ोस वाले भी उनसे नहीं बोलते।

कभी कभार बच्चों की छुट्टियों में बेटे, बहू, बेटियां व बच्चे मिलने चले आते हैं।आज बस वो उनके आने के इंतजार में ही दिन गिनते है। सचमुच वो आज एकदम अकेले हो गए । बस अपनी जिंदगी के बाकी दिन निकाल रहे है अपनी पुरानी यादों के सहारे ।

आज प्रतिभा मन ही मन सोच रही थी कि काश जब इन सज्जन महोदय के पास सारी पावर थी और यह अपना हाथ बढ़ाकर कई लोगों का भला कर सकते थे और उनके चेहरे पर एक मुस्कुराहट ला सकते थे या फिर बिना किसी स्वार्थ के किसी गरीब का हाथ पकड़कर उसको सहारा दे सकते थे और बहुत सारे काम बहुत आसानी से कर सकते थे , कर देते तो अकेले ना होते।

काश ढेर सारी जमीन व पैसे कमाने के बजाय उन्होंने थोडी बहुत रिश्तो की पूंजी भी कमा ली होती तो शायद आज अकेले ना होते।क्योंकि निस्वार्थ भाव व सहृदयता से कमाए हुए रिश्तों की पूंजी को कोई छीन नहीं सकता । वक्त के साथ-साथ यह रिश्ते और गहरे हो जाते हैं । लेकिन वह तो रुपया पैसा कमाने में ही रह गए । रिश्तो की पूंजी कमाना तो भूल गए । इसीलिए शायद आज अकेले हैं ।

इसीलिए मैं कहना चाहती हूं कि अगर आप किसी ऐसी जगह पर हैं या किसी ऐसे पद पर हैं और आप किसी की थोड़ी सी मदद कर सकें तो बिना किसी स्वार्थ के करके देखें । जरूरी नहीं की मदद पैसे से ही हो । आप अन्य तरीकों से भी मदद कर सकते हैं क्योंकि रिश्तो की पूंजी ऐसी पूंजी है जिसे आप बाजार जाकर किसी मॉल से नहीं खरीद सकते और ना ही किसी से उधार ले सकते।

यह पूंजी आपको खुद ही कमानी पड़ेगी।अपने निस्वार्थ सेवा भाव व तपस्या से।क्योंकि यह सच है कि अगर आप किसी जरूरतमंद की मदद करते हैं तो बदले में आपको मिलता है असीम संतोष व मूल्यवान दुआएं।

सीख

हम भगवान तो नहीं हैं और हममें इतना सामर्थ्य भी नहीं है कि हम हर किसी की मदद कर सकें और उनके चेहरे पर एक मुस्कुराहट ला सकें लेकिन जिसकी भी आप मदद कर सकते हैं अपने सामर्थ्य से .. जरूर कीजिए लेकिन यह तो हमारे हाथ में है कि हम जानबूझ कर किसी का बुरा कभी ना करें। वक्त हमेशा एक सा नहीं रहता और हमें रिश्तों या एक दूसरे की जरूरत पड़ती ही है । सो हाथ बढ़ाएं और मदद करें।

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