Inspirational Story in Hindi
Inspirational Story in Hindi : दुल्हन ही दहेज है
” दुल्हन ही दहेज है “ या “हम तो इसे बेटी बनाकर रखेंगे बहू नहीं “।शायद यह लाइन सुनने वाला अत्यधिक खुशी व संतोष महसूस करता है।तो इसे बोलने वाला भी महानता की श्रेणी में आ जाता है ।लेकिन इस लाइन को बोलना जितना आसान है।क्या निभाना उतना कठिन है ??
क्यों आज भी हमारे समाज में लड़की को दहेज के लिए घर से निकाल दिया जाता है।या उसकी हत्या कर दी जाती है।एक लड़की के जन्म के समय होने वाली पीड़ा क्या मां के लिए लड़के के जन्म लेते वक्त की पीड़ा से कम होती है ?क्या उसकी परवरिश में लड़कों की परवरिश से कम खर्चा आता है?
आज के जमाने में हर किसी से यह सुनने को मिलता है।लड़का लड़की एक समान है।क्या बहू लाते वक्त या बेटी की विदाई के वक्त भी हम यही सोचते हैं ?आप अक्सर सुनते होंगे ” हम तो दहेज विरोधी हैं।हम तो दहेज न लेंगे ना देंगे।लेकिन हां हमने अपने बेटे को पढ़ाने लिखाने व उसके पालन-पोषण में ढेर सारा पैसा खर्च किया है।अब कुछ भी नहीं बचा है।इसलिए अगर हम अपने समधी से थोड़ी सी मदद की उम्मीद करते हैं। या अगर थोड़ा बहुत समधी हमारी मदद कर दें तो इसमें बुरा क्या है।
“हम उनसे दहेज थोड़ी ना मांग रहे हैं।हम तो बस थोड़ी सी मदद मांग रहे हैं “।मैं ऐसे लोगों से पूछना चाहती हूं कि क्या लड़की को पालने-पोसने में बिल्कुल भी मेहनत नहीं लगती है।या उसे पढ़ाने- लिखाने में बिल्कुल भी खर्चा नहीं आता ? क्या सिर्फ लड़कों को ही पालने-पोसने में मेहनत लगती है ? क्या मां बाप सिर्फ लड़कों को ही पालने-पोसने में त्याग करते हैं ?
कलिदास का अहंकार ( Inspirational Story in Hindi)
क्या लड़की के मां-बाप उनको नाजों से इसलिए पालते हैं कि किसी दिन उसको विदा कर किसी दूसरे घर में भेजेंगे तो वहां लोग उसके साथ बुरा बर्ताव करेंगे , या उसको घर से निकाल देंगे या उसकी हत्या कर देंगे जरा सोचिए …. एक बार जरूर सोचिएगा …….।
यह कोई कहानी नहीं है।यह सब मेरी एक परिचिता की आपबीती है।जिसने अपनी जवानी के सुनहरे दिनों को इसी दहेज रूपी दानव के कारण गवाया……… और जिसको मैंने अपने शब्दों में कहानी ( दुल्हन ही दहेज है ) के रूप में पिरोया है।
सुधा से आज मेरी मुलाकात लगभग 2 साल बाद हुई ।आज वह मुझे बहुत खुश दिखाई दे रही थी।उसकी मांग में दमकता सिंदूर और गले में पड़ा मंगलसूत्र उसकी खुशी बयान कर रहा था।उसने बताया कि अब वह इसी शहर में अपने पति और बेटे के साथ रहती है।दो साल पहले जब मैं इसी सुधा से मिली थी।तो यह बहुत ही उदास ,जीवन से हताश व निराश थी। बस अपने बेटे के भरोसे ही अपना जीवन गुजार रही थी।
आज उसे देखकर मैं भी बहुत खुश हूं ।क्योंकि मैं उसे बचपन से जानती हूं। हम दोनों ने काफी देर बातें की।बातों ही बातों में उसने अपने अतीत के कुछ पन्ने पलट दिए जो उसकी कड़वी यादों से भरे पड़े थे।उसने बताया कि …..
आज से लगभग बीस साल पहले की बात है।मेरे और सुधीर के पापा बहुत अच्छे दोस्त थे। सो दोनों ने सोचा कि क्यों ना इस दोस्ती को एक रिश्ते में बदल दिया जाए।और एक दिन वो अपने परिवार के साथ मेरा हाथ मांगने मेरे घर चले आए।मैं भी उनके इस निर्णय से सहमत थी।मेरे पिता ने जब मेरे ससुरजी से लेनदेन की बात की।तो मेरे ससुरजी बोले ” हमारे लिए तो दुल्हन ही दहेज है “।और कुछ दिनों बाद मैं और सुधीर शादी के पवित्र बंधन में बंध गए।
ससुराल पहुंच कर मैं बहुत खुश थी।क्योंकि यहां भी मेरे मायके के जैसे ही एक भरा पूरा परिवार था।पति के अलावा सास ससुर ,एक छोटी ननद और एक देवर था।सभी शिक्षत थे।ससुर जी एक सरकारी स्कूल में प्रिंसिपल थे।और पति बेंगलुरु में एक बड़ी कंपनी में इंजीनियर के पद पर कार्यरत।ननद और देवर की पढ़ाई अभी पूरी नहीं हुई थी।
शादी के महीने भर बाद सुधीर बेंगलुरु चले गए।और मैंने एक प्राइवेट स्कूल में शिक्षिका की नौकरी ज्वाइन कर ली।धीरे-धीरे वक्त आगे बढ़ा।अभी तक सब कुछ ठीक ही चल रहा था।
आसमान का सितारा (Inspirational Story in Hindi)
एक दिन मेरे ससुर जी मेरे पास आए बोले “बेटा सुधीर के लिए बेंगलुरु में एक फ्लैट खरीदना है।अगर तुम्हारे पापा थोड़ी सी मदद कर दें।तो फ्लैट खरीदने में आसानी होगी”।मदद के रूप में यह रकम लगभग बीस लाख रुपए की थी।खैर मैंने पापा से बात की।पापा के लिए भी एकाएक इतनी बड़ी रकम का इंतजाम करना मुश्किल था।लेकिन पापा ने खुशी-खुशी कर दिया।बोले “चलो बेटी और दामाद एक ही है। वह घर बेटी का भी होगा “।
इसके कुछ दिनों बाद ही मेरी छोटी ननद का रिश्ता एक जगह तय हो गया।ननंद की शादी भी ससुरजी धूमधाम से करना चाहते थे।आखिर एक ही बेटी थी।एक दोपहर मैं स्कूल से आकर अपने कमरे में आराम कर रही थी।तभी मेरे ससुर जी ने आकर मुझसे बोला कि क्या मेरे पापा उनकी फिर से थोड़ी सी मदद कर देंगे।हम बाद में उनके पैसे धीरे-धीरे करके लौटा देंगे।पापा ने इस बार भी उनकी मदद कर दी।
लेकिन धीरे-धीरे किसी न किसी बहाने मेरे सास-ससुर मेरे पापा से कभी पैसों की मांग करते तो कभी किसी सामान की।कभी मोटरसाइकिल की, कभी कार की ,तो कभी घर के सामानों की।और मेरी तनख्वाह भी मेरे ससुर जी किसी न किसी बहाने ले लेते थे।उनको ऐसा लगता था मानो मेरे पापा के पास कोई खजाना है।जो कभी खाली ही नहीं होगा।और यह उनके लिए बहुत आसान था। मदद के नाम पर उनको ढेर सारा पैसा मुफ्त में मिल जाता था।
मैं कभी भी नहीं चाहती थी कि मेरे पापा मदद के नाम पर इनको हर बार दहेज दें।लेकिन पापा हर बार यह कह कर चुप करा देते थे कि” बेटा तेरी खुशी का सवाल है।पैसे तो फिर भी कमा लेंगे।तू खुश रहे बस “और मैं चुप हो जाती।आखिरकार पापा भी कब तक मदद करते हैं क्योंकि उनको भी अपनी एक छोटी बेटी और बेटे की पढ़ाई ,उनकी शादी की चिंता सताने लगी थी।
आखिरकार एक दिन पापा ने भी बोला कि समधी जी अब मुझसे नहीं हो पाएगा। इसके बाद तो जैसे ससुर जी के अहंकार को चोट लग गई।और वह अब मुझे तरह तरह से परेशान करते।मुझ पर झूठे इल्जाम लगाते व दुर्व्यवहार करते हैं। मैंने सुधीर को यह बात बताई लेकिन सुधीर हमेशा ही कहते थे कि मेरे पापा तो दहेज विरोधी हैं।भला वो तुम्हारे पापा से पैसे क्यों मांगेंगे।
वो यह बात मानने को तैयार ही नहीं थे कि उनके पापा मेरे पापा से लाखों रुपए ले चुके हैं।और सुधीर जब भी घर आते हैं तो मेरे सास-ससुर का व्यवहार मेरे लिए पूरा तरह बदल जाता।
दोहरे मापदंड (Inspirational Story in Hindi)
ऐसे ही कई साल बीत गए।इस बीच मैं एक बेटे की मां बन गई।और हालत और भी खराब होते चले गए। अब मेरा उस घर में रहना मुश्किल हो गया।तब मैंने सुधीर से कहा कि आकर हमें साथ ले जाओ।सुधीर घर आए हमें लेने के लिए।लेकिन घर आकर उनके मां-बाप ने उनको जाने कौन सी पट्टी पढ़ाई कि वो नाराज हो कर चले गए ।और एक दिन सास और ससुर के दुर्व्यवहार के कारण मैंने वह घर व शहर ही छोड़ दिया।
मैं दूसरे शहर में चली आई। मैंने वहां पर फिर से अपनी नई जिंदगी शुरु करने की कोशिश की। फिर से एक स्कूल में शिक्षिका की नौकरी ले ली।समय पंख लगा कर उड़ गया ।मेरा बेटा दसवीं में पहुंच गया।इस बीच सुधीर का न कभी मेरे लिए फोन आया, न सुधीर ने हम को ढूंढने की कोशिश की और न उसके घरवालों ने।
काफी सालों बाद 2 साल पहले मेरे भाई की शादी पर मेरा इस शहर में आना हुआ।भाई की शादी में हम बाजार खरीददारी करने के लिए निकले।खरीददारी कर जब हम वापस आ रहे थे।तो चौराहे पर लाल बत्ती पर खड़ी एक गाड़ी की पिछली सीट पर बैठे सुधीर को देखा।आंखों में मोटा सा चश्मा ,गंभीर मुद्रा में बैठा वह बहुत ही प्रौढ लग रहा था।
अंसार शेख ,युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत (Motivational story in Hindi)
घर जाकर छोटी बहन ने बताया कि सुधीर के भाई और बहन की शादी हो चुकी है।उसका भाई अपने मां-बाप की हरकतों से परेशान होकर अपने बीवी- बच्चों को अपने साथ लेकर चला गया।और बहन की शादी दूसरे शहर में हो गई।
मां- बाप अब बूढ़े हो चले हैं।और अकेले रह गए हैं।सो सुधीर बेंगलुरु की नौकरी छोड़कर घर आ गया ।और अपने मां बाप के साथ रहकर यही उसने अपना नया कारोबार शुरु कर दिया।घर आकर उसे अपने छोटे भाई से सच्चाई का पता चला तो वह पश्चाताप से भर गया।
और उसने मेरी छोटी बहन के पास आकर मेरे बारे में जानने की कोशिश की।बहुत पूछने के बाद भी बहन ने मेरा पता नहीं बताया ।उसने आकर मेरे मां-बाप से माफी मांगी और आज भी कभी कभार मिलने चला आता है।
आज भाई की शादी में उसको भी निमंत्रण भेजा गया था।मैंने जब यह बात सुनी तो मैं बेचैन हो उठी ।मन में दुविधा थी।मैं मिलना भी चाहती थी और नहीं भी।खैर शाम को प्रीतिभोज के वक्त में दुल्हन के बगल में बैठ गई।लेकिन मेरी नजर सामने वाले गेट पर ही लगी रहे।
बहुत सारे लोग आए चले गए।बहुत देर हो चुकी थी।सुधीर नहीं आया।मैं निराश हो गई।लेकिन तभी एक जाना पहचाना सा शख्स गेट से अंदर आया।और मैं उसको देखते रह गई और ना जाने किन ख्यालों में खो गई।
वह दुल्हन के पास आया।और दुल्हन को गुलदस्ता भेंट कर बिना मेरी तरफ देखे ही वापस चला गया।लेकिन थोड़ी दूर जाकर जब उसने पीछे मुड़कर गौर से मेरी तरफ देखा।मैंने भी उसे देख रही थी।वह मेरे पास दौड़ कर आया।बोला कैसी हो सुधा ….कब आयी….. कहां थी… ..ढेर सारे प्रश्न और सभी के उत्तर इकट्ठे ही जान लेना चाहता था …..वह बहुत ही उत्साहित था।
मुझसे बात करना चाहता था।लेकिन शादी का समारोह होने के कारण फिलहाल बात करना मुश्किल था।वह बहुत बेचैन था।समारोह खत्म होने के बाद वह दौड़ कर मेरे पास आया।मेरा हाथ पकड़ कर मुझे गले से लगा लिया।
और मुझ से माफ़ी मांगने लगा कि उसने कभी भी मेरी बात का विश्वास नहीं किया।और मेरे प्यार की कभी भी परवाह नहीं की…।मैंने तुम्हें बहुत ढूंढने की कोशिश की …. मम्मी पापा ने तुम्हारा पता नहीं बताया….वह अपनी बातें कहे जा रहा था। मेरी आंखों से लगातार आंसू बहे जा रहे थे।आज बहते हुए इन आंसू में दोनों के सारे शिकवे गिले भी बह गए।
जज का न्याय ( Motivational story in Hindi)
अंत में वह बड़े हक से बोला जैसे तो कभी कुछ हुआ ही नहीं।बोला “सुधा अब शादी समारोह तो खत्म हो गया है।काफी देर हो चुकी है।सब मेहमान अपने-अपने घर चले गए हैं।अब तुम भी विदाई ले लो।घर में मम्मी पापा इंतजार कर रहे हैं।हमें भी जल्दी घर जाना है।
और मुझे अपने बेटे के साथ सुबह जल्दी उठकर क्रिकेट भी तो खेलनी है।और वह गाड़ी में जाकर मेरा और बेटे का इंतजार करने लगा।मैं मंत्रमुग्ध सी उसे देखती रह गई।मां-बाप से विदा लेकर मैं आज फिर इस घर से सुधीर के घर में दोबारा अपनी नई जिंदगी के सफर में निकल पड़ी।
इतना कहकर सुधा रुक गई। उसके आंखों से निरंतर बहते आंसू उसकी पूरी कहानी की सच्चाई को बयां कर रहे थे ।
सीख ( Moral of the story , दुल्हन ही दहेज है )
Inspirational Story in Hindi : दुल्हन ही दहेज है ।
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