Mission Chandrayaan 2 :
इसरो ने किया चंद्रयान-2 का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण
Mission Chandrayaan 2
22 जुलाई 2019 का दिन भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हो गया है क्योंकि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो / ISRO) ने 22 जुलाई 2019 को दोपहर 2:43 मिनट पर चंद्रयान-2 का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से किया गया जो प्रक्षेपण के सिर्फ 16 मिनट बाद ही सफलतापूर्वक पृथ्वी की कक्षा में स्थापित हो गया।
चंद्रयान-2 को देश के सबसे ताकतवर व बाहुबली के नाम से प्रसिद्ध जीएसएलवी-मार्क-3 एम-1 (GSLV MK3 M1) रॉकेट से चाँद में भेजा गया।
स्वदेशी तकनीकी से बना है चंद्रयान-2
चंद्रयान-1 के बाद चंद्रयान-2 भारत का दूसरा चंद्र अभियान है जिसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो/ISRO) ने खुद विकसित किया है।यह पूरी तरह से स्वदेशी है। इस अभियान में भारत में निर्मित एक चंद्र कक्षायान (ऑर्बिटर) , एक रोवर (प्रज्ञान) और एक लैंडर (विक्रम) शामिल हैं।इन सबका निर्माण इसरो द्वारा ही किया गया है।
चंद्रयान-2 स्वदेशी तकनीक पर आधारित दुनिया का अभी तक का सबसे सस्ता मून मिशन है। इस पर करीब 140 मिलीयन डॉलर का खर्चा आया।
चंद्रयान-2 पूर्ण स्वदेशी
चंद्रयान-2 को पूरी तरह से हमारे वैज्ञानिकों ने डिजाइन व विकसित किया है।यहां तक कि इसका सॉफ्टवेयर भी हमारे ही वैज्ञानिकों ने बनाया है।
मिशन का मुख्य उद्देश्य
चंद्रयान-2 का मुख्य उद्देश्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर की सॉफ्ट ,सफल और सुरक्षित लैंडिग करना तथा चाँद की सतह का अध्ययन करना है।इसरो ने कहा है कि “हम वहां की चट्टानों को देखकर उनमें मैग्निशियम, कैल्शियम, एलमुनियम, सिलिकॉन, सोडियम और लोहे जैसे खनिज तत्वों व अन्य रसायनों को खोजने का प्रयास करेंगे।
इसके साथ ही वहां पानी होने के संकेतों की संभावनाओं की भी तलाश करेंगे।साथ ही साथ चाँद की बाहरी परत की भी जांच तथा वहाँ के वातावरण का अध्ययन करेगे।चंद्रमा का नक्शा तैयार करेगें जिससे चंद्रमा के अस्तित्व, उसके विकास का पता लगाने में सहायता मिलेगी। इसका मकसद चंद्रमा के प्रति जानकारी जुटाना है।यह ऐसी खोज होगी जिससे भारत के साथ-साथ पूरी मानवता का फायदा होगा”।
मिशन की खास बात
इस मिशन की खास बात यह है कि हमारे वैज्ञानिकों ने चाँद पर भी वह जगह चुनी जहां पर अभी तक दुनिया का कोई देश नहीं पहुंचा है।और यह जगह है चाँद का दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र।चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर कई जोखिम है जिस कारण वहाँ अभी तक कोई भी अंतरिक्ष एजेंसी नहीं उतरी है।चाँद के दक्षिणी ध्रुव में ज्वालामुखी और उबड़-खाबड़ जमीन है और यहां उतरना जोखिम भरा है।
लैंडिंग के दौरान यान भी 15 मिनट तक इस खतरे का सामना करेगा। 3,844 लाख किलोमीटर दूर चाँद से धरती पर कोई भी संदेश पहुंचने में समय लगेगा।सोलर रेडिएशन का भी यान पर असर पड़ सकता है।वहां सिग्नल कमजोर हो सकते हैं।
चांद का दक्षिणी ध्रुव ही क्यों ? (Why South Pole of Moon)
ऐसा माना जाता है कि चांद का यह दक्षिणी ध्रुव खनिजों और पानी से भरपूर है। यहां पर यूरेनियम , मैग्नीशियम और टाइटेनियम आदि बहुमूल्य धातु के भंडार हैं।वहां सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए भी पर्याप्त अवसर मौजूद हैं।यह बहुमूल्य खनिज एक दिन पृथ्वी के काम आ सकते हैं।
चंद्रमा के अन्य हिस्सों की तुलना में यहां पर अधिक छाया होने के कारण यहां पर बर्फ के रूप में पानी होने की संभावना अधिक है।यह हिस्सा लगभग 14 दिन तक अँधेरे में रहता है।इस हिस्से पर सूरज की रोशनी न पड़ने के कारण ठंड अधिक रहती है।
डॉ के सिवन मिशन चंद्रयान 2 के मुख्या (Rocket Man Of India)
चंद्रयान-2 का सफल प्रक्षेपण इसरो प्रमुख डॉ. कैलासावादिवू सिवन की अगवाई में हुआ।जो वर्तमान में इसरो के नवें अध्यक्ष हैं।विभिन्न सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल और क्रायोजेनिक इंजन के विकास में योगदान के लिए इन्हें “रॉकेट मैन”की उपाधि से भी नवाजा गया है।
चंद्रयान-2 मिशन की शुरुवात
12 नवंबर 2007 को इसरो और रूसी अंतरिक्ष एजेंसी (रोसकोसमोस) के प्रतिनिधियों ने चंद्रयान-2 परियोजना पर साथ काम करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।ऑर्बिटर और रोवर को बनाने की जिम्मेदारी इसरो ने ली,जबकि रोसकोसमोस ने लैंडर को विकसित करने की।
भारत सरकार ने 18 सितंबर 2008 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में आयोजित केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इस अभियान को स्वीकृति दी थी।अंतरिक्ष यान के डिजाइन को अगस्त 2009 में पूर्ण कर लिया था जिसमें दोनों देशों के वैज्ञानिकों का योगदान रहा।
परंतु अभियान को जनवरी 2013 में किसी कारणवश स्थगित कर दिया गया।बाद में रूस ने इस अभियान से अपने को अलग कर लिया।क्योंकि रूस लैंडर को समय पर विकसित करने में असमर्थ था।फिर इसरो ने इस अभियान को खुद अपने दम पर आगे बढ़ाने का फैसला लिया।
चंद्रयान-2 का कार्य चार चरणों में पूरा होगा
- जीएसएलवी-मार्क 3 एम-1 भारत का बाहुबली रॉकेट चंद्रयान-2 को पृथ्वी की कक्षा तक ले जाएगा।
- ऑर्बिटर जो चंद्रमा की कक्षा में साल भर तक चक्कर लगाएगा। इसका मुख्य उद्देश्य पृथ्वी और लैंडर से संपर्क रखना है।ऑर्बिटर चांद की सतह का नक्शा भी बनाएगा।
- लैंडर (विक्रम) जो ऑर्बिटर से अलग होकर चांद की सतह पर उतरेगा।
- रोवर(प्रज्ञान) छह पहियों वाला यह रोबोट लैंडर से बाहर निकलेगा और 14 दिन तक चांद की सतह पर चलेगा।और चांद पर खनिज तत्वों की मौजूदगी का पता लगाएगा।
चंद्रयान-2 की कार्य अवधि
चंद्रयान-2 में ऑर्बिटर करीब 1 साल तक कार्य करेगा। जबकि लैंडर (विक्रम) और एक रोवर (प्रज्ञान) का मिशन एक लूनर डे यानि धरती के हिसाब से 14 दिन में पूरा हो जाएगा।
जीएसएलवी मार्क 3 (GSLV MK3 M1)
640 टन वजनी जियोसिंक्रोनस लॉन्च व्हीकल मार्क-3 रॉकेट भारत का सबसे शक्तिशाली राकेट है।यह “बाहुबली” नाम से लोकप्रिय है।लेकिन इसरो ने इसे “फैट बॉय यानी मोटा लड़का” नाम दिया है।इसे पूरी तरह से देश में ही बनाया गया है।इस रॉकेट को बनाने में 375 करोड़ की लागत आयी।
जीएसएलवी-मार्क 3 एम-1 चंद्रयान-2 को चंद्रमा की कक्षा तक ले जाएगा।इसे बाहुबली नाम दिया गया है।क्योंकि इसमें 4000 किलो वजनी उपकरण और उपग्रह को अंतरिक्ष में ले जाने की क्षमता है।इससे दो गुना वजन यह पृथ्वी की निचली कक्षा में 600 किलोमीटर की ऊंचाई पर ले जा सकता है।43.43 मीटर ऊंचा यह लॉन्चर चंद्रयान-2 को तीन चरण में अपने क्रायोजेनिक इंजन और दोनों बूस्टरों की मदद से चाँद तक ले जाएगा।
इस राकेट में 3-stage लांचर दिए गए हैं जिसमें S2000 सॉलि़ड रॉकेट बूस्टर, L110 लिक्विड स्टेट,और C25 अपर स्टेज शामिल हैं।लांच के समय धरती से चाँद की दूरी करीब 3.84 लाख किलोमीटर होगी।
3 स्टेज का यह रॉकेट 4000 किलोग्राम के उपग्रह को 35,786 किमी से लेकर 42,164 किमी की ऊंचाई पर स्थित जियोसिंक्रोनस आर्बिट में पहुंच सकता है।या फिर 10,000 किलो के उपग्रह को 160 से 2000 किमी की लो अर्थ आर्बिट पर पहुंचा सकता है।इस रॉकेट के जरिए 5 जून 2017 को जीसेट-19 और 14 नवम्बर 2018 को जीसेट- 29 का सफल प्रक्षेपण किया गया था।
अंतरिक्ष यान
उड़ान के समय इसका वजन लगभग 3250 किलोग्राम होगा।
चंद्रयान-2 के कार्य
रॉकेट में तीन मॉड्यूल है ऑर्बिटर , लैंडर, रोवर और तीनों के अलग-अलग कार्य हैं।
ऑर्बिटर
ऑर्बिटर 100 किलोमीटर की ऊंचाई पर चंद्रमा की एक साल तक परिक्रमा करेगा।इस अभियान में ऑर्बिटर में कुल 8 पेलोड भेजे गये है।जिनमें 5 भारत के है।भारत द्वारा भेजे गये 5 पेलोड में से 3 नये हैं जबकि दो चंद्रयान-1 में भेजे गये पेलोड का अपडेटेड रूप हैं।
उड़ान के समय इसका वजन लगभग 1400 किलोग्राम होगा।ऑर्बिटर में एक हाई रिजांल्यूशन कैमरा लगा है जो लैंडर के ऑर्बिटर से अलग होने से पहले ही लैंडिंग वाली जगह की तस्वीर खींचकर भेजेगा।ये पेलोड चांद की सतह का अध्ययन करेंगे तथा चंद्रमा के वातावरण के बारे में जानकारी हासिल करेंगे।
2379 किलो वजनी ऑर्बिटर चंद्रमा की कक्षा में 1 वर्ष तक परिक्रमा करेगा।ऑर्बिटर सूर्य की किरणों से 1000 वाट बिजली पैदा कर सकता है।ऑर्बिटर चंद्रमा के चारों तरफ चक्कर लगाते हुए विक्रम और प्रज्ञान से मिले डाटा व चंद्रमा पर अपने अध्ययन को बेंगलुरु में स्थित इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क (IDSN) में भेजेगा।
लैंडर (विक्रम)
लैंडर विक्रम का यह नाम भारतीय खगोल कार्यक्रम के पितामह कहे जाने वाले “डॉक्टर विक्रम साराभाई” के नाम पर रखा गया है। विक्रम लैंडर का वजन 1471 किलोग्राम है जो 650W की इलेक्ट्रिक पावर जनरेटर सकता है। यह वहां पर पूरे एक चंद्र दिवस काम करेगा जो हमारे 14 दिन के बराबर होता है।इसमें भी (IDSN) से सीधे संपर्क करने की क्षमता है।
और यह ऑर्बिटर और रोवर को भी सीधे सूचनाएं भेजेगा।लैंडर चंद्रमा में भूकंप आते हैं या नहीं , इसका भी पता लगाएगा । वहां का तापमान और चंद्रमा का घनत्व कितना है और चांद की सतह के रासायनिक पदार्थों,तापमान और वातावरण में आद्रता है कि नहीं।चंद्रमा की सतह व उपसतह पर कितने भाग में पानी है की भी जांच करेगा।
रोवर (प्रज्ञान)
रोवर का डिजाइन व निर्माण इसरो ने किया है।रोवर का वजन कुल 27 किलोग्राम है।जो 50 वाट की इलेक्ट्रिक पावर जनरेट कर सकता है।सौर ऊर्जा द्वारा संचालित रोवर चंद्रमा की सतह पर छह पहियों के द्वारा धीरे-धीरे चलेगा।यह 500 मीटर तक ट्रेवल कर सकता है।6 पहियों वाले रोवर की चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग की जाएगी और यह अपने कार्य करने के लिए पूरी तरह से सोलर ऊर्जा पर निर्भर रहेगा।यह वहाँ की मिट्टी व चट्टान के नमूने इकट्ठे करेगा।
यह चंद्रमा में मिले तत्वों का एक्सरे व लेजर से विश्लेषण करेगा और डाटा को ऊपर ऑर्बिटर के पास भेज देगा।जहां से ऑर्बिटर ये सभी डेटा को पृथ्वी में भेज देगा।रोवर पृथ्वी से सीधे सम्पर्क में नही रहेगा।रोवर पर 2 पेलोड भेजे जाएंगे जो चंद्रमा पर जाकर एडवांस टेस्ट करेंगे।
चांद की सतह में पहुंचने के बाद विक्रम और प्रज्ञान 14 दिनों तक एक्टिव रहेंगे।रोवर इस दौरान 1 सेंटीमीटर प्रति सेकंड की गति से चांद की सतह चलेगा और उसके तत्वों की स्टडी करेगा और तस्वीरें भेजेगा।वह वहां 14 दिनों में कुल 500 मीटर ही चलेगा।
पेलोड
स्वदेशी चंद्रयान में कुल 13 पेलोड भेजे जाएंगे जिसमें से ऑर्बिटर पर आठ ,लैंडर पर तीन पेलोड और रोवर पर दो पेलोड होंगे।इनमें से तीन यूरोप,दो अमेरिका और एक बुल्गारिया के हैं।
चंद्रयान-2 के धरती से चाँद तक के सफर पर एक नजर
चंद्रयान-2 को सबसे शक्तिशाली रॉकेट जीएसएलवी मार्क3 एम-1 (GSLV-Mk-3 M-1) से 22 जुलाई को लांच किया गया।चंद्रयान 22 जुलाई से 13 अगस्त तक पृथ्वी की कक्षा का चक्कर लगाएगा।13 अगस्त से 19 अगस्त तक चांद की तरफ जाने वाली लंबी कक्षा में यात्रा करेगा।19 अगस्त को चंद्रयान-2 चांद की कक्षा में पहुंचेगा।
13 दिन तक यानी 31 अगस्त तक चांद के चक्कर लगाएगा।13 दिन के बाद 1 सितंबर को विक्रम ऑर्बिटर से अलग होकर चाँद के दक्षिणी ध्रुव की तरफ अपनी यात्रा शुरू करेगा।लैंडर चंद्रमा पर लगभग 70 डिग्री दक्षिण के अक्षांश पर स्थित दो क्रेटरों मजिनस-सी और सिमपेलियस-एन के बीच एक उच्च मैदान में उतरने का प्रयास करेगा।
चांद की सतह के नजदीक पहुंचने पर लैंडर (विक्रम) अपनी कक्षा बदलेगा। फिर वह उस जगह को स्केन करेगा जहां उसे उतरना है।ठीक पांच दिन के बाद यानि 6-7 सितंबर को लैंडर विक्रम चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड कर चांद की सतह को छुयेगा।लैंडिंग के बाद विक्रम का दरवाजा खुलेगा और रोबोट प्रज्ञान को रिलीज करेगा।
लैंडर विक्रम के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग के 4 घंटे बाद रोवर प्रज्ञान लैंडर से निकलकर चांद की सतह पर उतरेगा और यह फिर वैज्ञानिक परीक्षणों के लिए चाँद की सतह पर अपना कार्य शुरू कर देगा।इसके बाद 15 मिनट के अंदर ही लैंडिंग की तस्वीरें मिलनी शुरू हो जाएंगी।इस पूरी प्रक्रिया में 48 दिनों का वक्त लगेगा।
इस मिशन का सबसे कठिन हिस्सा है चांद की सतह पर सफल और सुरक्षित,सॉफ्ट लैंडिंग कराना। चंद्रयान-2 चंद्रमा की सतह से 30 किलोमीटर की ऊंचाई से नीचे आएगा और उसे चंद्रमा की सतह पर आने में करीब 15 मिनट लगेंगे।
डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा
2003 में जब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान (इसरो) के वैज्ञानिक डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम से मिलने राष्ट्रपति भवन गये थे क्योंकि कलाम उस वक्त देश के राष्ट्रपति थे।वैज्ञानिक उस वक्त चंद्रयान-1 मिशन भेजे जाने की योजना बना रहे थे।
उस वक्त वैज्ञानिकों से डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा था कि “जब चाँद का चक्कर लगा सकते हैं तो वहां यान उतारा भी जा सकता है।एक दिन ऐसा आयेगा।जब देश इस उपलब्धि को हासिल कर लेगा।यह किसी रोशनी भर देना जैसे होगा।इससे पूरा देश रोशन होगा।खास तौर से युवा वैज्ञानिकों और बच्चों के बीच यह बेहद उत्साह भरने वाला होगा”।
चन्द्रमा में नील आर्मस्ट्रांग के कदम रखने की 50वी सालगिरह
20 जुलाई 1969 को अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग चंद्रमा पर पैर रखने वाले पहले अंतरिक्ष यात्री बने थे। 20 जुलाई 2019 को इंसान के चन्द्रमा पर कदम रखने के 50 साल पूरे हो जाएंगे।
चंद्रयान 2 बनाने की लागत
चंद्रयान-2 को बनाने में करीब 978 करोड रुपए की लागत आई है।यह पूर्ण तरह से स्वदेशी है।
भारत चाँद पर रोवर उतारने वाला चौथा देश
अगर यह मिशन सफल हुआ तो अमेरिका ,रूस और चीन के बाद भारत चाँद पर रोवर उतारने वाला चौथा देश बन जायेगा।वैसे अभी तक चाँद पर सिर्फ पांच देश ही सॉफ्ट लैंडिंग करा पाए हैं। अमेरिका रूस , यूरोप, चीन और जापान।इस मिशन के सफल होने के बाद भारत छठा देश होगा।
मिशन में दो महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका
चंद्रयान-2 की सफलता में इसरो की दो महिला वैज्ञानिकों की अहम भूमिका रही।जिनमें मिशन डायरेक्टर रितु करिघाल और परियोजना निदेशक एम.वनिता हैं ।
कुछ खास तथ्य
- चंद्रयान-2, 23 दिनों तक पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए चाँद की तरफ बढ़ेगा यानि 23 दिनों तक पृथ्वी की कक्षा में रहेगा चंद्रयान।इस दौरान चंद्रयान की अधिकतम गति 10 किलोमीटर प्रति सेकंड और न्यूनतम गति 3 किलोमीटर प्रति सेकंड होगी।
- चंद्रयान-2 पृथ्वी के चारों तरफ चार चक्कर लगाएगा।
- प्रक्षेपण के तीसवें (30वें) दिन चंद्रयान पृथ्वी की कक्षा से निकलकर चांद की कक्षा में प्रवेश करेगा।और यहां पर यह 13 दिनों तक रहेगा।इस दौरान चंद्रयान की अधिकतम गति 10 किलोमीटर प्रति सेकंड और न्यूनतम गति 4 किलोमीटर प्रति सेकंड होगी।
- चंद्रयान-2 चांद में पहुंचने में 48 दिन का समय लेगा।यानी चंद्रयान-2 प्रक्षेपण के ठीक 48 दिन बाद यानि 6-7 सितंबर को चांद की सतह को छुयेगा।
- चंद्रयान-2 की अंतरिक्ष में गति 10305.78 मीटर प्रति सेकंड होगी।
- ऐसा माना जा रहा है कि चंद्रमा पर हीलियम-3 का एक मिलियन मीट्रिक टन का भंडार है। इसका एक चौथाई ही धरती पर लाया जा सकता है।इससे 500 साल तक पृथ्वी की ऊर्जा जरूरत पूरी हो सकती है।डॉ सिवन ने कहा कि ” जो देश इसे लाएगा,वह इस पूरी प्रक्रिया में राज करेगा”।
मिशन में रुकावट
भारत ने चंद्रयान-2 को 15 जुलाई 2019 को प्रक्षेपण करने की योजना बनायी थी।लेकिन थोड़ी तकनीकी गड़बड़ी के कारण से इसका प्रक्षेपण रोक दिया गया।अब इसका प्रक्षेपण 22 जुलाई 2019 को सफलतापूर्वक किया गया है।
रुकावट की वजह
15 जुलाई को लॉन्चिंग से करीब 56.24 मिनट पहले इसरो ने चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग रोक दी थी।जिस समय लॉन्चिंग रोकी गई थी वह समय काउंटडाउन का आखिरी चरण था।इसरो के मुताबिक कुछ मिनट पहले ही रॉकेट के क्रायोजेनिक इंजन में तरल हाइड्रोजन भरा गया था।
इसकी वजह से क्रायोजेनिक इंजन और चंद्रयान-2 को जोड़ने वाले लॉन्च व्हीकल का प्रेशर लीकेज हो गया।और यह तय सीमा पर स्थिर नहीं हो पा रहा था।लॉन्च के लिए जितना प्रेशर होना चाहिए उतना नहीं हो पा रहा था।और यह प्रेशर लगातार घटता जा रहा था। इसीलिए चंद्रयान 2 की लॉन्चिंग को ऐन वक्त पर रोक दिया गया।
लॉन्च के करीब 56 मिनट पहले इसरो के वैज्ञानिकों ने पाया कि एक हीलियम टैंक में दबाव कम है।और ऐसा टैंक में लीक होने की वजह से हुआ है।यह तब हुआ जब इस टैंक में क्रायोजेनिक ईंधन भरा जा रहा था।दरअसल यह ईधन बहुत अधिक ठंडा होता है।यह माइनस 100 डिग्री सेल्सियस से नीचे होता है।कम तापमान होने के चलते इसके आसपास का तापमान भी गिर गया था।इसीलिए लॉन्चिंग को कुछ समय के लिए टाल दिया गया।
लांच विंडो
लॉन्चिंग अगर 22 जुलाई 2019 को नहीं हो पाती तो यह 3 महीने के लिए टल जाती।अगला लॉन्च विंडो अक्टूबर में मिलने की संभावना थी।लांच विंडो उस उपयुक्त समय को कहा जाता है जब पृथ्वी से चांद की दूरी कम होती है।और रॉकेट की दूसरे उपग्रहों से टकराने की संभावना भी कम होती है।
चंद्रयान-2 की सफलता हमारे देश के उन महान कठोर परिश्रमी वैज्ञानिकों की अथक मेहनत का नतीजा है जिन्होंने न सिर्फ चाँद को देखने व छूने का बल्कि उस पर रोबोट भेजकर वहां की हर चीज के बारे में जानने का सपना देखा और उसे साकार भी किया।और इस मिशन के बाद उनका अगला मिशन चाँद पर इन्सान भेजने का हैं।हमारा नमन व सलाम हैं ऐसे महान वैज्ञानिकों को जिन्होंने हमें भी चंदा मामा पर पहुंचने के सपने दिखाये है।
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