short inspirational story in Hindi : 3 छोटी हिन्दी कहानियां
Story No -1
short inspirational story in Hindi
अच्छे लोग बुरे लोग
एक बार नानक जी अपने शिष्यों के साथ किसी गाँव के पास से गुजर रहे थे।रात होने के कारण उन्होंने उसी गांव में रुकने का निर्णय लिया।और अपने दो शिष्यों को आदेश दिया कि वह गांव पर जाकर सभी शिष्यों के खाने के लिए भोजन मांग कर लाए।गुरु की आज्ञा पाकर दोनों शिष्य गांव की ओर चले गए।और उन्होंने गांव वालों को बताया कि स्वयं श्री सद्गुरु नानक जी अपने शिष्यों के साथ पधारे है।
परंतु गांव वालों ने उनकी बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया।और नानक देव जी और उनके शिष्यों के भोजन का प्रबंध भी नहीं किया।शिष्य वापस आ गए।आकर सब बात नानक जी को बताई।नानक जी मुस्कुराए।और कहने लगे आज सभी पानी पीकर रहेंगे और सभी ध्यान-साधना करेगे। सुबह होते ही अपने गंतव्य को चलेंगे।
सभी ने आज्ञा का पालन किया।सुबह जब सब चलने लगे तो नानक जी ने गाँव की ओर मुख किया और दोनो हाथ उठा कर बोले ” हमेशा यही बसते रहो… बसते रहो !!!!!”।
सभी आगे को चल दिए।जंगल के रस्ते से चलते हुए जब दूसरे गाँव पहुचे तो उस समय संध्या हो रही थी। फिर से नानक जी ने अपने शिष्यों के साथ गांव के बाहर डेरा डाल दिया। सभी गाँव के बाहर रुके।और फिर गुरुजी ने दो शिष्यों को आदेश दिया कि वह गांव जाकर गांव वालों से भोजन आदि मांग कर लाए। वो गाँव में गए और सब को बताया नानक जी आए है और उन्होंने भोजन की मांग की है।
कुछ देर बाद गांव का सरपंच सभी गाँव वालो के साथ गुरु जी के पास आया।और उन्हें गाँव में आने की विनय करने लगा।सद्गुरु ने उसकी बात मान ली।इसके बाद गांव के सरपंच व गाँव वालों ने गुरूजी और शिष्यों की बहुत सेवा की।
सुबह जब चलने लगे तो सद्गुरु नानक जी गाँव की तरफ दोनो हाथ उठा कर बोले “उजड़ जाओ ….. उजड़ जाओ”।कह कर आगे चल दिए।अब सभी शिष्य हैरान हुए। पर कोई भी कुछ नहीं बोल पाया लेकिन जिज्ञासा सभी शिष्यों के मन में थी।आखिर गुरु जी ने ऐसे शब्द क्यों बोले।
तभी एक शिष्य ने हिम्मत कर पुछ ही लिया कि “जिन लोगो ने संतों का सत्कार नही किया।आपने उन्हें कहा “बसते रहो” और जिन्होंने संतों का सत्कार किया। उन्हें आपने कहा “उजड जाओ , बिखर जाओ ऐसा क्यो ???”।
नानक जी बोले “आप बताओ गन्दगी को बिखेराना चाहिए या समेट कर रखना चाहिए ?? ” ।शिष्य बोले “समेट कर रखना चाहिए”।नानक बोले ” फूलों को समेटना चाहिए या बिखेराना चाहिए ??”।शिष्य बोले “बिखेरना”।
नानक जी बोले “इसलिए जिन्होने संतों का सत्कार नही किया। उन्हे मैने कहा “एक जगह सिमट कर रहो।नही तो दूसरी जगह जाकर वहाँ भी अपने संस्कार फैलाओगे “।और जिन्होंने संतों का सत्कार किया। उन्हे मैने कहा ” बिखर जाओ “।क्योकि वो जहाँ भी जाएंगे , फूलों की तरह खुशबू ही फैलाएगे।अपने संस्कार ही फैलाएगे। व हर दिल को रोशन कर जाएंगे व खुशियों से भर देंगे।
सीख (Moral of the story )
अच्छे व सद्विचारों के लोग दुनिया में जहां भी रहेंगे। वह अपने विचारों व व्यवहार से लोगों को खुशी व आनंद प्रदान करेंगे। वह हमेशा दूसरों की मदद करने का प्रयास करेंगे ।सदबुद्धि व सदविचार वाले लोग सारी दुनिया खुशियों से भर देंगे ।संतों की सेवा करना भारत की संस्कृति है।
Story No – 2
अहंकार का दुष्परिणाम
द्रोणाचार्य एक दिन अपने पुत्र अश्वत्थामा को दूध के लिए रोते देख द्रवित उठे।उस समय द्रोणाचार्य की माली हालत ठीक नहीं थी।ऐसे में उन्हें अपने परम मित्र राजा द्रुपद को याद आयी। राजा द्रुपद और द्रोणाचार्य गुरुकुल में सहपाठी थे।द्रोणाचार्य ने सोचा कि यदि वह राजा द्रुपद के पास जाकर उनको अपनी स्थिति से अवगत कराएं।वो शायद राजा द्रुपद उनकी कुछ मदद कर दें।
इसीलिए एक दिन द्रोणाचार्य राजा द्रुपद के पास गये।और उनसे उनका मित्र होने के नाते मदद की बात की। लेकिन राजा द्रुपद ने भी अहंकार वश कहा “ब्रहाम्ण होने के नाते मैं तुम्हें भिक्षा के रूप में कुछ दे सकता हूं।पर मुझसे मित्रता का दंभ मत भरो। मित्रता बराबर लोगों होती है”।
यह सुन द्रोणाचार्य का स्वाभिमान जाग उठा।वह खाली हाथ घर लौटे।और उस दिन उन्होंने मन में एक दृढ संकल्प लिया कि राजा का अभिमान चूर-चूर करके ही चैन से बैठेंगे।द्रोणाचार्य धनुर्विद्या के महान आचार्य थे।
एक दिन वो हस्तिनापुर पहुंचे।और हस्तिनापुर के राजा ने कौरव और पांडव पुत्रों को शस्त्र विद्द्या की शिक्षा देने के लिए उन्हें नियुक्त कर लिया।उन्होंने सभी राजकुमारों को शस्त्रर्विद्या में निपुण बना दिया।जब शिष्यों ने उनसे गुरुदक्षिणा लेने की प्रार्थना की।तो उन्होंने राजा द्रुपद के राज्य पर आक्रमण करने की आजा दी।
सभी राजकुमारों ने राजा द्रुपद के राज्य पर आक्रमण कर दिया। राजा द्रुपद इस युद्ध में परास्त हो गये।शिष्यों ने उन्हें बंदी बनाकर गुरु के सामने पेश किया।द्रोणाचार्य ने राजा द्रुपद से कहा “हे राजन ! अब बताओ मित्रता हो सकती हैं या नहीं”। राजा द्रुपद को पुरानी बात याद गई। उन्होंने द्रोणाचार्य से माफी मांग ली।
Moral Of The Story
अहंकार मनुष्य का सदा सर्वनाश ही करता हैं।
Story No -3
अनूठी करुणा
महर्षि च्यवन परोपकारी संत थे। वह कहा करते थे कि मूक जीवों के प्रति दया करना सर्वोपरि धर्म है । महर्षि अपने आश्रम में बैठकर स्वयं पक्षियों को दाना चुगाया करते थे।और गौ माता की सेवा किया करते थे। एक बार महर्षि नदी की गहराई में जल के भीतर बैठकर मंत्र जाप कर रहे थे।
इतने में कुछ मछुआरे वहां आये। और उन्होंने मछलियां पकड़ने के लिए नदी में जाल फेंका।कुछ देर बाद जब मछुआरों ने जाल वापस खींचा गया।तो उसमें मछलियों के साथ महर्षि च्यवन भी जाल में बाहर आ गए। मल्लाह महर्षि च्यवन को जाल में फंसा देखकर घबरा गए।उन्होंने महर्षि से जाल से बाहर निकल आने की प्रार्थना की।
लेकिन महर्षि मछलियों को पानी बिना तड़पते देखकर द्रवित हो उठे। उन्होंने कहा “मछलियों को पुनः जल में छोड़ देंगे।तभी मैं जाल से बाहर आऊंगा।अन्यथा मैं भी इन्हीं के साथ प्राण दे दंगा”। यह समाचार राजा नुहष के पास पहुंचा। वह तुरंत नदी तट पर पहुंचे।वहां पहुंच कर राजा ने महर्षि को प्रणाम कियाऔर जाल से बाहर आने की विनती करने लगे।
महर्षि ने कहा “राजन इन मछुआरों ने परिश्रम करके मछलियों को जाल में फंसाया है। यदि आप इन्हें मेरा तथा मछलियों का मूल्य चुका दें। तो हम सब जाल से मुक्त हो जाएंगे”। राजा ने मछुआरों को स्वर्णमुद्राएं देने की पेशकश की।
यह देख पास ही खड़े एक संत ने कहा “महर्षि का मूल्य स्वर्णमुद्राओं से नहीं आंका जा सकता।आप गाय भेंट कर इन्हें बचा सकते हैं”। इसके बाद राजा नुहष ने गाय देकर महर्षि व मछलियों को जाल से मुक्त करा लिया।
Moral Of The Story (अनूठी करुणा)
यह कहानी हमें यह संदेश देती है कि हमें इस दुनिया के हर प्राणी के प्रति दया व करुणा का भाव रखना चाहिए।फिर चाहे वह कोई इन्सान हो या फिर अन्य जीव जंतु।
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