Krishna Janmashtami Festival : कृष्ण जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है

Krishna Janmashtami Festival :

Krishna Janmashtami Festival 

कृष्ण जन्माष्टमी पर्ण 

हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार ब्रह्मा जी को सृष्टि सृजनकर्ता यानि कि इस संसार की रचना करने वाला , भगवान विष्णु को पालनहार यानी जग का पालन-पोषण करने वाला तथा भगवान शिव को संहारक के रूप में माना गया है । भगवान विष्णु ने समय-समय पर अनेक रूपों में अवतार लेकर इस धरती को पापियों के पाप से मुक्त किया व अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना की है।

Krishna Janmashtami Festival

कृष्ण जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है ?

द्वापर युग में भगवान विष्णु ने अपना आठवां अवतार मथुरा में भगवान श्री कृष्ण के रूप में लिया । उन्होंने ने भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में मध्य रात्रि के समय जन्म लिया । इसीलिए उन दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है।

कहाँ नहीं कृष्ण , कण कण में कृष्ण 

श्यामवर्णी, सिर पर मोर मुकुट , तन पर पीतांबर और हाथ में मुरली लिए कृष्ण का यह रूप बहुत ही अद्भुत , अति सुंदर व मन मोह लेने वाला है । कृष्ण ने अपने जीवन में अनेक लीलाएं की।लेकिन उनके हर रूप में , हर लीला में जीवन का गहरा सार छुपा रहता है और उनका हर रूप मनमोहक होता है।

जैसे बालपन में माता से रूठने वाले कृष्ण , घुटनें बल चलते कृष्ण , गोपियों की मटकी फोड़ने वाले कृष्ण , गोपियों द्वारा माता से शिकायत करने पर माता रूठे तो , माता यशोदा को सौ बहाने बनाकर मनाने वाले कृष्ण । पूतना राक्षसी का वध करने वाले कृष्ण , कालिया नाग के फन में नाचते कृष्ण । गोपियों संग रास रचाने वाले कृष्ण , राधा संग पवित्र प्रेम का अर्थ समझाने वाले कृष्ण।

रुक्मणी संग गृहस्थ धर्म निभाते कृष्ण , होली के गीतों में कृष्ण , कंस का वध करने वाले योद्धा कृष्ण । सुरीली बांसुरी बजाते कृष्ण , गोकुल के ग्वाल-बालों के सखा कृष्ण , गाय चराते गोकुल के ग्वाले कृष्ण । सुदामा से बचपन की दोस्ती निभाते कृष्ण , द्रौपदी की भरी सभा में चीरहरण के वक्त लाज बचा कर भाई धर्म निभाते कृष्ण । अर्जुन को गीता का उपदेश देकर जगतगुरु कहलाते कृष्ण , महाभारत के युद्ध में कुशल नीति बनाते कुशलनीतिज्ञ कृष्ण।

अर्जुन के रथ के सारथी कहलाते कृष्ण , द्वारिका में राज्य करते कुशल राजनीतिज्ञ कृष्ण । सूरदास के पदों में कृष्ण , मीरा की भक्ति में कृष्ण । गीता के उपदेशों में कृष्ण , योगेश्वर कृष्ण , निष्काम कर्मयोगी कृष्ण । मार्गदर्शक कृष्ण , दूरदृष्टा कृष्ण , रासरचैया कृष्णा । हर रूप में सुंदर कृष्ण , हर रंग में मनमोहक कृष्ण…। पतित पावन अतिसुंदर कृष्ण , मनभावन कृष्ण …..!!!!  कृष्ण .. कृष्ण .. कृष्ण।

कैसे मनायी जाती हैं कृष्ण जन्माष्टमी 

कृष्ण जन्मोत्सव यानी जन्माष्टमी का यह त्यौहार भारत में हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह भारत में बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है। भारत के अलावा यह नेपाल और अमेरिका के अप्रवासी भारतीय भी इस त्यौहार को बड़े धूमधाम से , बड़े श्रद्धा व विश्वास के साथ मनाते हैं । जन्माष्टमी के दिन लोग व्रत रखते हैं।

ऐसा माना जाता है कि इस दिन  रखा जाने वाला व्रत बहुत फलदाई होता है । इसीलिए कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत को हमारे धार्मिक ग्रंथों में व्रतराज कहा जाता है यानी जितने भी व्रत किए जाते हैं उनमें सबसे श्रेष्ठ व्रत इस व्रत को माना जाता है।

जन्माष्टमी के दिन होता हैं पूजा अर्चना का विशेष महत्व

जन्माष्टमी को पूरे दिन उपवास रखा जाता है तथा रात के ठीक 12:00 बजे मंदिरों में पूजा अर्चना के बाद भगवान का अभिषेक किया जाता है। उसके बाद भक्तगण इस उपवास को पंचामृत या फलाहार लेकर खोलते हैं । पूरी रात भगवान का भजन व कीर्तन करते हुए बिताते है । इस दिन भगवान कृष्ण के बाल रूप को पालने में झुलाया जाता है । सभी मंदिरों को विशेष रुप से सजाया जाता है।

गोकुल, मथुरा में होती हैं जन्माष्टमी के दिन विशेष रौनक 

जन्माष्टमी के दिन गोकुल, मथुरा के मंदिरों के साथ-साथ कान्हा की सजावट देखते ही बनती है । भगवान कृष्ण ने अपना अधिकतर समय द्वारिका में राज्य करते हुए बिताया था। इसलिए जन्माष्टमी को द्वारिका की सजावट सबसे ज्यादा शानदार व भव्य होती है । देश विदेश से श्रद्धालु इन जगहों पर पहुंचकर इस पर्व का आनंद उठाते हैं और कृष्ण की भक्ति में पूरी तरह से डूब जाते हैं।

सूर्यास्त के बाद भजन कीर्तनों का आयोजन किया जाता है । नाच-गानों के साथ बीच-बीच में भगवान के जयकारे भी लगाते हुए पूरे पर्व का आनंद उठाया जाता है । भगवान कृष्ण को छप्पन प्रकार (56) के भोग लगाए जाते हैं जिनमें माखन , दही और मिश्री मुख्य होता है क्योंकि भगवान कृष्ण को माखन और दही बहुत प्रिय हैं।

दही हांडी की प्रतियोगिता का आयोजन

मुंबई में जन्माष्टमी के दिन दही हांडी की प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। दही की हांडी को काफी ऊंचाई पर लटका दिया जाता है जिसमें नवयुवक टोली में आकर मानव पिरामिड बनाकर इस दही-हांडी को तोड़ने का प्रयास करते हैं जो टोली इस दही-हांडी को तोड़ने में सफल होती है । उस टीम को आयोजकों द्वारा पुरस्कृत किया जाता है।

और देशभर में जन्माष्टमी के दिन कृष्ण जीवन लीला से संबंधित अनेक झांकियां भी निकाली जाती हैं । यह वाकई में जीवन को नए नये उत्साह व उमंग से भर कर सकारात्मक सोच देने वाला पर्व है।

जन्माष्टमी का महत्व

कृष्ण जन्माष्टमी वैसे तो हिंदुओं का त्यौहार है  जिसे हिंदू धर्म में बड़े ही आस्था व  विश्वास के साथ मनाया जाता है लेकिन आज के समय में कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व कई गुना बढ़ जाता है क्योंकि कृष्ण का पूरा जीवन ही आज की समस्त मानव जाति के लिए प्रेरणा का स्रोत है। 

उन्होंने अपने जीवन काल में जितनी भी लीलाएँ रची । वो सब इंसानी जीवन को प्रेरणा देते हैं। चाहे वह बचपन में ग्वाल बाल संग रास रचाना हो  या राधा से पवित्र प्रेम करना हो । होली के रंगों में डूब जाना हो या दुष्ट कंस की गुलामी से अपने माता-पिता को आजाद कर कंस का वध करना हो । सभी प्रेरणा देते हैं। 

भरी राज सभा में द्रौपती का चीर हरण होने से बचाना , महिलाओं को सम्मान देने का मर्म ज्ञान देता है। उनके द्वारा दिए गए गीता के उपदेश आज भी दुनिया को अमन और शांति की राह पर चलने को अग्रसर करते हैं। 

कृष्ण द्वारा दिए गये गीता के उपदेश दुनिया को देते सन्देश  

कृष्ण द्वारा अर्जुन को रणभूमि में दिए गए गीता के उपदेशों में उन्होंने कर्म की महत्वता को विस्तार से समझाया है। मनुष्य को अपने कर्तव्य का पालन (या कर्म को) पूर्ण निष्ठा के साथ करने का पाठ भी पढ़ाया है। गीता के उपदेशों में जीवन का गहरा सार छुपा हुआ है।गीता में कर्मयोग , भक्तियोग , राजयोग तथा एक ईश्वरवाद के बारे में विस्तार से समझाया गया है। आज भी ये उपदेश मानव जाति का मार्ग प्रशस्त करते हैं  और आज पूरी दुनिया में गीता के इन प्रसिद्ध उपदेशों को पढ़ा एवम समझा जाता है।

जन्माष्टमी के दिन ही लिया कृष्ण ने अवतार 

द्वापर युग में भगवान विष्णु ने अपना आठवां अवतार मथुरा में भगवान श्री कृष्ण के रूप में लिया। उन्होंने ने भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में मध्य रात्रि के समय जन्म लिया।  द्वापर युग में भोजबंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करता था । लेकिन उसके बेटे कंस ने उससे राजगद्दी छीन ली और खुद मथुरा का राजा बन बैठा । कंस की एक छोटी बहन देवकी थी जिसकी शादी वासुदेव से हुई।

जब वह अपनी बहन को ससुराल विदा करने जा रहा था तभी आकाशवाणी हुई कि ” हे‌ ! कंस जिस बहन को तू इतने प्यार से विदा कर रहा है।उसका आठवां पुत्र ही तेरा काल बनेगा /  तेरी मृत्यु का कारण बनेगा”। यह सुनकर कंस गुस्से से आग बबूला हो गया और अपने बहनोई वासुदेव को मार डालने को उतावला हो गया लेकिन तभी देवकी ने कंस से विनयपूर्वक कहा कि वह अपने सभी बच्चों को जन्म लेते ही उसे सौंप देगी । इस पर कंस ने देवकी और वासुदेव दोनों को मथुरा के कारागार में डाल दिया।

कारागार में लिया जन्म

समय बीतता गया । देवकी ने एक के बाद एक अपने सातों बच्चों को कंस के हवाले कर दिया और जिन्हें कंस ने मार डाला। आठवें बच्चे के रूप में अवतार लेने से पहले भगवान विष्णु कारागार में देवकी और वासुदेव के सामने प्रकट हुए और उन्होंने देवकी और वासुदेव को बताया कि वही उनके घर पुत्र रूप में जन्म लेंगे । उन्होंने वासुदेव को कहा कि वो नवजात बालक को अपने मित्र नंद के यहां वृंदावन में छोड़ आए।और फिर भगवान विष्णु ने भगवान श्री कृष्ण के रूप में मथुरा के कारागार में अवतार लिया।

कृष्ण जन्म के वक्त घनघोर बारिश हो रही थी। लेकिन भगवान का अद्भुत चमत्कार देखिए कि वासुदेव के हाथों और पैरों की हथकड़ीयों खुद-ब-खुद खुल गई । सारे पहरेदार सो गए और बासुदेव भगवान कृष्ण को सूप में बिठाकर यमुना नदी पार करने लगे। लेकिन यमुना नदी का जलस्तर बढता ही जा रहा था और बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी । तभी शेषनाग ने आकर बारिश से भगवान कृष्ण को बचाने के लिए उनके ऊपर अपना फन फैला दिया तथा यमुना नदी ने भी भगवान श्री कृष्ण के पैर छूयें और फिर नदी का जलस्तर भी घटने लगा।

नन्द बाबा के आँगन में पले कृष्ण

वासुदेव गोकुल पहुंच गए।संयोगवश उसी समय गोकुल में नंद की पत्नी यशोदा ने भी एक बच्ची को जन्म दिया था । वासुदेव ने भगवान कृष्ण को यशोदा के बगल में सुला दिया और बच्ची को लेकर वह वापस मथुरा के कारागार में आ गए । अगले दिन कंस को आठवें बच्चे के जन्म के बारे में बताया गया तो कंस कारागार आ पहुंचा । उसने बच्ची को देवकी से छीनकर मारने की कोशिश की लेकिन बच्ची उसके हाथ से छूटकर हवा में अंतर्धान हो गई । तभी एक भविष्यवाणी हुई ” हे ! कंस तुझे मारने वाला पैदा हो चुका है अब तेरा अंत निश्चित है।”।

कृष्ण ने किया कंस का वध 

बड़े होकर कृष्ण ने कंस का वध किया तथा अपने माता-पिता देवकी और वासुदेव को कारागार से मुक्त किया । उसके बाद युवावस्था में भगवान श्री कृष्ण ने सौराष्ट्र में द्वारिका नगरी बसाई । द्वारिका(यानि मोक्ष का द्वार) में महल सोने , चांदी व माणिक्य से जड़ित बनाए गए थे । द्वारिका में भगवान कृष्ण ने जीवनपर्यंत राज्य किया । ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण के इस संसार से बैकुंठ धाम जाने के बाद पूरी द्वारिका नगरी जलमग्न हो गई थी।

आप सब को कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें। ………

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