A Good Motivational Story
दोहरे मापदंड
A Good Motivational Story
यह कहानी नही बल्कि हमारे समाज की कठोर सच्चाई है। जहां आज भी बहू और बेटी में अंतर होता है ।बहु करें तो वही बात गलत हो जाती है और बेटी करें तो वही बात सही कैसे हो जाती है ।
साक्षी हमारे मोहल्ले में ही रहती थी।अपने मां बाप की इकलौती व बुढ़ापे की संतान होने के कारण मां-बाप ने उसे बड़े प्यार और जतन से पाला था। साक्षी बहुत ही सुशील ,सीधी-साधी लेकिन पढ़ने लिखने में बहुत होशियार लड़की थी। साथ ही साथ उसे पेंटिंग करना भी बहुत पसंद था।उसने अपने स्कूल में कई प्रतियोगिताओं में भाग लिया और कई सारे अवार्ड भी जीते।
साक्षी की मां बहुत ही सुलझी हुई व सामाजिक महिला थी।मोहल्ले में कहीं भी कोई दुख या सुख हो तो वह वहां पर पहुंच जाती थी।धीरे-धीरे साक्षी की मां की दोस्ती दूसरे मोहल्ले में रहने वाली राहुल की मां से हो गई।और दोनों अक्सर साथ- साथ समय बिताया करते थे।धीरे-धीरे साक्षी बड़ी होने लगी और साक्षी की मां को उसकी शादी की चिंता सताने लगी थी।
एक दिन उसने बातों ही बातों में राहुल की मां को अपने मन की बात बताई।और उनसे कहा कि वह साक्षी के लिए कोई योग्य वर अगर उनकी नजर में कोई हो तो बताएं।क्योंकि दोनों में बहुत अच्छी दोस्ती थी।तो राहुल की मां भी साक्षी के लिए लड़का तलाशने में लग गयी।एक दिन जब साक्षी की मां राहुल के घर पहुंची तो बातों ही बातों में राहुल की मां ने साक्षी का हाथ राहुल के लिए मांग लिया।
साक्षी की मां एकाएक कोई उत्तर नहीं दे पाई।क्योंकि वह असमंजस में थी।घर आकर साक्षी व परिजनों से बात करने के बाद राहुल से साक्षी का विवाह करने को तैयार हो गई।राहुल भी पढ़ा लिखा व योग्य लड़का था।साक्षी शादी के बाद अपने ससुराल पहुंच गई।
ससुराल में राहुल के मां बाप के अलावा राहुल की एक छोटी बहन भी थी।जो कॉलेज की पढ़ाई कर रही थी।वह बहुत ही बदतमीज व नकचढ़ी थी। घूमना फिरना, महंगे ब्रांडेड कपड़े खरीदना, पार्लरों में जाना, दोस्तों के साथ पार्टी करना यही उसके शौक थे। क्योंकि घर में छोटी थी इसलिए वह सबकी लाड़ली थी।उसके कहीं भी आने में या कुछ भी करने में कोई रोक-टोक नहीं थी।
साक्षी क्योंकि अपने मां बाप की अकेली संतान थी।इसलिए उसे अपने बूढ़े मां-बाप की हर दम चिंता लगी रहती थी।मायका नजदीक होने के कारण वह अपने मां-बाप से मिलने आ जाया करती थी।लेकिन ससुराल वालों को साक्षी का बार-बार यूं अपने मायके जाना और उनके साथ रहना बिल्कुल भी पसंद नहीं था।
राहुल की मां तो फिर भी साक्षी के लिए थोड़ा बहुत रहम दिल रहती थी।लेकिन साक्षी की ननंद साक्षी के मायके जाने पर हर बार कड़ा एतराज जताती थी।वह साक्षी के लिए दूसरी सास के बराबर ही थी।साक्षी को जब भी मां के घर जाना होता था तो वह मना कर देती थी।सास तो फिर भी इजाजत दे दे।लेकिन ननंद हमेशा यही कहती थी कि आपके मां-बाप तो अभी चलते फिरने की हालत में है।
उनको क्या जरुरत है अभी तुम्हारी सेवा की। जिस दिन बिलकुल बिस्तर से ही उठने या चलने फिरने लायक नहीं रहेंगे।उस दिन जाकर उनकी सेवा करना।
साक्षी को यह बात मन ही मन बहुत बुरी लगती थी।लेकिन वह कुछ कह नहीं पाती थी।उसको अपने मां-बाप की बहुत चिंता रहती थी।एक दिन राहुल का ट्रांसफर दूसरे शहर में हो गया।राहुल साक्षी को भी अपने साथ दूसरे शहर ले जाना चाहता था।
राहुल के मां-बाप को तो कोई खास ऐतराज न था।लेकिन ननंद इस बात अड़ गई कि भाभी भाई के साथ नहीं जायेगी।मम्मी पापा का ध्यान कौन रखेगा।हम बहू किस लिए लाए हैं ।..वगैरह वगैरह।
ऐसी कई सारे बातें कर साक्षी को राहुल के साथ जाने से मना कर दिया। साक्षी और राहुल दोनों मन मार कर रह गए।दिन प्रतिदिन साक्षी की ननंद का रवैया साक्षी के लिए खराब होता जा रहा था।वह साक्षी को मायके भी नहीं जाने देती थी ।
समय यूं ही बीतता चला गया। साक्षी की ननद के विवाह के लिए कई रिश्ते आए।लेकिन वह हर किसी में कोई ना कोई खोट निकाल देती।कभी कहती कि यह लड़का स्मार्ट नहीं है ,या कभी उसका परिवार बहुत बड़ा है।मैं बड़े परिवार में शादी नहीं करूंगी। और कभी लड़के की आर्थिक स्थिति अच्छी ना होने का बहाना करती.. वगैरह-वगैरह।
लेकिन कहते हैं कि ऊपर वाले के आगे किसी की मर्जी नहीं चलती। और एक दिन साक्षी की ननद की शादी एक बड़े परिवार में हो गई। जिसमें तीन भाई व दो बहने थी और वह सबसे बड़ी थी।शादी के बाद जब वह पहली बार मायके आई तो काफी परेशान थी।और अपनी मां से कहने लगी कि वह अपने पति के साथ ही चली जायेगी।क्योंकि इतने बड़े परिवार की जिम्मेदारी वह नहीं उठा सकती ।
उसने अपनी माँ से कहा “क्या मैं उस घर में खाना बनाने के लिए या उनकी सेवा के लिए ही गई हूं,?? मैं तो अपने पति के साथ जाकर रहूंगी”।यह वही बहन थी जो अपनी भाभी को कहती थी कि हम उसको इसलिए थोड़ी ना लाए हैं कि वह भाई के साथ जाकर रहे। मां बाप की सेवा कौन करेगा और आज खुद शादी के महज 15 दिन में वह अपने पति के साथ जाकर अलग रहने के बारे में सोच रही है।
क्या उसका कर्तव्य नहीं है कि वह अपने सास-ससुर की देखभाल करें? उसने जो नियम कानून साक्षी के लिए बनाए। क्या वह उसके लिए लागू नहीं होते हैं। बहू बनते ही यह कैसा दोहरा मापदंड है ? अपनी सहूलियत के लिए नियम कानून ही बदल दिए गए।
काफी समय बाद एक दिन यूं ही अचानक मेरी भी साक्षी की ननंद से मुलाकात हो गई। क्योंकि हम एक ही मोहल्ले में रहते थे। इसलिए हमारी जान पहचान थी।सो मैंने पूछा “साक्षी ससुराल में कैसी कट रही है”। साक्षी बोली “दीदी मैं तो अपने पति के साथ मुंबई में रहती हूं “। मैंने बोला “तुम अपने पति के साथ क्यों रहती हो ।अपने ससुराल में क्यों नहीं रहती हो ।तुम्हारे सास, ससुर की देखभाल कौन करेगा”।
उसने तुरंत पलट कर जवाब दिया “मैंने शादी सिर्फ उनकी सेवा के लिए थोड़ी ना की है।उनकी सेवा के लिए घर में और भी लोग हैं”। और वह धाराप्रवाह आगे को बोलती रही।दीदी मैंने तो इनको बड़ी होशियारी से व मुश्किल से पटाया कि मुंबई में ही फ्लैट ले लें।और बड़ी मुश्किल से परिवार से अलग होकर मैं मुंबई में अकेली अपने हिसाब से अपने पति के साथ रहती हूं।अब क्योंकि हमने फ्लैट ले लिया है तो मैं वही रहूंगी।
मैं सुनकर हैरान थी कि कल तक अपनी भाभी को सेवा का पाठ पढ़ाने वाली यह लड़की ससुराल पहुंचते ही इतना कैसे बदल गई। भाभी से हमेशा यही बोलती थी कि मायके तभी जाना जब आपके मां-बाप बिल्कुल बूढ़े हो जाए या कुछ करने योग्य न रहें ।
भाभी अगर कभी मां-बाप के बीमार होने में उनको देखने के लिए मायके जाने को कहती तो चढ़ जाती थी। लेकिन आज जब वह खुद यह सब कर रही है तो उसको इसमें कुछ भी बुरा नजर नहीं आ रहा है। इतने दोहरे मापदंड क्यों ?
सच में बेटियां कितनी समझदार होती हैं।वो शादी करती हैं और अपनी सारी होशियारी अपने पति को इस बात को समझाने में लगा देती हैं कि असली सुख परिवार से अलग होकर रहने में ही है ।और सच में परिवार से अलग होकर अपने पति के साथ एक छोटी सी सुखी गृहस्थी भी बसा लेती है।लेकिन अगर बहू यही काम करें तो यह गलत होता है।बेटियां दोहरे मापदंड अपना कर भी सुखी रह सकती है।
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