A Motivational Story With Moral : सीख देती 3 कहानियों

Motivational Story With Moral : 3 शिक्षा देती कहानियों

Story -1  

Motivational Story With Moral

प्रणाम का महत्व

महाभारत का युद्ध चल रहा था।एक दिन दुर्योधन के व्यंग्य से आहत होकर भीष्म पितामह घोषणा कर देते हैं कि “मैं कल पांडवों का वध कर दूँगा”। उनकी घोषणा का पता चलते ही पांडवों के शिविर में बेचैनी बढ़ गई। भीष्म की क्षमताओं के बारे में सभी को पता था।इसलिए सभी किसी अनिष्ट की आशंका से परेशान हो गए।

तब श्री कृष्ण ने द्रौपदी से कहा “अभी मेरे साथ चलो”।श्री कृष्ण द्रौपदी को लेकर सीधे भीष्म पितामह के शिविर में पहुँच गए।शिविर के बाहर खड़े होकर उन्होंने द्रोपदी से कहा कि “अन्दर जाकर पितामह को प्रणाम करो “।द्रौपदी ने अन्दर जाकर पितामह भीष्म को प्रणाम किया। तो उन्होंने “अखंड सौभाग्यवती भव” का आशीर्वाद दे दिया।

फिर उन्होंने द्रोपदी से पूछा कि “पुत्री तुम इतनी रात में अकेली यहाँ कैसे आई हो।क्या तुमको श्री कृष्ण यहाँ लेकर आये है ?”।तब द्रोपदी ने कहा कि “हां मगर कान्हा कक्ष के बाहर खड़े हैं “। तब भीष्म भी कक्ष के बाहर आ गए।और दोनों ने एक दूसरे से प्रणाम किया।

भीष्म ने कहा “मेरे एक वचन को मेरे ही दूसरे वचन से काट देने का काम केवल श्री कृष्ण ही कर सकते है। और इस संसार में ऐसा दूसरा कोई नहीं”।

शिविर से वापस लौटते समय श्री कृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि “तुम्हारे एक बार जाकर पितामह को प्रणाम करने से तुम्हारे पतियों को जीवनदान मिल गया है।अगर तुम प्रतिदिन भीष्म, धृतराष्ट्र, द्रोणाचार्य आदि को प्रणाम करती होती।और दुर्योधन- दुःशासन आदि की पत्नियां भी पांडवों को प्रणाम करती होंती। तो शायद इस युद्ध की नौबत ही न आती। और कई विघ्न-बाधाएं स्वत: ही दूर हो जाती “।

सीख Moral of the story प्रणाम का महत्व)

बड़ों के दिए आशीर्वाद कवच की तरह काम करते हैं। बड़ी-बड़ी विघ्न-बाधाएं भी सच्चे दिल से दिए गए आशीर्वाद से दूर हो जाती है।उनको कोई अस्त्र-शस्त्र नहीं भेद सकता।

अपने से बड़ों को प्रणाम करना या उनके पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त करना हमारी हिंदू संस्कृति का एक अहम हिस्सा है। और हमें अपने बच्चों को भी यह संस्कार देने चाहिए।प्रणाम से प्रेम , शीतलता बढ़ता है। प्रणाम अनुशासन , आदर , झुकना सिखाता है । प्रणाम से सुविचार आते है। प्रणाम अहंकार , क्रोध मिटाता है।प्रणाम हमारी संस्कृति है।

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Story – 2 

मन का सौंदर्य

(Motivational Story With Moral)

भगवान बुद्ध के शिष्य उपगुप्त परम सदाचारी थे।वह भिक्षुओं से कहते थे कि प्रेम और संयम ही भौतिक व आध्यात्मिक विकास के साधन हैं।समाज द्वारा बहिष्कृत लोगों से प्रेम करनेवाला ही सच्चा धार्मिक है।

एक दिन एक अति सुंदरी उपगुप्त के पास पहुंची। उपगुप्त उसे देख आकर्षित हो गए।परन्तु उसी समय उन्हें बुद्ध के वचन याद आए कि शारीरिक सौंदर्य नहीं , मन के सौंदर्य में सच्चा आकर्षण होता है। सुंदरी भी उपगुप्त को देखते ही उनसे प्रेम कर बैठी।उसने उपगुप्त से प्रार्थना की कि वह उसके साथ कुछ क्षण विताकर उसे उपकृत करें।

उपगुप्त ने वचन दिया कि वो उपयुक्त समय आने पर उससे एक बार अवश्य मिलेंगे।समय बीतता गया।भोग विलास में रहने के कारण युवती का शारीरिक सौंदर्य नष्ट हो गया।और उसे अनेक रोगों ने घेर लिया।लोगों ने कुलटा बताकर उसे नगर से निकाल दिया।

वह एक जंगल में दयनीय हालत में अपने अंतिम दिन बिताने लगी।उपगुप्त को युवती की दुर्दशा का पता चला।वो तुरन्त उससे मिलने जा पहुंचे।उन्हें देखते ही युवती की आंखों से आंसू निकलने लगे। उपगुप्त ने उसके बगल में बैठ कर उसके सिर पर बड़े प्यार से हाथ फेरा।

वह आश्चर्य होकर बोली “जब मैं प्रेम करने योग्य थी।तब आप मेरे पास नहीं आये।अब जब मेरा शारीरिक सौंदर्य नष्ट हो गया। आप तब आये हैं। अब आने का क्या लाभ? उपगुप्त ने कहा “देवी , शारीरिक आकर्षण को प्रेम नहीं वासना कहते हैं। मैं आज भी तुमसे प्रेम करता हूं।क्योंकि यही सच्चा प्रेम हैं “।यह सुन वह युवती मन ही मन प्रसन्न हो उठी ।

Moral Of The Story (मन का सौंदर्य)

तन की सुंदरता उम्र ढलने के साथ ही खत्म हो जाती है।यह अस्थाई है। लेकिन मन की सुंदरता हमेशा इंसान को खुबसूरत , लोकप्रिय और जवान बनाए रखती है।और यह कभी नष्ट नहीं होती है।

शब्दों का महत्व (Motivational story with moral in Hindi)

Story – 3   

सेवा परमो धर्म:

(Motivational Story With Moral

कैकेय देश के राजा सहस्रचित्य परम प्रतापी , दयालु  तथा धर्मपरायण थे।वो पशु- पक्षियों में भी  भगवान के दर्शन करते थे।वह सुबह का समय भगवान के भजन और शास्त्रों के अध्ययन में बिताते थे।दोपहर से शाम तक राज- काज देखते थे। और शाम होते ही वेश बदलकर प्रजा की सेवा के लिए निकल जाते थे।

वो प्रतिदिन अपने हाथों से बीमारों और वृद्धों की सेवा करते थे।उसके बाद गोशाला पहुंचकर गाय – बैलों को हरा चारा खिलाते और बीमार पशुओं की खुद सेवा करते थे।सेवा के कारण उनके पुण्यों में वद्धि होती गई।हालाँकि राजभवन में यह बात किसी को पता नहीं थी।क्योंकि वो ये कार्य बिना किसी को बताये करते थे। 

एक दिन अनजाने में उनसे एक पाप हो गया।जिससे राजा सहस्रचित्य का मन विचलित हो गया उठा। उन्होंने अपने पुत्र को राज्य का भार सौंपा और जंगल में चले गए।और अनजाने में हुए पाप के प्रायश्चित के लिए उन्होंने कठोर तपस्या शुरू कर दी ।

लेकिन अचानक एक दिन देवदूत ने प्रकट होकर उनसे कहा “राजन तुमने जीवन भर अपनी प्रजा , मरीजों , वृद्ध जनों और गायों की सेवा की है।और जो राजा अपनी प्रजा के कल्याण को भगवान की पूजा मानता हैं।उसके पुण्य उसे स्वर्गलोक का अधिकारी बना देते हैं।

इसीलिए तुमसे अनजाने में हुये पाप का फल उसी समय नष्ट हो गया था।जब तुमने उसका प्रायश्चित कर लिया”। इस तरह राजा सहस्रचित्य जीवन- मरण के बंधन से मुक्त हो स्वर्गलोक चले गए। 

Moral Of The Story (सेवा परमो धर्म:)

प्राणी मात्र की सेवा ही हर इन्सान का प्रथम व सर्वोच्च धर्म हैं। 

Motivational Story With Moral

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