Short Motivational Stories in Hindi : 4 छोटी हिंदी कहानियों

Short Motivational Stories in Hindi :

छोटी हिंदी कहानियों 

Short Motivational Stories in Hindi

Short Motivational Stories in Hindi

Story No – 1

अमीरी दिल से आती है – बिल गेट्स

दुनिया के सबसे धनी व्यक्ति बिल गेट्स को कौन नहीं जनता हैं।एक दिन बिल गेट्स से किसी ने पूछा “इस दुनिया में आपसे भी अमीर कोई है ? “। बिल गेट्स ने कहा “हां !! एक व्यक्ति है।जो मुझ से भी ज्यादा अमीर हैं “।अब वह व्यक्ति हैरान था।क्योंकि आंकड़ों के हिसाब से तो बिल गेट्स ही सबसे धनी व्यक्ति थे।

तब बिल गेट्स ने उस व्यक्ति को बताया कि “जब मैं संघर्ष कर रहा था। यह तब की बात है। एक दिन न्यूयॉर्क एयरपोर्ट पर सुबह-सुबह मैंने एक अखबार खरीदना चाहा।पर मेरे पास खुले पैसे नहीं थे। इसीलिए मैंने अखबार खरीदने का इरादा छोड़ दिया।पर अखबार बेचने वाले उस लड़के ने मुझे देखा और एक अखबार मुझे देते हुए कहा कि “यह रखिए।खुले पैसों की परवाह मत कीजिए”।

लगभग तीन माह बाद मैं उसी एयरपोर्ट पर फिर उतरा।और मेरे पास फिर सिक्के नहीं थे।उस लड़के ने मुझे फिर से अखबार दिया तो मैंने मना कर दिया।उस लड़के ने कहा ” मैं इसे अपने हिस्से से दे रहा हूं”। मैंने फिर अखबार ले लिया। उन्नीस साल बीत गए।इस बीच मैंने कामयाबी हासिल कर ली।कामयाब होने के बाद एक दिन मुझे उस लड़के की याद आई और मैं उसे ढूंढने लगा।

लगभग डेढ़ महीने खोजने पर वह मुझे मिल गया।मैंने उससे पूछा “क्या तुम मुझे पहचानते हो “? लड़के ने हामी भरी।मैने पूछा “तुम्हें याद है कि कभी तुमने मुझे फ्री में अखबार दिए थे” ?लड़के ने कहा “हाँ !! ऐसा दो बार हुआ था”। इस पर मैंने कहा कि “मैं उन अखबारों की कीमत अदा करना चाहता हूं। तुम जो चाहते हो बताओ”।लड़के ने कुछ सोचा और फिर कहा “सर लेकिन आप मेरे काम की कीमत अदा नहीं कर पाएंगे”।बिल गेट्स ने पूछा “क्यों”?

लड़के ने कहा ” मैंने आपकी मदद तब की थी।जब मैं खुद गरीब था और अखबार बेचता था।आप मेरी मदद तब कर रहे हैं।जब आप दुनिया के सबसे अमीर और सामर्थ्यवान व्यक्ति हैं “।

Moral Of The Story ( अमीरी दिल से आती है )

जरूरत के वक्त की गई मदद का दुनिया में कोई भी व्यक्ति मोल नही चुका सकता है। चाहे वह कितना भी धनवान व्यक्ति क्यों न हो।वह मदद अनमोल होती है।  

Story No – 2

ईमानदारी सबसे बड़ी पूँजी 

यह बात सन 1965 की है।जब लाल बहादुर शास्त्री जी अपने देश के प्रधानमंत्री थे।एक दिन शास्त्री जी कपड़े की मिल देखने गए।शास्त्री जी के साथ मिल मालिक , उनके मंत्रिमंडल के कुछ सदस्य व उच्च अधिकारी भी थे। मिल देखने के बाद शास्त्री जी कपड़े की मिल के गोदाम में गए।जहां पर उन्होंने मिल मालिक से कुछ साड़ियां दिखाने के लिए कहा। 

मिल मालिक एक से एक सुंदर साड़ी शास्त्री जी को दिखाने लगा।शास्त्री जी ने कुछ साड़ियां देखने के बाद मिल मालिक से उन साड़ियों का दाम पूछ लिया। मिल मालिक ने उन साड़ियों की कीमत 800 से 1,000 रूपये तक बताई। जो उस समय के हिसाब से कुछ ज्यादा ही थी।शास्त्री जी बोले “ये तो बहुत अधिक कीमती है। आप मुझे वह साड़ियां दिखाइए जिनकी कीमत में अदा कर सकूं”।

मिल मालिक ने सकपकाते हुए बोला “आप हमारे प्रधानमंत्री हैं। इसीलिए हम आपको ये साड़ियों भेंट कर रहे हैं।हम आपसे इन साड़ियों की कीमत नहीं लेंगे। आप बस पसन्द कीजिए “। शास्त्री जी ने तुरंत जवाब दिया “मैं प्रधानमंत्री हूं।इसका मतलब यह नहीं हैं कि मैं जो चीज खरीद नहीं सकता।उसे भेंट में लेकर अपनी पत्नी को पहनाऊंगा।इसीलिए आप मुझ जैसे गरीब व्यक्ति के लायक ही साड़ियां दिखाइए।जिनकी कीमत में आसानी से अदा कर सकूं”।

मिल मालिक ने शास्त्री जी से साड़ियों की कीमत ना देने के लिए काफी अनुनय विनय किया।  लेकिन शास्त्री जी कहां मानने वाले थे।उन्होंने साड़ीयों की पूरी कीमत चुकाई।तब परिवार की महिलाओं के लिए साड़ियां खरीदी।शास्त्री जी वाकई में ईमानदारी और सच्चाई के प्रतिरूप थे। 

Moral Of The Story (ईमानदारी सबसे बड़ी पूँजी )

ईमानदारी इंसान की सबसे बड़ी पूँजी हैं।उसके मजबूत व्यक्तित्व का आईना है।ईमानदार इन्सान को दुनिया का कोई भी लालच हरा नही सकता है। 

Story No – 3

प्रथम पूज्यनीय माँ 

स्वामी विवेकानंद एक बार किसी काम से अमेरिका गए हुए थे।जब वो एक कार्यक्रम में शामिल होने जा रहे थे।तभी उनके पास एक अंग्रेज आया और बोला “आपके देश में मां को भगवान से भी ऊंचा दर्जा क्यों दिया जाता है?”। विवेकानंद मंद-मंद मुस्कराये और अंग्रेज से बोले “पास पर एक बड़ा पत्थर पड़ा है उसे ले आओ”।

अंग्रेज दौड़ा-दौड़ा गया और पास पर पड़ा एक पत्थर उठा लाया।स्वामी जी ने उससे कहा “अब इस पत्थर को एक कपड़े में बांधकर अपने कमर से लटका लो”। पत्थर को कमर में लटकाने के बाद स्वामी जी ने उससे कहा “जाओ , अब तुम 2 घंटे बाद फिर मेरे पास आना।मैं तुम्हारे सवाल का जवाब तुरंत ही दूंगा”। लेकिन ध्यान रहे कमर में बंधे इस पत्थर को तुम्हें एक पल के लिए भी नहीं उतारना है”।“ठीक है” कह कर अंग्रेज वहाँ से चला गया।

कमर में पत्थर बंधे होने की वजह से उसे चलने-फिरने उठने-बैठने में काफी तकलीफ हो रही थी।2 घंटे के बजाय वह एक ही घंटे में वापस आकर स्वामी जी से कहने लगा “मुझे नहीं चाहिए अपने सवाल का जवाब।कृपया आप मुझे इस पत्थर को कमर से हटाने की इजाजत दे दीजिए। स्वामी जी ने उसकी तरफ मुस्कुराते हुए देखा। और बोले ” इसीलिए तो हमारे हिंदुस्तान में मां को प्रथम पूजनीय माना जाता है। उसका स्थान देवताओं से भी ऊँचा माना जाता हैं।तुम इस पत्थर को अपने कमर में महज एक घंटे भी नहीं रख सके।

लेकिन मां एक बच्चे को पूरे 9 महीने तक अपनी कोख में रखती है। वो भी बिना एक शब्द बोले खुशी खुशी।अब अंग्रेज स्वामी जी के आगे नतमस्तक था। 

Moral Of The Story (प्रथम पूज्यनीय माँ )

मां अपने बच्चे को पूरे 9 महीने तक अपनी कोख में खुशी-खुशी रखती है। हर दर्द ,हर तकलीफ़ खुद झेलती है।लेकिन अपनी संतान पर कोई आंच नहीं आने देती हैं।इस दुनिया में बस एक माँ का प्यार व ममता ही निस्वार्थ है। 

Story No – 4

करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान

एक बाज का जोड़ा अपने दो छोटे बच्चों के साथ एक घने जंगल में एक ऊँचे पेड़ में घोंसला बना कर रहता था।चूंकि बच्चे छोटे थे।इसीलिए नर बाज अपने दो बच्चों को रोज अपनी पीठ में बिठा कर सुरक्षित स्थान पर ले जाता था।ताकि दोनों बच्चे सुरक्षित होकर दिनभर दाना चुक सके।और शाम होते ही उन्हें फिर से अपनी पीठ पर बिठाकर घर ले आता।

बच्चे रोज मजे से पिता की पीठ पर बैठ कर जाते और शाम को घर वापस आ जाते।और यह सिलसिला लगातार चलता रहा।इससे दोनों बच्चे आलसी हो गये। बच्चों ने सोचा कि जब पिता पीठ पर बिठा कर ले जाते हैं तो हमें उड़ना सीखने की क्या जरूरत है”? लेकिन धीरे-धीरे पिता की समझ में यह बात आ गई कि उसके बच्चे आलसी हो गए हैं।और उसने उन्हें सबक सिखाने की सोची।एक दिन सुबह-सुबह रोज की तरह ही उसने अपने दोनों बच्चों को अपनी पीठ में बिठाया।और बादलों से ऊपर बहुत ऊंचाई में उड़ान भरनी शुरू की।

काफी ऊंचाई पर पहुंच कर उसने दोनों बच्चों को अपनी पीठ से नीचे गिरा दिया।अब बच्चों ने अपने प्राण बचाने के लिए पंख फड़फड़ाने शुरू कर दिये।किसी तरह दोनों बच्चों ने पंख फैलाकर उड़ते उड़ते अपने प्राण बचा लिए। उस दिन उन्हें समझ में आ गया कि उड़ना सीखना बहुत जरूरी है।शाम को घर पहुंच कर दोनों बच्चों ने अपनी मां से शिकायत की।उन्होंने अपनी माँ से कहा “मां आज हमने अपने पंख न फड़फड़ाए होते तो पिताजी ने तो हमें मरवा ही दिया था”।

माँ ने अपने बच्चों को समझाते हुए कहा “जो बच्चे अपने आप नहीं सीखते हैं।उन्हें सिखाने का बस एक यही तरीका है।हमारी पहचान तो ऊंची उड़ान से ही होती है।और यही हमारी योग्यता भी है।और हमें अपना जीवन जीने के लिये योग्य होना जरूरी हैं।और योग्यता हासिल करने के लिए तुम्हें लगातार अभ्यास करते रहने की जरूरत है”।

अब बच्चों को अपनी मां की बात समझ में आ गई। अब वो रोज लगातार ऊंची- ऊंची उड़ान भर कर अभ्यास करते थे। जिससे कुछ ही दिनों में दोनों बच्चे अपने माता-पिता की तरह ऊंचाई में उड़ान भरना सीख गए। 

Moral Of The Story (करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान)

किसी भी कार्य का लगातार अभ्यास करने से हम उस कार्य में प्रवीण हो सकते है। चाहे वह कार्य कितना भी कठिन क्यों न हो। इसीलिए कहा गया है कि “करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।” अर्थात किसी भी कार्य का बार बार अभ्यास करने से मूर्ख से भी मूर्ख प्राणी भी विद्वान् बन सकता हैं।

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