World Family Day :
अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस या विश्व परिवार दिवस
World Family Day
विश्व परिवार दिवस कब और क्यों मनाया जाता है ? परिवार वह जगह होता है जहां पर दुनिया भर की समस्याओं और परेशानियों से मुक्त होकर आप सुकून से रह सकते हैं। परिवार वह जगह है जहां पर बच्चों की शरारतों से गूंगा भी बोल उठता है और बच्चों की मुस्कुराहटों से घर पूरा खिल जाता है। परिवार वह जगह है जहां छोटों को प्यार और बड़ों का आदर करना सिखाया जाता है।
जहां पर दादा-दादी अपने अनुभवों से अपने आने वाली पीढ़ी को सही मार्ग दिखाने का प्रयास करती है। वही घर के छोटे-छोटे बच्चे दादी-नानी व परियों की कहानियां हर रात बड़े शौक से सुनते हुए सपनों में खो कर सो जाते हैं।
जहां नीम भी मीठी शहद सी लगती है, जहां साथ बैठ खाना खाने से खाने का स्वाद भी कई गुना बढ़ जाता है। जहां खुशी के मौके पर खुशियां सौ गुनी बढ़ जाती हैं और दुख आधा हो जाता है और परिवार कितना ही बड़ा क्यों न हो लेकिन उसमें हर उम्र के लोगों के लिए जगह और सुकून होता है। इसीलिए परिवारों की अहमियत को बनाए रखने के लिए ही “विश्व परिवार दिवस” हर साल 15 मई को मनाया जाता है।
विश्व परिवार दिवस मनाने का उद्देश्य
पूरी दुनिया के लोगों को परिवार की अहमियत,परिवार में रहने के फायदे को बताने तथा वर्तमान समय में परिवार संस्था को बनाये रखने के उद्देश्य से हर साल विश्व परिवार दिवस 15 मई को मनाया जाता है। विश्व परिवार दिवस के दिन लोगों को परिवारों से जुड़े मामलों के प्रति जागरूक करने , परिवारों को प्रभावित करने वाले सामाजिक व आर्थिक मुद्दों पर ध्यान दिया जाता है।
विश्व परिवार दिवस मनाने की शुरुवात
परिवार संस्था के महत्व बनाये रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 1993 में एक प्रस्ताव पारित कर प्रत्येक वर्ष 15 मई को अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस या विश्व परिवार दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया।
फिर लोगों को परिवार तथा उसकी अहमियत बताने के लिए पहली बार सन 1994 में संयुक्त राष्ट्र अमेरिका ने 15 मई को “विश्व परिवार दिवस” मनाया और फिर अगले वर्ष 1995 से “विश्व परिवार दिवस” पूरे विश्व में मनाया जाने लगा।
राष्ट्रीय अवकाश
विश्व परिवार दिवस के दिन दुनिया के कई देशों में सार्वजनिक अवकाश घोषित किया जाता है लेकिन कई अन्य देशों में इस दिन सार्वजनिक अवकाश घोषित नहीं किया जाता । लेकिन फिर भी पूरी दुनिया के लोग इस दिवस को अपने अपने तरीके से बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। भारत में भी इस दिन सार्वजनिक अवकाश नहीं रहता है।
हमारी प्राचीन संस्कृति और सभ्यता में संयुक्त परिवार का महत्व
हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति और सभ्यता में परिवार एक अहम संस्था है। हमारे पूर्वज संयुक्त परिवार पर विश्वास करते थे और एक ही घर में परिवार की कई पीढ़ियां निवास करती थी। हर व्यक्ति का परिवार में अलग अलग भूमिका और स्थान होता था।
फिर भी हर व्यक्ति के लिए परिवार में खास जगह होती थी। लोग मिलजुल कर रहते थे और आपसी समझदारी और सहयोग के साथ एक ही परिवार में अपना जीवनयापन हंसी खुशी करते थे। आज भी भारत में कई ऐसे संयुक्त परिवार हैं जिनकी कई पीढ़ियां एक साथ रहती हैं और वो आज भी बड़े ही सुंदर तरीके से अपना जीवन यापन कर रहे हैं।
वर्तमान में टूटते संयुक्त परिवार बढ़ते एकल परिवार
कुछ विपरीत परिस्थितियां,कुछ मजबूत कारण , लोगों की बढ़ती महत्वाकांक्षा हैं , अकेले व स्वतंत्र जीवन जीने की इच्छा , अलग अलग लोगों की अलग अलग सोच तथा सोच में बदलाव , बढ़ती प्रतिस्पर्धा , एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ , एक दूसरे को नीचा दिखाने की चाह , अहंकार ,आधुनिक बनने की चाह व दिखावा।
और कुछ स्वार्थ और कुछ जिम्मेदारी मुक्त जीवन जीने की इच्छा ने संयुक्त परिवारों को धीरे-धीरे ही सही लेकिन एकल करना शुरू कर दिया।नई पीढ़ी के अधिकांश लोग संयुक्त परिवारों में रहना ही नहीं चाहते।
क्योंकि आज की नई पीढ़ी के लोग अपने जीवन या काम धंधे में किसी का हस्तक्षेप नहीं चाहते चाहे। फिर वह मां-बाप ही क्यों ना हो।वो अपने निर्णय स्वतंत्र तरीके से लेना चाहते हैं तथा अपनी जिंदगी को अपने तरीके से जीना पसंद करते हैं। इसीलिए दिनोंदिन एकल परिवारों की संख्या बढ़ती जा रही है।
आज भी है परिवार का महत्व (Importance of Family )
इंसान ही क्या इस संसार में प्रत्येक जीव चाहे वह पशु , पक्षी , कीट पतंगे यहां तक क़ि पेड़-पौधे भी साथ साथ रहना पसंद करते हैं। सभी अपना परिवार बनाना और परिवार के साथ रहना पसंद करते हैं और सभी अपना परिवार बनाए रखने के लिए अथाह मेहनत करते हैं।
चाहे संयुक्त हो या एकल हमेशा से ही परिवार का महत्व था और हमेशा ही रहेगा।क्योंकि इंसान कभी भी अकेला नहीं रह सकता है।भले ही वह कुछ दिनों के लिए अकेला रहे लेकिन वह हमेशा अकेला नहीं रह सकता है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।
इसीलिए हर प्राणी को परिवार की जरूरत तो होती ही है जो उसके दुख में उसको सहयोग करें,जो उसकी खुशी में उसके साथ खुशियां मनाएं,बुरे वक्त में उसके साथ चले। इसीलिए चाहे हमारे युवा कितने भी आधुनिक क्यों न हो जाए।अंत में वो भी विवाह के पवित्र बंधन में बांध कर अपना एक परिवार बसाने की अवश्य सोचता है क्योंकि वह आज भी परिवार संस्था में विश्वास करता ही है।
आप इंसान ही की बात क्यों करते हैं परिंदों को देख लीजिए,जानवरों को देख लीजिए। वो भी अपने नन्हे मुन्ने बच्चों के साथ परिवार में ही रहते हैं।अपने बच्चों की देखभाल करते हैं।उनका पालन पोषण सही तरीके से करने की कोशिश करते हैं।
आज भी भारत में कई ऐसे परिवार हैं जिनकी कई पीढ़ियां एक साथ रहती हैं। हालांकि ऐसे परिवारों की संख्या बहुत कम हो गई है भले ही परिवार संयुक्त से एकल हो गए हो लेकिन फिर भी परिवार की अहमियत खत्म नहीं होती क्योंकि कोई भी व्यक्ति इस संसार में अकेला जीवन निर्वहन नहीं कर सकता।उसको परिवार की जरूरत हमेशा ही रहती है।
संयुक्त परिवार के फायदे व नुक्सान
समय के साथ साथ संयुक्त परिवार की अहमियत लोगों में कम होने लग गई है।लेकिन परिवार के एक साथ रहने में कई सारे फायदे तो है ही।संयुक्त परिवार में छोटे बच्चे कब पल कर बड़े हो जाते हैं पता ही नहीं चलता।
संयुक्त परिवार में बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान भी बड़ी आसानी से सभी लोग मिलकर सकते हैं।कोई भी खुशी का मौका हो या तीज त्यौहार हो।परिवार के सभी सदस्य मिलजुल कर काम में हाथ बढ़ा कर अपनी खुशियों को दुगुना कर सकते हैं।
छोटे बच्चों की परवरिश घर के दादी-नानी के बीच आसानी से हो जाती है तथा बड़े बच्चों को मार्गदर्शन मिल जाता है।जहां बड़े-बुजुर्ग अपने अनुभव बांटते हुए अपने से छोटों को गलतियों करने से पहले ही रोक देते हैं।वहीं छोटों से वो आदर व सम्मान भी पाते हैं।बुजुर्गों का बुढ़ापा खुशनुमा कट जाता है।वो अकेलापन महसूस नहीं करते हैं।जिम्मेदारियों भी सब लोग मिलकर उठाते है।जिससे एक व्यक्ति पर बोझ नहीं पड़ता है।
लेकिन समय के साथ-साथ अब संयुक्त परिवार में भी अंतर आ गया है।कारण कई हैं।लोगों के विचारों में परिवर्तन आना,लोगों का जरूरत से ज्यादा स्वार्थी होना,जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ ना,खासकर पैसा सबसे बड़ी समस्या बनकर उभरा है,घर के सभी लोगों का एक मत न होना ,अहंकार आदि।कभी-कभी यह संयुक्त परिवार में रहने पर तनाव के कारण भी बन जाते हैं।
एकल परिवार के फायदे व नुकसान
जहां एकल परिवार में व्यक्ति पर अपनी और अपने परिवार की जिम्मेदारी खुद की होती है।अपने बच्चों का ध्यान खुद ही रखना होता है।लेकिन सिर्फ अपने और अपने परिवार की जिम्मेदारियों को ही निर्वहन करना होता है।और जो भी वह कमाता है उसे अपने परिवार पर ही खर्च करता है।तथा अपने व अपने बच्चों के सुनहरे भविष्य के लिए उसे निवेश करता है।पारिवारिक मतभेद नहीं होते।छोटी-छोटी बातों पर झगड़े नहीं होते।
लेकिन नुकसान यह हैं कि हर मुश्किल या परेशानी का सामना खुद अकेले ही करना पड़ता है।अपनी समस्याओं का समाधान खुद ही ढूंढना होता है।बच्चों में मिल बांटकर खाने व रहने की आदत नहीं होती।वो अन्य लोगों के साथ बेहतर तालमेल बिठाकर नहीं चल पाते। तीज त्योहारों का मजा नहीं उठा पाते।
अपने परिवार से जुड़े रहिए
किसी कारणवश हम संयुक्त परिवार से अलग हो भी जाते हैं।फिर भी हम परिवार से जुड़े रहकर परिवार का सुख व लाभ उठा सकते हैं।जब भी छुट्टी हो तो अपने परिवार वालों से मिलने जा सकते हैं।उनके साथ अपना अमूल्य समय बिता सकते हैं।मौका मिलते ही उनसे अपने प्यार का इजहार तथा अपनी जिंदगी में उनकी अहमियत का एहसास दिला कर उनके करीब रह सकते है।
इसी तरह हम संयुक्त परिवार में भी रहकर अपनी जिंदगी बेहतर तरीके से गुजार सकते हैं।अगर हम अपने से छोटों को प्यार करें।बड़ों के आदर तथा शिष्टाचार का ध्यान रखें।लोगों को माफ करना सीखे, सच्चाई व इमानदारी से रहने की कोशिश करें ,लोगों की निजतता का भी ध्यान रखें, तथा परिवार के कामों में हाथ बटाएं, दूसरे की हर बात पर दखलअंदाजी ना करें,एक दुसरे की अच्छे कामों की प्रशंशा करें तो जीवन आसान है।
हम किसी पौधे को जमीन पर रोप देते हैं।और हर रोज उसे सिर्फ एक व्यक्ति पानी देता है।तो भी वह पौधा सदैव हरा भरा व खिला खिला रहता है।लेकिन रिश्ते रूपी वृक्ष में दोनों तरफ से प्यार और विश्वास का खाद-पानी देते रहना अति आवश्यक है।बरना रिश्तों के इस वृक्ष को मुरझाने में भी देर नहीं लगती। क्योंकि एक तरफ से खींचा गया रिश्ते का यह वृक्ष ज्यादा दिन तक हरा भरा नहीं रहता।
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