हरिशयनी एकादशी को तुलसी क्यों लगाई जाती है

Medicinal uses of Tulsi Plant

हरिशयनी एकादशी क्यों मनाई जाती है ?हरिशयनी एकादशी / देवशयनी एकादशी का महत्व क्या है ? हरिशयनी एकादशी के दिन घर घर में तुलसी का पौधा क्यों लगाया जाता है ? Tulsi Plants Information ,Tulsi Plant medicinal uses in hindi

हरिशयनी एकादशी या देवशयनी एकादशी

आज है आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसको हरिशयनी एकादशी या देवशयनी एकादशी भी कहा जाता है।ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु हरिशयनी एकादशी के दिन से लेकर कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की हरिप्रबोधिनी एकादशी तक चार महीने के लिए क्षीर सागर में शयन करने चले जाते हैं।

हरिशयनी एकादशी को तुलसी क्यों लगाई जाती है

पदमपुराण के अनुसार हरिशयनी एकादशी से चार मास के लिए भगवान विष्णु का एक रूप पाताल में राजा बलि के द्वार पर रहता है तथा एक क्षीर सागर में शेषशय्या में विश्राम करता है ।यह चार महीने चातुर्मास  कहलाते हैं।और ऐसा माना जाता है कि माता तुलसी चातुर्मास में इस सम्पूर्ण धरती की रक्षा करती हैं।

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चातुर्मास  है विशेष 

ये महीने व्रत ,पूजा, जप ,तप करने के लिए यह उत्तम माने गए हैं। इसीलिए इन चार माह में चातुर्मास्य करने वाले साधु, संत , महात्मा एक ही स्थान पर रहकर जप, तप, ध्यान ,समाधि का अभ्यास करते हैं। हरिशयनी एकादशी व हरिप्रबोधिनी एकादशी के दिन किया जाने वाला व्रत सभी प्रकार की मनोकामनाओं को पूर्ण करता है। तथा मनुष्य के सभी पापों का नाश करता है।

हरिशयनी एकादशी व्रत व हरिप्रबोधिनी एकादशी व्रत को करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। इसीलिए इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा अर्चना की जाती है।हालांकि इन चार महीनों में मांगलिक कार्य पूरी तरह से निषेध माने जाते हैं ।इन महीनों में शादी ब्याह ,जनेऊ संस्कार व गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं।

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एक कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु वामन रूप धरकर कर दैत्यराज राजा बलि से दान मांगने गए ।उन्होंने राजा बलि से तीन पग (पैर) जमीन मांगी ।राजा बलि ने भगवान विष्णु को तीन पग जमीन खुशी खुशी दान कर दी। तब भगवान विष्णु ने अपने एक पग से पूरा आकाश, पूरी धरती व चारों दिशाएं नाप ली तथा दूसरे पग से पूरा स्वर्ग लोक नाप लिया।

अब उन्होंने राजा बलि से कहा कि अब वह अपना तीसरा पग कहां रखें। तब भगवान विष्णु का तीसरा पग रखने के लिए राजा बलि ने अपने सिर को आगे कर दिया।भगवान विष्णु राजा बलि के इस दान से बहुत प्रसन्न हुए ‌और उन्होंने राजा बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया तथा उन से वरदान मांगने को कहा ।

राजा बलि ने कहा कि भगवान विष्णु सदा के लिए उसके महल में निवास करें। तब भगवान विष्णु ने वचन दिया कि वह चातुर्मास के चार माह उसके महल में गुजारेंगे। तभी से भगवान हरिशयनी एकादशी के दिन चार महीनों के लिए पाताल लोक राजा बलि के यहां रहने चले जाते हैं।

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Tulsi Plant Information in Hindi 

हरिशयनी एकादशी के दिन घर घर लगाया जाता है तुलसी का पौधा

हिन्दू धर्म में महिलाएं चातुर्मासीय सभी एकादशियों का व्रत बड़े मनोयोग से रखती हैं।हरिशयनी एकादशी के दिन तुलसी का पौधा (Tulsi Plant) घर में लगाने का विशेष दिन माना जाता है। इस दिन हर घर में तुलसी का पौधा लगाया जाता है। और हर रोज यानि पूरे चातुर्मास भर तुलसी का पूजन अनिवार्य किया जाता है।

हरिशयनी एकादशी के दिन हर घर में तुलसी के पौधे को पूरे विधि विधान के साथ लगाया जाता है। तथा तुलसी की पूजा के साथ-साथ आरती व कीर्तन भी किया जाता है ।उसके बाद प्रतिदिन उसे सुबह जल दिया जाता है। और रात्रि को तुलसी के पौधे के पास दिया जलाकर उसका पूजन किया जाता है। यह सिलसिला पूरे चातुर्मास भर चलता रहता है।

हरिशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु भी क्षीरसागर में चार महीने के लिए शयन करने चले जाते हैं।और माता तुलसी ही इस पूरी अवधि में इस धरती की रक्षा करती हैं। इसीलिए इन चार महीनों में माता तुलसी की विशेष पूजा आराधना  की जाती हैं।

हरिशयनी एकादशी के दिन लगाया जाता है तुलसी का पौधा

Medicinal uses of Tulsi Plant

तुलसी हैं औषधीय गुण से भरपूर

हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति में तुलसी का जितना धार्मिक महत्व बताया गया है उससे ज्यादा उसके औषधीय गुणों का वर्णन किया गया है।यह पवित्र पौधा औषधीय गुणों से भरपूर है। वातावरण को पूरी तरह पवित्र तो करता ही है।साथ ही साथ उस जगह को कीटाणु मुक्त भी रखता है।

आयुर्वेद के ज्ञाता इस पौधे को संजीवनी बूटी” का नाम देते हैं। क्योंकि इस पौधे का हर भाग चाहे वह जड़ हो ,तना हो या पत्तियां हो या उसके बीज ही क्यों ना हो। हर किसी का अपना एक औषधि महत्व है।

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तुलसी है घर घर की वैद्य ( Medicinal uses of Tulsi Plant)

यह पौधा सर्दी, जुखाम, खांसी में तो हर घर में औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है ।लेकिन इसके साथ ही यह दमा, टी.वी, मलेरिया ,बुखार ,कुष्ठ रोग, माइग्रेन व साइनस की बीमारी ,आंखों की रोशनी बढाने, गठिया, किडनी रोग, आंतों की सफाई, दिल की बीमारी व मुंह के छालों को दूर करने में सहायक होती है।

( Medicinal uses of Tulsi Plant ) तुलसी के पत्तों को रोज चबाने से दांत में कीड़ा नहीं लगता ।वह मजबूत व चमकदार बनते हैं।इसके साथ ही यह कई अन्य बीमारियों को भी ठीक करने में काम आता है ।डेंगू जैसी बीमारी में भी यह काफी राहत देता है। इसीलिए इस पौधे को “घर घर का वैद्य” कहा जाता है ।सच में यह पौधा प्रकृति की तरफ से हमें एक अनमोल उपहार के रूप में मिला हैं।

Benefits of Tulsi Plant

  • बरसात के इन दिनों तथा आने वाले जाड़ों में कई बीमारियां स्वत: ही जन्म लेती हैं जो विषाणु या जीवाणुओं से फैलती हैं। इन बीमारियों को दूर करने में तुलसी बहुत काम आता है। अगर हर घर में एक तुलसी का पौधा हो तो कई बीमारियों से आसानी से निजात पाया जा सकता है।
  • तुलसी का पौधा घर के वस्तु दोषों को भी दूर करता है। और घर से नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
  • इस पवित्र पौधे में कई बीमारियों को दूर करने के औषधि गुण मौजूद हैं।शायद इसीलिए हमारे पूर्वजों व ऋषि मुनियों ने इसको धर्म से जोड़ दिया।और इस पौधे को हरिशयनी एकादशी के दिन घर में लगाने की प्रथा प्रारम्भ की ।
  • तुलसी की पूजा आराधना से मां लक्ष्मी की विशेष कृपा मिलती है और घर में सुख ,शांति ,समृद्धि ,ऐश्वर्य व धन की प्राप्ति होती है।

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तुलसी के जन्म की कथा

तुलसी के पौधे के जन्म से संबंधित एक कथा धार्मिक ग्रंथों मेंं मिलती हैं। जिसके अनुसार वृंदा नाम की एक लड़की का जन्म राक्षस कुुल में हुआ।मगर वह बचपन से ही भगवान विष्णु की बडी़ भक्त थी। और पूरेेेे विधि-विधान से रोज भगवान की पूजा अर्चना करती थी। बड़ी होने पर उसका विवाह समुद्र से उत्पन्न राक्षस कुल के दानव राजा जलंधर से हो गया। वृंदा बड़ी पतिव्रता स्त्री थी।

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एक बार देवताओ और दानवों में भयंकर युद्ध हुआ। उस युद्ध में जलंधर ने भी भाग लिया।जब वह युद्ध के लिए जाने लगा तो वृंदा ने कहा “स्वामी आप युद्ध पर जा रहे है ।आप जब तक युद्ध में रहेगे तब तक मै आपकी जीत के लिये अनुष्ठान करुगी और आपके वापस आने तक मैं अपना संकल्प नही छोडूगी “।

जलंधर के युद्ध में चले  जाने के बाद वृंदा अपने पति की जीत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गयी।उनके व्रत के प्रभाव से सारे देवता जालंधर से  हारने लगे और वह भागे भागे विष्णु भगवान के पास मदद केेे लिए गये।

लेकिन भगवान विष्णु जानते थे कि वृंदा उनकी परम भक्त है। इसलिए वो देवताओं से बोले कि वो उसके साथ छल नहीं कर सकते । लेकिन सभी देवताओं ने उनसे मदद की गुहार लगाई।तब भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धरा और वृंदा के महल में पँहुच गये ।

वृंदा ने अपने पति को देखा तो वह पूजा कक्षा से बाहर निकल आई और पति के चरणों को स्पर्श कर लिया। लेकिन जैसे ही उसने भगवान विष्णुु के चरणों को स्पर्श किया वैसे ही उसका संकल्प टूट गया।

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संकल्प टूटतेे ही युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार दिया और उसका काटा‌ सिर वृंदा के महल में आ गिरा। और ठीक उसी समय भगवान अपने असली रूप में आ।वृंदा को सारी बात समझ में आ गई और उसने भगवान को श्राप दे दिया कि “आप पत्थर के हो जाओ” और भगवान तुंरत पत्थर के हो गये।

सभी देवता हाहाकार करने लगे। लक्ष्मी जी अत्यंत दुखी हो गई और फिर सब ने मिलकर वृंदा से भगवान को श्राप मुक्त करने की प्रार्थना की। तब वृंदा ने भगवान को श्राप मुक्ति कर दिया और अपने पति का सिर लेकर सती हो गयी।

उसी राख से एक पौधा निकला जिसे भगवान विष्णु ने तुलसी नाम दिया और वहां उपस्थित सभी देवताओं से कहा “मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में सदा रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा और मैं बिना तुलसी जी के भोग स्वीकार नहीं करुंगा “।

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इसीलिए विष्णु जी की पूजा हमेशा तुलसी के पत्तों के साथ ही की जाती है।तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास की देवउठावनी एकादशी / हरिप्रबोधिनी एकादशी के दिन किया जाता हैं।इस दिन घरों व कई मंदिरों में धूमधाम से शालिग्राम और तुलसी जी का विवाह किया जाता हैं।

आप भी हरिशयनी एकादशी के दिन तुलसी का पवित्र पौधा अपने घर में जरुर लगाइये।

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