सालूमरादा थिमक्का : Real Life Inspirational Story

Saalumarada Thimmakka ( Real Life Inspirational Story),Who is Saalumarada Thimmakka, Why Saalumarada Thimmakka known as “वृक्षमाता / Vrikshy mata”. Indian Environmentalist from the state of Karnataka, पद्मश्री सम्मान से सम्मानित “वृक्षमाता” सालूमरादा थिमक्का कौन हैं 

Saalumarada Thimmakka

(Real Life Inspirational Story)

वृक्षमाता सालूमरादा थिमक्का ने प्रोटोकोल तोड़ राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद को दिया आशीर्वाद।सालूमरदा थिमक्का को “वृक्षमाता” की उपाधि प्राप्त है।

कन्नड़ भाषा में सालूमरादा का अर्थ होता है “वृक्षों की पंक्ति”।बरगद के 385 पेड़ों सहित 8000 से ज्यादा पेड़ों को लगाने वाली कर्नाटक की प्रसिद्द पर्यावरणविद् और सामाजिक कार्यकर्ता 107  वर्षीय थिमक्का “सालूमरदा थिमक्का ” और “वृक्षमाता” के नाम से लोकप्रिय है।प्रकृति व पेड़ों के प्रति उनके लगाव को देखते उन्हें “वृक्षमाता” की उपाधि मिली हैं।

सालूमरदा थिमक्का को अब तक पद्मश्री सम्मान के अलावा कई और सम्मानों से भी नवाजा जा चुका है।वृक्षमाता ने लगभग 4 किलोमीटर के क्षेत्र में 8000 से अधिक पेड़ों को लगाया जो पर्यावरण के क्षेत्र में एक सराहनीय प्रयास व कदम हैं।

Saalumarada Thimmakka ( Real Life Inspirational Story)

कौन हैं वृक्षमाता सालूमरदा थिमक्का (Who is Saalumarada Thimmakka)

सालूमरदा थिमक्का का जन्म कर्नाटक गुब्बी तालुक (तुमकुरु जिला) में हुआ था।आर्थिक रूप से गरीब परिवार से ताल्लुक रखने की वजह से उन्हें छोटी सी उम्र में ही मजदूरी का काम करना पडा था।उन्होंने किसी तरह की कोई भी स्कूली शिक्षा हासिल नही की।विवाह योग्य होने पर उनका विवाह कर्नाटक के रामनगर जिले के मजदूर चिककैया से हुआ।शादी के बाद भी उनके आर्थिक हालात में कोई फर्क नही पड़ा।

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सालूमरदा थिमक्का से वृक्षमाता बनने का सफर ( Real Life Inspirational Story)

शादी के काफी लंबे समय बाद भी सालूमरदा थिमक्का को मातृत्व सुख नही मिला।वृक्ष माता जब लगभग 40 वर्ष की थी तो लोगों के ताने सहन करते करते उनके मन में कई बार आत्महत्या का विचार भी आया।लेकिन ऐन वक्त पर उनके पति ने उन्हें वृक्षारोपण की सलाह दी।

पति के सहयोग व प्रेरणा से उन्होंने वृक्षारोपण का कार्य शुरू किया।और फिर कभी भी पीछे मुड़ कर नहीं देखा।वह छोटे छोटे पौधों का रोपण करती ,वृक्ष बनने तक उनकी अपने बच्चों की तरह देखभाल करती थी। उन्होंने पौधों में ही संतान का सुख प्राप्त कर लिया।

सालूमरदा थिमक्का ने हल्दीलाल और कुटूर के बीच 4 किलोमीटर के राजमार्ग के किनारे बरगद के लगभग 385 पेड़ सहित 8000 पेड़ लगाए हैं जिसके कारण उन्हें “वृक्ष माता” की उपाधि मिली है।उन्होंने अपना पूरा जीवन प्रकृति के नाम कर दी।और आज भी जब वह करीब 107 साल की हैं तब भी अपने वृक्षारोपण के कार्यो में व्यस्त रहती हैं।

सालूमरदा थिमक्का के पति बने प्रेरणास्रोत (Saalumarada Thimmakka ( Real Life Inspirational Story) 

सालुमारदा थिमक्का ने अब अपने पति के साथ पेड़ो को लगाने का काम शुरू कर दिया।सालुमारदा जिस इलाके में रहती थी वहाँ सरकार द्वारा भूमिहीन मजदूरों को जो जमीन दी गई थी।उस पर  पीपल के पेड़ लगे थे।थिमक्का और उनके पति ने इन पेड़ों की टहनियों को काट कर उनसे नये  पौधे उगाने शुरू कर दिये।

उन्होंने पहले वर्ष में सिर्फ 10 पौधे लगाए,दूसरे वर्ष में उन्होंने 15 पौधे लगाए और तीसरे वर्ष 20।जहाँ भी संभव हो वो पौधों को लगा देते थे।और धीरे धीरे उन्होंने 4 किलोमीटर के राजमार्ग के किनारे बरगद के लगभग 385 पेड़ सहित 8000 पेड़ लगा दिये।सालुमारदा थिमक्का व उनके पति पेड़ों को अपने बच्चों के जैसा ही पालते पोषते व उनकी देखभाल करते थे।

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पेड़ो को मानसून में लगाया जाता था ( Real Life Inspirational Story)

सालूमरदा थिमक्का व उनके पति पौधों को ज्यादातर मानसून (वर्षा ऋतु) में लगाते थे।ताकि पौधों को उगने के लिए पर्याप्त पानी मिल सके।हालाँकि मानसून के बाद भी सप्ताह में एक या दो बार पौधों को पानी दिया करते थे।थिमक्का के पति बांस के मजबूत डंडे के दोनों छोरों पर पानी के दो विशाल कंटेनर बाँध कर अपने कंधों पर लेकर 4 किलोमीटर दूर लगे पेड़ो की सिंचाई करते थे।

साथ में सालुमारदा भी एक बाल्टी अपनी कमर पर और एक बाल्टी सिर पर लादकर कर उनके पीछे चल पडती थी।उन्होंने इन पेड़ों को लगाने तथा उनकी देखरेख में खर्च होने वाली धनराशि का इंतजाम खुद ह़ी किया।कांटेदार झाड़ियों के बीच पौधों को लगाकर उन्हें मवेशियों से भी बचाया।

पति की मृत्यु के बाद भी चलता रहा सिलसिला 

वृक्षमाता सालूमरदा थिमक्का के पति की मृत्यु 1991 में हो गई।लेकिन पति की मृत्यु के बाद भी वृक्षमाता का वृक्षों के रोपण का सिलसिला चलता रहा।जो आज तक भी जारी हैं।थिमक्का को आज कई जगहों पर पर्यावरण के जुड़े कार्यक्रमों के लिए आमंत्रित किया जाता है।जहाँ पर वह अपने अनुभवों को लोगों से साझा कर उन्हें वृक्षारोपण के लिए प्रेरित करती हैं।इसके साथ ह़ी वह समाज सेवा के कार्यक्रमों में भी जुडी रहती हैं।

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वृक्षमाता का सपना

वृक्षमाता सालूमरदा थिमक्का अपने पति की याद में अपने गांव में एक अस्पताल बनाना चाहती हैं।अस्पताल खोलने के उद्देश्य से उन्होंने एक ट्रस्ट की स्थापना भी की हैं।

 प्रभावशाली व प्रेरणादायक महिला

साल 2016 में सालूमरदा थिमक्का को “ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन(BBC)” ने दुनिया की सबसे प्रभावशाली व प्रेरणादायक महिलाओं की सूची में शामिल किया।

सालूमरदा थिमक्का कई अवार्ड व सम्मान से सम्मानित  

Saalumarada Thimmakka’s Awards ( Real Life Inspirational Story)

सालूमरदा थिमक्का को अब तक कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।

  1. राष्ट्रीय नागरिक पुरस्कार 1995
  2. इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्षमित्र पुरस्कार 1997
  3. वीरचक्र प्रशस्ती पुरस्कार 1997
  4. कर्नाटक कल्पवल्ली पुरस्कार 2000
  5. फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार 2006
  6. हम्पी विश्वविद्यालय द्वारा नादोजा पुरस्कार 2010
  7. होविनाहोल फाउंडेशन का विश्वम्मा पुरस्कार 2015
  8. बीबीसी द्वारा प्रभावशाली व प्रेरणादायक महिला का सम्मान 2016
  9. आई एंड यू बीइंन टूगेदर फाउंडेशन द्वारा डीवाइन अवार्ड से सम्मानित
  10. पद्मश्री पुरस्कार 2019
  11. पेरिस रथना पुरुस्कार
  12. आर्ट ऑफ लिविंग संगठन द्वारा विशालाक्षी पुरुस्कार
  13. कर्नाटक सरकार के महिला और बाल विकास कल्याण से सम्मान प्रमाणपत्र
  14. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ वुड साइंस एंड टेक्नोलॉजी बेंगलुरु से प्रशंसा का प्रमाण पत्र
  15. ग्रीन चैंपियन पुरस्कार
  16. वृक्षासन पुरस्कार

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सदा जीवन जीती हैं सालूमरदा थिमक्का ( Real Life Inspirational Story)

सालुमारदा थिमक्का को राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई सारे अवार्ड मिल चुके हैं।लेकिन आज भी वह बेहद सरल व सादगी भरा जीवन जीती हैं।विश्व भर में फैली प्रसिद्धि का उन पर कोई प्रभाव नहीं दिखता है।लोगों के साथ पहले की तरह व्यवहार करती हैं।

आजकल थिमक्का अपने मुंह बोले बेटे उमेश बीएन के साथ रहती है।उमेश को भी पर्यावरण से काफी लगाव है।वह भी “पृथ्वी बचाओ” अभियान के साथ जुड़े हुए हैं।उमेश पौधों की नर्सरी तैयार करते हैं तथा वृक्षारोपण के इच्छुक लोगों को पौधे भी देते हैं।

कर्नाटक सरकार द्वारा उठाया गया एक सराहनीय कदम ( Real Life Inspirational Story)

कर्नाटक सरकार ने सालुमारदा थिमक्का व उनके काम को सम्मान देने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है।अब कर्नाटक में कक्षा 1 से 10 तक की हिंदी की किताब में थिमक्का की कहानी व उनकी उपलब्धियों के बारे में बच्चों को पढाया जायेगा।

तथा कक्षा 12 के राजनीति विज्ञान विषय की किताब में भी इनको शामिल किया जायेगा।ताकि इससे बच्चों के भीतर पर्यावरण के प्रति जागरूकता तो बढ़ेगी और वो भी इस दिशा में कार्य करने को प्रेरित होगें।सरकार का यह कदम बेहद सराहनीय है।

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सालूमरदा थिमक्का को वृद्धावस्था पेंशन मिलती हैं महज 500 रूपये 

कर्नाटक सरकार ने सालुमारदा थिमक्का को कई सम्मानों से सम्मानित किया है।वृक्ष माता के नाम पर पर्यावरण से जुड़ी योजना का नाम भी रखा जा चुका है।मगर वृक्ष माता सालूमरदा थिमक्का को कर्नाटक की राज्य सरकार की तरफ से वृद्धावस्था पेंशन के रूप में महज 500 रूपये हर महीने दिए जाते हैं।

 प्रोटोकोल तोड़ राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद को दिया सालूमरदा थिमक्का ने आशीर्वाद ( Real Life Inspirational Story)

वृक्षमाता सालूमरदा थिमक्का को पर्यावरणीय व सामाजिक कार्यों में उनके योगदान के लिए पद्मश्री पुरस्कार (2019) से सम्मानित किया गया।पद्म पुरस्कार लेने पहुंची वृक्षमाता से भारत के वर्तमान राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने पुरस्कार देते वक्त थिमक्का से अपना चेहरा कैमरे की तरफ करने का अनुरोध किया।

तभी थिमक्का ने बड़ी सहजता व सरलता से राष्ट्रपति के सिर पर हाथ रख उन्हें आशीर्वाद दिया।थिमक्का के प्रेम से भरे इस कार्य से प्रधानमंत्री तथा अन्य मेहमानों के चेहरे पर मुस्कान आ गई।तथा पूरा राष्ट्रपति भवन तालियों से गूंज उठा।ऐसा नजारा राष्ट्रपति भवन में बहुत ही कम देखने को मिलता है।राष्ट्रपति भवन का कड़ा प्रोटोकोल वृक्षमाता के प्यार व ममता भरे आशीर्वाद के आगे कमजोर पड़ गया।

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राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद के अनुसार “पद्म पुरस्कारों से राष्ट्र की सबसे योग्य व श्रेष्ठ प्रतिभाओं को सम्मानित करना राष्ट्रपति के लिए प्रसन्नता का विषय होता है। लेकिन आज जब  पर्यावरण की रक्षा में तत्पर, कर्नाटक की 107 वर्ष की सालूमरदा थिमक्का ने आशीर्वाद देते हुए मेरे सिर पर हाथ रखा तो मेरा हृदय भर आया”।

कर्नाटक की इस वृक्षमाता ने अपने धैर्य, साहस व दृढ संकल्प से सफ़लता की एक नयी कहानी लिखी हैजो आगे आने वाली पीढीयों को भी सदा प्रेरणा देती रहेगी।एक सन्तानहीन महिला ने हजारों वृक्ष लगाकर न सिर्फ पर्यावरण को स्वस्थ व निर्मल बनाया बल्कि उनसे संतान का सुख भी प्राप्त कर लिया।

आज सालूमरदा थिमक्का को उनके प्रकृति प्रेम और वृक्षारोपण के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है।अनपढ़ सालूमरदा थिमक्का ने पर्यावरण को बचाने का जो काम किया हैं वो बड़ी-बड़ी डिग्रियां लेने वाले उच्च शिक्षित लोगों या पर्यावरणविदों के बस की बात भी नही हैं।इस दृढ़ संकल्पित महिला के बारे में लोग सदियों तक पढ़ेगें व उन्हें याद रखेंगे।

इनके नाम से लास एंजिलिस और ऑकलैंड में एक अमेरिकी पर्यावरण संगठन हैं  जिसे “थिमक्का रिसोर्सेज फॉर एनवायर्नमेंटल एजुकेशन” के नाम से जाता है।

Saalumarada Thimmakka ( Real Life Inspirational Story)

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