Motivational Story For Kids In Hindi : हिन्दी कहानी संग्रह
Motivational Story For Kids In Hindi
हिन्दी कहानी संग्रह
कहानी – 1
दुष्ट सियार
एक जंगल में एक सियार रहता था। वह बहुत ही चालाक व दुष्ट प्रवृत्ति का था।सभी उसकी दुष्टता से परिचित थे।एक दिन उसने एक जंगली खरगोश का शिकार किया। जब वह खरगोश को खा रहा था तो अचानक खरगोश की एक हड्डी उसके गले में जाकर चुभ गई।
उसने उसे निकालने का बहुत प्रयास किया लेकिन वह गले से उस हट्टी को नहीं निकाल पा रहा था। जिस वजह से उसे असहनीय दर्द हो रहा था। वह दर्द से छटपटा ही रहा था कि , तभी उसकी नजर पास पर दाना चूकते एक सारस पर पड़ गई। सियार के कुटिल दिमाग में एक युक्ति आ गई।
वह दौड़कर सारस के पास गया और सारस से मदद मांगने लग गया। उसने सारस से कहा “भाई आपकी गर्दन व चोंच बहुत लंबी है। आप अपनी लंबी चोंच का प्रयोग कर मेरे गले में फंसी हड्डी को निकाल दीजिए। मुझे बहुत दर्द हो रहा है। मैं आपका उपकार जीवन भर नहीं भूलूंगा”।
सारस भी जानता था कि सियार बहुत ही दुष्ट है। सारस ने कहा “नहीं भाई , मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता। जैसे ही मैं तुम्हारे गले से हड्डी निकालूंगा , वैसे ही तुम मुझे मार कर खा जाओगे”। सियार ने कहा “नहीं , मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगा”। सारस को सियार की बात पर विश्वास नहीं था।
लेकिन सियार ने काफी अनुनय विनय के बाद सारस को अपनी मीठी मीठी बातों में फंसा ही लिया। जिसकी वजह से अंत में सारस अपनी लंबी चोंच से सियार के गले की हड्डी निकालने को तैयार हो गया। इसके बाद सियार ने अपना मुंह खोला। सारस ने अपनी लम्बी चोंच डाल कर उसके गले से हड्डी निकाल दी।गले से हड्डी के निकलते ही सियार सारस पर झपटा और उसे मारकर खा गया।
Moral Of The Story
दुष्ट व्यक्तियों पर कभी भी भरोसा नहीं करना चाहिए।ऐसे व्यक्ति कभी भी किसी के साथ भी विश्वासघात कर अपना स्वार्थ सिद्ध करने में जरा भी संकोच नहीं करते हैं।
कहानी – 2
सोने का घड़ा
एक गांव में एक किसान रहता था।किसान का भरा पूरा परिवार था जिसमें चार बेटे , बहू व पोते पोतियों थी। वह अपने परिवार के साथ सुखी जीवन व्यतीत करता था। किसान के पास गांव में अत्यधिक जमीन थी जिनमें अच्छी खासी फसल उगती थी। जिन्हें बेचकर किसान के घर का खर्चा आराम से चलता था।
धीरे-धीरे समय बीतता गया। अब किसान बूढ़ा हो चला। अब किसान से खेती बाड़ी का काम नहीं होता था। किसान के चारों बेटे निकम्मे थे। वो दिन भर घर में बैठे आराम ही फरमाते रहते थे।
किसान यह देख कर बहुत दुखी था। उसने अपने बेटों को कई बार समझाने की कोशिश की।लेकिन बेटे उसकी बात को अनसुना कर देते थे। एक दिन जब किसान को लगा कि अब उसका अंतिम वक्त आ गया है।
उसने अपने चारों बेटों को अपने पास बुलाया और उनसे कहा कि “बेटा , मैंने खेत में सोने के घड़े दबा रखे हैं। जो रुपये , सोने , चांदी के जेवरातों आदि से भरे हैं। मेरे मरने के बाद तुम उन घड़ों को खेत से निकाल लेना और उन जेवरातों को आपस में बांट लेना”। यह कहकर किसान स्वर्ग सिधार गया।
अब किसान के बेटे खेत में गए। लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि पिता ने खेत में घड़े कहां छुपा रखे हैं।लेकिन वह उन घड़ों को पाने के लिए लालायित थे। इसीलिए चारों ने मिलकर सभी खेतों को खोदने का निश्चिय किया।
उन्होंने खेतों को खोदना शुरू किया और एक एक कर उन्होंने सारे खेत खोद डाले। लेकिन उन्हें सोने के घड़े कहीं नहीं मिले।सब हताश निराश होकर एक जगह बैठे ही थे। तभी सबसे छोटे भाई ने बड़े भाई से कहा ” भाई , हमने सारे खेत खोद तो दिये ही हैं। क्यों न , हम इनमें बीज भी डाल दें। कुछ नहीं तो थोड़ा अनाज ही पैदा हो जाएगा। “
सब ने उसकी बात मान ली और चारों ने मिलकर खेतों में बीज ,पानी और खाद डाल दिया और फिर चारों मिलकर उन खेतों की देखभाल करने लगे।
समय बीता। उन खेतों में फसल लहलहा उठी और एक दिन फसल कटने को तैयार हो गई। फसल कट कर जब घर आयी तो अनाज से घर के सभी भंडार भर गए।उन्होंने उस अनाज को बेचकर खूब पैसे कमाये। उस दिन उनकी समझ में “पिता के सोने के घड़ों का रहस्य” आ गया।
इसके साथ ही चारों ने निश्चय किया कि अब वो अपने खेतों पर जाकर खूब मेहनत से काम कर हर साल अनाज के रूप में खूब सोना उगाएंगे।
Moral Of The Story
मेहनत का कोई विकल्प नहीं है। मेहनत करने पर सफलता अवश्य प्राप्त होती है।
कहानी – 3
उपकार
एक खेत में दो पेड़ थे जिनमें से एक पेड़ काफी हरा भरा व मीठे मीठे फलों से लदा हुआ था। जिसमें अनेक तरह के पक्षी अपना घोंसला बनाकर रहते थे। वह पेड़ हमेशा पक्षियों के मधुर कलरव से गुंजायमान रहता था।
लेकिन उसके पास पर ही एक दूसरा पेड़ था।जो बिल्कुल सूख चुका था और जिस में हरियाली का कोई नामोनिशान नहीं था।उस पेड़ की एक सुखी डाल पर एक कबूतर बहुत उदास बैठा हुआ था।
एक बार ब्रह्माजी घरती पर घूमने आए।घूमते-घूमते उन्होंने उस सूखे पेड़ पर बैठे उस उदास कबूतर को देखा , तो उन्होंने उसके पास जाकर उससे पूछा कि “तुम इस सूखी डाल पर उदास क्यों बैठे हो ।पास पर ही हरा भरा , मीठे फलों से लदा हुआ पेड़ है ।तुम उस पेड़ पर जाकर क्यों नहीं रहते हो।
कबूतर बोला “मेरा घोंसला इसी पेड़ पर है। इसलिए मैं इस पेड़ को छोड़कर नहीं जा सकता “। इस पर ब्रह्माजी ने कबूतर से कहा “तुम अपना घोंसला उसी पेड़ पर बना लो”।
कबूतर ने बड़े ही उदास मुद्रा में ब्रह्मा जी को जवाब दिया “हे प्रभु !! कभी यह पेड़ भी हरा-भरा , फूल पत्तियों व फलों से लदा रहता था ।तब इस पेड़ में भी अनेक पक्षी रहते थे ।और यही पेड़ हम सब पक्षियों के बच्चों का घर भी था और उनका पेट भी भरता था।
लेकिन समय बदला। आज इस पेड़ की हालत ऐसी हो गई है ।जैसे ही यह पेड़ सूखने लगा। सारे पक्षी एक-एक कर इस पेड़ को छोड़कर जाने लगे।
लेकिन प्रभु मुझे पता है। इस पेड़ ने मुझे और मेरे बच्चों को भी छांव दी है ।मैं इस पेड़ का उपकार नहीं भूल सकता हूं। इसीलिए मैं इस पेड़ को छोड़कर नहीं जाना चाहता हूं।
यह बात सुनकर ब्रह्मा जी बहुत खुश हुए ।उन्होंने कबूतर से कहा “मैं तुम्हारे इस सच्चे प्रेम से प्रसन्न हूं। इस सूखे पेड़ को फिर से हरा भरा कर देता हूं” । और देखते ही देखते वह सूखा पेड़ हरी-भरी पत्तियां , फल फूलों से लद गया । यह देख कबूतर की खुशी का ठिकाना ना रहा
Moral Of The Story
किसी ने सच ही कहा है किसी भी व्यक्ति द्वारा अपने पर किया गया उपकार कभी नहीं भूलना चाहिए। चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों।
कहानी – 4
सिकंदर की महत्वाकांक्षा
सिकंदर महान और उसकी विश्व विजेता बनने की महत्वाकांक्षा से कौन वाफिक नहीं हैं।सिकंदर की महत्वाकांक्षा थी कि वह दुनिया के सभी देशों को जीतकर विश्व विजेता का सम्मान प्राप्त करें। इसी कारण उसने अपनी सेना के बल पर खूब खून खराबा किया। हजारों लोगो को मारा और कई देशों पर अपना अधिकार कर उन्हें अपना गुलाम बना लिया।इसीलिए लोग सिकंदर के नाम से ही कांप उठते थे।
एक नगर में एक वृद्धा रहती थी। जब उसने सिकंदर के बारे में सुना तो उसे बड़ा दुख हुआ।वह लोगों से कहती कि “दूसरों का खून बहाकर इकट्ठा की गई संपत्ति से कभी सुख शांति नहीं मिलती।कोई मेरी यह बात सिकंदर तक पहुंचा दो “।
एक दिन सिकंदर ने वृद्धा के नगर को लूटपाट के इरादे से चारों तरफ से घेर लिया।परन्तु जब उसे भूख लगी तो उसने खाने की तलाश में एक मकान का दरवाजा खटखटाया।यह मकान उसी बुढ़िया का था।जब बुढ़िया ने दरवाजा खोला तो सैनिक भेष में दरवाजे में खड़े व्यक्ति को देख कर ही वह समझ गई कि यह सिकंदर है।
इतने में सिकंदर ने कहा “मां मैं भूखा हूं । आप मुझे कुछ खाने को दो “।वृद्धा अंदर गई और कपडे से ढकी हुई थाली ले कर आयी और सिकंदर को देकर बोली “लो बेटा खा लो”।सिकंदर ने जैसे ही कपड़ा हटाया। तो भोजन की जगह सोने के जेवरात देखकर बोला “मैंने खाना मांगा था । और आप ये आभूषण क्यों ले आयी ।क्या यह आभूषण किसी की भूख मिटा सकते हैं”।
वृद्धा साहसी व निडर थी।उसने सिकंदर से कहा “बेटा अगर तुम्हारी भूख रोटियों से ही मिटती तो तुम अपना घर , अपना देश छोड़कर यहां संपत्ति लूटने क्यों आते ? यह पूंजी मेरे जीवनभर की कमाई हैं ।यह सब ले जाओ और मेरे नगर पर चढ़ाई ना करो”।
बुढ़िया की बातें सिकंदर की समझ में आ गयी।इसके बाद बुढ़िया ने प्रेम से उसे भरपेट भोजन कराया।कहते हैं कि सिकंदर उस नगर को जीते बिना ही वापस चला गया।
Moral Of The Story ( सिकंदर की महत्वाकांक्षा)
कहते हैं कि इस दुनिया में सदा उसी व्यक्ति ने राज किया है जिसने दुनिया की दौलत व जमीन जीतने के बजाय लोगों का दिल जीता है।
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