Why Teacher’s Day celebrated :
शिक्षक दिवस
Why Teacher’s Day celebrated
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:।
गुरुर्साक्षात् परमब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः।
अर्थात गुरु ही ब्रह्मा हैं । गुरु ही विष्णु हैं । गुरु ही साक्षात शिव हैं और गुरु ही परम पिता परमेश्वर हैं । अतः उस गुरु को हम सब का नमस्कार है।
भारत में शिक्षक दिवस एक महान शिक्षाविद , उच्च विचारक तथा भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस के अवसर पर मनाया जाता है। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को हुआ था । डॉ राधाकृष्णन राष्ट्रपति बनने से पहले दर्शनशास्त्र के प्रोफ़ेसर थे । वो अपने छात्रों के लिए पूर्ण समर्पित भाव से शिक्षण का कार्य करते थे।
यह उनके छात्रों का उनके लिए सम्मान ही था कि वो अपने इस गुरू का जन्म दिवस मनाना चाहते थे लेकिन डॉ राधाकृष्णन ने इस दिन को सिर्फ अपना जन्म दिवस ना मनाकर संपूर्ण शिक्षकों के सम्मान के लिए समर्पित कर दिया और शिक्षक दिवस मनाने का फैसला लिया । सन 1962 से हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है।
भारत में पहले थी गुरु शिष्य परंपरा
गुरु-शिष्य परंपरा इस देश की सदियों पुरानी परंपरा है । पहले छोटे-छोटे बच्चे गुरुकुल में जाकर गुरुजनों के सानिध्य में रहकर शिक्षा ग्रहण करते थे । बदलते समय के साथ-साथ गुरुकुल की जगह स्कूल , कॉलेजों ने ले ली और गुरुजनों की जगह शिक्षकों ने ले ली लेकिन उद्देश्य आज भी वही पुराना है शिक्षा देना और शिक्षा ग्रहण करना।
भारतीय परंपरा में गुरुजनों या शिक्षकों को हमेशा ही सर्वोच्च स्थान दिया गया है । यूं तो गुरुजनों का सम्मान हर दिन ही किया जाना चाहिए लेकिन साल का एक दिन यानि 5 सितंबर विशेष रूप से शिक्षकों को समर्पित है । हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
शिक्षक दिवस मनाने का उद्देश्य
महान शिक्षाविद तथा भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। वैसे गुरु ही है जो छात्र को शिक्षा देकर, जीवन में हर परिस्थिति का सामना कर सफलता के पथ पर अग्रसर करता है । अपने उन्हीं गुरुजनों के प्रति कृतज्ञता व सम्मान जताने के लिए शिक्षक दिवस मनाया जाता है।
भारत में शिक्षक दिवस
भारत में शिक्षकों का दर्जा हमेशा ही सर्वोच्च माना गया है । हालांकि भारत में शिक्षक दिवस मनाने का सिलसिला तो बाद में शुरू हुआ। लेकिन हमारी भारतीय सनातन संस्कृति में आज से नहीं प्राचीन काल से ही गुरु शिष्य की महान परंपरा रही है । नीचे दिए गए कुछ उदाहरणों से आप स्पष्ट रूप से समझ ही जाएंगे कि शिक्षक दिवस क्यों मनाया जाना आवश्यक है।
शिष्य जिन्हें गुरुओं ने तरासकर हीरा बनाया और हमेशा के लिए अमर कर दिया
हिंदूओं के धार्मिक ग्रंथ महाभारत के अनुसार पांडु पुत्र अर्जुन धनुष विद्या के हर गुर में पारंगत एक सर्वश्रेष्ठ धनुषधर थे। उस जैसा धनुषधर सदियों में न कोई हुआ है और ना कोई होगा शायद । लेकिन उसको सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनाया किसने ? स्वाभाविक रूप से आपका जबाब होगा उसके गुरु द्रोणाचार्य ने । क्या आप द्रोणाचार्य के बगैर अर्जुन की कल्पना कर सकते हैं ?
अगर द्रोणाचार्य जैसा गुरु अर्जुन को नहीं मिलता तो क्या अर्जुन वाकई में इतनी सर्वश्रेष्ठ धनुषधर होते ? गुरु द्रोणाचार्य ने अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धनुषधर बनाने के लिए अपने ही एक दूसरे शिष्य एकलव्य से उसके हाथ का अंगूठा गुरु दक्षिणा स्वरुप में मांग लिया क्योंकि एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य की माटी की मूरत बनाकर उनको अपना गुरु बनाया और उनके सामने धनुष चलाने का अभ्यास किया और धीरे धीरे अर्जुन के समान ही धनुष विद्या में महारत हासिल कर ली । खुद अपयश के भागी बन कर द्रोणाचार्य ने अर्जुन को दुनिया का सबसे सर्वश्रेष्ठ धनुषधर बनाया।
ऐसे ही महाभारत के एक अन्य पात्र कर्ण को उनके गुरु भगवान परशुराम ने धनुष विद्या के हर गुर को सिखाकर उसे अर्जुन के समकक्ष ही सर्वश्रेष्ठ धनुषधर बनाया । यह और बात है कि परशुराम ने बाद में अपने ही शिष्य को किन्ही कारणों से समय आने पर उनकी दी हुई विद्या को भूल जाने का श्राप भी दे दिया था।
इंसानों को ही नहीं वरन देवताओं और दानवों को भी समय-समय पर मार्गदर्शन की आवश्यकता पड़ती है । इसीलिए देवताओ के गुरु बृहस्पति व दानवों के गुरु शुक्राचार्य माने जाते हैं । वैसे सृष्टि के प्रथम गुरु का दर्जा भगवान भोलेनाथ का है । वेदों के रचयिता वेदव्यास जी को भी जगत गुरु की उपाधि धारण है।
भगवान राम और भगवान कृष्ण ने भी ली गुरु से शिक्षा
हमारे धार्मिक ग्रंथों में और भी ऐसे अनेक गुरु-शिष्यों के उदाहरण हैं । जहां पर गुरु ने अपने शिष्य को ज्ञान देकर उसे जीवन के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचाया और दुनिया में उनको यश और नाम दिला कर अमर दिया । भगवान राम ने भी अपने गुरु वशिष्ठ जी के आश्रम में जाकर शिक्षा ली तो भगवान कृष्ण ने भी अपने गुरु सांदीपनि से उनके आश्रम में जाकर 64 कलाओं की शिक्षा सिर्फ 64 दिन में ली और फिर भगवान कृष्ण ने गुरु द्वारा दी गई इन दिव्य शिक्षाओं को जगत कल्याण हित के लिए लगाया और अपने गुरु का मान बढ़ाया।
प्राचीन काल में शिक्षा घर से दूर गुरु आश्रमों या गुरुकुलों में गुरु के समीप रहकर ही शिक्षा ग्रहण की जाती थी लेकिन वर्तमान समय में इन गुरुकुलों की जगह स्कूलों ने ले ली है।
हमारा इतिहास भी गवाह है गुरु शिष्य परंपरा का
यही नहीं हमारा इतिहास उठाकर देख लीजिए । वहां पर गुरु शिष्य की कई ऐसी जोड़ियां मिलेंगी जहां पर एक गुरु ने अपने शिष्य को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया । उन्होंने अपने शिष्य को ज्ञान देकर , उसका सही मार्गदर्शन कर उसको इस तरह से तरासा कि उसका नाम इतिहास के पन्नों में गुरु के साथ हमेशा के लिए अमर हो गया।
क्या आप चाणक्य के बगैर चंद्रगुप्त की कल्पना कर सकते हैं।या रामदास के बगैर शिवाजी की या फिर बैरम खान के बगैर अकबर की। अपने देश के गौरव व करोड़ों युवाओं के आदर्श व प्रेरणा स्रोत स्वामी विवेकानंद जी अपने गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस के कारण ही सर्वोच्चता के शिखर पर पहुंच पाए।उनके विचारों और भाषणों को सुनकर आज भी दुनियाभर के लोग प्रेरित होते हैं ।
दादाभाई नौरोजी के शिष्य महात्मा गांधी
महात्मा गांधी के गुरु दादाभाई नौरोजी (जिन्हें “भारतीय राजनीति का भीष्म पितामह” कहा जाता है ) की दी हुई शिक्षा के कारण ही सत्य और अहिंसा का मार्ग चुनकर भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की आजादी में कूद पड़े।वो भी सिर्फ तन पर एक सफेद धोती और हाथ में एक लाठी लेकर और भारत को आजादी दिला कर आधुनिक भारत के “राष्ट्रपिता” कहलाए।
ये तो चंद उदाहरण हैं लेकिन ऐसे और भी अनेक गुरु शिष्यों की जोड़ी है जिसमें शिष्य के नाम के साथ सदैव उनके गुरु का नाम आता है।क्योंकि गुरु के दिए ज्ञान तथा सही दिशा निर्देशों के कारण वो अपने जीवन के सर्वश्रेष्ठ मुकाम पर पहुंचे । इतिहास में ही क्यों वर्तमान में भी देख लीजिए।ऐसे अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं जहां पर गुरु ने अपने कांच के टुकड़े रूपी शिष्य को तराश कर कोहिनूर सा हीरा बना दिया जैसे खेल , राजनीति , विज्ञान , साहित्य , कला आदि क्षेत्रों में ऐसे अनेक उदाहरण हैं । हमारे धर्मग्रंथों में गुरु का दर्जा भगवान से भी ऊँचा बताया गया है तभी तो कहा गया है कि
गुरु गोविंद दोऊ खड़े , काके लागू पाय ।
बलिहारी गुरु आपने , गोविंद दियो बताए ।
अर्थात गुरु और गोविंद (भगवान) दोनों ही सामने खड़े हैं। तो मैं पहले गुरु के ही चरण स्पर्श करूंगा क्योंकि गुरु ने ही मुझे उस गोविंद तक पहुंचने का मार्ग बताया है।
हर बच्चे की पहली शिक्षक मां
एक बच्चे के लिए उसकी मां उसकी सर्वप्रथम शिक्षक होती है क्योंकि वह बच्चे का इस संसार से परिचय कराती है । उसे अच्छे संस्कार देकर जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। और उसका परिचय ज्ञान देने वाले गुरु से कराती है। बच्चे के लिए माता पिता के बाद शिक्षक ही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण व्यक्ति होता है।
क्योंकि माता पिता बच्चे को जीवन देकर इस संसार से परिचित कराते हैं तो वही शिक्षक ज्ञान रुपी प्रकाश देकर उसको एक उज्जवल भविष्य व निर्मल चरित्र देता है।और भगवान तक पहुंचने का मार्ग भी वही बताता है इसीलिए कहा गया है …… माता , पिता , गुरु , देवता... ।
जीवन में शिक्षक की भूमिका महत्वपूर्ण
किसी भी बच्चे का चरित्र निर्माण करने में ,उसका भविष्य उज्जवल बनाने में तथा उसे सर्वश्रेष्ठ इंसान बनाने में , देश का एक सभ्य व संस्कारवान नागरिक बनाने में शिक्षक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है क्योंकि बच्चे अपने शिक्षक के प्रति अथाह प्यार व विश्वास रखते हैं। बच्चों के लिए एक शिक्षक उस कुम्हार की तरह है जो गीली कच्ची मिट्टी को आकार देकर एक सुंदर से बर्तन में बदल देता है । इसी तरह शिक्षक भी अपने छात्रों को कभी निस्वार्थ प्यार देकर , तो कभी आखें दिखाकर , अपने अथक परिश्रम से उसे ज्ञान देकर , निराशा में भी आशा की ज्योति जलाकर , उसके सुंदर सपनों को हौसला देकर , उसे उसकी कामयाबी का विश्वास दिलाकर , हर पल आगे बढ़ने को प्रेरित करता है।
शिक्षा और शिक्षक का पेशा बिल्कुल अलग है क्योंकि शिक्षक तो वह दीया है जो जलकर अपने छात्रों के अंदर ज्ञान की रोशनी भर देता है। गुरु के पास तो अथाह ज्ञान होता है।अब यह शिष्य पर निर्भर करता है कि वह अपने गुरु से कितनी शिक्षा ग्रहण कर सकता है और उसको अपने जीवन में कितना आत्मसात कर पाता है क्योंकि एक शिक्षक ज्ञान रूपी पानी से भरे हुए उस कुएं की तरह है जिसमें शिष्य अपनी समझ रूपी बर्तन को डालकर जितना ज्ञान ग्रहण कर सकता है कर लेगा।
यह भी सही है कि जिसका बर्तन जितना बड़ा होगा वह उतना ही ज्यादा पानी निकाल पायेगा । इसी तरह शिष्य जितना लायक होगा । वह अपने गुरु से उतना ही ज्यादा ज्ञान ग्रहण कर उसे अपने जीवन में आत्मसात कर उन्नति की तरफ अग्रसर होगा।
शिक्षक का आदर सम्मान जरूरी
हर छात्र को अपने शिक्षक का आदर सम्मान करना चाहिए।विपरीत परिस्थितियों में भी कभी अपने गुरु की आलोचना या गुरु का अपमान कभी नहीं करना चाहिए । सदैव अपने शिक्षक के लिए समर्पित व विनम्र रहना चाहिए क्योंकि शिक्षक ही वह व्यक्ति हैं जो आपको अंधकार से प्रकाश की तरफ , अज्ञान से ज्ञान की तरफ ले जाता है।
गुरु का अर्थ ही होता है “अंधकार से प्रकाश की तरफ ले जाने वाला”। इसीलिए शिक्षक का स्थान हमेशा छात्र से ऊँचा होता हैं । भले ही छात्र कितनी भी तरक्की क्यों ना कर ले। उसका स्थान शिक्षक के चरणें में ह़ी माना गया हैं । किसी भी देश व समाज का चरित्र व उन्नति बहुत हद तक उसके शिक्षकों पर निर्भर करती हैं।
शिक्षकों व शिक्षण संस्थानोंं का बदलता स्वरूप
हालांकि आघुनिक समय में शिक्षा को भी एक व्यवसाय में बदल दिया गया है । कई प्राइवेट स्कूल व कॉलेजों में तो फीस व अन्य खर्चे इतने ज्यादा है कि वहां पर गरीब बच्चे तो पढ़ने की सोच ही नहीं सकते।
और कई शिक्षकों व शिक्षण संस्थानोंं ने तो इस पेशे को पैसा कमाने का एक साधन बना दिया है। कई बार तो अभिभावकों को अपने बच्चों को अच्छे शिक्षण संस्थानों में पढ़ाने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाना पड़ता है।
Teacher’s Day Celebration in India
शिक्षक दिवस अपने शिक्षकों के प्रति प्यार व सम्मान जताने का दिन
शिक्षक दिवस का दिन अपने शिक्षकों के प्रति प्यार व सम्मान जताने का दिन हैं।तथा उस सब के लिए उनको धन्यबाद कहने व उनके प्रति आभार व्यक्त करने का है जो उन्होंने आपके लिए किया।शिक्षक दिवस के दिन सभी शिक्षण संस्थाओं में स्कूली बच्चों द्वारा अपने शिक्षकों के प्रति आदर व सम्मान जाहिर किया जाता है तथा उन्हें उपहार या फूल भेंट किये जाते है।
कैसे मनाया जाता है शिक्षक दिवस ( Teacher’s Day Program)
शिक्षक दिवस के दिन स्कूलों, कालेजों तथा सभी सरकारी व प्राइवेट शिक्षण संस्थाओं में शिक्षकों के सम्मान में अनेक रंगारंग कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है । शिक्षक दिवस पर शिक्षकों को अभिभावकों , गैर सरकारी संस्थाओं तथा सरकार की तरफ से भी सम्मानित किया जाता है।
शिक्षक का महत्व व दर्जा हमेशा ही ऊंचा रहेगा
चाहे प्राचीन काल हो, चाहे वर्तमान या फिर भविष्य , शिक्षक की आवश्यकता हर युग में हमेशा ही बनी रहेगी और शिक्षक का महत्व व दर्जा हमेशा ही ऊंचा रहेगा क्योंकि हर आने वाली पीढ़ी को ज्ञान की आवश्यकता तो होगी ही होगी।
इसीलिए अलेक्जेंडर महान ने कहा “मै जीवन के लिए पिता का ऋणी हूँ पर अच्छा जीने के लिए गुरु का“।
Teacher’s Day gift Ideas
एक अध्यापक को अपने छात्र से सम्मान के अलावा शायद ही और कुछ चाहिए लेकिन आज के बदलते स्वरूप में छात्र अपने शिक्षकों के सम्मान में शिक्षक दिवस के अवसर पर उन्हें कुछ उपहार भेंट करना चाहते हैं ।तो यह भी अच्छी बात है।
वैसे आमतौर पर शिक्षक दिवस पर शिक्षकों को Flowers , Flower Arrangements , Greeting cards , Homemade Card , Chocolates , Chocolate Boxes , Gift Hampers , Stationery , Diary , Stylish Pen , Pencil Holder , Push Pins में भेंट किए जाते हैं।
लेकिन आजकल इसके अलावा भी बाजार में कई अन्य चीजें हैं जो आप अपने शिक्षकों को भेंट कर सकते हैं। जैसे Mugs & Sippers, Worlds Best Teacher Tote Bag , Silver Apple-shaped engraved key chain , Teacher Multi Function Desk Organizer,Watch ,Photo frame , Modern Art Painting , Unique Handy Crafts , Stylish wall Hangers , Lord Ganesha Idol , Lord Buddha Idol आदि।
आप सब को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
Happy Teacher’s Day ….…
Hindi Essay हमारे YouTube channel में देखने के लिए इस Link में Click करें। YouTube channel link – (Padhai Ki Batein / पढाई की बातें)
You are most welcome to share your comments.If you like this post.Then please share it.Thanks for visiting.
यह भी पढ़ें……
- विश्व पर्यटन दिवस क्यों मनाया जाता है जानिए
- जानिए वर्ल्ड रोज डे क्यों और कब मनाया जाता है
- अंतरराष्ट्रीय रेडक्रॉस दिवस क्यों मनाया जाता है जानिए
- हिंदी दिवस क्यों मनाया जाता है जानिए
- जानिए विश्वकर्मा दिवस क्यों मनाया जाता है?
- जानें मिशन चंद्रयान-2 के बारे में ?
- बाल्मीकि जयंती क्यों मनाई जाती हैं जानिए
- नेशनल मेडिकल कमीशन बिल 2019 क्या है?
- राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की क्या है खास बात क्या है?
- जेनेवा समझौता क्या है जानिए ?
- लोकायुक्त और लोकपाल कानून क्या है?
- जाने कौन है चंद्रयान-2 को सफल बनाने वाली दो महिलाएं
- जम्मू कश्मीर में धारा 370 व 35 A खत्म ? जानिए इससे क्या होगा फायदा?
- मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा क्या होता है?जानिए